सोमवार, 3 जून 2024

✓मानस चर्चा मनि मानिक मुकुता छबि जैसी


मानस चर्चा उपजहिं अनत अनत छबि लहहीं । इस धरा पर कुछ भी उत्पन्न कही और होता है और उसकी शोभा कही और होती है।गोस्वामीजी ने लिखा है 
मनि मानिक मुकुता छबि जैसी । अहि गिरिगज सिर सोह न तैसी ॥ मनि /मणि अर्थात् बहुमूल्य रत्न जैसे हीरा, पन्ना आदि। मानिक /माणिक्य अर्थात् लाल माणिक्य जिसके 
तीन भेद हैं, पद्मराग, कुरुबिन्दु और सौगन्धिक। कमलके रंगका पद्मराग, टेसूके रंगका लाल कुरुबिन्द और
गाढ़ रक्तवर्ण-सा सौगन्धिक। हीरेको छोड़ यह और सबसे कड़ा होता है। मुकुता (मुक्ता) अर्थात् मोती , मोतीकी
उत्पत्तिके स्थान गज, घन, वराह, शंख, मत्स्य, सीप, सर्प, बाँस और शेष हैं, पर यह विशेषतः सीपमें होती है औरोंमें कहीं-कहीं ही मिलती हैं। इसके बारे में विख्यात है--- "करीन्द्रजीमूतवराहशंखमत्स्याहिशक्त्युद्भववेणुजानि । मुक्ताफलानि प्रथितानि लोके तेषां तु शुक्त्युद्भवमेव भूरि।। 
इन पक्तियों का सीधा साधा अर्थ है कि मणि, माणिक्य और मुक्ताकी छबि जैसी है, वैसी ही सर्प, पर्वत और हाथीके मस्तकमेंशोभित नहीं होती अर्थात् उनसे पृथक होने पर ही इनका वास्तविक स्वरूप प्रकट होता है और ये सुशोभित होते हैं ॥ 
नृप किरीट तरुनी तनु पाई । लहहिँ सकल सोभा अधिकाई 
 ये सब राजा, राजा, राजाका मुकुटऔर नवयौवना स्त्रीके शरीरको पाकर ही उनके सम्बन्धसे अधिक शोभाको प्राप्त करते हैं ॥ 
तैसेहि सुकबि कबित बुध कहहीं । उपजहिं अनत अनत छबि लहहीं ॥ ३ ॥
सज्जन लोग कहते हैं कि ठीक उसी तरह अच्छे विद्वान हम कहें अच्छे इंसान और सुकविकी कविता उत्पन्न कही और होते हैं और शोभा कही और प्राप्त करते है कहा भी गया है कि 'उपजी तो और ठौर, शोभा पाई और ठौर'! ठीक इसी प्रकार की बात संस्कृत में भी कही गई है कि 
कविः करोति काव्यानि बुधः संवेत्ति तद्रसान् । 
तरुः प्रसूते पुष्पाणि मरुद्वहति सौरभम् ॥'
हमारे समाज में इसीलिए जन्म स्थान और कर्म स्थान कहा जाता है।हम अपने प्रभु श्री राम के जीवन इतिहास को देखें तो पाएंगे कि उक्त सारी पक्तियां उन पर यथार्थ है। अतः इसे सपूतों का जीवन धन्य है जो  
उपजहिं अनत अनत छबि लहहीं ।
 मनि मानिक मुकुता छबि गहही।।
।।जय श्री राम जय हनुमान।।


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