मानस चर्चा रामकथा कलि- पन्नग भरनी ।
रामकथा कलि- पन्नग भरनी । पुनि बिबेक - पावक कहुँ अरनी ॥
पन्नग अर्थात् सर्प, साँप। 'भरनी' - भरणीके अनेक अर्थ किये गये हैं- व्रजदेशमें एक सर्पनाशक जीवविशेष होता है जो चूहे -सा होता है। यह सर्पको देखकर सिकुड़कर बैठ जाता है। साँप उसे मेढक (दादुर) जानकर निगल जाता है तब वह अपनी काँटेदार देहको फैला देता है जिससे सर्पका पेट फट जाता है और साँप मर जाता है। जैसा कि कहा भी गया है-
'तुलसी छमा गरीब की पर घर घालनिहारि ।
ज्यों पन्नग भरनी ग्रसेई निकसतउदर बिदारि ॥
दूसरे ढंग से भी यही बात प्रमाणित हो रही है--
', 'तुलसी गई गरीब की दई ताहि पर डारि ।
ज्यों पन्नग भरनी भषे निकरै उदर बिदारि ॥" (२)
'भरनी' नक्षत्र भी होता है जिसमें जलकी वर्षासे सर्पका नाश होता है—'अश्विनी अश्वनाशाय भरणी सर्पनाशिनी ।
कृत्तिका षड्विनाशाय यदि वर्षति रोहिणी ॥' गारुडी मन्त्रको भी भरणी कहते हैं। जिससे सर्पके काटनेपर
झाड़ते हैं तो साँपका विष उतर जाता है। 'वह मन्त्र जिसे सुनकर सर्प हटे तो बचे नहीं और न हटे तो जल-भुन जावे ।इस प्रकार यह बताया जा रहा है की
- रामकथा कलिरूपी साँपके लिये भरणी ( के समान) है और विवेकरूपी अग्निको ( उत्पन्न करनेको) अरणी है अर्थात सूर्य है॥
।। जय श्री राम जय हनुमान।।
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