मानस चर्चा "प्रीति की रीति"
जल पय सरिस बिकाइ देखहु प्रीति कि रीति भलि ।
बिलग होइ' रसु जाइ कपटु खटाई परत पुनि ॥
अर्थात् प्रीतिकी सुन्दर रीति देखिये जल दूधमें मिलनेसे दूधके समान अर्थात् दूधके भाव बिकता है। परंतु फिर कपटरूपी खटाई पड़ते ही पानी अलग हो जाता है अर्थात् फट जाता है और स्वाद जाता रहता है ॥ यह पूरी की पूरी बात हम सभी मनुष्यों के लिए कही गई है,पर प्यार भरे उदाहरण द्वारा।आगे भी देखते हैं।
'जल पय सरिस बिकाइ ' यहां भाव यह है कि दूधमें मिलनेसे जल भी दूधके भाव बिकता है और उसमें दूधका रस रंग और स्वाद भी आ जाता है यह दूधका भलपन है, पर खटाई पड़ते ही दूध अलग हो जाता है दूध फट जाता है और उस जलमें दूधका स्वाद नहीं रह जाता। इसी तरह कपट करनेसे हम इंसानों के साथ भी होता है एक दूसरे का संग छूट जाता है। प्रीतिरूपी रस नहीं रह जाता। दूध फट जानेपर ,फिर दूध नहीं बन सकता, वैसे ही फटा हृदय फिर नहीं जुड़ता, फिर प्रेम हो ही नहीं सकता, बिगड़ा सो बिगड़ा, फिर नहीं सुधर सकता । कहा है कि
'मन मोती और दूध रस इनको यहै स्वभाव ।
फाटे पै पुनि ना जुड़ै करिए कोटि उपाव ॥
दूध और जलके द्वारा प्रीतिकी रीति देख पड़ती है। इसीसे कहा कि 'देखहु ।' तात्पर्य यह कि ए मानवों इसे देखकर ऐसी प्रीति करो, कपट मत करो।हम प्रसंग में देखें कि दूध ऐसे निर्मल शिवजी कर्पूरगौरम् और जड़ जल जैसी सतीजी जिनके बारे में 'किमसुभिलपितैर्जडं मन्यसे और 'डलयोः सावर्ण्यात्' से सतीजी को 'जड़' से जल कहा गया है। दोनों कीअच्छी तरहसे प्रीति देखो कि दोनों मिलकर एक हो गये थे, दोनों साथ-साथ पूजे जाते थे, दोनोंकी महिमा एक समझी जाती थी, जैसे दूधमें पानी मिलनेसे पानी भी दूध ही कहा जाता है। दूधहीके भावसे दूध मिला , पानी भी बिकता है पर जैसे वह खटाई पड़नेसे अलग और बिगड़ जाता है, वैसे ही यहाँ कपट करनेसे दूध ऐसे महादेव सती जड़ - जल से अलग हो गये और बिगड़ भी गये। '
मित्रतापर भिखारीदासजीका पद देखने योग्य है-
दास परस्पर प्रेम लखो गुन छीर को नीर मिले सरसातु है। नीर बिकावत आपने मोल जहाँ जहँ जायके छीर बिकातु
है ।
पावक जारन छीर लग्यो तब नीर जरावत आपन गातु है। नीर की पीर निवारिये कारन छीर घरी ही घरी उफनातु है । इस पद्यमें हमें दूधका और जलका भलपनअलग-अलग दिखा दिया गया है। वास्तव में यही है प्रीति की रीति जिसे हर इंसान को निभानी ही चाहिए,जीवन में कपट रूपी खटाई का प्रयोग हमेशा हमेशा के लिए त्याज्य ही होना चाहिए।
।। जय श्री राम जय हनुमान।।
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