मंगलवार, 28 सितंबर 2021

।। आकाश के पर्यायवाची शब्द।।

     ।। आकाश के पर्यायवाची शब्द।।
         (  तीन दोहों में 37  पर्याय )
आकाश अधर आसमाँ,
            अर्श अनन्त अम्बर।
आसमान अंतरिक्ष अभ्र,
           स्काई स्पेस पुष्कर।।1।।
विष्णुपद सारंग फलक,
          दिव व्योम नभमंडल।
उर्ध्वलोक द्युलोक नाक,
         ख गगन वायुमंडल।।2।।
गगनलोक गगनमण्डल 
            धौ शून्य तारापथ।
चर्ष हेवन स्वर्ग शीर्ष,
             दिव्य द्यु  नभ छायपथ।।3।।
इन दोहों में आये सभी के सभी
शब्द आकाश के पर्याय हैं।
 ।।धन्यवाद।।

शनिवार, 25 सितंबर 2021

पर्यायवाची शब्द सूर्य के

      ।।पर्यायवाची शब्द सूर्य के।।
      (तीन दोहों में तैतीस पर्याय)
भानु रवि मित्र मरीची ,मन्दार प्रभाकर।
विहंगम अरुण आदित्य,अंशुमाली दिनकर।।1।।
आफ़ताब सविता हरि,अर्क तरणि दिवाकर।
सूरज पतंग मार्तण्ड,हंस दिनेश भास्कर।।2।।
अंशुमान दिनमणि सूर्य,आक मिहिर दिवाचर।
हेमकर प्लवंग तिमिरहर,विवस्वान दिवसकर।।3।।
।। धन्यवाद।।
      

            




              

बुधवार, 22 सितंबर 2021

।।धन वृद्धि के वास्तु ट्रिप्स।।

        ।।धन वृद्धि के वास्तु ट्रिप्स।।

       कहा जाता है कि वास्तु शास्त्र के हिसाब से घर में कुछ जरूरी बदलाव करके जीवन को समृद्ध बनाया जा सकता है। वास्तु अनुसार हर चीज को रखने की एक दिशा निर्धारित होती है। अगर आप दिशा का ध्यान में रखते हुए कोई समान रखेंगे तो इससे घर में सकारात्मकता आने के साथ धन-धान्य की कमी भी दूर हो सकती है। यहां आप जानेंगे वास्तु की कुछ जरूरी और महत्वपूर्ण बातें जिन्हें अपनाकर आप अपना जीवन सुखमय बना सकते हैं।

ध्यान रखें कि जिस अलमारी या तिजोरी में आप पैसा रखते हैं उसे हमेशा पश्चिम दिशा की ओर रखें जिससे उसका दरवाजा पूर्व दिशा की तरफ खुले। मान्यता है ऐसा करने से घर-परिवार में कभी धन-धान्य की कमी नहीं होती। ध्यान रखें कि तिजोरी को कभी भी खाली नहीं रखना चाहिए। तिजोरी में एक शीशा इस तरह से लगाना चाहिए जिससे धन ता प्रतिबिंब उसमें दिखता रहे।

     धन प्राप्ति के लिए घर के उत्तर पूर्व कोने में अक्वेरियम रखना चाहिए। इसमें काले और सुनहरे रंग की मछलियां जरूर डालें। ऐसा करने से धन की कभी कमी नहीं होगी

      वास्तु अनुसार घर के कमरे में मोर का पंख रखने से आर्थिक स्थिति अच्छी रहती है। घर के मुख्य दरवाजे पर अंदर और बाहर की तरफ गणेश जी की दो प्रतिमाएं इस तरह से लगाएं जिसे उन मूर्तियों की पीठ एक दूसरे से जुड़ी रहे। मान्यता है ऐसा करने से धन में वृद्धि होती है।

      घर के ईशान कोण में तुलसी का पौधा रखें और उसकी सुबह शाम पूजा करें। ऐसा करने से धन आवक में तेजी से वृद्धि होने लगती है।

      घर की उत्तर दिशा में नीले रंग का पिरामिड रखें। मान्यता है ऐसा करने से धन की कभी कमी नहीं होती। संभव हो तो इस दिशा की दीवारों का रंग भी हल्का नीला करवाएं

     उत्तर दिशा में हमेशा कांच का बड़ा सा बाउल या दर्पण रखना चाहिए। मान्यता है ऐसा करने से देवी लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है।

     घर की उत्तर दिशा में पानी की टंकी रखें और उसमें शंख, चांदी का सिक्का या फिर चांदी का कछुआ रखें ऐसा करने से धन लाभ होने के प्रबल आसार रहते हैं।

                  ।।धन्यवाद।।


शनिवार, 18 सितंबर 2021

।। √श्रीशिवस्तुति- श्रीराम प्रिय अष्टमूर्ति शिव।।

     ।।राजा राम प्रिय शिव की स्तुति।।
  मूलं धर्मतरोर्विवेकजलधेः पूर्णेन्दुमानन्ददं
  वैराग्याम्बुजभास्करं ह्यघघनध्वान्तापहं तापहम्।
  मोहाम्भोधरपूगपाटनविधौ स्वःसम्भवं शङ्करं
  वन्दे ब्रह्मकुलं कलंकशमनं श्रीरामभूपप्रियम्।।
     मूलं धर्म  धर्म के मूल कौन धर्म /कर्म करने वाले (1)यज्ञ करने वाले धार्मिक और कर्म करने वाले हमारे अन्नदाता  के प्रथम स्वरूप में हैं भगवान शंकर इसीलिये तो धर्म करने वाले और कर्म करने वाले  की पूजा होती है,अंग्रेजी में एक प्रसिद्ध कथन भी तो है "work is worship " "कर्म ही पूजा है "अतः जो इन्सान ईमानदारी से  अपना काम करता है वह प्रथम शिव स्वरूप बन जन मन मानस में माननीय पूज्यनीय और वन्दनीय हो ही जाता है । (2) मूलं धर्मतरो: धर्म रूपी वृक्ष के मूल में है पृथ्वी  जो हमें सब कुछ देती है ऐसी पृथ्वी  है भगवान शंकर का दूसरा स्वरूप जो मूल है और मूल की साधना से मनुष्य को निःसंदेह  सब कुछ मिल ही जाता है। रहीमजी ने भी एक दोहे में कहा है:- एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय। रहिमन मूलहिं सींचिबो,  फूलै फलै अघाय।। अतः द्वितीय स्वरूप  पृथ्वी के रूप में शिव  की आराधना से सब कुछ मिलता ही है और हमारी पृथ्वी हमारी मातृभूमि के रूप में शिव सदा वन्दनीय है।  विवेकजलधेः विवेक/ज्ञान रूपी समुद्र अर्थात (3) तीसरे रूप में जल स्वरूप हैं भगवान शंकर जिसके बिना जीवन की कल्पना करना भी असम्भव है कहा भी गया है "water is life" "जल ही जीवन है"अतः अपने तीसरे स्वरूप जल के रूप में गंगा ,यमुना ,सरस्वती नर्मदा ,सिन्धु ,कावेरी आदि विभिन्न स्वरूपों में शिव सदा वन्दनीय ही हैं।  पूर्णेन्दुमानन्ददं (4)   जो  विवेक/ज्ञान रूपी  समुद्र को आनंद देने वाले पूर्ण चंद्र हैं अर्थात (4) चौथे रूप में चन्द्र स्वरूप  हैं भगवान शंकर। वैराग्याम्बुजभास्करं   वैराग्य/भक्ति(उपासना) रूपी कमल को विकसित करने वाले अर्थात भक्तों को आनन्द देने वाले (5) पाँचवें रूप में सूर्य स्वरूप हैं भगवान शंकर जो  ह्यघघनध्वान्तापहं तापहम्‌  पाप रूपी घोर अंधकार का निश्चय ही नाश कर देते हैं।सूर्य के तेज अर्थात( 6)  छठें रूप में अग्नि स्वरूप हैं भगवान शंकर।धर्म से पाप का नाश सूर्य से अंधकार का नाश और चंद्रमा से तापों का नाश अर्थात तीनों दैहिक दैविक भौतिक  तापों, कष्टों,दुःखों को हरने वाले हैं भगवान शंकर।  मोहाम्भोधरपूगपाटनविधौ स्वःसम्भवं शंकरं-   अम्बोधर और स्वः से (7)  सातवें रुप में आकाश स्वरूप है भगवान शंकर जो मोह  रूपी बादलों के समूह को सदा सदा के लिए इन्सान के जीवन से छिन्न-भिन्न कर देते हैं।  स्वःसम्भवं  अर्थात स्वयं  उत्पन्न (8)  आठवें यूपी में पवन स्वरूप हैं भगवान शंकर अर्थात हमारी प्राणवायु भी हैं भगवान शंकर।शंकर हैं  शं यानी कल्याण, कर यानी  करने वाले देव महादेव हैं भगवान शंकर ।इस प्रकार मानव कल्याण के लिये आठ स्वरूप धारण करने वाले  हैं भगवान शंकर     ब्रह्मकुलं  ब्रह्माजी के वंश के हैं वो कैसे एक बार ब्रह्माजी ने सृष्टि विकास के लिये सनत कुमारों को उत्पन्न किया लेकिन उन्होंने इस कार्य से मना कर सन्यास ले लिया अतः ब्रह्माजी के  क्रोध से नीलवर्ण का बालक उत्पन्न हुवा जो उत्पन्न होते ही रोना प्रारम्भ कर दिया,  रोने के कारण उसका नाम रुद्र पड़ा  जो एकादश रुद्रों में एक हुवा रुद्र कौन भगवान शंकर अतः भगवान शंकर ब्रह्मा के कुल से हैं। कलंकशमनं सभी प्रकार के कलंक का नाश करने वाले है भगवान शंकर। महर्षि भृगु द्वारा विष्णु को लात मारने के और चंद्रमा द्वारा गुरु बृहस्पति पत्नी तारा के साथ सहवास करने के कलंक का नाश किया था भगवान शंकर ने। यहाँ तक कि जगजननी माता सीता के हरण करने वाले रावण के इतने बड़े कलंक का शमन भी शिव शरण होने के कारण ही  शिवप्रिय श्रीराम ने उसको जीवन मुक्त कर कर दिया।  इस प्रकार से महाराज श्री रामचन्द्रजी के प्रिय और जिनको महाराज श्री रामचन्द्रजी प्रिय हैं उस श्री शंकरजी की  हम
  वन्दे   वंदना करते हैं।
     अष्ठ मूर्ति भगवान शंकर   की वंदना महाकवि कालिदास ने भी अपने अभिज्ञानशाकुन्तल के मंगलाचरण में किया है:-
या सृष्टिः स्रष्टुराद्या वहति विधिहुतं या हविर्या च होत्री
ये द्वे कालं विधत्तः श्रुतिविषयगुणा या स्थिता व्याप्य विश्वम् ।
यामाहुः सर्वबीजप्रकृतिरिति यया प्राणिनः प्राणवन्तः
प्रत्यक्षाभिः प्रपन्नस्तनुभिरवतु वस्ताभिरष्टाभिरीशः 
           इन आठों मूर्तियों को धारण करने वाले शिव एक हैं और शिव के इस स्वरूप का सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इनका प्रत्येक रूप प्रत्यक्ष का विषय है। हम जो कुछ देख सकते हैं, जो कुछ जान सकते हैं वह सब शिवस्वरूप ही है अतः हम भगवान शिव जो महाराज श्री रामचन्द्रजी केअति प्रिय हैं और जिनको महाराज श्री रामचन्द्रजी अति प्रिय हैं उनकी वन्दे  वंदना  करते हैं कि वे हम पर प्रसन्न रहें और अपने इन आठ रूपों के द्वारा हमारी रक्षा करें।ॐ नमः शिवाय।।जय श्रीराम जय हनुमान,संकटमोचन कृपा निधान।।
                          ।।धन्यवाद।।

शुक्रवार, 17 सितंबर 2021

√पर्यायवाची सुबह-शाम,दिन और रात्रि के

पर्यायवाची सुबह शाम दिन और रात्रि के
सुबह:-
अरुणोदय प्रातःकाल,उषा प्रभात फजर।
प्रातः सकार भिनसार,निशान्त तड़का सहर।।1।।
अलस्सुबह ब्रह्ममुहूर्त,सुबह सबेरा डॉन।
दिनमुख सकाल प्रात पौ,मॉर्निंग भोर विहान।।2।।
शाम:-
सूर्यास्त सायं संध्या, स साँझ संध्याकाल।
इविनिंग गोधूलि शाम,दिनान्त सायंकाल।।1।।
दिन:-
 दिन दिवस दिवा तिथि काल,अह्न वार प्रमान।
याम वासर रोज सदा,समय डे हैं महान।।1।।
रात:-
रात्रि रैन रजनी निशा,यामिनी तमी रात।
निशिथ निशिथनी नाईट,तमिस्रा दोषा ध्वांत।।1।।
कादम्बरी विभावरी,क्षपा अमा तमा तम।
राका यामा शर्वरी,क्षणदा हरे हर गम।।2।।
निशि त्रियामा तमश्विनी,नहीं मचायें शोर।।
रिते सब रजनी विषाद, होवे मंगल भोर।।3।।

              ।।  धन्यवाद  ।।

शनिवार, 11 सितंबर 2021

√पर्यायवाची सरस्वती के

               पर्यायवाची सरस्वती के
(तीन पद्यों में अठ्ठाईस सरस्वती के पर्याय)
सरस्वती वीणापाणी।
बुद्धिदात्री ब्रह्मचारिणी।।
विश्वेश्वरी पुष्पकारुणा।
अरविंदासिनी कमलारुणा।।1।।
मतिदायिनी शशिवर्णिनी।
बुद्धिदायिनी ज्ञानदायिनी।।
ज्ञानदा विमला जगदीश्वरी।
गिरा वागीश वागीश्वरी।।2।।
शारदा भारती कमलासना।
वीणावादिनी पद्मासना।।
महाश्वेता हंसवाहिनी।
ब्राह्मी वाग्देवी पद्मसिनी।।3।।

                    ।।  धन्यवाद।।

शुक्रवार, 10 सितंबर 2021

√पर्यायवाची गणेश जी के

           ।।  गणेश के पर्यायवाची  ।।   
गणेश जी के 39 नाम 6 दोहों में पर्याय के रुप में )
बंदउ गणपति गजबदन,गौरीपुत्र विनायक
गौरीसुत शंकरसुवन,गजकर्ण सुखदायक।।1।।
कृष्णपिंगाक्ष हेरम्ब,वक्रतुंड एकदन्त
भवानीनन्दन गणेश,रिद्धिसिद्धिकेकन्त।।2।। 
गणाध्यक्ष गयवदन सुमुख,विघ्नराजेंद्र विकट
भालचंद धूम्रवर्ण ,धूम्रकेतु प्रगट।।3।।
मंगलदाता गांगेय,द्वैमातुर रक्तवर्ण।
बुद्धिविधाता तू कपिल,सिद्धेश्वर शूर्पकर्ण।।4।।
नित नमन सिन्दूरवदन, गजवक्त्र गजानन।
मोदकप्रिय लम्बोदर, तात प्रिय षडानन।।5।।
विद्यावारिधि बुद्धिदाता,आदिपूज्य विख्यात
विघ्न हरौ सदा सबके,हे गजमुख  सुख्यात।।6।।
                ।।धन्यवाद।।

√पर्याय अग्नि का और बड़वानल कथा

।। आग के पर्यायवाची-बड़वानल कथा।।
     (तीन दोहों में 32 पर्याय)
रोहिताश्व आग आतिश,
          वैश्वानर दव अनल।
पावक उष्मा ताप शुचि,
           अग्नि हुताशन तपन।।1।।
धूमध्वज  बाड़व जलन,
             कृशानु ज्वाला दहन।
वायुसखा सागरानल,
           दावाग्नि दावानल।।2।। जंगल की आग
जातवेद ज्वलन वह्नि,
          जठराग्नि जठरानल। पेट की आग
धूमकेतु व पांचजन्य,
           बड़वाग्नि बड़वानल।।3।। समुद्र की आग जिसे सागरानल भी कहते हैं।
 अन्तिम दोहे के बड़वाग्नि  और बड़वानल 
की कथा को भी जान लेते हैं।
 कालिका पुराण  के अनुसार महादेव की वह क्रोधाग्नि जिसने कामदेव को भस्म कर दिया उसी को संसार कल्याण हेतु पितामह ब्रह्मा ने बड़वा/ घोड़ी के रूप में सागर के हवाले कर दिया ।
बाल्मीकि रामायण के अनुसार और्व ऋषि का क्रोध रूपी तेज ब्रह्माजी के आशीर्वाद से सागर में सागर जल जलाता हुवा सागर के जल स्तर को शान्त रखता है और कल्पान्त में सागर से बाहर आकर संसार को भस्म करेगा तथा सागर का जल इनके अभाव में विकराल बन जल प्रलय लायेगा और दोनों मिलकर सृष्टि समाप्त कर देगें।
                        धन्यवाद

शुक्रवार, 3 सितंबर 2021

√पर्याय पानी कमल सिंधु बादल पुष्प

पानी:-
सलिल सत्य सारंग पय,
               अम्बु वारि जल नीर।
पानी आपु आब अम्भ,
               उद उदक तोय क्षीर।।
कमल:-
 अम्बुज नीरज राजीव,
          शतदल जलज सरोज।
 पद्म पंकज अब्ज कंज,
               पुण्डरीक अम्भोज।।
समुद्र:-
सिंधु जलधि पारावार,
           तोयधि सागर पयधि।
समुद्र अम्बुधि रत्नाकर,
         नदीश  नीरधि उदधि।।स्वरचित
बाँध्यो बननिधि नीरनिधि जलधि सिंधु बारीस।
सत्य तोयनिधि कंपति उदधि पयोधि नदीस॥ गोस्वामी तुलसीदास
              बादल:-
पर्जन्य पयोधर जलद
           जीमूत धाराधर।
अंबुद वारिद बलाहक,
       अभ्र नीरद जलधर।।
पुष्प:-
पुष्प सदाबहार सदा ,
पुहुप फूल गुल सुमन।
प्रसून फ्लॉवर मंजरी, 
कुसुम का है वन्दन।।
।।धन्यवाद।।