रविवार, 30 जून 2024

मानस चर्चा "दारु नारि"

 मानस चर्चा "दारु नारि"
प्रसंग
सारद दारु नारि सम स्वामी । 
राम सूत्रधर अंतरजामी ॥
जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी ।
कबि उर अजिर नचावहिं बानी ।।
 दारु नारि क्या है? यह है लकड़ीकी बनी हुई स्त्री-कठपुतली। पूरी दुनिया है दारु नारि।। आइए उक्त चौपाई के आधार पर इस विषय पर चर्चा करें उसके पहले जानते हैं की उक्त पक्तियांं क्या कहती हैं।
उक्त पक्तियों  के अनुसार सरस्वतीजी कठपुतलीके समान हैं । अन्तर्यामी स्वामी श्रीरामजी सूत्रधर हैं ॥ अपना जन जानकर जिस कविपर वे कृपा करते हैं उसके हृदयरूपी आँगनमें  वे वाणी को नचाते हैं ॥ 
"कठपुतलीका स्वामी होता है जो उसे सूत्र धरकर नचाता
है । यहाँ श्रीरामजी शारदाके स्वामी हैं, अन्तर्यामीरूपसे उसे नचाते हैं। तात्पर्य कि अन्तर्यामी श्रीरामजी शारदाके
स्वामी हैं, शारदाको प्रेरित करते हैं । दाशरथि श्रीरामजी एकपत्नीव्रत श्रीसीताजीके ही स्वामी हैं, इसीसे अन्तर्यामीरूप पृथक् कहा। वाणी जड़ है, अन्तर्यामी प्रेरणा करता है तब निकलती है, इसीसे वाणीको कठपुतलीके समान कहा; यथा-
 'बिषय करन सुर जीव समेता।
 सकल एक तें एक सचेता ।
 सबकर परम प्रकासक जोई।
 राम अनादि अवधपति सोई ॥''स्वामी' कहकर यह भी जनाया कि मेरे ही स्वामी सरस्वतीके नचानेवाले हैं, अतः मुझपर कृपा करके वे उसे अच्छी तरह नचावेंगे। 'अंतरजामी' का भाव कि कठपुतलीको नचानेवाला छिपकर बैठता है और सूत्रपर कठपुतलीको नचाता है तथा श्रीरामजी अन्तर्यामी रूपसे वाणीको नचाते हैं। ये भी छिपे बैठे हैं, अन्तर्यामी रूप देख नहीं पड़ता । आप शिवजी को सुने कि वे मां पार्वतीजी से कहते हैं --
 'उमा दारु जोषित की नाईं । सबहि नचावत राम गोसाईं।  इस चौपाईमें ग्रन्थकारने श्रीरामजीका अन्तर्यामी रूपसे सबको नचाना कहा ही है ।गीतामें भी कहा है 
 'ईश्वर: सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति ।
 भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया ॥ ' 
 अर्थात् शरीररूप यन्त्रमें आरूढ़ हुए सम्पूर्ण प्राणियोंको अन्तर्यामी परमेश्वर अपनी मायासे उनके कर्मोंके अनुसार भ्रमाता हुआ सब प्राणियों के हृदयमें स्थित है। और  भी कहा है कि 
'ईशस्य हि वशे लोके योषा दारुमयी यथा' 
अर्थात् कठपुतली समान यह सम्पूर्ण लोक ईश्वरके वशीभूत है । यहाँ नचानेवाला, नाचनेवाला और नचानेका स्थान तीनों उत्कृष्ट हैं— श्रीरामजी ऐसे नचानेवाले, शारदा ऐसी कठपुतली और 'जन- उर' आँगन है।
 'राम सूत्रधर' हैं। सुमिरि गिरापति प्रभु धनुपानी' में श्रीरामजीको 'गिरापति' कह आये हैं,
उसी अर्थको यहाँ पुनः ज्ञापकहेतुद्वारा युक्तिसे समर्थन किया है अर्थात् वाणीके सूत्रधर हैं, उसे नचाते हैं, इससे
जान पड़ा कि वे उसके स्वामी हैं। 
 कठपुतली तार या घोड़ेके बालके सहारे नचायी जाती है, जिसे 'सूत्र' कहते हैं । कठपुतलीकोnनचानेवाला ‘सूत्रधर’ परदेमें छिपकर बैठता है। वैसे ही सूत्रधर राम गोसाईं देख नहीं पड़ते। साधारण पुरुष केवल सरस्वतीकी क्रिया देखते हैं।   'सारद दारु नारि' की व्याख्यामें एक भजन  बहुत भी   उत्तम कोटि का प्रस्तुत है- 
'धनि कारीगर करतारको पुतलीका खेल बनाया। 
बिना हुक्म नहि हाथ उठावे बैठी रहे नहिं पार बसावे ॥ हुक्म होइ तो नाच नचावै जब आप हिलावे तार को। 
 जिसने यह जगत रचाया ॥ १ ॥ 
जगदीश्वर तो कारीगर है पाँचों तत्त्वकी पुतली नर है।
नाचे कूदे नहि वजर है पुतलीघर संसारको । 
बिन ज्ञान नजर नहि आया ॥ 
उसके हाथमें सबकी डोरी कभी नचावे काली गोरी । किसीकी नहि चलती बरजोरी तज दे झूठ बिचारको ।
 नहिं पार किसीने पाया ॥ 
परलयमें हो बंद तमासा फेर दुबारा रच दे खासा । 'छज्जूराम' को हरिकी आसा है धन्यवाद हुशियारको । आपे में आप समाया ॥ 
'धनि कारीगर करतारको पुतलीका खेल बनाया। 
।। जय श्री राम जय हनुमान।।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें