मानस चर्चा " झखकेतू "
एहि बिधि भलेहि' देवहित होई ।
मत अति नीक कहै सबु कोई ॥
अस्तुति' सुरन्ह कीन्हि अति हेतू ।
प्रगटेउ बिषम बान झखकेतू ॥
यहां झखकेतू कौन है? इनकी देवताओं ने स्तुति की और ये प्रगट हुवें। हम आज इस झखकेतू के बारे में चर्चा करेगें। झख कहते है मछली को और केतू कहते हैं पताका अर्थात् ध्वजा को। तो झखकेतू वे हुवे - जिनकी ध्वजापर मछलीका चिह्न है कहा भी गया है 'कोपेउ जबहिं बारिचरकेतू'।
झखकेतू से पहले हम इस चौपाई को समझतेहैं।
एहि बिधि भलेहि' देवहित होई ।
मत अति नीक कहै सबु कोई ॥
अर्थात् इस तरह भले ही देवताओंका हित होगा अन्य उपाय नहीं है । यह सुनकर सब कोई बोल उठे कि सलाह बहुत ही अच्छी है।
अस्तुति' सुरन्ह कीन्हि अति हेतू ।
प्रगटेउ बिषम बान झखकेतू ॥
देवताओंने अत्यन्त अनुरागसे कामदेवकी भारी स्तुति की तब पंचबाण धारी मकरध्वज कामदेव प्रकट हुवे।
एहि बिधि भलेहि देवहित होई । 'भलेहि' भले ही अर्थात् भलीभाँति भलाई ही होगी। 'सब कोई कहने लगे कि यह मत बहुत अच्छा है, इस प्रकार देवताओंका पूरा हित होगा।' 'देवहित होई' । क्या हित होगा ? मुख्य हित तारक-वध है; कहा भी गया है— 'सब सन कहा बुझाइ बिधि दनुज निधन तब होइ । 'तारक- वधसे देवगण फिर स्ववश बसेंगे। यहां शिव समाधि भंग करने की विधि पर चर्चा हो रही है भाव यह है कि समाधि-भंगके अन्य उपाय भी हैं, पर उनके करनेसे समाधि-भंग होनेपर शिवजी कारणकी खोज करेंगे, देवताओंपर विपत्ति बिना आये न रहेगी। अतः उनसे भली प्रकार हित न होगा । और कामकी उत्पत्ति ही मनः क्षोभके लिये है, अतः उसके समाधि भंग करनेपर कारणकी खोज न होगी । 'मत अति नीक कहै सब कोई' । जो मत सबके मनको भाता है, उससे अवश्य कार्य सिद्ध होता है; जैसा कि कहा भी गया है-
'नीक मंत्र सबके मन भावा ।' तात्पर्य कि सब सहमत हुए।
अस्तुति सुरन्ह कीन्हि अति हेतू ' कामदेवके आविर्भावके लिये अत्यन्त स्नेहसे भारी स्तुति की। हेतु अर्थात - प्रेम से; जैसा कि- 'हरषे हेतु हेरि हर ही को ।और भी देखें 'चले संग हिमवंत तब पहुँचावन अति हेतु ॥' 'प्रगटेउ' कहा क्योंकि काम तो सर्वत्र व्यापक है, मनमें ही उसका निवास रहता है, अतः स्तुति करनेपर वहीं प्रकट हो गये । देवगण आर्त थे, इसलिये उन्होंने प्रकर्षरूपसे स्तुति की, नहीं तो कामदेव बुलवा लिये जाते । जैसा कि - 'कामहि बोलि कीन्ह सनमाना ॥' 'बिषम बान' क्या है? विषम- यहां पाँच के लिए आया है । मनमें विषमता अर्थात् विकार उत्पन्न करनेवाले । कठिन जिससे कोई उबर बच न सके कामदेवके बाणोंकी विषमता शिवजी भी न सह सके; यथा - 'छाँड़े बिषम बिसिख उर लागे । छूटि समाधि
संभु तब जागे ॥' अतः बाणोंको 'विषम' विशेषण दिया।
कामदेव को पंचबाणधारी कहा जाता है। वे पंच बाण क्या हैं - रामवल्लभाशरणजी प्रमाणका एक श्लोक यह बताते थे जो अमरकोशकी टीकामें भी है –
'उन्मादस्तापनश्चैव शोषणस्तम्भनस्तथा ।
सम्मोहनश्च कामश्च बाणाः पञ्च प्रकीर्तिताः ॥ '
इसीको हिन्दी भाषामें यों लिखा गया हैं-
'वशीकरन मोहन कहत आकर्षण कवि लोग।
उच्चाटन मारन समुझु पंच बाण ये योग ।' श्रीकरुणासिन्धुजी लिखते हैं कि 'आकर्षण, उच्चाटन, मारण और वशीकरण ये चारों कामदेवके धनुष हैं।
कम्पन पनच है और मोहन, स्तम्भन, शोषण, दहन तथा वन्दन - ये पाँच बाण हैं पर सुमनरूप हैं।' ये पाँच
फूल कौन हैं ? पंजाबीजी बाबा, पं० श्रीरामवल्लभाशरणजी तथा अमरकोश - टीकाके अनुसार वे पाँच पुष्प ये हैं-
'अरविन्दमशोकञ्च चूतं च नव मल्लिका ।
नीलोत्पलं च पञ्चैते पञ्चबाणस्य सायकाः ॥'
आप हिन्दी में भी देख सकते हैं ---
'कमल केतिक केवड़ा कदम आमके बौर।
ए पाँचो शर कामके केशवदास न और ॥'
पर किसी-किसीके मतानुसार शब्द,स्पर्श, रूप, रस और गन्ध-ये पाँच विकार ही पंचबाण हैं।
पंचबाण धारण करनेका भाव यह कहा जाता है कि 'यह शरीर पंचतत्त्वों- पृथ्वी, जल, पावक, वायु और आकाशसे ही बना है। इस कारण एक-एक तत्त्वको भेदन करनेके लिये एक-एक बाण धारण किया है। कामदेवके बाण प्राय: पुष्पोंके ही माने गये हैं और श्रीमद्गोस्वामीजीका भी यही मत है। यथा - 'सूल कुलिस असि अँगवनिहारे। ते रतिनाथ सुमन सर मारे । ' धनुष और बाण दोनों फूलके हैं; यथा - 'काम कुसुम धनु सायक लीन्हें। सकल भुवन अपने बस कीन्हें ॥ ' 'अस कहि चलेउ सबहि सिरु नाई । सुमन धनुष कर सहित सहाई॥'
विषम बाण और झखकेतु ये दोनों वशीकरण और विजयके आयुध साथ दिखाकर जनाया कि विजय
प्राप्त होगी। मीन वशीकरणका चिह्न माना जाता है। इस कारण से भी यहां झखकेतू ही कहा गया है। झखकेतू से ही संसार का कल्याण होगा ऐसा ही सभी का मत है।
।। जय श्री राम जय हनुमान।।
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