मानस चर्चा
महिमा जासु जान गनराऊ । प्रथम पूजिअत नाम प्रभाऊ।।
अर्थात् जिस श्रीरामनाम की महिमा श्रीगणेशजी जानते हैं। श्रीरामनामहीके प्रभावसे वे सब देवताओंसे पहले पूजे जाते हैं ॥ अर्थात् श्री राम नाम का प्रभाव अप्रतिम है ।इस बात को सिद्ध करने वाली श्रीगणेशजीकी कथा शैवतन्त्रमें आती है कि जब श्री शिवजीने गणेशजीको प्रथम पूज्य बनाने की बात शुरू किया तब स्वामिकार्त्तिकेयजीने
आपत्ति की कि हम बड़े भाई हैं, यह अधिकार हमको मिलना चाहिये। श्रीशिवजीने दोनोंको ब्रह्माजी के
पास न्याय कराने भेजा । आगे ब्रह्माजीने सभी देवताओं को बुलाया और सब देवताओंसे पूछा कि तुममेंसे प्रथम पूज्य होनेका अधिकारी कौन है; तब सब ही अपने-अपनेको प्रथम पूजनेयोग्य कहने लगे ।
आपसमें वादविवाद बढ़ते देख श्रीब्रह्माजी बोले कि जो तीनों लोकोंकी परिक्रमा सबसे पहले करके हमारे
पास आवेगा वही प्रथम पूज्य होगा। स्वामिकार्त्तिकजी मोरपर अथवा सब देवता अपने-अपने वाहनों पर
परिक्रमा करने चले। गणेशजीका वाहन मूसा है। इससे ये सबसे पीछे रह जानेसे बहुत ही उदास हुए ।
उसी समय प्रभुकी कृपासे नारदजीने मार्गहीमें मिलकर उन्हें उपदेश किया कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड ' श्रीरामनाम'
के अन्तर्गत है । तुम 'राम' नामहीको पृथ्वीपर लिखकर नामहीकी परिक्रमा करके ब्रह्माजीके पास चले
जाओ । इन्होंने ऐसा ही किया । अन्य सब देवता जहाँ-जहाँ जाते, वहाँ ही अपने आगे मूसाके पैरोंके चिह्न
पाते थे। इस प्रकार गणेशजी श्रीरामनामके प्रभावसे प्रथम पूज्य हुए।
एक अन्य कथाके अनुसार श्रीगणेशजीने श्रीरामनामके कीर्त्तनसे अपना प्रथम पूज्य होना कहा है और यह भी कहा है कि उस 'राम' नामका प्रभाव आज भी मेरे हृदयमें विराजमान एवं प्रकाशित है। इस कथा में श्री जगदीश्वरका इनको रामनामकी महिमाका उपदेश करना कहा है। -
'रामनाम परं ध्येयं ज्ञेयं पेयमहर्निशम् ।
सदा वै सद्धिरित्युक्तं पूर्वं मां जगदीश्वरैः ॥
'अहं पूज्यो भवल्लोके श्रीमन्नामानुकीर्तनात् ॥'
'तदादि सर्वदेवानां पूज्योऽस्मि मुनिसत्तम।
रामनामप्रभा दिव्या राजते मे हृदिस्थले ॥'
पद्मपुराणसृष्टिखण्डमें श्रीगणेशजीके प्रथम पूज्य होनेकी एक दूसरी कथा जो व्यासजीने संजयजीसे कही है। वह कथा यह है कि श्रीपार्वतीजीने पूर्वकालमें भगवान् शंकरजीके संयोगसे स्कन्द और गणेश नामक दो
पुत्रोंको जन्म दिया। उन दोनोंको देखकर देवताओंकी पार्वतीजीपर बड़ी श्रद्धा हुई और उन्होंने अमृत
तैयार किया हुआ एक दिव्य मोदक पार्वतीजीके हाथमें दिया । मोदक देखकर दोनों बालक उसे माता से
माँगने लगे। तब पार्वतीजी विस्मित होकर पुत्रोंसे बोलीं- 'मैं पहले इसके गुणोंका वर्णन करती हूँ, तुम दोनों सावधान होकर सुनो। इस मोदकके सूँघनेमात्रसे अमरत्व प्राप्त होता है और जो इसे सूँघता वा खाता है वह सम्पूर्ण शास्त्रोंका मर्मज्ञ, सब तन्त्रोंमें प्रवीण, लेखक, चित्रकार, विद्वान्, ज्ञान-विज्ञानके तत्त्वको जाननेवाला और सर्वज्ञ होता है। इसमें तनिक भी सन्देह नहीं । पुत्रो ! तुममेंसे जो धर्माचरणके द्वारा श्रेष्ठता प्राप्त करके आयेगा, उसीको मैं यह मोदक दूँगी । तुम्हारे पिताकी भी यही सम्मति है । '
माताके मुखसे ऐसी बात सुनकर परम चतुर स्कन्द मयूरपर आरूढ़ हो तुरन्त ही त्रिलोकीके तीर्थोंकी यात्राके लिये चल दिये। उन्होंने मुहूर्त्तभरमें सब तीर्थोंका स्नान कर लिया। इधर लम्बोदर गणेशजी श्रीस्कन्दजीसे भी बढ़कर बुद्धिमान् निकले। वे माता-पिताकी परिक्रमा करके बड़ी प्रसन्नताके साथ पिताजीके सम्मुख खड़े हो गये। क्योंकि माता - पिताकी परिक्रमासे सम्पूर्ण पृथ्वीकी परिक्रमा हो जाती है। जैसा कि पद्मपुराण के सृष्टिखण्ड में कहा भी गया है-
'सर्वतीर्थमयी माता सर्वदेवमयः पिता ।
मातरं पितरं तस्मात् सर्वयत्नेन पूजयेत् ॥
मातरं पितरंचैव यस्तु कुर्यात् प्रदक्षिणम् ।
प्रदक्षिणीकृता तेन सप्तद्वीपा वसुन्धरा ॥'
श्री गणेशजी की परिक्रमा पूर्ण होते ही श्रेकार्तिकेय जी भी आकर खड़े हुए और बोले, 'मुझे मोदक दीजिये ' । तब पार्वतीजी बोलीं, समस्त तीर्थोंमें किया हुआ स्नान, देवताओंको किया हुआ नमस्कार, सब यज्ञोंका अनुष्ठान तथा सब प्रकारके सम्पूर्ण व्रत, मन्त्र, योग और संयमका पालन ये सभी साधन माता-पिताके पूजनके सोलहवें अंशके बराबर भी नहीं हो सकते । इसलिये यह गणेश सैकड़ों पुत्रों और सैकड़ों गुणोंसे भी बढ़कर है। अतः देवताओंका बनाया हुआ यह मोदक मैं गणेशको ही अर्पण
करती हूँ । माता - पिताकी भक्तिके कारण ही इसकी प्रत्येक यज्ञमें सबसे पहले पूजा होगी। महादेवजी बोले,
'इस गणेशके ही अग्रपूजनसे सम्पूर्ण देवता प्रसन्न होगें' ।
यह है राम नाम का प्रभाव ---
महिमा जासु जान गनराऊ । प्रथम पूजिअत नाम प्रभाऊ।।
।।जय श्री राम जय हनुमान।।
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