3.लता भवन ते प्रगट भे तेहि अवसर दोउ भाइ। 
  निकसे जनु जुग बिमल बिधु,जलद पटल बिलगाइ।।
4.चमचमात चंचल नयन, बिच घुंघट पट झीन।
   मानहु सुरसरिता विमल, जल उछरत जुग मीन।।
5.कहती हुई यों उत्तरा के, नेत्र जल से भर गए।
   हिम के कणों से पूर्ण मानो, हो गए पंकज नए।।
(2)हेतूत्प्रेक्षाअलंकार:-जहाँ अहेतु में, अर्थात जो कारण न हो उसमें,  हेतु/कारण की संभावना की जाये वहाँ पर हेतूत्प्रेक्षा अलंकार होता है।जैसे -
  1.पावकमय ससि स्रवत न आगी।
  मानहु    मोहि  जानि   हतभागी ।।
 2.जे जल चलहिं थलहि की नाई।
    टाप न बूड़ बेग अधिकाई॥
    सुभग सकल सुचि सुंदर करनी।
   अय जिमि जरत धरत पगु धरनी।।
3.राम बदन बिलोकि मुनि ठाड़ा।
  मानहु चित्र माझ लिखि काढ़ा।
4.सोहत जनु जुग जलज सनाला।
   ससिहि सभीत देत जय माला।।
 (3)फलोत्प्रेक्षा अलंकार:-जहाँ पर अफल में (जो वास्तविक फल ना हो )फल की संभावना की जाये है वहाँ पर फलोत्प्रेक्षा अलंकार  होता ह।जैसे-   
1. मानहु बिधि तन-अच्छ-छबि स्वच्छ राखिबैं काज।
    दृग-पग पोंछन को करे भूषन पायन्दाज॥
 2.मंगलमय कल्याणमय अभिमत फल दातार।
  जनु सब साचे होन हित भये सगुन इक बार।।