गनपति गनों के नायक प्रथम नाम विनायक!
दो सदबुद्धि जन-जन को तुम हो बुद्धिदायक!!
शुभ्रता की सक्षात मूर्ति सोहैं मूसकासन!
आनन गज पाकर आप कहलाते गजानन!!
बचन पालक भक्त रक्षक कुमार के सहोदर!
उदर रेख त्रय शोभित दिखे आप लम्बोदर!!
विस्मरण न हो भक्तों से तू हे सिन्दूरबदन!
जन कल्याण हित करुं मैं पद पद्मों का वन्दन!!
सन्मानते हर गण को पूंजे मां- बाप को!
हरते है विघ्नो को जैसे सूर्य तम को!!
मोदक प्रिय सब भक्त हित बने कल्याण सोधक!
एक दन्त सुमुख गजकर्णक पाते है जब मोदक!!
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