शनिवार, 1 जून 2024

✓।।मानस-चर्चा भावी।।


।।मानस-चर्चा भावी।।
मानस-चर्चा भावी🙏'श्रीरामचरितमानस' में गोस्वामी तुलसीदासजी ने विधि की बात बताते हुए घोषित किया है,,,,,,,,,,,,,,
सुनहु भरत भावी प्रबल बिलखि कहेउ मुनिनाथ।
हानि लाभु जीवनु मरनु जसु अपजसु बिधि हाथ॥
यहां हम केवल भावी जिसे प्रारब्ध भी कहा जाता है उस पर ही चर्चा करेगें।
 प्रारब्ध तीन प्रकार के बताए गए हैं-
1. मन्द प्रारब्ध 2. तीव्र प्रारब्ध 3.तरतीव्र प्रारब्ध।
मंद प्रारब्ध को हम अपने पुरुषार्थ से बदल सकते हैं,
तीव्र प्रारब्ध हमारे पुरुषार्थ एवं संतों-महापुरुषों की कृपा से टल सकता है लेकिन "तरतीव्र प्रारब्ध" में जो होता है वह होकर ही रहता है।इसे हम इस कथा के माध्यम से जानते हैं।
एक बार रावण कहीं जा रहा था। रास्ते में उसे विधाता/ब्रह्माजी मिल गए। रावण ने उन्हें ठीक से पहचान लिया। उसने पूछाः
"हे विधाता ! आप कहाँ से पधार रहे हैं?"
''मैं कौशल देश गया था।"
"क्यों? 
कौशल देश में ऐसी क्या बात है?"
"कौशलनरेश के यहाँ बेटी का जन्म हुआ है।"
"अच्छा ! प्रभु उसके भाग्य में क्या है?" ब्रह्माजी ने बताया कि "कौशलनरेश की बेटी का भाग्य बहुत अच्छा है। उसकी शादी राजा दशरथ के साथ होगी। उसके घर स्वयं भगवान विष्णु श्रीराम के रूप में अवतरित होंगे और उन्हीं श्रीराम के साथ तुम्हारा युद्ध होगा। वे तुम्हें यमपुरी पहुँचायेंगे।" " रावण बोला ... विधाता ! तुम्हारा बुढ़ापा आ रहा है। लगता है तुम सठिया गये हो। अरे ! जो कौशल्या अभी-अभी पैदा हुई है और दशरथ.... नन्हा- मुन्ना लड़का ! वे बड़े होंगे, उनकी शादी होगी, उनको बच्चा होगा फिर वह बच्चा जब बड़ा होगा तब युद्ध करने आयेगा। मनुष्य का यह बालक मुझ जैसे महाप्रतापी रावण से युद्ध करेगा? 
रावण बाहर से तो डींग हाँकता हुआ चला गया परंतु भीतर चोट लग गयी भयभीत हो ही गया था।
समय बीतता गया। रावण इन बातों को ख्याल में रखकर कौशल्या और दशरथ के बारे में सब जाँच-पड़ताल करवाता रहता था। कौशल्या सगाई के योग्य हो गयी है तो सगाई हुई कि नहीं? फिर देखा कि समय आने पर कौशल्या की सगाई दशरथ जी के साथ हुई। उसको एक झटका सा लगा। परंतु वह अपने-आपको समझाने लगा कि सगाई हुई है तो इसमें क्या? अभी तो शादी हो... उनका बेटा हो... बेटा बड़ा हो तब की बात है।
 ..... और वह मुझे क्यों यमपुरी पहुँचायेगा? मन को शान्तवना देता रहा लेकिन एक बात और सोचता कि 
रोग और शत्रु को नज़रअंदाज नहीं करना चाहिए, उन के बारे में सूचना प्राप्त करते रहना चाहिए। रावण कौशल्या और दशरथ के बारे में पूरी जानकारी रखता था। रावण ने देखा कि 'कौशल्या की सगाई दशरथ के साथ हो गयी है। अब संकट शुरु हो गया है, अतः मुझे सावधान रहना चाहिए। जब शादी की तिथि तय हो जायेगी, उस समय देखेंगे।' शादी की तिथि तय हो गयी और शादी का दिन नजदीक आ गया। रावण परेशान उसने सोचा कि अब कुछ करना पड़ेगा।अतः उसने अपनी अदृश्य विद्या का प्रयोग करने का विचार किया। जिस दिन शादी थी उस दिन कौशल्या स्नान आदि करके बैठी थी और जब सहेलियों उन्हें हार- श्रृंगार आदि से सजा दिया था । उस वक्त अवसर पाकर रावण ने कौशल्या का हरण कर लिया और उसे लकड़ी के बक्से में बन्द करके वह बक्सा पानी में बहा दिया। इधर कौशल्या के साथ शादी कराने के लिए दूल्हा दशरथ जी को लेकर राजा अज ,गुरु वशिष्ठ तथा बारातियों के साथ कौशल देश की ओर निकल पड़े थे। एकाएक दशरथ और वशिष्ठजी के हाथी चिंघाड़कर भागने लगे। महावतों की लाख कोशिशों के बावजूद भी वे रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। तब वशिष्ठजी ने कहाः
"हाथियों को छोड़ दो वे जहाँ जाना चाहते हों जाने दो। उनके प्रेरक भी तो परमात्मा हैं ध्यान रखो वे कहां जाते हैं।"हाथी दौड़ते-भागते वहीं पहुँच गये जहाँ पानी में बहकर आता हुआ लकड़ी का बक्सा किनारे आ गया था। बक्सा देखकर सब चकित हो गये। उसे खोलकर देखा तो अंदर से सोलह श्रृंगार से सजी एक कन्या निकली, जो बड़ी लज्जित हुई सिर नीचा करके खड़ी-खड़ी पैर के अंगूठे से धरती कुरेदने लगी। वशिष्ठजी ने कहाः "मैं वशिष्ठ, ब्राह्मण हूँ और अयोध्या का गुरु हूं। पुत्री ! पिता और गुरु के आगे संकोच छोड़कर अपना अभीष्ट और अपनी व्यथा बता देनी चाहिए। तू कौन है और तेरी ऐसी स्थिति कैसे हुई?"
तब कौशल्या ने जवाब दियाः "मैं कौशल देश के राजा की पुत्री कौशल्या हूँ।"वशिष्ठजी समझ गये। आज तो शादी की तिथि है और शादी का समय भी नजदीक आ रहा है।
कौशल्या ने बतायाः "कोई असुर मुझे उठाकर ले गया, फिर लकड़ी के बक्से में डालकर मुझे बहा दिया। अब मुझे कुछ पता नहीं चल रहा कि मैं कहाँ हूँ?"
वशिष्ठजी कहाः "बेटी ! फिक्र मत कर। तरतीव्र प्रारब्ध में जैसा लिखा होता है वैसा होकर ही रहता है। देखो, मैं वशिष्ठ हूँ।गुरु हूं ।ये दशरथ हैं और तू कौशल्या है। अभी शादी का मुहूर्त भी है। मैं अभी यहीं पर तुम्हारा विवाह करवा देता हूँ।"ऐसा कहकर महर्षि वशिष्ठजी ने वहीं दशरथ-कौशल्या की शादी करा दी।उधर कौशलनरेश कौशल्या को न देखकर चिंतित हो गये कि 'बारात आने का समय हो गया है, क्या करूँ? सबको क्या जवाब दूँगा? अगर यह बात फैल गयी कि कन्या का अपहरण हो गया है तो हमारे कुल को कलंक लग जायेगा कि सजी-धजी दुल्हन अचानक कहाँ और कैसे गायब हो गयी?'
अपनी इज्जत बचाने कि लिए राजा ने कौशल्या की चाकरी में रहनेवाली एक दासी को बुलाया। वह करीब कौशल्या की उम्र की थी और रूप-लावण्य भी ठीक था। उसे बुलाकर समझाया कि "कौशल्या की जगह पर तू तैयार होकर कौशल्या बन जा। हमारी भी इज्जत बच जायेगी और तेरी भी जिंदगी सुधर जायेगी।" कुछ दासियों ने मिलकर उसे सजा दिया। वह तो मन ही मन खुश हो रही थी कि 'अब मैं महारानी बनूँगी।'
इधर दशरथा-कौशल्या की शादी संपन्न हो जाने के बाद सब कौशल देश की ओर चल पड़े। बारात के कौशल देश पहुँचने पर सबको इस बात का पता चल गया कि कौशल्या की शादी दशरथ के साथ हो चुकी है। सब प्रसन्न हो उठे। जिस दासी को सजा-धजाकर बिठाया गया था वह ठनठनपाल ही रह गयी। उसको मिला बाबाजी का ठुल्लू। तबसे यह कहावत चल पड़ीः
"विधि का घाल्या न टले, टले रावण का खेल।
 रही बेचारी दूमड़ी, घाल पटा में तेल॥"
'बिधि' यानी प्रारब्ध। प्रारब्ध में उसको रानी बनना नहीं था,
इसलिए सज-धजकर, बालों में तेल डालकर, सज धजकर भी वह कुँआरी की कुँआरी ही रह गयी।
 आगे की कथा दुनिया जानती ही है की रावण का क्या हुवा।
।।जय श्री राम जय हनुमान।।

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