रविवार, 2 जून 2024

मानस-चर्चा ।।गई बहोर गरीब नेवाजू ।।

मानस-चर्चा
गई बहोर गरीब नेवाजू । सरल सबल साहिब रघुराजू ॥  हम आज इस मंत्र के अंदर छिपे हुवे रहस्यों को जानने का प्रयास कर रहे है। इस मंत्र का भाव क्या है ,इस मंत्र के अनुसार राम के कौन से विविध रूप  हैं और  इस मंत्र में भगवान विष्णु के कौन-कौन से  विविध अवतारों को चित्रण किया गया है ,इन सभी बातों पर चर्चा प्रारम्भ करे उससे पहले इसके अर्थ को जानते हैं। सामान्य अर्थ है कि 
श्रीरघुनाथजी खोयी हुई वस्तुको दिलानेवाले, गरीबनिवाज  दीनोंपर कृपा करनेवाले, सरल-स्वभाव वाले, सबल, सर्वसमर्थ स्वामी और रघुकुलके राजा हैं 
'गई बहोर' अर्थात्  गई  = खोयी हुई वस्तुको फिरसे ज्यों-की-त्यों प्राप्त करा देनेवाले  हैं श्री राम। आप ध्यान दे तो पाएंगे कि जहां दशरथमहाराजका कुल ही जाता था ।  ' भइ गलानि मोरे सुत नाहीं ॥' वहां 
उनके कुलकी रक्षा की।  जब विश्वामित्रजीका यज्ञ मारीचादिके कारण बन्द हो गया था, तब आपने मुनि श्रेष्ठ को निर्भय किया। देखत जग्य निसाचर धावहिं । करहिं उपद्रव मुनि दुख पावहिं ॥ तो फिर '  'निरभय जग्य करहु तुम्ह जाई ॥'  जब  माता अहल्याका पातिव्रत्य नष्ट हुआ।तब उनका रूप उनको फिर दिया, पाषाणसे स्त्री किया और उन्हें  फिर उनके  पतिसे मिलाया। "गौतम नारी साप बस उपल देह धरि धीर ।" और 
एहि भाँति सिधारी गौतम नारी बार बार हरि चरन परी । जो अति मन भावा सो बरु पावा गै पतिलोक अनंद भरी।  
 जब श्रीजनकजी की - प्रतिज्ञा गयी रही,तब उनका प्रण रखा। 
' तजहु आस निज निज गृह जाहू ।लिखा न बिधि बैदेहि बिबाहू॥  सुकृतु जाइ जौं पनु परिहरऊँ। कुअँरि कुआरि रहउ का करऊँ॥
जौं जनतेउँ बिनु भट भुबि भाई। तौ पनु करि होतेउँ न हँसाई।।  तब
तेहि छन राम मध्य धनु तोरा। भरे भुवन धुनि घोर कठोरा । कोदंड खंडेउ राम तुलसी जयति बचन उचारहीं । और  ""जनक लहेउ सुखु सोचु बिहाई । ' 
वानर राज सुग्रीवजीको फिर राज्य दिया।'सो सुग्रीव कीन्ह कपि राऊ। 'बालि बली बलसालि दलि सखा कीन्ह कपिराज ।तुलसी राम कृपालु को बिरद गरीब निवाज ॥ '  मायाके कारण जो सब धन ऐश्वर्यहीन हो गये उन गरीबोंको ऐश्वर्य देनेवाले होनेसे 'गरीबनिवाज' कहा।
'सरल' के  तो आप मूर्ति  ही हैं- ' 'राम कहा सब कौसिक पाहीं । सरल सुभाउ छुअत छल नाहीं ॥'  'बेद बचन मुनि मन अगम, ते प्रभु करुना ऐन । बचन किरातन्ह के सुनत, जिमि पितु बालक बैन ।'  'सकल मुनिन्हके आश्रमन्हि, जाइ जाइ सुख दीन्ह ।'  'सरल सील साहिब सदा सीतापति सरिस न कोइ ।'  निषादराज और माता शबरीके प्रसंग इसी गुणको सूचित करते हैं।
'सबल'का तो  रामायणभर इसका दृष्टान्त है। सबल ऐसे कि 'सिव बिरंचि सुर मुनि समुदाई ।चाहत जासु चरन सेवकाई ।।'
साहिब का तो कोई जबाब ही नहीं
'हरि तजि और भजिये काहि । नाहिन कोउ राम सो ममता प्रनतपर जाहि ॥
 आप हैं 'रघुराजू'  । ऐसे कुलमें अवतीर्ण हुए कि जिसमें लोकप्रसिद्ध उदार, शरणपालादि राजा हुए और आपका राज्य कैसा हुआ कि ' त्रेता भइ सतजुग की करनी ।' 'राम राज बैठे त्रैलोका । हरषित भये गये सब सोका ॥ बयरु न करु काहू सन कोई। राम प्रताप बिषमता खोई ॥
काल कर्म सुभाव गुन कृत दुख काहि नाहिं ।  इससे
दिखाया कि इनकी शरण लेनेसे जीव अभय हो जाते हैं। इस प्रकार आप  के हैं 'सरल सबल साहिब रघुराजू'  ।
सरल के साथ, सबल इसलिये कहा कि सबलताही में 'सरलता' और 'शक्ति'हीमें क्षमाकी शोभा होती है।
और यह न समझा जावे कि ये शक्तिहीन थे, अतएव दीन या सरल थे । यथा - 'शक्तानां भूषणं क्षमा । क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो।
 ज्ञानमें मौन और शक्तिमें क्षमा, दानमें अमानता,  सबलतामें सरलता - ये गुण स्वभावसे सिद्ध हैं। देखें 
'ज्ञाने मौनं क्षमा शक्तौ त्यागे श्लाघा विपर्ययः । 
  गुणा गुणानुबन्धित्वात्तस्य सप्रसवा इव ॥ '
सो उन रघुवंशियोंमें और उस रघुकुलमें श्रीरामचन्द्रजी सर्वश्रेष्ठ अतएव पुरुषोत्तम हैं।
अब हम यहां विविध अवतारों को देखते हैं 
गई बहोर गरीब नेवाजू । सरल सबल साहिब रघुराजू ॥ से यहां सात अवतार सूचित किये हैं ।  'मीन कमठ सूकर नरहरी । बामन परसुराम बपु धरी ॥' '
जब जब नाथ सुरन्ह दुखु पायो ।
नाना तनु धरि तुम्हइँ नसायो ॥' एक एक शब्दों पर ध्यान देते हुवे समझने का प्रयास करते हैं 
(A)'गई बहोर' से 'मीन, कमठ, शूकर' अवतार सूचित किये। शंखासुर वेदको चुराकर समुद्रमें ले गया था, सो मत्स्यरूपसे ले आये । दुर्वासाके शापसे लक्ष्मी समुद्रमें लुप्त हो गयी थीं । क्षीरसागर मथनेके लिये गरुड़पर मन्दराचल आए । देवताओंके सँभाले जब न सँभला तो कमठरूपसे मन्दराचलको पीठपर धारण किया। हिरण्याक्ष पृथ्वीको पाताल ले गया तब शूकररूप हो पृथ्वीका उद्धार किया ।
(B) 'गरीब नेवाजू' से नृसिंह अवतार सूचित किया जिसमें प्रह्लादजीकी हर तरहसे रक्षा की, 'खम्भमेंसे निकले' । 
(C) 'सरल' से वामन अवतार सूचित किया। क्योंकि प्रभुता तजकर विप्ररूप धर भीख माँगी।
(D) 'सबल' से परशुराम अवतार  जिन्होंने इक्कीस बार पृथ्वीको क्षत्रिय विहीन किया।
(E) इत्यादि जितने अवतार हैं उन सबके साहिब हैं श्री  राम ।
 (F) 'सबल साहिब रघुराजू' ऐसे सबल परशुराम उनके भी स्वामी श्रीरामजी हैं कि जिनकी स्तुति परशुरामजीने की।
जय रघुबंस बनज बन भानू।
 गहन दनुज कुल दहन कृसानू॥
जय सुर बिप्र धेनु हितकारी।
 जय मद मोह कोह भ्रम हारी॥
बिनय सील करुना गुन सागर।
 जयति बचन रचना अति नागर॥
सेवक सुखद सुभग सब अंगा।
 जय सरीर छबि कोटि अनंगा।।
करौं काह मुख एक प्रसंसा।
 जय महेस मन मानस हंसा॥
 अवतारका  ही परास्त हो गया ।इसी लिए आपको अवतारोंका अवतारी सूचित किया ।
 ' एतेषामवताराणामवतारी रघूत्तम।' (हनुमत्संहिता)
सुदर्शनसंहितामें लिखा है कि
'राघवस्य गुणो दिव्यो महाविष्णुः स्वरूपवान्। 
वासुदेवो घनीभूतस्तनुतेजः सदाशिवः ॥ 
मत्स्यश्च रामहृदयं योगरूपी जनार्दनः ।
कुर्मश्चाधारशक्तिश्च वाराहो भुजयोर्बलम् ॥
नारसिंहो महाकोपो वामनः कटिमेखला । 
भार्गवो जङ्घयोर्जातो बलरामश्च पृष्ठतः ॥
बौद्धस्तु करुणा साक्षात् कल्किश्चित्तस्य हर्षतः ।
कृष्णः श्रृंगाररूपश्च वृन्दावनविभूषणः । 
एते चांशकलाः सर्वे रामो ब्रह्म सनातनः ॥ ' 
अर्थात् श्रीराघवके दिव्य गुण हैं वही विष्णु हैं, उनका कल्याणकारी घनीभूत तेज वासुदेव हैं, योगरूपी जनार्दन श्रीरामजीका हृदय मत्स्य है, आधारशक्ति कूर्म, बाहुबल वाराह, महाक्रोध नृसिंह, कटिमेखला वामन, जंघा परशुराम, पृष्ठभाग बलराम, बौद्ध साक्षात् श्रीरामजीकी करुणा, चित्तका हर्ष कल्कि और श्रीकृष्ण वृन्दावनविहारी श्रीरामजीके शृंगारस्वरूप हैं। इस प्रकार ये सब श्रीरामजीके अंश हैं और श्रीराम अंशी स्वयं भगवान् हैं। सम्भवतः इसीके आधारपर मानसमयंककारने लिखा है, 'परसुराम अति सबल हैं, साहिब सब पर राम । 
हिय अधार भुज कोप कटि जंघ अंश सुखधाम ॥' 
सिया वर राम चंद्र की जय
।। जय श्री राम जय हनुमान।।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें