शनिवार, 1 जून 2024

।।सेवक स्वामि सखा सिय पी के।।

।।सेवक स्वामि सखा सिय पी के।।
मानस चर्चा में आज हम मानस मंत्र
सेवक स्वामि सखा सिय पी के । हित निरुपधि सब बिधि तुलसी के ॥  इस पर  चर्चा करेगें।यहां सेवक स्वामि सखा  ये तीन बिंदु हैं ।इन्हें हम गोस्वामीजी के भावनाओं का सम्मान  करते हुवे "सनातन धर्म के चार धामों में एक प्रसिद्ध धाम "रामेश्वर"और समस्त मानवता के स्रोत "पति- पत्नी" पर भी केंद्रित करते हुवे समझेगें इसके पहले यहां गोस्वामीजी ने 'सेवक स्वामि सखा इन तीन शब्दों का प्रयोग किनके लिए किया है,इसे हमें जानना और समझना है।  आगे बढ़ने से पहले " सेवक स्वामि सखा सिय पी के । हित निरुपधि सब बिधि तुलसी के ॥" का अर्थ समझने का प्रयास करतें हैं--अर्थ इस प्रकार निकल रहा है।
"जो श्रीसीतापति रामचन्द्रजी के सेवक, स्वामि, सखा हैं,  वे सब तरहसे ( मुझ) तुलसीदासके अर्थात् भक्तोंके सदा निश्छल हितकारी हैं।"वे हैं कौन ? मानस मर्मज्ञों ने
गुर पितु मातु महेस भवानी। प्रनवउँ दीनबंधु दिन दानी॥इस पूर्व पक्तियों को मिलाते हुवे यह भाव बताया  है कि  शिवजी गुरु, पिता, माता, दाता और श्रीसीतापति श्री राम सेवक-स्वामी - सखा रूप से भक्तों के सदा ही हितकारी  हैं । हमें अपना ध्यान "सेवक स्वामि सखा सिय पी के" मंत्र पर केंद्रित करते हुवे चलना हैं। अतः हम प्रभु श्रीराम और महादेव  के परस्पर  सेवक, स्वामी और सखा होनेके भाव को ही सर्वप्रथम समझते हैं  जिनके प्रसंग श्रीरामचरितमानसमें बहुत जगह प्राप्त  हैं।
(1) महादेव स्वयं को राम का सेवक मानते हैं --
शिव पार्वती संवाद प्रसंग में इन्हें देखें _
(अ)'रघुकुलमनि मम स्वामि सोइ, कहि सिव नाएउ माथ।' 
(ब)'सोइ प्रभु मोर चराचर स्वामी । रघुबर सब उर अंतरजामी।।
श्री राम जी द्वारा शिवजी के विवाह अनुरोध के  प्रसंग में 
(अ)' नाथ बचन पुनि मेटि न जाहीं ॥
(B)सिर धरि आयसु करिअ तुम्हारा । परम धरमु यह नाथ हमारा ॥ '
सती  मोह के  प्रसंग में 
(अ) सोइ मम इष्टदेव रघुबीरा।'
(2) राम के महादेव  स्वामी  हैं ऐसे के प्रसंगों  को देखते हैं_
गंगा पार जाने के प्रसंग में देखें 
(अ)'तब मज्जन करि रघुकुलनाथा । पूजि पारथिव नायउ माथा ॥ '
रामेश्वर स्थापना के प्रसंग में देखें
(अ)लिंग थापि बिधिवत करि पूजा ।'सिव समान प्रिय मोहि न दूजा॥
(3) दोनों सखा  हैं ऐसे के प्रसंगों  को देखते हैं
रामेश्वर स्थापना के प्रसंग में देखें
(अ )'संकरप्रिय मम द्रोही सिवद्रोही मम दास ।
 ते नर करहिं कलप भरि घोर नरक महँ बास ॥' 
(ब)संकर बिमुख भगति चह मोरी ।
      सो नारकी मूढ़ मति थोरी ॥' 
आइए हम रामेश्वर स्थापना के बाद देवों की चर्चा पर नजर डालते हैं _
श्रीरामचन्द्रजीने जब सेतुबन्धनके समय शिवलिंगकी स्थापना की तब उनका नाम 'रामेश्वर' रखा।इस पदमें सेवक, स्वामी और सखा तीनोंका अभिप्राय आता है। ऐसा नाम रखनेसे भी तीनों भाव दर्शित होते हैं। इस सम्बन्धमें एक आख्यायिका है जो ऐसे है_
'रामस्तत्पुरुषं वक्ति बहुब्रीहिं महेश्वरः ।
ऊचुः प्रांजलयः सर्वे ब्रह्माद्याः कर्मधारयम् ॥'
इस श्लोकको लेकर  ऐसी बात कही जाती है कि जिस समय सेतुबन्ध हुआ था उस समय ब्रह्मा, शिव आदि देवता और बड़े-बड़े ऋषि उपस्थित थे। रामेश्वर की स्थापना होनेपर नामकरण होनेके पश्चात् परस्पर 'रामेश्वर' शब्दके अर्थपर विचार होने लगा। सबसे पहले श्रीरामचन्द्रजीने इसका अर्थ कहा कि इसमें तत्पुरुष समास है , इसका अर्थ 'रामस्य ईश्वरः 'है अर्थात यहां  राम स्वयं  को महादेव का  सेवक मान रहे हैं । उसपर शिवजी बोले कि भगवन् ! यहां बहुब्रीहि समास है। अर्थात् इसका अर्थ 'रामः ईश्वरो यस्यासौ रामेश्वर:' इस भाँति है,यहां  राम महादेव के स्वामी हो रहे हैं । तब ब्रह्मादिक देवता हाथ जोड़कर बोले कि 'महाराज ! इसमें कर्मधारय समास'है। अर्थात् 'रामश्चासौ ईश्वरश्च' वा 'यो रामः स ईश्वरः ' जो राम वही ईश्वर ऐसा अर्थ है। इस प्रकार यहां राम और महादेव परस्पर सखा हो रहे हैं। इस प्रकार इस आख्यायिकासे तीनों भाव स्पष्ट हैं। बहुब्रीहि समाससे शिवजीका सेवकभाव स्पष्ट है। तत्पुरुषसे शिवजी  का स्वामीभावऔर कर्मधारयसे शिवजी  का सख्यभाव पाया जाता है।
'शिवजी सदा सेवक रहते हैं; इसलिये 'सेवक' पद प्रथम दिया है।'पुनः 'भक्तिपक्षमें स्वामीसे सब नाते बन सकते हैं। इसीसे शिवजीको 'सेवक स्वामि सखा' कहा। अथवा, हनुमानुरूपसे सेवक हैं, रामेश्वररूपसे स्वामी और सुग्रीवरूपसे सखा हैं। 
वास्तव  में श्री शंकरजी, श्रीरघुनाथजी परात्पर भगवान्‌के सदा सेवक हैं, विष्णुके स्वामी हैं और ब्रह्मा, विष्णु, महेश
तीनों समान हैं, इससे सखा भी हैं।इसका अर्थ सीधा है कि प्रभु श्री राम और महादेव परस्पर सेवक स्वामि सखा ही हैं। अब हम थोड़ा "सिय पी" के भाव को समझते हैं। सिय,
सीताजी और पी,पति श्री रामजी परस्पर सेवक स्वामि सखा भाव से ही रहते हैं, और सम्पूर्ण मानवता को संदेश देते है कि जहां हर पति को अपनी पत्नी का सेवक स्वामि सखा होना ही चाहिए वही हर पत्नी को भी अपने पति की सेविका स्वामिनी और सहेली के रूप में भी होना ही चाहिए और यदि वे इन भावों को बनाकर साथ साथ रहते है तो स्वयं के साथ ही साथ परिवार समाज एवं मानवता का कल्याण एवं विकास होगा ही होगा इसलिए हर पति पत्नी को इस मंत्र से प्रेरणा लेकर परस्पर सेवक स्वामि सखा भाव के साथ रहते हुवे परिवार समाज एवं मानवता के उत्थान में अपना अपना सहयोग देना ही चाहिए।
।।जय श्री राम जय हनुमान।।


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