मानस चर्चा "महादेवजी को राम कथा कैसी प्रिय है"
सिवप्रिय मेकल सैल सुता सी । सकल सिद्धि सुख संपतिरासी ॥
'मेकल- सैल - सुता' कौन हैं - मेकल-शैल अमरकण्टक पहाड़ को कहते हैं। यहाँसे नर्मदाजी निकली है।इसीसे नर्मदाजीको 'मेकल-शैल-सुता' कहा जाता है । जैसा कि अमरकोष में कहा भी गया है---
'रेवती तु नर्मदा सोमोद्भवा मेकलकन्यका।'
श्रीशिवजीको यह कथा (राम कथा) नर्मदाके समान प्रिय है। जो सब सिद्धियों, सुख और सम्पत्तिकी राशि है ॥
नर्मदाजी के समान कहनेका भाव क्या है?भाव यह है कि नर्मदाके स्मरणसे सर्पजन्य विष- का नाश हो जाता है। प्रमाण स्वरूप विष्णु पुराण के इस श्लोक को देखें -
'नर्मदायै नमः प्रातर्नर्मदायै नमो निशि ।
नमस्ते नर्मदे तुभ्यं त्राहि मां विषसर्पतः ॥'
वैसे ही रामकथाके स्मरणसे संसारजन्य विष दूर हो जाता है। अब हम अन्य बात पर भी चर्चा करते है कि ---
'सिव प्रिय मेकल सैल सुता सी' ही क्यों कहा जा रहा है । इसका कारण यह है कि नर्मदा नदीसे प्रायः स्फटिकके या लाल या काले रंगके पत्थरके अण्डाकार टुकड़े निकलते हैं जिन्हें नर्मदेश्वर शिव कहते हैं। ये पुराणानुसार शिवजीके स्वरूप ही माने जाते हैं और इनके पूजनका बहुत माहात्म्य भी बताया गया है। श्रीशिवजीको नर्मदा इतनी प्रिय है कि नर्मदेश्वररूपसे उसमें सदा निवास करते हैं या यों कहिये कि शिवजीके अति प्रियत्वके कारण सदा अहर्निश इसी द्वारा प्रकट होते हैं। रामकथा भी शिवजीको ऐसी ही प्रिय है अर्थात् आप निरन्तर इसीमें निमग्न रहते हैं ।'शिवजीका प्रियत्व इतना है कि अनेक रूप धारण करके नर्मदामें नाना क्रीड़ा करते हैं, तद्वत् इसके अक्षर-अक्षर प्रति तत्त्वोंके नाना भावार्थरूप कर उसीमें निमग्न रहते हैं। अतः मानसरामायणपर नाना अर्थोंका धाराप्रवाह है । नर्मदाजी शिवजीको प्रिय हैं इस संबंध में संदेह नहीं क्योंकि वायुपुराणमें कहा है कि यह पवित्र, बड़ी और
त्रैलोक्यमें प्रसिद्ध नदियोंमें श्रेष्ठ नर्मदा महादेवजीको प्रिय है। -
' एषा पवित्रविपुला नदी त्रैलोक्यविश्रुता ।
नर्मदासरितां श्रेष्ठा महादेवस्य वल्लभा ॥'
पद्मपुराण स्वर्गखण्डमें नर्मदाजीकी उत्पत्ति श्रीशिवजीके शरीरसे कही गयी है। जैसा कि कहा गया है-
'नमोऽस्तु ते ऋषिगणैः शंकरदेहनिःसृते ।'
और यह भी कहा है कि शिवजी नर्मदा नदीका नित्य सेवन करते हैं। अतः 'सिव प्रिय ' कहा। पुनः, स्कन्दपुराणमें
कथा है कि नर्मदाजीने काशीमें आकर भगवान् शंकरकी आराधना की जिससे उन्होंने प्रसन्न होकर वर
दिया कि तुम्हारी निर्द्वन्द्व भक्ति हममें बनी रहे और यह भी कहा कि तुम्हारे तटपर जितने भी प्रस्तरखण्ड
हैं वे सब मेरे वरसे शिवलिंगस्वरूप हो जायँगे। जो सदा के लिए सत्य ही है।
'सुख संपति रासी' से नव निधियोंका अर्थ भी लिया जाता है। नव निधियाँ हैं-
'महापद्मश्च पद्मश्च शङ्खो मकरकच्छपौ । मुकुन्दकुन्दनीलश्च खर्वश्च निधयो नव।'
इस प्रकार यह अलौकिक कथा श्री महादेवजी को प्रिय तो है ही जन जन को नव निधि देने वाली भी है।जैसा कि स्पष्ट है--
'हरषे जनु नव निधि घर आई'
तथा 'मनहुँ रंक निधि लूटन लागी' ।
।। जय श्री राम जय हनुमान।।
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