संत कहहिं असि नीति प्रभु श्रुति पुरान मुनि गाव ।
होइ न बिमल बिबेक उर गुर सन किएँ दुराव ॥
अर्थात् हे प्रभो ! सन्त ऐसी नीति कहते हैं और वेद, पुराण और मुनि लोग भी यही गा गा कर कहते हैं कि गुरुसे
छिपाव अर्थात् कपट करनेसे हृदयमें निर्मल ज्ञान नहीं होता ॥
।। जय श्री राम जय हनुमान।।
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