रविवार, 23 जून 2024

मानस चर्चा --राम चरित चिंतामनि चारू

मानस चर्चा --राम चरित चिंतामनि चारू
राम चरित चिंतामनि चारू । संत सुमति तिअ सुभग सिंगारू ॥ 
अर्थात् श्रीरामचरित सुन्दर चिन्तामणि है, सन्तोंकी सुमतिरूपिणी स्त्रीका सुन्दर श्रृंगार है ॥ 
'चिन्तामणि सब मणियोंमें श्रेष्ठ है, जैसा कि-
'चिंतामनि पुनि उपल दसानन । ' 
इसी तरह रामचरित सब धर्मोंसे श्रेष्ठ है । सन्तकी मतिकी शोभा रामचरित्र धारण करनेसे ही है। 'सुभग सिंगारू '  सब शृंगारोंसे यह अधिक है। जैसा कि गोस्वामीजी कहते हैं-' - 
'तुलसी चित चिंता न मिटै बिनु चिंतामनि
पहिचाने।' (विनयपत्रिका)बिना रामचरित जाने चित्तकी चिन्ता नहीं मिटती । प्राकृत शृंगार नाशवान् है और यह नाशरहित सदा एकरस है । जैसे कि --
चिन्तामणि जिस पदार्थका चिन्तन करो सोई देता है वैसे ही रामचरित्र सब पदार्थोंका देनेवाला है।
' सुभग सिंगारू' का भाव यह है कि यह 'नित्य नाशरहित, एकरस और अनित्य प्राकृत श्रृंगारसे विलक्षण है।' 
उत्तरकाण्डमें सुन्दर चिन्तामणिके लक्षण यों दिये हैं- ' 
राम भगति  चिंतामनि सुंदर । 
बसई  गरुड़ जाके उर अंतर ॥ 
परम प्रकास रूप दिन राती ।
नहिँ तहँ चहिअ दिआ घृत बाती ॥
मोह दरिद्र निकट नहिं आवा। 
लोभ बात नहिं ताहि बुझावा ॥
प्रबल अबिद्या तम मिटि जाई ।
हारहिं सकल सलभ समुदाई ॥ 
खलकामादि निकट नहिं जाहीं । 
बसइ भगति जाके उर माहीं ॥ 
गरल सुधासम अरि हित होई ।
तेहि मनि बिनु सुखपाव न कोई ॥ 
ब्यापहिं मानस रोग न भारी। 
जिन्ह के बस सब जीव दुखारी ॥
राम भगति-मनि उर बसजाकें।
दुख लवलेस न सपनेहुँ ताकें ॥ ' 
यहाँ रामचरितको 'सुन्दर चिन्तामणि' कहकर इन सब लक्षणोंका श्रीरामचरित्र से प्राप्त हो जाना सूचित किया है। 'चिन्तामणि' के गुण स्कन्दपुराण ब्रह्मखण्डान्तर्गत ब्रह्मोत्तरखण्ड अध्याय पाँचमें ये कहे हैं - वह कौस्तुभमणिके समान कान्तिमान् और सूर्यके सदृश है। इसके दर्शन, श्रवण, ध्यानसे चिन्तित पदार्थ प्राप्त हो जाता है। उसकी कान्तिके किंचित् स्पर्शसे ताँबा, लोहा, सीसा, पत्थर आदि वस्तु भी सुवर्ण हो जाते
हैं। जैसा कि - 
'चिन्तामणिं ददौ दिव्यं मणिभद्रो महामतिः ।
स मणिः कौस्तुभ इव द्योतमानोऽर्क संनिभः ।
दृष्टः श्रुतो वा ध्यातो वा नृणां यच्छति चिन्तितम् ॥
तस्य कान्तिलवस्पृष्टं कांस्यं ताम्रमयस्त्रपु । पाषाणादिकमन्यद्वा सद्यो भवति काञ्चनम् ॥' 
श्रीबैजनाथ  जी का मानना है कि चिन्तामणिमें चार गुण हैं- 'तम नासत दारिद हरत, रुज हरि बिघ्न निवारि' वैसे ही श्रीरामचरित्र में अविद्या - तमनाश, मोह - दारिद्र्य हरण, मानस-रोग-शमन, कामादि- विघ्न निवारण ये गुण हैं। सन्तोंकी सुन्दर बुद्धिरूपिणी स्त्रीके अंगोंके सोलहों शृंगाररूप यह रामचरित है।
जैसा कि कहा भी गया है-
'उबटि सुकृति प्रेम मज्जन सुधर्म पट नेह नेह माँग शम दमसे दुरारी है।
नूपुर सुबैनगुण यावक सुबुद्धि आँजि चूरि सज्जनाई सेव मेंहदी सँवारी है ॥ 
दया कर्णफूल नय शांति हरिगुण माल शुद्धता सुगंधपान ज्ञान त्याग कारी है। 
घूँघट ध्यान सेज तुरियामें बैजनाथ रामपति पास तिय सुमति शृंगारी है।' 
ये सारी हमें राम चरित श्रवणमात्रसे प्राप्त हो जाती  हैं।
है।
।। जय श्री राम जय हनुमान।।

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