नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को ॥ श्रीशिवजी श्री राम नामका प्रभाव भलीभाँति जानते हैं राम नाम के प्रभाव से ही हालाहल विषने उनको अमृतका फल दिया ॥
'नाम प्रभाउ जान सिव नीको' । 'नीको' अर्थात् भलीभाँति शिवजी ही सबसे अधिक राम नाम के प्रभावको जानते हैं तभी तो विनयपत्रिका में गोस्वामीजी ने लिखा है कि
'सतकोटि चरित अपार दधिनिधि
मथि लियो काढ़ि बामदेव नाम - घृतु है',
मानस में भी यही भाव मिलता है
ब्रह्म राम ते नाम बड़ बर दायक बर दानि।
रामचरित सतकोटि महँ लिय महेस जिय जानि । ' और अहर्निश 'सादर जपहिं अनंग आराती'। देखिये, सागर मथते समय सभी देवगण वहाँ उपस्थित थे और सभी नामके परत्व और महत्त्वसे भिज्ञ थे, तब औरोंने क्यों न पी लिया हलाहल कालकूट को? कारण स्पष्ट है कि वे सब श्रीरामनामके प्रतापको 'नीकी' भाँति नहीं जानते थे । जैमिनिपुराणमें भी इसका प्रमाण है; कि -
'रामनाम परं ब्रह्म सर्वदेवप्रपूजितम् ।
महेश एव जानाति नान्यो जानाति वै मुने ॥ ' पद्मपुराणमें एक श्लोक ऐसा भी है,
'रामनामप्रभावं यज्जानाति गिरिजापतिः।
तदर्थं गिरिजा वेत्ति तदर्धमितरे जनाः ॥ '
अर्थात् राम-नामका प्रभाव जो शिवजी जानते हैं, गिरिजाजी उसका आधा जानती हैं तो फिर अन्य लोग उस 'कालकूट फल दीन्ह अमी को' कैसे जान जाते। श्रीमद्भागवत में यह कथा दी है कि
'छठे मन्वन्तरमें नारायणभगवान् अजितनामधारी हो अपने अंशसे प्रकट हुए देवासुर संग्राम में दैत्य देवताओंका विनाश कर रहे थे। दुर्वासा ऋषिको विष्णुभगवान्ने मालाप्रसाद दिया था। उन्होंने इन्द्रको ऐरावतपर सवार रणभूमिकी ओर जाते देख वह प्रसाद उनको दे दिया । इन्द्रने प्रसाद हाथीके मस्तक पर रख दिया जो उसने पैरोंके नीचे कुचल डाला । इसपर ऋषिने शाप दिया कि 'तू शीघ्र ही श्रीभ्रष्ट हो जायगा।' इसका फल तुरन्त उन्हें मिला । संग्राममें इन्द्रसहित तीनों लोक श्रीविहीन हुए । यज्ञादिक धर्मकर्म बन्द हो गये। जब कोई उपाय न समझ पड़ा, तब इन्द्रादि देवता शिवजीसहित ब्रह्माजीके पास सुमेरु
शिखरपर गये। इनका हाल देख-सुन ब्रह्माजी सबको लेकर क्षीरसागरपर गये और एकाग्रचित्त हो परमपुरुषकी
स्तुति करने लगे और यह भी प्रार्थना की कि 'हे भगवन्! हमको उस मनोहर मूर्त्तिका शीघ्र दर्शन दीजिये, जो हमको अपनी इन्द्रियोंसे प्राप्त हो सके।' भगवान् हरिने दर्शन दिया, तब ब्रह्माजीने प्रार्थना की कि
'हमलोगोंको अपने मंगलका कुछ भी ज्ञान नहीं है, आप ही उपाय रचें, जिससे सबका कल्याण हो ।' भगवान् बोले
कि‘हे ब्रह्मा ! हे शम्भुदेव ! हे देवगण ! वह उपाय सुनो, जिससे तुम्हारा हित होगा। अपने कार्यकी सिद्धिमें कठिनाई देखकर अपना काम निकालनेके लिये शत्रुसे मेल कर लेना उचित होता है। जबतक तुम्हारी वृद्धिका समय न आवे तबतकके लिये तुम दैत्योंसे मेल कर लो। दोनों मिलकर अमृत निकालनेका प्रयत्न करो । क्षीरसागरमें तृण, लता, ओषधि, वनस्पति डालकर सागर मथो । मन्दराचलको मथानी और वासुकिको रस्सी बनाओ। ऐसा करने से तुमको अमृत मिलेगा। सागरसे पहले कालकूट निकलेगा, उससे न डरना, फिर रत्नादिक निकलेंगे इनमें लोभ न करना....'''। यह उपाय बताकर भगवान् अन्तर्धान हो गये । इन्द्रादि देवता राजा बलिके पास सन्धिके लिये गये।- समुद्र मथकर अमृत निकालनेकी इन्द्रकी सलाह दैत्य- दानव सभीको भली लगी। सहमत हो दानव, दैत्य और देवगण मिलकर मन्दराचलको उखाड़ ले चले। उनके थक जानेसे पर्वत गिर पड़ा। उनमेंसे बहुतेरे कुचल गये । इनका उत्साह भंग हुआ।यह देख भगवान् विष्णु गरुड़पर पहुँच गये......'और लीलापूर्वक एक हाथसे पर्वतको उठाकर गरुड़पर रख उन्होंने उसे क्षीरसागरमें पहुँचा दिया। वासुकिको अमृतमें भाग देने को कह कर उनको रस्सी बननेको उत्साहित किया गया। मन्दराचलको जलपर स्थित रखनेके लिये भगवान्ने कच्छपरूप धारण किया। जब बहुत मथनेपर भी अमृत न निकला, तब अजितभगवान् स्वयं मथने लगे। पहले कालकूट निकला जो सब लोकोंको असह्य हो उठा, तब भगवान्का इशारा पा सब मृत्युंजय शिवजीकी शरण गये और जाकर उन्होंने उनकी स्तुति की। भगवान् शंकर करुणालय इनका दुःख देख सतीजी से बोले कि 'प्रजापति महान् संकटमें पड़े हैं, इनके प्राणोंकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। मैं इस विषको पी लूँगा जिसमें इनका कल्याण हो।' भवानीने इस इच्छाका अनुमोदन किया ।जैसा कि स्पष्ट है-' श्रीरामनामाखिलमन्त्रबीजं मम जीवनं च हृदये प्रविष्टम् | हालाहलं वा प्रलयानलं वा मृत्योर्मुखं वा विशतां कुतो भयम्॥'
शिवजीने उस सर्वतोव्याप्त कालकूटको हथेलीपर रखकर पी लिया । नन्दीपुराणमें नन्दीश्वरके वचन हैं कि
शृणुध्वं भो गणास्सर्वे रामनाम परं बलम् । यत्प्रसादान्महादेवो हालाहलमयीं पिबेत् ॥
''जानाति रामनाम्नस्तु परत्वं गिरिजापतिः ।
ततोऽन्यो न विजानाति सत्यं सत्यं वचो मम ॥'
विद्वानों की मान्यता है कि 'रा' उच्चारणकर शिवजीने हालाहलविष कण्ठमें धर लिया और फिर 'म' कहकर मुख बन्द कर लिया। जिस के कारण जहर कंठ में ही रुक गया।यह है राम नाम का प्रभाव जिसे महादेव ही जानते ।
कालकूट फलु दीन्ह फल दीन्ह अमी । विषपानका फल मृत्यु है, पर आपको वह विष भी श्रीराम- नामके प्रतापसे अमृत हो गया; कहा भी गया है की -
'खायो कालकूट भयो अजर अमर तन ।'
इस विषकी तीक्ष्णतासे महादेव का कण्ठ नीला पड़ गया जिससे आपका नाम 'नीलकण्ठ' पड़ा। आइए हम महादेव की जय कार करे ,हर हर महादेव जय शिव शंकर।
।। जय श्री राम जय हनुमान।।
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