रविवार, 28 मई 2023

पुराण

               ।।पुराण।।
मद्वयं भद्वयं शैवं वत्रयं ब्रत्रयं तथा।
अ ना प लिं ग कू स्कानि पुराणानि पृथक् पृथक्।।
                  ( महिम्नस्त्रोत्र मधुसूदनटीका )
मद्वयं= मत्स्यपुराण,मार्कण्डेयपुराण
भद्वयं=भविष्यपुराण, भागवतपुराण
शैवं   = शिवपुराण
वत्रयं =विष्णुपुराण, वाराहपुराण, वामनपुराण
ब्रत्रयं =ब्रह्मपुराण,ब्रह्मांडपुराण, ब्रह्मवैवर्तपुराण
अ     = अग्निपुराण
ना     = नारदपुराण
प      = पद्मपुराण
लिं    = लिंगपुराण
ग      = गरुड़पुराण
कू     = कूर्मपुराण
स्कानि=  स्कंदपुराण
इस प्रकार कुल अठारह पुराण हैं।

शनिवार, 13 मई 2023

।।राम की श्री हैं माँ सीता।।

         ।।राम की श्री हैं माँ सीता।।
जब हम श्रीराम कहते हैं, तो उसमें श्री शब्द माँ सीता के लिए आता है,वह राम की शक्ति और शोभा हैं, पुत्री, पुत्रवधू, पत्‍‌नी और माँ के रूप में वह हर पुत्री, पुत्रवधू, पत्‍‌नी और माँ के लिए आदर्श हैं।भगवती सीता भगवान श्रीरामचंद्र की शक्ति और राम-कथा की प्राण हैं।तभी तो गोस्वामी तुलसीदासजी उनकी वन्दना इस प्रकार कर रहे हैं---
उद्भव- स्थिति-संहारकारिणीं क्लेशहारिणीम्।
सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम्॥
संसार की उत्पत्ति, पालन, संहार करने वाली, समस्त क्लेशों को हरने वाली, सब प्रकार से कल्याण करने वाली, श्रीरामचंद्र की प्रियतमा सीताजी को मैं नमस्कार करता हूं।

सृष्टि को उत्पन्न करने का कार्य ब्रह्माजी का, पालन करने का काम विष्णुजी का तथा संहार करने का काम महाकाल (शंकरजी) का है, परंतु सीताजी में इन त्रिदेवों की शक्तियां समाहित हैं।

 मानस के बालकांड में उनके उद्भव रूप के दर्शन मिलते हैं, उनके विवाह तक संपूर्ण आकर्षण, सारी क्रियाएं सीता में समाविष्ट हैं जहाँ उनका ऐश्वर्य रूप प्रदर्शित होता है।

अयोध्या कांड से अरण्यकांड तक वह स्थितिकारिणी, करुणा की मूर्ति, क्षमा स्वरूपा हैं यहां तक कि जब जयंत उनके पांव पर चोट पहुंचाता है फिर भी वह उन्हें क्षमा कर देती हैं। 

लंकाकांड में आकर वह संहारकारिणी रूप में प्रकट होती हैं। यहाँ वह कालरात्रि बन जाती हैं तथा उचित अवसर आने पर रावण के संपूर्ण वंश के संहार की कारण बनती हैं। 

 किष्किंधाकांड एवं सुंदरकांड में क्लेशहारिणी, उत्तरकांड में सर्वश्रेयस्करीऔर प्रभु श्री राम वल्लभा रूप का दर्शन सर्वत्र होता है।

भगवान श्रीराम की तरह भगवती सीता भी षडैश्वर्य-संयुक्ता हैं। ।

 व्युत्पत्ति के आधार पर सीता— उद्भव-जगत की उत्पत्तिकर्ता-बह्मा(सूयते चराचर जगत),स्थिति- ऐश्वर्ययुक्त पालनकर्ता-विष्णु (सवति इति सीता),संहार- संहारकर्ता-महादेव (स्यति इति सीता ), क्लेशहारिणी-सर्वत्र गामिनी (श्यायते इति सीता)
सर्वश्रेयस्करी--सद्बुद्धि दात्री-सद्प्रेरक (सुवति इति सीता)रामवल्लभा-वशकारिणी (सिनोति इति सीता)हैं और यहाँ इनके इन छः रूपों की अद्भुत ढंग से वन्दना की गयी हैं।इसकी पुष्टि तो अनेक स्थानों पर की गई है-
1:-श्रुति सेतु पालक राम तुम्ह जगदीस माया     जानकी।
जो सृजति जगु पालति हरति रुख पाइ कृपानिधान 
की॥
2:-जासु अंस उपजहिं गुनखानी।
     अगनित लच्छि उमा ब्रह्मानी॥
    भृकुटि बिलास जासु जग होई। 
     राम बाम दिसि सीता सोई॥
भगवान राम जगत पिता तो माता जानकी जगत जननी हैं।हमारे शास्त्रों में--
मातृ देवो भव!पितृ देवो भव!आचार्य देवो भव!  के साथ ही साथ मातृमान, पितृमान, आचार्यवान् पुरुषों वेद कहा गया है।माता ही आदि गुरु हैं यह तो हम सब जानते ही हैं।पिता से माता का गौरव दसगुना कहा गया है:-
।।पितृदशगुणा माता गौरवेणातिरिच्यते।।
आइये हम निर्मल बुद्धि दायिनी रामवल्लभा का वन्दन  करें--
जनकसुता जग जननि जानकी। 
अतिसय प्रिय करुनानिधान की॥
ताके जुग पद कमल मनावउँ। 
जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ॥
     ।।जय श्री राम जय हनुमान।।

शनिवार, 6 मई 2023

।।मानव मात्र के आराध्य दाशरथि राम।।

।।मानव मात्र के आराध्य दाशरथि राम।।

मैथिलीशरणजी के शब्दों में रामजी का कथन--

संदेश यहाँ मैं नहीं स्वर्ग का लाया,

इस भूतल को ही स्वर्ग बनाने आया।

ऐसे राम निश्चित रुप से धरती को स्वर्ग बनाने वाले औऱ जन-जन के आराध्य  हैं ही जिनके बारे में महर्षि वाल्मीकिजी ने  ‘रामो सत्यैव नापर:’ अर्थात् राम स्वयं सत्य ही हैं कहाँ तो गोस्वामी तुलसीदासजी ने "रामु सत्यसंकल्प प्रभु" कहाँ और इनके गुणगान करने और सुनने वाले दोनों की  सुन्दर वन्दना किया--

सीता-राम गुणग्राम-पुण्यारण्यविहारिणौ।

वन्दे विशुद्ध विज्ञानौ कवीश्वर-कपीश्वरौ॥’’

यहाँ एक कवीश्वर हैं जिनके बारे में विख्यात है-

कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्। 

आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥

और एक कपीश्वर हैं जिनके प्राण राम कथा में ही वसते हैं-

यावद् रामकथा वीर चरिष्यति महीतले ।

तावच्छरीरे वत्स्यन्तु प्राणा मम न संशय:।

यही नहीं--

यत्र यत्र रघुनाथ कीर्तनं
तत्र तत्र कृतमस्तकाञ्जलिम् ।
भाष्पवारि परिपूर्ण लोचनं

मारुतिं नमत राक्षसान्तकम् ।।

अब जब विशुद्ध विज्ञानी जन जिस सीता राम गुणग्राम के पुण्यारण्य में विहार कर रहे है वे सीता राम तो निश्चित रुप से हर नर-नारी के आदर्श और आराध्य हैं ही।हम ऐसे प्रभु सीता-राम और इनके चरित-कानन के विहारी महर्षि वाल्मीकि एवं प्रभु हनुमानजी की वन्दना करते हैं।

रामचरित का मानव मात्र में प्रचार-प्रसार महर्षि वाल्मीकिजी ,गोस्वामी तुलसीदासजी की देन है।  भगवान राम इस धरती को स्वर्ग बनाने के लिए प्रकट हुए थे। जिज्ञासा जितनी बड़ी थी, उतनी ही बड़ी खोज थी। राम के जीवन की उदात्तता को देखकर आधुनिक कवि मैथिलीशरण गुप्त ने कहा था-

‘‘राम तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है,

कोई कवि बन जाए सहज संभाव्य है।’’

हम मानव मात्र के आराध्य राम और भाइयों की वन्दना करते हैं- कि वे समस्त मानव की मनोकामना पूर्ण करें-

राम भरत लछिमन ललित, सत्रु समन सुभ नाम।

सुमिरत दसरथ सुवन सब, पूजहिं सब मन काम॥

      ।।जय श्री राम जय हनुमान।।