रविवार, 9 जून 2024

मानस चर्चा नर नारायन सरिस सुभ्राता


मानस चर्चा नर नारायन सरिस सुभ्राता । जग पालक बिसेषि जन त्राता ॥ 
राम के र  और म ,नर और नारायणके समान सुन्दर भाई हैं। यों तो वे  जगत्भरके पालनकर्ता हैं पर अपने जनके विशेष रक्षक हैं ॥ 
 'नर नारायणका भायप कैसा था' यह बात जैमिनीय भारतकी कथा में बहुत सुंदर ढंग से आयी है। जैमिनी
भारतमें कहते हैं कि एक हजार कवच वाले सहस्रकवची दैत्यने तपसे सूर्य भगवान्‌को प्रसन्न करके वर माँग लिया था कि मेरे शरीरमें हजार कवच हों, जब कोई हजार वर्ष युद्ध करे तब कहीं एक कवच टूट सके, पर कवच टूटते ही शत्रु मर जावे । उसको मारने के लिए  नर-नारायणावतार हुआ। एक भाई हजार वर्ष युद्ध करके मर जाता  तब दूसरा भाई मन्त्रसे उसे जिलाकर स्वयं हजार वर्ष युद्ध करके दूसरा कवच तोड़कर मरता, तब पहला इनको जिलाता और स्वयं युद्ध करता । इस तरहसे लड़ते-लड़ते जब एक ही कवच रह गया तब दैत्य भागकर सूर्यमें लीन हो गया और तब नर-नारायण बदरीनारायणमें जाकर तप करने लगे। वही असुर द्वापरमें कर्ण हुआ जो गर्भसे ही कवच धारण किये हुए निकला,तब बदरीनारायण में तप रत  नर-नारायणहीने ही अर्जुन और श्रीकृष्ण के रुप में अवतार लेकर उस सहस्रकवची दैत्य  कर्ण को मारा यह है नर नारायन सरिस सुभ्राता ।
एक दूसरी कथा भी लोक में प्रसिद्ध है ---
धर्मकी पत्नी दक्षकन्या मूर्तिके गर्भसे भगवान्ने शान्तात्मा ऋषिश्रेष्ठ नरऔर नारायणके रूपमें अवतार लिया। उन्होंने आत्मतत्त्वको लक्षित करनेवाला कर्मत्यागरूप कर्मका उपदेश किया। वे बदरिकाश्रममें आज भी विराजमान हैं। 
निर्गुणरूपसे जगत्का उपकार नहीं होता, जैसा कहा है कि 'ब्यापक एक ब्रह्म अबिनासी ।
सत चेतन घन आनँदरासी ॥' 
'अस प्रभु हृदय अछत अबिकारी। 
सकल जीव जग दीन दुखारी ॥' 
इसीलिये सगुण रुप में अवतार लिया। सगुणरूपसे सबका और सब प्रकारसे उपकार होता है, इसलिये रामनामके
दोनों वर्णोंका नर-नारायणरूपसे जगत्का पालन करना कहा। भाईपना ऐसा है कि जिह्वासे दोनों प्रकट
होते हैं। इसलिये जीभ माता है, 'र', 'म' भाई हैं। जैसा कि स्पष्ट है- 
'जीह जसोमति हरि हलधर से । ' 
 'बिसेषि जन त्राता' ऐसा कहने का भाव है कि  जैसे नर-नारायणने वैसे तो संपूर्ण  जगत्भरका पालन करते है, पर भरतखण्डकी विशेष रक्षा करते हैं; वैसे ही ये दोनों वर्ण जगन्मात्रके रक्षक हैं, पर जापक जनके विशेष
रक्षक हैं। जगन्मात्रका पालन इसी लोकमें करते हैं और जापक जन अर्थात् जो इनके सेवक हैं, भक्त हैं उनके लोक-परलोक दोनोंकी रक्षा करते हैं।  ईश्वरत्वगुणसे सबका और वात्सल्यसे अपने जनका पालन करते हैं। जैसा की कहा गया है----
- 'सब मम प्रिय सब मम उपजाये।'
सब ते अधिक मनुज मोहि भाए॥
 और
'सत्य कहउँ खग तोहि सुचि सेवक मम प्रान प्रिय'
अस बिचारि भजु मोहि परिहरि आस भरोस सब।।
 पुनः, नर-नारायण भरतखण्डके विशेष रक्षक हैं और वहाँ नारदजी उनके पुजारी हैं, वैसे ही यहाँ 'रा', 'म' भरतजीकी रीतिवाले भक्तोंरूपी भरतखण्डके विशेष रक्षक हैं, नामसे प्रेम करने वाले, स्नेह करने वाले, नारदरूपी पुजारी हैं। पुनः, नर-नारायण सदा एकत्र रहते हैं वैसे ही 'रा', 'म' सदा एकत्र रहते हैं। वे विशेष रुप से हमारा पालन  करते हैं अर्थात् हमें मुक्तिसुख देते हैं । 'जन' का  सेवक ,भक्त, 'दर्शक' आदि  अर्थ  होता हैं। जो सेवक, भक्त, दर्शक  बदरिकाश्रममें जाकर नर  नारायण रूप के दर्शन करते हैं  उस भक्त के लोक परलोककी रक्षा  वे स्वयं करते हैं। कहा भी गया है--
 'जो जाय बदरी, सो फिर न आवै उदरी ।' 
।।जय श्री राम जय हनुमान।। 

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