शुक्रवार, 31 दिसंबर 2021

√घोड़ा Horse के पर्यायवाची शब्द

     ।।घोड़ा Horse के पर्यायवाची शब्द।।
       (एक दोहे में चौदह पर्याय)
  घोड़ा घोट घोटक हय ,
   हॉर्स हरि बाजि अश्व ।
रविसुत दधिका व तुरंग ,
    तुरग सर्ता सैन्धव।।
      ।।धन्यवाद।।
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√चिड़िया Bird के पर्यायवाची शब्द

    ।।चिड़िया Bird के पर्यायवाची शब्द।।
           एक दोहे में (13)
पंक्षी पाखी पतंगी, पखेरु परिंदा खग।
शकुनि शकुन्त द्विज खेचर, नभचर अंडज विहग।।
       ।।    धन्यवाद   ।।

"√जानवर के पर्यायवाची शब्द

        ।।जानवर के पर्यायवाची शब्द।।
           (एक दोहे में ग्यारह पर्याय)
चतुष्पाद चौपाया च, कैटल ढोर डांगर।
हैवान मवेशी बीस्ट,एनिमल पशु जानवर।।
    ।।धन्यवाद।।

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बुधवार, 29 दिसंबर 2021

हिमालय के पर्यायवाची शब्द

    ।।हिमालय के पर्यायवाची शब्द।।
  गिरीश हिमाचल नगेश  ,
       नगपति नगाधिराज ।
 हिमाद्रि हिमालय हिमगिरि,
      हिमपति  पर्वतराज ।।
      ।।धन्यवाद।।
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√पर्वत के पर्यायवाची शब्द

          ।।पर्वत के पर्यायवाची शब्द।।
             (देखें दो दोहों में 25 पर्याय)
भूभृत भूमिधर भूधर,
     महीधर धरणीधर।
कोह कूट श्रृंगी शिखर,
   धर धराधर क्षितिधर ।।1।।
पर्वत पहाड़ तुंग गिरि,
     शैल आद्रि अचल अग।
मेरु माउन्टेन कुधर,
     क्षमाधर नगपति नग।।2।।
          ।।।धन्यवाद।।।

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शनिवार, 25 दिसंबर 2021

√हाथी के पर्यायवाची शब्द

       ।।हाथी के पर्यायवाची शब्द।। 
        (दो दोहों में 25 पर्याय)
कुम्भा करीश कुम्भी च
 गज गजराज गयंद   
द्विरद दन्ती द्विप नाग     
   राज  मदकल मतंग ।।1।।
हाथी हैं हस्ती हस्त
     कुंजर व्याल वितुण्ड।
वारण गजेन्द्र वृहदंग
    करी शुण्डी सिन्धुर।।
       ।।धन्यवाद।।
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नदी के पर्यायवाची शब्द

     ।।नदी के पर्यायवाची शब्द।।          
        (दो पद्यों में तीस पर्याय)
अग्रु अर्णा अपगा कल्लोलिनी,
कूलवती  कूलंकषा  निर्झरिणी।
सरि सरिता सलीला स्रोतस्विनी,
द्वीपवती पुलिनवती पयस्विनी।।1।।
तरंगवती तरंगिणी तरनि तटिनी,
विरेफ  वहती  वेगगा  शैवालिनी।
तरंगालि तटिया शैलजा वाहिनी,
निम्नगा नदी  लहरी  प्रवाहिनी।।2।।
         ।।धन्यवाद।।
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गाय के पर्यायवाची शब्द

        ।।गाय के पर्यायवाची शब्द।।
 गौ गाय गइया गौवी,
     गौवंत्री गउ भद्रा गौरी।
सुरभि धेनु दोग्धी रोहिणी
   माहेयी  काउ   पयस्विनी।।
      ।। धन्यवाद ।।
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गुरुवार, 16 दिसंबर 2021

गंगा के पर्यायवाची शब्द

        ।।गंगा के  पर्यायवाची शब्द।।
         (दो पद्यों में 32 पर्याय)
शुभा  शुद्धा शिवा   विष्णुपगा।
       नदीश्वरी  भागीरथी   त्रिपथगा।।
 सुरसरि साध्वी सुरध्वनि स्रोतस्वती।
    सर्वा श्रेष्ठा अलकनन्दा मन्दाकिनी।।1।।
पूर्णा पारा  पुण्या तारा आद्या।
     जाह्नपुत्री जाह्नवी  देवनदी दिव्या।।
सुरसरिता त्रिनयना त्रिधारा देवापगा।
    ध्रुवनन्दा  मकरस्था  निर्मला  गंगा।।2।।
        ।।धन्यवाद।।
   
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मंगलवार, 14 दिसंबर 2021

विद्वान के पर्यायवाची शब्द

   ।।विद्वान के पर्यायवाची शब्द।।
          (विद्वान/स्कॉलर)
 सुधी विद्वान विशेषज्ञ,
   विज्ञ बुध सुज्ञ धीमान।
मनीषी मर्मज्ञ शास्त्रज्ञ,
  कोविद प्रज्ञ बुद्धिमान।।
   ।धन्यवाद।।
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√घर के पर्यायवाची शब्द

         ।।घर के पर्यायवाची शब्द।।
जन्मभूमि घर धाम गृह,
      आलय शाला सदन।
अयनशाला ओक होम,
       हाउस  डेरा  भवन।।1।।
बासा खाना झोपड़ी,
      कुटी निकेत निवास।
आशियाना व बसेरा,
     कुटिया भी आवास।।2।।
निलय निकेतन मन्दिर च,
     आश्रय  मकान  गेह।
आयतन वास स्थान हैं,
      वास  ठिकाना  नेह।।3।।
       ।।धन्यवाद।।
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सोमवार, 22 नवंबर 2021

√पत्नी के पर्यायवाची शब्द

              ।।पत्नी के पर्यायवाची शब्द।।
          चौपाई छन्द में
भार्या   संगिनी  अर्धांगिनी।
लुगाई    बीबी   बामांगिनी।।
प्राणेश्वरी     जीवनसंगिनी।
वामांगना  हि     गृहस्वामिनी।1।।
प्राणबल्लभा वामा  गृहिणी।
बहू बनिता बनी सधर्मिणी।।
पत्नी  दारा   बेगम   जाया।
सजनी सहचरी वधू  भाया।।2।।
       ।। धन्यवाद।।

रविवार, 21 नवंबर 2021

√पतिके पर्यायवाची शब्द


       ।।पति के पर्यायवाची शब्द।।
प्राणेश साजन सजना,
         सजन सैया सहचर।
मिया बालम बर स्वामी,
         नाथ सुहाग शौहर।।1।।
प्राणबल्लभ प्रियतम पिय,
        प्रीतम      प्राणाधार।
प्रिय प्राणेश्वर प्राणप्रिय,
        प्राणनाथ       भर्तार।।2।।
प्राणधन पति पिया पुरुष,
        पितम खसम पहचान।
वीर बल्लभ कंत कांत,
        भर्ता  धनी   महान ।।3।।
      ।। धन्यवाद ।।



√भाई के पर्यायवाची शब्द

        ।।भाई के पर्यायवाची शब्द।।
              (  सोरठा छन्द में   )
सहोदर भाई भैया,
       भ्राता भ्रातृ अनुज।
 तात दाऊ औ वीरा,
      वन्धु अवरज अग्रज।।
।। धन्यवाद ।।

√बहन के पर्यायवाची शब्द

       ।।बहन के पर्यायवाची शब्द।।
           (  सोरठा छन्द में   )
बहन भगिनी जीजी,
        स्वसा सहोदरा सिस्टर।
अग्रजा अनुजा हैं,
         दीदी बांधवी मिस्टर।।
     ।। धन्यवाद ।।

√पुत्री के पर्यायवाची शब्द

       ।।पुत्री के पर्यायवाची शब्द।।
आत्मजा तनया बेटी,
        साहबजादी सुता।
नन्दिनी नन्दना धिया,
        धी छोकरी दुहिता।।1।।
कुमारी कन्या पुत्री,
        कहो छोरी तनुजा।
जाई छोटी लड़की च,
         हैं अपनी अंगजा।।2।।
   ।। धन्यवाद ।।

माता के पर्यायवाची शब्द

     ।।माता के पर्यायवाची शब्द।।
माँ मैया मम्मी मदर,
          माई माता मातु।
जनयत्री वालिदा प्रसू
        अम्बा जननी मात।।
       ।।धन्यवाद।।

।।स्त्री के पर्यायवाची शब्द।।

           ।।स्त्री के पर्यायवाची शब्द।।
             (एक दोहे में 12 पर्याय)
मानवी  महिला नारी,
        कामिनी स्त्री औरत।
सुन्दरी रमणी वनिता,
      ललना अबला कलत्र।।
इस दोहे के सभी के सभी 12 पद स्त्री के पर्याय हैं।
          ।।धन्यवाद।।


पुत्र के पर्यायवाची शब्द

           ।।  पुत्र के पर्यायवाची शब्द  ।।
       (एक दोहे में 14 पर्याय)
पुत्र  तनय   लड़का वत्स,
          औलाद नन्दन सुत।
पिसर बालक सुवन लाल,
          कुमार  औरस  पूत।।
इस दोहे के सभी के सभी 14 पद पुत्र के पर्याय हैं।
       ।।धन्यवाद।।
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मंगलवार, 16 नवंबर 2021

√ पिता के पर्यायवाची शब्द

          ।। पिता के पर्यायवाची शब्द।।
              पिता पापा पितृ अब्बा,
              बालिद  बाबुल   बाप।
              जन्मदाता जनक  हुवे,
              बाबू       बापू     तात।।
              ।।धन्यवाद।।

√पुरुष के पर्यायवाची शब्द

   ।। पुरुष के पर्यायवाची शब्द।।
        मनुज मनुष्य मर्त्य मर्द,
        मानव   आदमी   जन।
        व्यक्ति पुरुष नर पर्याय,
        हैं   सभी   मानो   मन।।

              ।। धन्यवाद।।

बुधवार, 3 नवंबर 2021

।।दीप पर्व दीपोत्सव मनायें आज।।

        ।।दीप पर्व दीपोत्सव मनायें आज।।
अंधकार पर प्रकाश के विजय का,
मनायें अद्भुत प्रकाश का पर्व आज।
सर्वदात्री धनदेवी के प्रगटोत्सव का,
लोकप्रिय ललित दीपोत्सव आज।।
रिद्धि-सिद्धि सह गणेश पूजन का,
ज्योतिर्मय दीप करें प्रदीप्त आज।
धनेश कुबेर की कृपा पाने का,
दीपमालिका से सम्मान आज।।
काम क्रोध लोभ रावण नाश का,
संकल्प  दीप दीपक दीया आज।
 विनम्र बन अज्ञान पर ज्ञान का,
 सर्वत्र सम्मान शमा जलायें आज।।
गलत पर सही पर्वो के  समूह का,
दीपमाला दीवाली दीपावली आज।
राग क्लेश द्वेष दुःख दाह का,
तिमिर मिटाने तिमिरहर जलायें आज।।
सुख शान्ति स्नेह  प्रेम नेह का,
मधुर स्वीट परस्पर बाटें आज।
शुभकामनाओं सहित सत्य का,
दीपपर्व दीपोत्सव मनायें आज।।
    ।। शुभकामनाओं सहित।।

मंगलवार, 2 नवंबर 2021

√पर्यायवाची यमुना के

           ।।पर्यायवाची यमुना के।।

अर्कसुता   अर्कजा   भानुजा।
श्यामा तरणितनया तरणिजा।।
कालगंगा   कलिंदशैलजा।
कृष्णा कालिंदी कलिंदजा।।1।।
जमुना  सूर्यतनया  सूर्यजा।
रवितनया यमुना यमानुजा।।
यमभगिनी सूर्यपुत्री रविजा।
तरणितनुजा ही आदित्यजा।।2।।
      ।। धन्यवाद।।

शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2021

√पर्यायवाची तलवार के

           ।। तलवार के पर्यायवाची शब्द।।
   (एक ही दोहे में ग्यारह पर्यायवाची शब्द)
असि करवाल दुधारा च, चन्द्रहास तलवार।
शमशीर शायक कृपाण, खंजर खड्ग कटार।।
#असि:- तलवार का प्रसिद्ध पर्याय है जिसके लिए प्रायः #भुजाली,#बरछी,#बरछा,#कुकरी या #खुखरी आदि भी आते हैं।
#करवाल:-तलवार के साथ-साथ #नख/#नाखून के लिए भी इसका प्रयोग होता है।
#दुधारा:-तलवार का एक प्रकार है जिसके दोनों ओर धार होती है,यह छोटा या बड़ा हो सकता है।
#चन्द्रहास:-तलवार को भी कहते  हैं और चन्द्रमा की उज्ज्वल आभा;चमकती हुई तलवार;एक सफेद चमकीली धातु जिससे सिक्के,गहने,बर्तन आदि बनाये जाते हैं  को भी कहते हैं। हाँ रावण की वह तलवार जिसे भगवान शंकर ने उसे दिया था उसका नाम भी चन्द्रहास था  देखें:-
#चंद्रहास हरु मम परितापं। रघुपति बिरह अनल संजातं॥
#शमशीर:- इसे #शमशेर व #बघनखा भी कहा जाता है।यह अंग्रेजी में #sword है।यह #शेर की पूँछ/नख के शक्ल का हथियार होता है।
#शायक:-सामान्यतः इसका अर्थ शर, तीर या बाण होता है लेकिन यह तलवार के अर्थ में भी प्रयुक्त होता है।
#कृपाण:- ध्यान रखें यह तलवार के लिए प्रसिद्ध है लेकिन इस जैसा ही #कृपण शब्द है जिसका अर्थ कंजूस,लोभी व लालची होता है।
#खंजर:-#छोटी तलवार होती है जिसे #क्षुरिका भी कहते है।
#खड्ग:-यह दुधारी होती है इसकी कथा है कि दानवों से तंग आकर देवताओं ने हिमालय में यज्ञ किया जिससे एक दिव्य आयुध निकाला जिसका नाम ब्रह्माजी ने खड्ग रखा।
#कटार:-ध्यान रखना है कि कटार एक बालिश्त/बित्ते का तिकोना और दुधारा हथियार है और #कुठार फरसा है।
     हिंदी के सभी क्लासेज एवं कंपेटिशन्स के लिए इम्पोर्टेन्ट शब्दों के पर्यायवाची जानने के लिए चैनल सब्सक्राइब कर बेल बटन को क्लिक करें।वीडियो पसंद आने पर कमेन्ट जरूर लिखें लाइक व शेयर करें।
      ।।धन्यवाद thank you very much।।
    

गुरुवार, 28 अक्तूबर 2021

✓।।सुरपति सुत जयन्त ( शक्रसुत ) की कथा।।

मानस चर्चा
      " तात सक्रसुत कथा सुनाएहु। 
      बान प्रताप प्रभुहि  समुझाएहु॥"
 सुन्दर काण्ड में माता सीताजी ने हनुमानजी से कहा --   " तात सक्रसुत कथा सुनाएहु। 
      बान प्रताप प्रभुहि समुझाएहु॥"
यहाँ विचारणीय है कि सक्रसुत कौन है  और उसकी कौनसी कथा सुनानी है बान प्रताप क्या है जिसे प्रभु को समझाना है आइए उस  कथा को मानस के आधार पर सुनते और समझते हैं ----
यह कथा अरण्य काण्ड के प्रारम्भ की  है जहाँ सीता हरण और रावण मरण का बीज भी अंकुरित हो गया है,  शक्र सुत प्रकरण में ही स्पष्ट हो गया  कि सीता के प्रति छोटे से छोटे अपराध करने वाले को भयानक दण्ड तो  हरण करने वाले को मरण  वरण तो करना ही होगा। इस बात के लिये सुर, नर, मुनि सबको  जयन्त प्रकरण द्वारा निश्चिंत किया गया है आईये हम भगवान शंकर के विचार श्रीराम के बारे में सुनते है फिर मूढ़ शक्रसुत की करनी और भरनी  भी ।
उमा राम गुन गूढ़ पंडित मुनि पावहिं बिरति।
पावहिं मोह बिमूढ़ जे हरि बिमुख न धर्म रति॥ 
  भरत चरित के बाद पावन और सुर,नर,मुनि मन भावन प्रभु चरित सुरपति सुत जयन्त से प्रारम्भ हो रहा है:
            पुर नर भरत प्रीति मैं गाई।
            मति अनुरूप अनूप सुहाई॥
            अब प्रभु चरित सुनहु अति पावन। 
            करत जे बन सुर नर मुनि भावन॥
अब कथा गोस्वामीजी के शब्दों में:
            एक बार चुनि कुसुम सुहाए।
            निज कर भूषन राम बनाए॥
           सीतहि पहिराए प्रभु सादर।
           बैठे फटिक सिला पर सुंदर॥
           सुरपति सुत धरि बायस बेषा। 
           सठ चाहत रघुपति बल देखा॥
सुरपति सुत मतलब सक्रसुत जिसका नाम है जयंत:
           जिमि पिपीलिका सागर थाहा। 
            महा मंदमति पावन चाहा॥
           
    सुरपति सुत जयन्त ने ऐसा क्यों किया इसके पीछे एक पुरानी कथा  है : भगवान श्रीराम का बालकपन में पतंग उड़ाना ,जयन्त पत्नी द्वारा पतंग पकड़ना फिर उसकी पतंग के स्वामी को देखने की लालसा, जिसकी पूर्ति के वचन हनुमानजी द्वारा भिजवाना कि चित्रकूट में लालसा पूर्ति होगी ,अब जब वह अपनी उस लालसा पूर्ति के लिए पूनम की रात्रि में चित्रकूट आकर राम रुप पर मोहित हो जाती है तब सठ जयन्त सीताजी को अपने चरन-चोंच से रघुपति बल परखने को मूढता में घायल कर देता है।
सुरपति सुत से एक बात और मन में आती है कि हो सकता है उसके मन में आया हो कि देवों का कष्ट दूर करने को तो यह राम कोई प्रयास ही नहीं कर रहा है पता नहीं क्या बात है, यह सुरों अर्थात्  देवों का कष्ट दूर कर भी पायेगा या नहीं चलो क्यों न अपनी कायापलट विद्या से इनका  परीक्षण ही कर लिया जाय। उसने अपनी आशंकाओं को दूर करने के लिए कर लिया परीक्षण: सीता चरन चोंच हति भागा। 
           मूढ़ मंदमति कारन कागा॥
    हो गया परीक्षण, परीक्षण  का परिणाम तो मिलना ही है  इसका प्रभाव तो पड़ना ही है :
      चला रुधिर रघुनायक जाना। 
      सींक धनुष सायक संधाना॥
अति कृपाल रघुनायक सदा दीन पर नेह।
ता सन आइ कीन्ह छलु मूरख अवगुन गेह।।
यहाँ रघुनायक द्वारा राजा रघु की कृपालुता-दीन बंधुता पर भी प्रकाश डाला गया है , विश्वजीत यज्ञ के बाद सर्वस्व दान कर चुके राजा के पास जब वरतन्तु(विश्वामित्र) शिष्य कौत्स चौदह सहस्र स्वर्ण मुद्रा  के लिये आये और राजा की दीन-हीन स्थिति को देख बिना याचना किए  ही जाने लगे तब उनके मनोरथ की पूर्ति हेतु राजा ने कुबेर पर चढ़ाई की तैयारी कर दिया जिसे जानते ही कुबेर ने अनन्त स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा कर दी। जब रघु ऐसे तो उनका नायक जिसे रघुनायक कहते हैं वो कैसा होगा जान लेते हैं-
     प्रेरित मंत्र ब्रह्मसर धावा। 
     चला भाजि बायस भय पावा॥
     धरि निज रूप गयउ पितु पाहीं।
     राम बिमुख राखा तेहि नाहीं॥
     भा निरास उपजी मन त्रासा। 
     जथा चक्र भय रिषि दुर्बासा॥
      ब्रह्मधाम सिवपुर सब लोका। 
      फिरा श्रमित ब्याकुल भय सोका।।
रामविमुख का हाल क्या ? तीनों लोकों में उसका कोई नहीं। कैसे? ठीक वैसे जैसे दुर्बासा का भी कोई नहीं रहा। जब ऋषि दुर्बासा ने भगवान भक्त अम्बरीष पर  तप बल प्रयोग किया तब उनका क्या हुवा यह कथा जगत जानता हैं। वह कथा सुरपति अर्थात्  जयंत के पिताश्री को देवगुरु बृहस्पति तो पहले ही सुना चुके हैं-
सुनु सुरेस रघुनाथ सुभाऊ। निज अपराध रिसाहिं न काऊ॥
जो अपराधु भगत कर करई। राम रोष पावक सो जरई॥
लोकहुँ बेद बिदित इतिहासा। यह महिमा जानहिं दुरबासा।।
   वही हाल राम विमुख सुरपति सुत की भी हो रही है गोस्वामीजी  कह रहे हैं सुनते हैं-
काहूँ बैठन कहा न ओही। 
राखि को सकइ राम कर द्रोही ॥
अब रामद्रोही का हाल क्या होता है अर्थात् रामविमुख का हाल क्या होता है?सुनते हैं:
मातु मृत्यु पितु समन समाना। 
सुधा होइ बिष सुनु हरिजाना॥
मित्र करइ सत रिपु कै करनी। 
ता कहँ बिबुधनदी बैतरनी॥
सब जगु ताहि अनलहु ते ताता। 
जो रघुबीर बिमुख सुनु भ्राता।।ये होता है राम द्रोहियों के साथ इसमें तो कोई संदेह ही नहीं है।पर  यहां एक बात सबके दिमाग में आनी भी स्वाभाविक ही है कि राम विमुख की हाल तो हम जान गए पर राम की कृपा प्राप्त राम भक्त का क्या होता है,
यदि राम सम्मुख हो अर्थात राम कृपा  प्राप्त हो तब क्या होता है देखें- राम के सम्मुख होने पर क्या होता है:
गरल सुधा रिपु करइ मिताई।गोपद सिंधु अनल सितलाई।।
गरुण सुमेरु रेनु सम ताही।राम कृपा करि चितवा जाही।।
और भी देख ही लेते है:
करौ सदा तिन्ह कै रखवारी।जिमि बालकहि राखि महतारी।।
   जो जिसका अपराध करता है  उसका अपराध वही क्षमा करता है इसके लिये सत्पुरुष का मार्ग दर्शन भी मिलता है-
   नारद देखा बिकल जयंता। 
   लगि दया कोमल चित संता॥
   पठवा तुरत राम पहिं ताही। 
   कहेसि पुकारि प्रनत हित पाही॥
   आतुर सभय गहेसि पद जाई। 
   त्राहि त्राहि दयाल रघुराई॥
   अतुलित बल अतुलित प्रभुताई। 
   मैं मतिमंद जानि नहीं पाई॥
   निज कृत कर्म जनित फल पायउँ। 
   अब प्रभु पाहि सरन तकि आयउँ॥
   सुनि कृपाल अति आरत बानी। 
    एकनयन करि तजा भवानी॥
 कीन्ह मोह बस द्रोह जद्यपि तेहि कर बध उचित।
 प्रभु छाड़ेउ करि छोह को कृपाल रघुबीर सम॥
यही वह कथा है जिसे माताजी ने हनुमानजी से प्रभु श्री राम को सुनाने और उनके वाण के प्रताप को समझाने को कहा-- ।।जय श्री राम जय हनुमान।।
                     ।।धन्यवाद।।


√पर्यायवाची पेड़ के

           ।।पर्यायवाची पेड़ के।।
द्रुम दरख्त शाखी अगम,महीरुह वृक्ष विटप।
रुख तरु पुष्पद पलाशी,पर्णी पेड़ पादप।।

    
               ।।धन्यवाद।।

बुधवार, 27 अक्तूबर 2021

पर्यायवाची फल के

           ।।पर्यायवाची फल के।।
फल मीजान बीजकोश, रसाबाद फर उपज।
प्रभुभोज सस्य संतति, बीजकोट व  पुष्पज।।1।।
पुष्पाण्ड और परिणाम, सबमें बीजाधार।
पलागम नतीजा फ्रूट(fruit) ,कन्दमूल फलधार।।2।।
           ।।धन्यवाद।।

बुधवार, 20 अक्तूबर 2021

हवा के पर्यायवाची शब्द

          ।।। हवा के पर्यायवाची शब्द    ।।
हवा समीर अनिल पवन, मातरिश्वा   प्रवात।
एयर  वायु ब्रीज बयार , प्रभंजन विन्ड  वात।।
          ।।धन्यवाद।।

मंगलवार, 19 अक्तूबर 2021

√पर्यायवाची पृथ्वी के

          ।।   पर्यायवाची पृथ्वी के   ।।
       (रोचक अड़तालीस पर्याय धरती के)
वसुधा विपुला विकेशी, विश्वम्भरा वसुमति।
वसुन्धरा धरा गोवा, काश्यपी इड़ा अदिति।।1।।
उर्वरा अनन्ता अर्थ(earth),आद्या अचला अवनि।
सागरमेखला  पृथ्वी,     धरती  धरित्री  धरनि।।2।।
भू भूमि भूमंडल महि,   सर्वसहा  जया  थल।
जगती जमीन क्षिति क्षमा,क्षोणि श्यामा भूतल।।3।।
रत्नगर्भा पारा पृथ,  गो गोत्रा ग्राउण्ड(ground)।
मेदिनी कु उर्वी रसा, सहा स्थिरा माउंड(mound)।।4।।
mound का अर्थ होता है टीला आप सब जानते है टीला मतलब ढेर अतः ये सभी 48 शब्द पृथ्वी के पर्यायवाची शब्दों के ढेर है जो आपके  ज्ञान को समृद्ध करेगें। आप सभी को शुभकामनाओं सहित  धन्यवाद।

    
                  ।। धन्यवाद।।

मंगलवार, 28 सितंबर 2021

।। आकाश के पर्यायवाची शब्द।।

     ।। आकाश के पर्यायवाची शब्द।।
         (  तीन दोहों में 37  पर्याय )
आकाश अधर आसमाँ,
            अर्श अनन्त अम्बर।
आसमान अंतरिक्ष अभ्र,
           स्काई स्पेस पुष्कर।।1।।
विष्णुपद सारंग फलक,
          दिव व्योम नभमंडल।
उर्ध्वलोक द्युलोक नाक,
         ख गगन वायुमंडल।।2।।
गगनलोक गगनमण्डल 
            धौ शून्य तारापथ।
चर्ष हेवन स्वर्ग शीर्ष,
             दिव्य द्यु  नभ छायपथ।।3।।
इन दोहों में आये सभी के सभी
शब्द आकाश के पर्याय हैं।
 ।।धन्यवाद।।

शनिवार, 25 सितंबर 2021

पर्यायवाची शब्द सूर्य के

      ।।पर्यायवाची शब्द सूर्य के।।
      (तीन दोहों में तैतीस पर्याय)
भानु रवि मित्र मरीची ,मन्दार प्रभाकर।
विहंगम अरुण आदित्य,अंशुमाली दिनकर।।1।।
आफ़ताब सविता हरि,अर्क तरणि दिवाकर।
सूरज पतंग मार्तण्ड,हंस दिनेश भास्कर।।2।।
अंशुमान दिनमणि सूर्य,आक मिहिर दिवाचर।
हेमकर प्लवंग तिमिरहर,विवस्वान दिवसकर।।3।।
।। धन्यवाद।।
      

            




              

बुधवार, 22 सितंबर 2021

।।धन वृद्धि के वास्तु ट्रिप्स।।

        ।।धन वृद्धि के वास्तु ट्रिप्स।।

       कहा जाता है कि वास्तु शास्त्र के हिसाब से घर में कुछ जरूरी बदलाव करके जीवन को समृद्ध बनाया जा सकता है। वास्तु अनुसार हर चीज को रखने की एक दिशा निर्धारित होती है। अगर आप दिशा का ध्यान में रखते हुए कोई समान रखेंगे तो इससे घर में सकारात्मकता आने के साथ धन-धान्य की कमी भी दूर हो सकती है। यहां आप जानेंगे वास्तु की कुछ जरूरी और महत्वपूर्ण बातें जिन्हें अपनाकर आप अपना जीवन सुखमय बना सकते हैं।

ध्यान रखें कि जिस अलमारी या तिजोरी में आप पैसा रखते हैं उसे हमेशा पश्चिम दिशा की ओर रखें जिससे उसका दरवाजा पूर्व दिशा की तरफ खुले। मान्यता है ऐसा करने से घर-परिवार में कभी धन-धान्य की कमी नहीं होती। ध्यान रखें कि तिजोरी को कभी भी खाली नहीं रखना चाहिए। तिजोरी में एक शीशा इस तरह से लगाना चाहिए जिससे धन ता प्रतिबिंब उसमें दिखता रहे।

     धन प्राप्ति के लिए घर के उत्तर पूर्व कोने में अक्वेरियम रखना चाहिए। इसमें काले और सुनहरे रंग की मछलियां जरूर डालें। ऐसा करने से धन की कभी कमी नहीं होगी

      वास्तु अनुसार घर के कमरे में मोर का पंख रखने से आर्थिक स्थिति अच्छी रहती है। घर के मुख्य दरवाजे पर अंदर और बाहर की तरफ गणेश जी की दो प्रतिमाएं इस तरह से लगाएं जिसे उन मूर्तियों की पीठ एक दूसरे से जुड़ी रहे। मान्यता है ऐसा करने से धन में वृद्धि होती है।

      घर के ईशान कोण में तुलसी का पौधा रखें और उसकी सुबह शाम पूजा करें। ऐसा करने से धन आवक में तेजी से वृद्धि होने लगती है।

      घर की उत्तर दिशा में नीले रंग का पिरामिड रखें। मान्यता है ऐसा करने से धन की कभी कमी नहीं होती। संभव हो तो इस दिशा की दीवारों का रंग भी हल्का नीला करवाएं

     उत्तर दिशा में हमेशा कांच का बड़ा सा बाउल या दर्पण रखना चाहिए। मान्यता है ऐसा करने से देवी लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है।

     घर की उत्तर दिशा में पानी की टंकी रखें और उसमें शंख, चांदी का सिक्का या फिर चांदी का कछुआ रखें ऐसा करने से धन लाभ होने के प्रबल आसार रहते हैं।

                  ।।धन्यवाद।।


शनिवार, 18 सितंबर 2021

।। √श्रीशिवस्तुति- श्रीराम प्रिय अष्टमूर्ति शिव।।

     ।।राजा राम प्रिय शिव की स्तुति।।
  मूलं धर्मतरोर्विवेकजलधेः पूर्णेन्दुमानन्ददं
  वैराग्याम्बुजभास्करं ह्यघघनध्वान्तापहं तापहम्।
  मोहाम्भोधरपूगपाटनविधौ स्वःसम्भवं शङ्करं
  वन्दे ब्रह्मकुलं कलंकशमनं श्रीरामभूपप्रियम्।।
     मूलं धर्म  धर्म के मूल कौन धर्म /कर्म करने वाले (1)यज्ञ करने वाले धार्मिक और कर्म करने वाले हमारे अन्नदाता  के प्रथम स्वरूप में हैं भगवान शंकर इसीलिये तो धर्म करने वाले और कर्म करने वाले  की पूजा होती है,अंग्रेजी में एक प्रसिद्ध कथन भी तो है "work is worship " "कर्म ही पूजा है "अतः जो इन्सान ईमानदारी से  अपना काम करता है वह प्रथम शिव स्वरूप बन जन मन मानस में माननीय पूज्यनीय और वन्दनीय हो ही जाता है । (2) मूलं धर्मतरो: धर्म रूपी वृक्ष के मूल में है पृथ्वी  जो हमें सब कुछ देती है ऐसी पृथ्वी  है भगवान शंकर का दूसरा स्वरूप जो मूल है और मूल की साधना से मनुष्य को निःसंदेह  सब कुछ मिल ही जाता है। रहीमजी ने भी एक दोहे में कहा है:- एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय। रहिमन मूलहिं सींचिबो,  फूलै फलै अघाय।। अतः द्वितीय स्वरूप  पृथ्वी के रूप में शिव  की आराधना से सब कुछ मिलता ही है और हमारी पृथ्वी हमारी मातृभूमि के रूप में शिव सदा वन्दनीय है।  विवेकजलधेः विवेक/ज्ञान रूपी समुद्र अर्थात (3) तीसरे रूप में जल स्वरूप हैं भगवान शंकर जिसके बिना जीवन की कल्पना करना भी असम्भव है कहा भी गया है "water is life" "जल ही जीवन है"अतः अपने तीसरे स्वरूप जल के रूप में गंगा ,यमुना ,सरस्वती नर्मदा ,सिन्धु ,कावेरी आदि विभिन्न स्वरूपों में शिव सदा वन्दनीय ही हैं।  पूर्णेन्दुमानन्ददं (4)   जो  विवेक/ज्ञान रूपी  समुद्र को आनंद देने वाले पूर्ण चंद्र हैं अर्थात (4) चौथे रूप में चन्द्र स्वरूप  हैं भगवान शंकर। वैराग्याम्बुजभास्करं   वैराग्य/भक्ति(उपासना) रूपी कमल को विकसित करने वाले अर्थात भक्तों को आनन्द देने वाले (5) पाँचवें रूप में सूर्य स्वरूप हैं भगवान शंकर जो  ह्यघघनध्वान्तापहं तापहम्‌  पाप रूपी घोर अंधकार का निश्चय ही नाश कर देते हैं।सूर्य के तेज अर्थात( 6)  छठें रूप में अग्नि स्वरूप हैं भगवान शंकर।धर्म से पाप का नाश सूर्य से अंधकार का नाश और चंद्रमा से तापों का नाश अर्थात तीनों दैहिक दैविक भौतिक  तापों, कष्टों,दुःखों को हरने वाले हैं भगवान शंकर।  मोहाम्भोधरपूगपाटनविधौ स्वःसम्भवं शंकरं-   अम्बोधर और स्वः से (7)  सातवें रुप में आकाश स्वरूप है भगवान शंकर जो मोह  रूपी बादलों के समूह को सदा सदा के लिए इन्सान के जीवन से छिन्न-भिन्न कर देते हैं।  स्वःसम्भवं  अर्थात स्वयं  उत्पन्न (8)  आठवें यूपी में पवन स्वरूप हैं भगवान शंकर अर्थात हमारी प्राणवायु भी हैं भगवान शंकर।शंकर हैं  शं यानी कल्याण, कर यानी  करने वाले देव महादेव हैं भगवान शंकर ।इस प्रकार मानव कल्याण के लिये आठ स्वरूप धारण करने वाले  हैं भगवान शंकर     ब्रह्मकुलं  ब्रह्माजी के वंश के हैं वो कैसे एक बार ब्रह्माजी ने सृष्टि विकास के लिये सनत कुमारों को उत्पन्न किया लेकिन उन्होंने इस कार्य से मना कर सन्यास ले लिया अतः ब्रह्माजी के  क्रोध से नीलवर्ण का बालक उत्पन्न हुवा जो उत्पन्न होते ही रोना प्रारम्भ कर दिया,  रोने के कारण उसका नाम रुद्र पड़ा  जो एकादश रुद्रों में एक हुवा रुद्र कौन भगवान शंकर अतः भगवान शंकर ब्रह्मा के कुल से हैं। कलंकशमनं सभी प्रकार के कलंक का नाश करने वाले है भगवान शंकर। महर्षि भृगु द्वारा विष्णु को लात मारने के और चंद्रमा द्वारा गुरु बृहस्पति पत्नी तारा के साथ सहवास करने के कलंक का नाश किया था भगवान शंकर ने। यहाँ तक कि जगजननी माता सीता के हरण करने वाले रावण के इतने बड़े कलंक का शमन भी शिव शरण होने के कारण ही  शिवप्रिय श्रीराम ने उसको जीवन मुक्त कर कर दिया।  इस प्रकार से महाराज श्री रामचन्द्रजी के प्रिय और जिनको महाराज श्री रामचन्द्रजी प्रिय हैं उस श्री शंकरजी की  हम
  वन्दे   वंदना करते हैं।
     अष्ठ मूर्ति भगवान शंकर   की वंदना महाकवि कालिदास ने भी अपने अभिज्ञानशाकुन्तल के मंगलाचरण में किया है:-
या सृष्टिः स्रष्टुराद्या वहति विधिहुतं या हविर्या च होत्री
ये द्वे कालं विधत्तः श्रुतिविषयगुणा या स्थिता व्याप्य विश्वम् ।
यामाहुः सर्वबीजप्रकृतिरिति यया प्राणिनः प्राणवन्तः
प्रत्यक्षाभिः प्रपन्नस्तनुभिरवतु वस्ताभिरष्टाभिरीशः 
           इन आठों मूर्तियों को धारण करने वाले शिव एक हैं और शिव के इस स्वरूप का सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इनका प्रत्येक रूप प्रत्यक्ष का विषय है। हम जो कुछ देख सकते हैं, जो कुछ जान सकते हैं वह सब शिवस्वरूप ही है अतः हम भगवान शिव जो महाराज श्री रामचन्द्रजी केअति प्रिय हैं और जिनको महाराज श्री रामचन्द्रजी अति प्रिय हैं उनकी वन्दे  वंदना  करते हैं कि वे हम पर प्रसन्न रहें और अपने इन आठ रूपों के द्वारा हमारी रक्षा करें।ॐ नमः शिवाय।।जय श्रीराम जय हनुमान,संकटमोचन कृपा निधान।।
                          ।।धन्यवाद।।

शुक्रवार, 17 सितंबर 2021

√पर्यायवाची सुबह-शाम,दिन और रात्रि के

पर्यायवाची सुबह शाम दिन और रात्रि के
सुबह:-
अरुणोदय प्रातःकाल,उषा प्रभात फजर।
प्रातः सकार भिनसार,निशान्त तड़का सहर।।1।।
अलस्सुबह ब्रह्ममुहूर्त,सुबह सबेरा डॉन।
दिनमुख सकाल प्रात पौ,मॉर्निंग भोर विहान।।2।।
शाम:-
सूर्यास्त सायं संध्या, स साँझ संध्याकाल।
इविनिंग गोधूलि शाम,दिनान्त सायंकाल।।1।।
दिन:-
 दिन दिवस दिवा तिथि काल,अह्न वार प्रमान।
याम वासर रोज सदा,समय डे हैं महान।।1।।
रात:-
रात्रि रैन रजनी निशा,यामिनी तमी रात।
निशिथ निशिथनी नाईट,तमिस्रा दोषा ध्वांत।।1।।
कादम्बरी विभावरी,क्षपा अमा तमा तम।
राका यामा शर्वरी,क्षणदा हरे हर गम।।2।।
निशि त्रियामा तमश्विनी,नहीं मचायें शोर।।
रिते सब रजनी विषाद, होवे मंगल भोर।।3।।

              ।।  धन्यवाद  ।।

शनिवार, 11 सितंबर 2021

√पर्यायवाची सरस्वती के

               पर्यायवाची सरस्वती के
(तीन पद्यों में अठ्ठाईस सरस्वती के पर्याय)
सरस्वती वीणापाणी।
बुद्धिदात्री ब्रह्मचारिणी।।
विश्वेश्वरी पुष्पकारुणा।
अरविंदासिनी कमलारुणा।।1।।
मतिदायिनी शशिवर्णिनी।
बुद्धिदायिनी ज्ञानदायिनी।।
ज्ञानदा विमला जगदीश्वरी।
गिरा वागीश वागीश्वरी।।2।।
शारदा भारती कमलासना।
वीणावादिनी पद्मासना।।
महाश्वेता हंसवाहिनी।
ब्राह्मी वाग्देवी पद्मसिनी।।3।।

                    ।।  धन्यवाद।।

शुक्रवार, 10 सितंबर 2021

√पर्यायवाची गणेश जी के

           ।।  गणेश के पर्यायवाची  ।।   
गणेश जी के 39 नाम 6 दोहों में पर्याय के रुप में )
बंदउ गणपति गजबदन,गौरीपुत्र विनायक
गौरीसुत शंकरसुवन,गजकर्ण सुखदायक।।1।।
कृष्णपिंगाक्ष हेरम्ब,वक्रतुंड एकदन्त
भवानीनन्दन गणेश,रिद्धिसिद्धिकेकन्त।।2।। 
गणाध्यक्ष गयवदन सुमुख,विघ्नराजेंद्र विकट
भालचंद धूम्रवर्ण ,धूम्रकेतु प्रगट।।3।।
मंगलदाता गांगेय,द्वैमातुर रक्तवर्ण।
बुद्धिविधाता तू कपिल,सिद्धेश्वर शूर्पकर्ण।।4।।
नित नमन सिन्दूरवदन, गजवक्त्र गजानन।
मोदकप्रिय लम्बोदर, तात प्रिय षडानन।।5।।
विद्यावारिधि बुद्धिदाता,आदिपूज्य विख्यात
विघ्न हरौ सदा सबके,हे गजमुख  सुख्यात।।6।।
                ।।धन्यवाद।।

√पर्याय अग्नि का और बड़वानल कथा

।। आग के पर्यायवाची-बड़वानल कथा।।
     (तीन दोहों में 32 पर्याय)
रोहिताश्व आग आतिश,
          वैश्वानर दव अनल।
पावक उष्मा ताप शुचि,
           अग्नि हुताशन तपन।।1।।
धूमध्वज  बाड़व जलन,
             कृशानु ज्वाला दहन।
वायुसखा सागरानल,
           दावाग्नि दावानल।।2।। जंगल की आग
जातवेद ज्वलन वह्नि,
          जठराग्नि जठरानल। पेट की आग
धूमकेतु व पांचजन्य,
           बड़वाग्नि बड़वानल।।3।। समुद्र की आग जिसे सागरानल भी कहते हैं।
 अन्तिम दोहे के बड़वाग्नि  और बड़वानल 
की कथा को भी जान लेते हैं।
 कालिका पुराण  के अनुसार महादेव की वह क्रोधाग्नि जिसने कामदेव को भस्म कर दिया उसी को संसार कल्याण हेतु पितामह ब्रह्मा ने बड़वा/ घोड़ी के रूप में सागर के हवाले कर दिया ।
बाल्मीकि रामायण के अनुसार और्व ऋषि का क्रोध रूपी तेज ब्रह्माजी के आशीर्वाद से सागर में सागर जल जलाता हुवा सागर के जल स्तर को शान्त रखता है और कल्पान्त में सागर से बाहर आकर संसार को भस्म करेगा तथा सागर का जल इनके अभाव में विकराल बन जल प्रलय लायेगा और दोनों मिलकर सृष्टि समाप्त कर देगें।
                        धन्यवाद

शुक्रवार, 3 सितंबर 2021

√पर्याय पानी कमल सिंधु बादल पुष्प

पानी:-
सलिल सत्य सारंग पय,
               अम्बु वारि जल नीर।
पानी आपु आब अम्भ,
               उद उदक तोय क्षीर।।
कमल:-
 अम्बुज नीरज राजीव,
          शतदल जलज सरोज।
 पद्म पंकज अब्ज कंज,
               पुण्डरीक अम्भोज।।
समुद्र:-
सिंधु जलधि पारावार,
           तोयधि सागर पयधि।
समुद्र अम्बुधि रत्नाकर,
         नदीश  नीरधि उदधि।।स्वरचित
बाँध्यो बननिधि नीरनिधि जलधि सिंधु बारीस।
सत्य तोयनिधि कंपति उदधि पयोधि नदीस॥ गोस्वामी तुलसीदास
              बादल:-
पर्जन्य पयोधर जलद
           जीमूत धाराधर।
अंबुद वारिद बलाहक,
       अभ्र नीरद जलधर।।
पुष्प:-
पुष्प सदाबहार सदा ,
पुहुप फूल गुल सुमन।
प्रसून फ्लॉवर मंजरी, 
कुसुम का है वन्दन।।
।।धन्यवाद।।











मंगलवार, 31 अगस्त 2021

हनुमानजी की अद्भुत सेवा और उसका फल

            ।।#हनुमान कथा।।
      --#वर्ण दोष का भयंकर परिणाम-
#हनुमानजी की अद्भुत सेवा और उसका फल
#जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि ।
जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तुते।।
व्याकरण और उच्चारण के महत्त्व को बताने-समझाने के लिए यह श्लोक बहुत ही प्रसिध्द है।
#यद्यपि बहुनाधीषे तथापि पठ पुत्र व्याकरणम् ।
स्वजनः श्वजनः मा भूत् सकलः शकलः सकृत्छकृत् ।। अर्थात
बेटे, व्याकरण इसलिए भी पढ़ो कि उच्चारण में स और श का अंतर न जानने से ही अनर्थ हो सकता है। जैसे:
स्वजन – सम्बन्धी
श्वजन – कुत्ता

सकल – सम्पूर्ण
शकल – खण्ड

सकृत् – एक बार
शकृत_- विष्टा

          ।। धन्यवाद।।

गुरुवार, 26 अगस्त 2021

√रामचरित मानस में दशावतार चित्रण

    ।।रामचरित मानस में दशावतार चित्रण।।
एक अनीह अरूप अनामा। 
अज सच्चिदानंद पर धामा॥
ब्यापक बिस्वरूप भगवाना।
तेहिं धरि देह चरित कृत नाना॥
1-एक=मत्स्यावतार ईश्वर एक ही पार ब्रह्म परमेश्वर है जो सर्वप्रथम मत्स्यावतार धारण किया।
2-अनीह=कच्छपावतारजिनकी कोई इच्छा नहीं है
3-अरूप=वाराह अवतारजिनका कोई रूप नहीं है
4-अनामा=नरसिंहावतार जो अनाम हैं
5-अज=वामनावतार जो अजन्मा हैं
6-सच्चिदानंद= परशुरामावतर जो सच्चिदानन्द हैं
7-परधामा= रामावतार जो परम धाम हैं
8-ब्यापक=कृष्णावतार जो व्यापक हैं
9-बिस्वरूप=बुद्धावतार जो विश्व रूप हैं
10-भगवाना=कल्कि अवतार जो भगवान हैं
तेहिं धरि देह चरित कृत नाना उसी एक पार ब्रह्म परमेश्वर ने समय समय पर अनेक शरीर धारण कर  अनेक चरित (लीला) करते रहते हैं।
सो केवल भगतन हित लागी।
परम कृपाल प्रनत अनुरागी॥
जेहि जन पर ममता अति छोहू।
जेहिं करुना करि कीन्ह न कोहू॥
1-सो केवल भगतन हित लागी वही पार ब्रह्म परमेश्वर केवल भक्तों के हित अर्थात संसार के हित के लिए एक अवतार लिया और वह हैं मत्स्यावतार।
2-परम कृपालअनीह=कच्छपावतार  जिनकी कोई इच्छा नहीं है
3-प्रनत अनुरागीअरूप=वाराह अवतार जिनका कोई रूप नहीं है
4-  जेहि जन पर ममता अति छोहू। अनामा=नरसिंहावतार जो अनाम हैं
5- जेहिं करुना करि कीन्ह न कोहू-अज=वामनावतार जो अजन्मा हैं
गई बहोर ग़रीब नेवाजू। 
सरल सबल साहिब रघुराजू॥
बुध बरनहिं हरि जस अस जानी।
करहिं पुनीत सुफल निज बानी॥
6-गई बहोर गई हुई वस्तु को फिर प्राप्त कराने वाले
सच्चिदानंद= परशुरामावतर जो सच्चिदानन्द हैं
7-ग़रीब नेवाजू दीनबन्धु परधामा= रामावतार जो परम धाम हैं
8-सरल ब्यापक=कृष्णावतार जो व्यापक हैं
9-सबलबिस्वरूप=बुद्धावतार जो विश्व रूप हैं
10-साहिबभगवाना=कल्कि अवतार जो भगवान हैं
रघुराजू रघु अर्थात प्राणी मात्र, राजू अर्थात राजा अर्थात वही संसार के अचर-सचर के स्वामी हैं और यही समझकर बुद्धिमान लोग उन श्री हरि का यश वर्णन करके अपनी वाणी को पवित्र और उत्तम फल (मोक्ष और दुर्लभ भगवत्प्रेम) देने वाली बनाते हैं।
                 ।।    जय श्री राम    ।।

पार ब्रह्म परमेश्वर के अवतार की सूची
1. मत्स्य अवतार6. परशुराम अवतार
2. कूर्म अवतार7. राम अवतार
3. वराह अवतार8. कृष्ण अवतार
4. नृसिंह अवतार9. बुद्ध अवतार
5. वामन अवतार10. कल्कि अवतार

शनिवार, 21 अगस्त 2021

कृष्णजन्माष्टमी

     ।।देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते।।
कृष्ण. वह नाम है..जिस नाम में दिव्य आकर्षण  है  जो अनंत काल से जन मन मानस पर छाया है। कृष्ण चरित्र जितना मोहक है उतना ही रहस्यमय,जितना चंचल है उतना ही गंभीर, जितना सरल, उतना ही जटिल मानो प्रकृति का हर रूप  उनके व्यक्तित्व में समाहित है। जन्माष्टमी पर्व  हमें कृष्ण की मनोहारी लीलाओं का संस्मरण करवाते हुवे उन लीलाओं के गूढ़ अर्थ को समझने हेतु लालायित करता है।
यह पर्व कृष्ण के लोकनायक, संघर्ष शील, पुरुषार्थी, कर्मयोगी ,युगांधर और जगद्गुरु होने केमहत्त्व को प्रतिपादित करता है। विष्णु का सोलह कला युक्त कृष्ण अवतार अद्भुत है, सीमारहित है, व्याख्या से परे है।कृष्ण की विराटता, अनंतता और सर्व कालिक प्रासंगिकता ही कृष्ण तत्त्व के प्रति असीमित आकर्षण का कारण है। 
 श्रीकृष्णजन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण जो विष्णु के आठवे अवतार है उनका जनमोत्सव है।भाद्रपद मास के कृष्ण  पक्ष की अष्टमी को इनका जन्म हुआ था इसलिए प्रत्येक वर्ष भाद्र कृष्ण अष्टमी को बहुत ही श्रद्धा भाव से श्रद्धालुजन भगवान श्री कृष्ण का जन्मदिन जन्माष्टमी के नाम से मनाते हैं।
जो जन्माष्टमी व्रत को  करते हैं वे सदैव स्थिर लक्ष्मी प्राप्त करते हैं उनके समस्त कार्य सिद्ध होते हैं। जन्माष्टमी का व्रत व्रतराज है। इस व्रत को करने से  महान पुण्य राशि प्राप्त होती है। जगद्गुरु श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव नि:संदेह सम्पूर्ण विश्व के लिए आनंद-मंगल का संदेश देता है। शास्त्रों में कहा गया है कि   भाद्र कृष्ण पक्ष, अर्धरात्रि,  अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र, वृष राशि में चंद्रमा, इनके साथ सोमवार या बुधवार का होना श्रेष्ठतम फलदायक होता  है।  इस संयोग में जन्माष्टमी व्रत करने से तीन जन्मों के जाने-अनजाने  पापों से मनुष्य मुक्त हो जाता है। इस संयोग में जन्माष्टमी व्रत करने से व्रती प्रेत योनी में भटक रहे पूर्वजों को प्रेत योनि से मुक्त करवा देता है।जन्माष्टमी के दिन भगवान कृष्ण के लड्डू गोपाल स्वरूप के पूजन का विधान है ऐसी मान्यता है कि
      देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते ।
     देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।।
 मंत्र का जन्माष्टमी पर जाप करने से मन वांछित संतान की प्राप्ति  होती है।
  मैं भगवान श्री कृष्ण के बाल मुकुन्द और सच्चिदानंद स्वरूप की वंदना करते हुवे इस पावन
पर्व पर जगत कल्याण की कामना करता हूँ।
करारविन्देन पदारविन्दं
मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम् ।
वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं
बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥
   ॐ सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे! 
    तापत्रय विनाशाय श्री कृष्णाय वयं नम: ।।
             ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
                   ।। धन्यवाद।।
              ।।श्री कृष्णाष्टकम्।।
वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्
देवकीपरमानन्दं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् || १ ||
आतसीपुष्पसंकाशम् हारनूपुरशोभितम्
रत्नकण्कणकेयूरं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् || २ ||
कुटिलालकसंयुक्तं पूर्णचंद्रनिभाननम्
विलसत्कुण्डलधरं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् || ३ ||
मंदारगन्धसंयुक्तं चारुहासं चतुर्भुजम्
बर्हिपिञ्छावचूडाङ्गं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् || ४ ||
उत्फुल्लपद्मपत्राक्षं नीलजीमूतसन्निभम्
यादवानां शिरोरत्नं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् || ५ ||
रुक्मिणीकेळिसंयुक्तं पीतांबरसुशोभितम्
अवाप्ततुलसीगन्धं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् || ६ ||
गोपिकानां कुचद्वन्द्व कुंकुमाङ्कितवक्षसम्
श्री निकेतं महेष्वासं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् || ७ ||
श्रीवत्साङ्कं महोरस्कं वनमालाविराजितम्
शङ्खचक्रधरं देवं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् || ८ ||
कृष्णाष्टकमिदं पुण्यं प्रातरुत्थाय यः पठेत् |
कोटिजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनष्यति ||
|| इति कृष्णाष्टकम् ||

॥ बालमुकुन्दाष्टकं ॥
करारविन्देन पदारविन्दं मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम् ।
वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ 1 ॥

संहृत्य लोकान्वटपत्रमध्ये शयानमाद्यन्तविहीनरूपम् ।
सर्वेश्वरं सर्वहितावतारं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ 2 ॥

इन्दीवरश्यामलकोमलाङ्गम् इन्द्रादिदेवार्चितपादपद्मम् ।
सन्तानकल्पद्रुममाश्रितानां बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ 3 ॥

लम्बालकं लम्बितहारयष्टिं शृङ्गारलीलाङ्कितदन्तपङ्क्तिम् ।
बिम्बाधरं चारुविशालनेत्रं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ 4 ॥

शिक्ये निधायाद्यपयोदधीनि बहिर्गतायां व्रजनायिकायाम् ।
भुक्त्वा यथेष्टं कपटेन सुप्तं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ 5 ॥

कलिन्दजान्तस्थितकालियस्य फणाग्ररङ्गेनटनप्रियन्तम् ।
तत्पुच्छहस्तं शरदिन्दुवक्त्रं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ 6 ॥

उलूखले बद्धमुदारशौर्यम् उत्तुङ्गयुग्मार्जुन भङ्गलीलम् ।
उत्फुल्लपद्मायत चारुनेत्रं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ 7 ॥

आलोक्य मातुर्मुखमादरेण स्तन्यं पिबन्तं सरसीरुहाक्षम् ।
सच्चिन्मयं देवमनन्तरूपं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ 8 ॥



मंगलवार, 17 अगस्त 2021

कजली तीज

कजली या कजरी तीज

हमारे देश में मुख्यतः चार  तीज  धूम-धाम से मनाई जाती है-
  1. अखा तीज
  2. हरियाली तीज
  3. कजली तीज/ कजरी तीज/ बड़ी तीज/सातूड़ी तीज/ बूढ़ी तीज
  4. हरतालिका तीज

      भाद्रपद कृष्ण तृतीया को कज्जली तीज के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन सुहागिनें अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए व्रत करती हैं।धार्मिक मान्यता के अनुसार, महिलाओं के व्रत से प्रसन्न होकर भगवान शिव और माता पार्वती उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती से सुखी वैवाहिक  जीवन की कामना करती हैं। ऐसी भी माना जाता है कि अगर किसी लड़की की शादी में कोई बाधा आ रही है तो इस व्रत को जरूर रखे। भगवान शिव और माता पार्वती की समर्पित इस व्रत को काफी लाभकारी माना गया है। इस दिन महिलाएं स्नान के बाद  भगवान शिव और माता गौरी की मिट्टी की मूर्ति बनाती हैं, या फिर बाजार से लाई मूर्ति का पूजा में उपयोग करती हैं। व्रती महिलाएं माता गौरी और भगवान शिव की मूर्ति को एक चौकी पर लाल रंग का वस्त्र बिछाकर स्थापित करती हैं। इसके बाद वे शिव-गौरी का विधि विधान से पूजन करती हैं, जिसमें वह माता गौरी को सुहाग के 16 सामग्री अर्पित करती हैं, वहीं भगवान शिव को बेल पत्र, गाय का दूध, गंगा जल, धतूरा, भांग आदि चढ़ाती हैं। फिर धूप और दीप आदि जलाकर आरती करती हैं और शिव-गौरी की कथा सुनती हैं।इस दिन गाय की पूजा की जाती है। गाय को रोटी व गुड़ चना खिलाकर महिलाएं अपना व्रत खोलती हैं।. यह व्रत तब तक पूरा नहीं माना जाता, जब तक कि इसकी व्रत कथा कही या पढ़ी न जाए। इस व्रत में सातुड़ी तीज की कहानी के अलावा नीमड़ी माता की कहानी , गणेश जी की कहानी और लपसी तपसी की कहानी भी सुनी जाती है।


व्रत कथायें निम्न हैं- 1-कजली तीज की पौराणिक व्रत कथा के अनुसार एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। भाद्रपद महीने की कजली तीज आई। ब्राह्मणी ने तीज माता का व्रत रखा। ब्राह्मण से कहा आज मेरा तीज माता का व्रत है। कही से चने का सातु लेकर आओ। ब्राह्मण बोला, सातु कहां से लाऊं। तो ब्राह्मणी ने कहा कि चाहे चोरी करो चाहे डाका डालो। लेकिन मेरे लिए सातु लेकर आओ। 

        रात का समय था। ब्राह्मण घर से निकला और साहूकार की दुकान में घुस गया। उसने वहां पर चने की दाल, घी, शक्कर लेकर सवा किलो तोलकर सातु बना लिया और जाने लगा। आवाज सुनकर दुकान के नौकर जाग गए और चोर-चोर चिल्लाने लगे। 
        साहूकार आया और ब्राह्मण को पकड़ लिया। ब्राह्मण बोला मैं चोर नहीं हूं। मैं एक गरीब ब्राह्मण हूं। मेरी पत्नी का आज तीज माता का व्रत है इसलिए मैं सिर्फ यह सवा किलो का सातु बना कर ले जा रहा था। साहूकार ने उसकी तलाशी ली। उसके पास सातु के अलावा कुछ नहीं मिला।
          चांद निकल आया था ब्राह्मणी इंतजार ही कर रही थी।
          साहूकार ने कहा कि आज से तुम्हारी पत्नी को मैं अपनी धर्म बहन मानूंगा। उसने ब्राह्मण को सातु, गहने, रुपए, मेहंदी, लच्छा और बहुत सारा धन देकर ठाठ से विदा किया। सबने मिलकर कजली माता की पूजा की। जिस तरह ब्राह्मण के दिन फिरे वैसे सबके दिन फिरे... कजली माता की कृपा सब पर हो।
    2- एक दूसरी कथा है कि एक साहूकार था उसके सात बेटे थे। उसका सबसे छोटा बेटा पाव से अपाहिज़ था।वह रोजाना एक वेश्या के पास जाता था। उसकी पत्नी बहुत पतिव्रता थी। खुद उसे कंधे पर बिठा कर वेश्या के यहाँ ले जाती थी। बहुत गरीब थी। जेठानियों के पास काम करके अपना गुजारा करती थी।भाद्रपद के महीने में कजली तीज के दिन सभी ने तीज माता के व्रत के लिए सातु बनाये।छोटी बहु गरीब थी उसकी सास ने उसके लिए भी एक सातु का छोटा पिंडा बनाया। शाम को पूजा करके जैसे ही वो सत्तू पासने लगी उसका पति बोला –  ” मुझे वेश्या के यहाँ छोड़ कर आ “हर दिन की तरह उस दिन भी वह पति को कंधे पैर बैठा कर छोड़ने गयी , लेकिन पति उस दिन बोलना भूल गया कि  तू जा। वह बाहर ही उसका इंतजार करने लगी इतने में जोर से वर्षा आने लगी और बरसाती नदी में पानी बहने लगा । कुछ देर बाद नदी आवाज़ से आवाज़ आई-“आवतारी जावतारी दोना खोल के पी। पिव प्यारी होय “आवाज़ सुनकर उसने नदी की तरफ देखा तो दूध का दोना नदी में तैरता हुआ आता दिखाई दिया। उसने दोना उठाया और सात बार उसे पी कर दोने के चार टुकड़े किये और चारों दिशाओं में फेंक दिए औऱ अपने घर आ गयी।उधर तीज माता की कृपा से उस वेश्या ने अपना सारा धन उसके पति को देकर उसे उसके घर छोड़कर सदा के लिए कही दूसरी जगह चली गई। पति ने  पत्नी को आवाज़ दी  – ” दरवाज़ा खोल ”उसकी पत्नी ने कहा में दरवाज़ा नहीं खोलूँगी।उसने कहा कि अब में वापस कभी नहीं जाऊंगा। अपन दोनों मिलकर सातु  पासेगें।लेकिन उसकी पत्नी को विश्वास नहीं हुआ, उसने कहा मुझे वचन दो वापस वेश्या के पास नहीं जाओगे।पति ने पत्नी को वचन दिया तो उसने दरवाज़ा खोला और देखा उसका पति गहनों और धन माल सहित खड़ा था। उसने सारे गहने कपड़े अपनी पत्नी को दे दिए। फिर दोनों ने बैठकर सातु पासा।सुबह जब जेठानी के यहाँ काम करने नहीं गयी तो बच्चे बुलाने आये काकी चलो सारा काम पड़ा है। उसने कहा-अब तो मुझ पर तीज माता की पूरी कृपा है अब मै काम करने नहीं आऊंगी।बच्चो ने जाकर माँ को बताया की आज से काकी काम करने नहीं आएगी उन पर तीज माता की कृपा हुई है। वह नए – नए कपडे गहने पहन कर बैठी है और काका जी भी घर पर बैठे है। सभी लोग बहुत खुश हुए।हे तीज माता !!! जैसे आप उस पर प्रसन्न हुई वैसे ही सब पर प्रसन्न होना ,सब के दुःख दूर करना।तीज माता की …जय ! 
3-एक लपसी था, एक तपसी था। तपसी हमेशा भगवान की तपस्या में लीन रहता था। लपसी रोजाना सवा सेर की लापसी बनाकर भगवान का भोग लगा कर जीम लेता था। एक दिन दोनों लड़ने लगे। तपसी बोला मैं रोज भगवान की तपस्या करता हूं इसलिए मै बड़ा हूं। लपसी बोला मैं रोज भगवान को सवा सेर लापसी का भोग लगाता हूं इसलिए मैं बड़ा।   नारद जी वहां से गुजर रहे थे। दोनों को लड़ता देखकर उनसे पूछा कि तुम क्यों लड़ रहे हो ?
       तपसी ने खुद के बड़ा होने का कारण बताया और लपसी ने अपना कारण बताया। नारद जी बोले तुम्हारा फैसला मैं कर दूंगा। दूसरे दिन लपसी और तपसी नहा कर अपनी रोज की भक्ति करने आए तो नारद जी ने छुप कर सवा करोड़ की एक एक अंगूठी उन दोनों के आगे रख दी। तपसी की नजर जब अंगूठी पर पड़ी तो उसने चुपचाप अंगूठी उठा कर अपने नीचे दबा ली। लपसी की नजर अंगूठी पर पड़ी लेकिन उसने ध्यान नहीं दिया भगवान को भोग लगाकर लापसी खाने लगा। नारद जी सामने आए तो दोनों ने पूछा कि कौन बड़ा तो नारद जी ने तपसी से खड़ा होने को कहा। वो खड़ा हुआ तो उसके नीचे दबी अंगूठी दिखाई पड़ी। 
      नारद जी ने तपसी से कहा तपस्या करने के बाद भी तुम्हारी चोरी करने की आदत नहीं गई। इसलिए लपसी बड़ा है। और तुम्हें तुम्हारी तपस्या का कोई फल भी नहीं मिलेगा। तपसी शर्मिंदा होकर माफी मांगने लगा। उसने नारद जी से पूछा मुझे मेरी तपस्या का फल कैसे मिलेगा ? नारद जी ने कहा यदि कोई गाय और कुत्ते की रोटी नहीं बनाएगा तो फल तुझे मिलेगा। यदि कोई ब्राह्मण को भोजन करवा कर दक्षिणा नहीं देगा तो फल तुझे मिलेगा। यदि कोई साड़ी के साथ ब्लाउज नहीं देगा तो फल तुझे मिलेगा। यदि कोई दीये से दीया जलाएगा तो फल तुझे मिलेगा।
     यदि कोई सारी कहानी सुने लेकिन तुम्हारी कहानी नहीं सुने तो फल तुझे मिलेगा। उसी दिन से हर व्रत कथा कहानी के साथ लपसी तपसी की कहानी भी सुनी और कही जाती है।
4-एक शहर में एक सेठ- सेठानी रहते थे । वह बहुत धनवान थे लेकिन उनके पुत्र नहीं था। सेठानी ने भादौं की बड़ी तीज ( सातुड़ी तीज ) का व्रत करके कहा –

” हे नीमड़ी माता मेरे बेटा हो जायेगा , तो मै आपको सवा मण का सातु चढ़ाऊगी “।

माता की कृपा से सेठानी को नवें महीने लड़का हो गया। सेठानी ने सातु नहीं चढ़ाया। समय के साथ सेठानी को सात बेटे हो गए लेकिन सेठानी सातु चढ़ाना भूल गयी।

पहले बेटे का विवाह हो गया। सुहागरात के दिन सोया तो आधी रात को साँप ने आकर डस लिया और उसकी मृत्यु हो गयी। इसी तरह उसके छः बेटो की विवाह उपरान्त मृत्यु हो गयी।

सातवें बेटे की सगाई आने लगी सेठ-सेठानी मना करने लगे तो गाँव वालो के बहुत कहने व समझाने पर सेठ-सेठानी बेटे की शादी के लिए तैयार हो गए। तब सेठानी ने कहा गाँव वाले नहीं मानते हैं तो इसकी सगाई दूर देश में करना।

सेठ जी सगाई करने के लिए घर से चले ओर बहुत दूर एक गाँव आये। वहाँ चार-पांच लड़कियाँ खेल रही थी जो मिटटी का घर बनाकर तोड़ रही थी। उनमे से एक लड़की ने कहा में अपना घर नहीं तोडूंगी। 

सेठ जी को वह लड़की समझदार लगी। खेलकर जब लड़की वापस अपने घर जाने लगी तो सेठ जी भी  पीछे -पीछे उसके घर चले गए। सेठजी ने लड़की के माता पिता से बात करके अपने लड़के की सगाई व विवाह की बात पक्की कर दी।

घर आकर विवाह की तैयारी करके बेटे की बारात लेकर गया और बेटे की शादी सम्पन्न करवा दी। इस तरह सातवे बेटे की शादी हो गयी।

बारात विदा हुई लंबा सफर होने के कारण लड़की की माँ ने लड़की से कहा कि मै यह सातु व सीख डाल रही हूं। रास्ते में कहीं पर शाम को नीमड़ी माता की पूजा करना, नीमड़ी माता की कहानी सुनना , सातु पास लेना व कलपना निकालकर सासु जी को दे देना।

बारात धूमधाम से निकली। रास्ते में बड़ी तीज का दिन आया ससुर जी ने बहु को खाने का कहा। बहु बोली आज मेरे तीज का उपवास है , शाम को नीमड़ी माता का पूजन करके नीमड़ी माता की कहानी सुनकर ही भोजन करुँगी।

एक कुएं के पास नीमड़ी नजर आई तो सेठ जी ने गाड़ी रोक दी। बहु नीमड़ी माता की पूजा करने लगी तो नीमड़ी  माता पीछे हट गयी। बहु ने पूछा – ” हे माता , आप पीछे क्यों हट रही हो ”

इस पर माता ने कहा तेरी सास ने कहा था पहला पुत्र होने पर सातु चढ़ाऊंगी और सात बेटे होने के बाद , उनकी शादी हो जाने के बाद भी अभी तक सातु नहीं चढ़ाया। वो भूल चुकी है।

बहु बोली हमारे परिवार की भूल को क्षमा कीजिये , सातु मैं चढ़ाऊंगी। कृपया मेरे सारे जेठ को वापस कर दो और मुझे पूजन करने दो। 

माता नववधू की भक्ति व श्रद्धा देखकर प्रसन्न हो गई। बहु ने नीमड़ी माता का पूजन किया ,और चाँद को अर्ध्य दिया, सातु पास लिया और कलपना ससुर जी को दे दिया। प्रातः होने पर बारात अपने नगर लौट आई।

जैसे ही बहु से ससुराल में प्रवेश किया उसके छहों जेठ प्रकट हो गए। सभी बड़े खुश हुए उन सभी को गाजे बाजे से घर में लिया। सासु बहु के पैर पकड़ का धन्यवाद करने लगी तो बहु बोली सासु जी आप ये क्या करते हो , जो बोलवा करी है उसे याद कीजिये ।

सासु बोली ” मुझे तो याद नहीं तू ही बता दे ” बहु बोली आपने नीमड़ी माता के सातु चढाने का बोला था सो पूरा नहीं किया। तब सासू को याद आई।

बारह महीने बाद जब कजली तीज आई , सभी ने मिल कर कर सवा सात मण का सातु तीज माता को चढ़ाया।  श्रद्धा और भक्ति भाव से गाजे बाजे के साथ नीमड़ी माँ की पूजा की। बोलवा पूरी करी।

हे भगवान उनके आनंद हुआ वैसा सबके होवे। खोटी की खरी , अधूरी की पूरी।

बोलो नीमड़ी माता की ….जय !!!

5-एक बार गणेशजी ने पृथ्वी के मनुष्यों परीक्षा लेने का विचार किया. वे अबोध बालक बन कर पृथ्वी पर भ्रमण करने लगे. उन्होंने  एक हाथ में एक चम्मच में दूध  ले लिया और दूसरे हाथ में एक चुटकी चावल ले लिए और गली-गली घूमने लगे, साथ ही साथ आवाज लगाते चल रहे थे, कोई मेरे लिए खीर बना देकोई मेरे लिए खीर बना दे…”. कोई भी उनपर ध्यान नहीं दे रहा था बल्कि लोग उनपर हँस रहे थे. वे लगातार एक गांव के बाददूसरे गांव इसी तरह चक्कर लगाते हुए पुकारते रहे.  पर कोई खीर बनाने के लिए तैयार नहीं था. सुबह से शाम हो गई गणेश जी लगातार घूमते रहे. एक बुढ़िया थी. शाम के वक्त अपनी झोपड़ी के बाहर बैठी हुई  थी, तभी गणेश जी वहां से पुकारते हुए निकले कि कोई मेरी खीर बना देकोई मेरी खीर बना दे…..”बुढ़िया बहुत कोमल ह्रदय वाली स्त्री थी. उसने कहा बेटा, मैं तेरी खीर बना देती हूं.  गणेश जी ने कहा, माई, अपने घर में से दूध और चावल लेने के लिए बर्तन ले आओ. बुढ़िया एक कटोरी लेकर जब झोपड़ी बाहर आई तो गणेश जी ने कहा अपने घर का सबसे बड़ा बर्तन लेकर आओ. बुढ़िया को थोड़ी झुंझलाहट हुई पर उसने कहा चलो ! बच्चे का मन रख लेती हूं और अंदर जाकर वह अपने घर सबसे बड़ा पतीला लेकर बाहर आई. गणेश जी ने चम्मच में से दूध पतीले में उडेलना शुरू किया तब, बुढ़िया के आश्चर्य की सीमा न रही, जब उसने देखा दूध से पूरा पतीला भर गया है. एक के बाद एक वह बर्तन झोपड़ी बाहर लाती गई और उसमें गणेश जी दूध भरते चले गए. इस तरह से घर के सारे बर्तन दूध से लबालब भर गए. गणेश भगवान ने बुढ़िया से कहा, मैं स्नान करके आता हूं तब तक तुम खीर बना लो. मैं वापस आकर खाऊँगा.बुढ़िया ने पूछा, मैं इतनी सारी खीर का क्या करूंगी ?” इस पर गणपति जी बोले, सारे गांव को दावत दे दो. बुढ़िया ने बड़े प्यार से, मन लगाकर खीर बनाई. खीर की भीनी-भीनी, मीठी-मीठी खुशबू चारों दिशाओं में फैल गई. खीर बनाने के बाद वह हर घर में जाकर खीर खाने का न्योता देने लगी. लोग उस पर हँस रहे थे. बुढ़िया के घर में खाने को दाना नहीं और यह सारे गांव को खीर खाने की दावत दे रही है. लोगों को कुतूहल हुआ और खीर की खुशबू से लोग खिंचे चले आए. लो ! सारा गाँव बुढ़िया के घर में इकट्ठा हो गया.जब बुढ़िया कि बहू को दावत की बात मालूम हुई, तब वह सबसे पहले वहां पहुंच गई. उसने खीर से भरे पतीलों को जब देखा तो उसके मुंह में पानी आ गया.  उसे बड़ी जोर से भूख लगी हुई थी. उसने एक कटोरी में खीर निकाली और दरवाजे  के पीछे बैठ कर खाने की तैयारी करने लगी. इसी बीच बालक गणेश वहाँ आ गए और खीर का एक छींटा  बालक गणेश के ऊपर गिर गया और गणपति जी को भोग लग गया और वो प्रसन्न हो गए.अब पूरे गांव को खाने की दावत देकर, बुढ़िया वापस अपने घर आई तो उसने देखा बालक वापस आ गया था. बुढ़िया ने कहा, बेटा खीर तैयार है, भोग लगा लो. .गणपति जी बोले, मां, भोग तो लग चुका है. मेरा पेट पूरी तरह से भर गया है. मैं तृप्त हूँ. अब तू खा, अपने परिवार और गाँव वालों को खिला. जब सारा गांव जी भर कर खा चुका तब भी ढेर सारी खीर बच गई. बुढ़िया ने कहा,  उस बची खीर का मैं क्या करूंगी. इस पर गणेश जी बोले उस बची खीर को रात में अपने घर के चारों कोनों में रख देना और बुढ़िया ने ऐसा ही किया. उसने बची खीर पात्रों में भरकर अपने घर के चारों तरफ रख दिया. सुबह उठकर उसने क्या देखा ? पतीलों में खीर के स्थान पर हीरे, जवाहरात और मोती भर गए हैं. वह बहुत खुश हूं. उसकी सारी दरिद्रता दूर हो गई और वह आराम से रहने लगी. उसने गणपति जी का एक भव्य मंदिर बनवाया और साथ में एक बड़ा सा तालाब भी खुदवाया. इस तरह उसका नाम दूर-दूर तक प्रसिद्ध हो गया.  उस जगह वार्षिक मेले लगने लगे. लोग गणेश जी की कृपा प्राप्त करने के लिए, उस स्थान पर पूजा करने  और मान्यताएं मानने के लिए आने लगे. गणेश जी सब की मनोकामनाएं पूरी करने लगे.  


सोमवार, 9 अगस्त 2021

शिव मानस पूजा

आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरीरं गृहं।
पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्थितिः॥
 
संचारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः स्तोत्राणि सर्वा गिरो।
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम्‌॥4

हे शंकरजी, मेरी आत्मा आप हैं। मेरी बुद्धि आपकी शक्ति पार्वतीजी हैं। मेरे प्राण आपके गण हैं। मेरा यह पंच भौतिक शरीर आपका मंदिर है। संपूर्ण विषय भोग की रचना आपकी पूजा ही है। मैं जो सोता हूं, वह आपकी ध्यान समाधि है। मेरा चलना-फिरना आपकी परिक्रमा है। मेरी वाणी से निकला प्रत्येक उच्चारण आपके स्तोत्र व मंत्र हैं। इस प्रकार मैं आपका भक्त जिन-जिन कर्मों को करता हूं, वह आपकी आराधना ही है।
आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा रचित शिव मानस पूजा शिव की एक अनुठी स्तुति है। यह स्तुति शिव भक्ति मार्ग के अतयंत सरल पर साथ ही एक अतयन्त गुढ रहस्य को समझाता है। शिव सिर्फ भक्ति द्वारा प्रापत्य हैं, आडम्बर ह्की कोई आवश्यकता नहीं है। इस स्तुति में हम प्रभू को भक्ति द्वारा मानसिक रूप से तैयार की हुई वस्तुएं समर्पित करते हैं।
                  ।। धन्यवाद ।।

पवित्रा एकादशी

पवित्रा एकादशी : तेजस्वी संतान और वायपेयी यज्ञ का फल देती है यह  एकादशी

वर्षभर की दो एकादशियों को पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह है श्रावण और पौष माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी, इन दोनों एकादशियों को पुत्रदा एकादशी कहते हैं।
महाराज युधिष्ठिर ने पूछा- हे भगवान! आपने कामिका एकादशी का माहात्म्य बताकर बड़ी कृपा की। अब कृपा करके यह बतलाइए कि श्रावण शुक्ल एकादशी (Shravana shukal ekadashi) का क्या नाम है, उसकी विधि क्या है और उसमें कौन-से देवता का पूजन किया जाता है। 
   मधुसूदन कहने लगे कि इस एकादशी का नाम पुत्रदा है। अब आप शांतिपूर्वक इसकी कथा सुनिए। इसके सुनने मात्र से ही वायपेयी यज्ञ का फल मिलता है।
      द्वापर युग के आरंभ में महिष्मति नाम की एक नगरी थी, जिसमें महीजित नाम का राजा राज्य करता था, लेकिन पुत्रहीन होने के कारण राजा को राज्य सुखदायक नहीं लगता था। उसका मानना था कि जिसके संतान न हो, उसके लिए यह लोक और परलोक दोनों ही दु:खदायक होते हैं। पुत्र सुख की प्राप्ति के लिए राजा ने अनेक उपाय किए परंतु राजा को पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई।
     वृद्धावस्था आती देखकर राजा ने प्रजा के प्रतिनिधियों को बुलाया और कहा- हे प्रजाजनों! मेरे खजाने में अन्याय से उपार्जन किया हुआ धन नहीं है। न मैंने कभी देवताओं तथा ब्राह्मणों का धन छीना है। किसी दूसरे की धरोहर भी मैंने नहीं ‍ली, प्रजा को पुत्र के समान पालता रहा। 
   मैं अपराधियों को पुत्र तथा बांधवों की तरह दंड देता रहा। कभी किसी से घृणा नहीं की। सबको समान माना है। सज्जनों की सदा पूजा करता हूं। इस प्रकार धर्मयुक्त राज्य करते हुए भी मेरे पु‍त्र नहीं है। सो मैं अत्यंत दु:ख पा रहा हूं, इसका क्या कारण है?
   राजा महीजित की इस बात को विचारने के लिए मं‍त्री तथा प्रजा के प्रतिनिधि वन को गए। वहां बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों के दर्शन किए। राजा की उत्तम कामना की पूर्ति के लिए किसी श्रेष्ठ तपस्वी मुनि को देखते-फिरते रहे। 
   एक आश्रम में उन्होंने एक अत्यंत वयोवृद्ध धर्म के ज्ञाता, बड़े तपस्वी, परमात्मा में मन लगाए हुए निराहार, जितेंद्रीय, जितात्मा, जितक्रोध, सनातन धर्म के गूढ़ तत्वों को जानने वाले, समस्त शास्त्रों के ज्ञाता महात्मा लोमश मुनि को देखा, जिनका कल्प के व्यतीत होने पर एक रोम गिरता था।
  सबने जाकर ऋषि को प्रणाम किया। उन लोगों को देखकर मुनि ने पूछा कि आप लोग किस कारण से आए हैं? नि:संदेह मैं आप लोगों का हित करूंगा। मेरा जन्म केवल दूसरों के उपकार के लिए हुआ है, इसमें संदेह मत करो। 
      लोमश ऋषि के ऐसे वचन सुनकर सब लोग बोले- हे महर्षे! आप हमारी बात जानने में ब्रह्मा से भी अधिक समर्थ हैं। अत: आप हमारे इस संदेह को दूर कीजिए। महिष्मति पुरी का धर्मात्मा राजा महीजित प्रजा का पुत्र के समान पालन करता है। फिर भी वह पुत्रहीन होने के कारण दु:खी है। उन लोगों ने आगे कहा कि हम लोग उसकी प्रजा हैं। अत: उसके दु:ख से हम भी दु:खी हैं। आपके दर्शन से हमें पूर्ण विश्वास है कि हमारा यह संकट अवश्य दूर हो जाएगा क्योंकि महान पुरुषों के दर्शन मात्र से अनेक कष्ट दूर हो जाते हैं। अब आप कृपा करके राजा के पुत्र होने का उपाय बतलाएं।
     यह वार्ता सुनकर ऋषि ने थोड़ी देर के लिए नेत्र बंद किए और राजा के पूर्व जन्म का वृत्तांत जानकर कहने लगे कि यह राजा पूर्व जन्म में एक निर्धन वैश्य था। निर्धन होने के कारण इसने कई बुरे कर्म किए। यह एक गांव से दूसरे गांव व्यापार करने जाया करता था। एक समय ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन मध्याह्न के समय वह जबकि दो दिन से भूखा-प्यासा था, एक जलाशय पर जल पीने गया। उसी स्थान पर एक तत्काल की ब्याही हुई प्यासी गौ जल पी रही थी।
   राजा ने उस प्यासी गाय को जल पीते हुए हटा दिया और स्वयं जल पीने लगा, इसीलिए राजा को यह दु:ख सहना पड़ा। एकादशी के दिन भूखा रहने से वह राजा हुआ और प्यासी गौ को जल पीते हुए हटाने के कारण पुत्र वियोग का दु:ख सहना पड़ रहा है। ऐसा सुनकर सब लोग कहने लगे कि हे ऋषि! शास्त्रों में पापों का प्रायश्चित भी लिखा है। अत: जिस प्रकार राजा का यह पाप नष्ट हो जाए, आप ऐसा उपाय बताइए।
   लोमश मुनि कहने लगे कि श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी को जिसे पुत्रदा एकादशी भी कहते हैं, तुम सब लोग व्रत करो और रात्रि को जागरण करो तो इससे राजा का यह पूर्व जन्म का पाप अवश्य नष्ट हो जाएगा, साथ ही राजा को पुत्र की अवश्य प्राप्ति होगी। लोमश ऋषि के ऐसे वचन सुनकर मंत्रियों सहित सारी प्रजा नगर को वापस लौट आई और जब श्रावण शुक्ल एकादशी आई तो ऋषि की आज्ञानुसार सबने पुत्रदा एकादशी का व्रत और जागरण किया।
    इसके पश्चात द्वादशी के दिन इसके पुण्य का फल राजा को दिया गया। उस पुण्य के प्रभाव से रानी ने गर्भ धारण किया और प्रसवकाल समाप्त होने पर उसके एक बड़ा तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ। इसलिए हे राजन! इस श्रावण शुक्ल एकादशी का नाम पुत्रदा पड़ा। अत: संतान सुख की इच्छा हासिल करने वाले इस व्रत को अवश्य करें। इस कथा को पढ़ने तथा इसके माहात्म्य को सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है और इस लोक में संतान सुख भोगकर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त होता है।

               ।।धन्यवाद।।

पुत्रदा एकादशी

हिंदू धर्म में व्रतों में सबसे महत्वपूर्ण एकादशी का व्रत होता है। पौष मास में शुक्ल पक्ष को पड़ने वाली एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा की जाती है। मान्यता है कि पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने वालों की भगवान विष्णु सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। संतान प्राप्ति की कामना के लिए इस व्रत को उत्तम माना जाता है।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, संतान कामना के लिए इस दिन भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा की जाती है। इस दिन सुबह पति-पत्नी को साथ में भगवान कृष्ण की पूजा करनी चाहिए। उन्हें पीले फल, तुलसी, पीले पुष्प और पंचामृत आदि अर्पित करना चाहिए। इसके बाद संतान गोपाल मंत्र का जाप करना चाहिए। मंत्र जाप के बाद पति-पत्नी को साथ में प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। एकादशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण को पंचामृत का भोग लगाना शुभ माना जाता है।

धार्मिक कथाओं के अनुसार, भद्रावती राज्य में सुकेतुमान नाम का राजा राज्य करता था। उसकी पत्नी शैव्या थी। राजा के पास सबकुछ था, सिर्फ संतान नहीं थी। ऐसे में राजा और रानी उदास और चिंतित रहा करते थे। राजा के मन में पिंडदान की चिंता सताने लगी। ऐसे में एक दिन राजा ने दुखी होकर अपने प्राण लेने का मन बना लिया, हालांकि पाप के डर से उसने यह विचार त्याग दिया। राजा का एक दिन मन राजपाठ में नहीं लग रहा था, जिसके कारण वह जंगल की ओर चला गया।

राजा को जंगल में पक्षी और जानवर दिखाई दिए। राजा के मन में बुरे विचार आने लगे। इसके बाद राजा दुखी होकर एक तालाब किनारे बैठ गए। तालाब के किनारे ऋषि मुनियों के आश्रम बने हुए थे। राजा आश्रम में गए और ऋषि मुनि राजा को देखकर प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा कि राजन आप अपनी इच्छा बताए। राजा ने अपने मन की चिंता मुनियों को बताई। राजा की चिंता सुनकर मुनि ने कहा कि एक पुत्रदा एकादशी है। मुनियों ने राजा को पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने को कहा। राजा वे उसी दिन से इस व्रत को रखा और द्वादशी को इसका विधि-विधान से पारण किया। इसके फल स्वरूप रानी ने कुछ दिनों बाद गर्भ धारण किया और नौ माह बाद राजा को पुत्र की प्राप्ति हुई।

जो व्यक्ति इस व्रत को रखते हैं उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है. संतान होने में यदि बाधाएं आती हैं तो इस व्रत के रखने से वह दूर हो जाती हैं. जो मनुष्य इस व्रत के महात्म्य को सुनता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है.

                    ।।धन्यवाद।।



सोमवार, 26 जुलाई 2021

√शिव वन्दना

असित-गिरि-समं स्यात् कज्जलं सिन्धु-पात्रे

सुर-तरुवर-शाखा लेखनी पत्रमुर्वी

लिखति यदि गृहीत्वा शारदा सर्वकालं

तदपि तव गुणानामीश पारं न याति

(मालिनी छन्द)
''हे शिव, यदि नीले पर्वत को समुद्र में मिला कर स्याही तैयार की जाए, देवताओं के उद्यान के वृक्ष की शाखाओं को लेखनी बनाया जाए और पृथ्वीको कागद बनाकर भगवती शारदा देवी अर्थात सरस्वती देवी अनंतकाल तक लिखती रहें तब भी हे प्रभो! आपके गुणों का संपूर्ण व्याख्यान संभव नहीं होगा।''
    Perhaps taking the mountain of ink, dark ocean as the pot, 
branch of the heavenly tree as the pen and earth as the leaf (paper)
even if Sharada (Godess of knowledge) write forever,
even then, Oh Ishvara, the boundaries of Your glory cannot be found!!

                ।।।    THANKS    ।।।

।।बिल्वपत्र।।

बिल्व, बेल या बेलपत्थर, भारत में होने वाला एक   वृक्ष है। इसे रोगों को नष्ट करने की क्षमता के कारण बेल को बिल्व कहा गया है।इसके अन्य नाम हैं-शाण्डिल्रू पीड़ा निवारक, श्री फल, सदाफल इत्यादि। 
  श्रावण मास में भगवान भोलेनाथ की अर्चना के कई मंत्र और स्तोत्र हैं लेकिन पवित्र बिल्वाष्टकम् उन सबमें सबसे ज्यादा प्रभावशाली है... महादेव शंकर को  बिल्व पत्र अर्पित करते हुए इसका पाठ करना चाहिए...अगर बिल्वपत्र उपलब्ध न हो तो चांदी  के छोटे बिल्वपत्र लाकर भी इसका वाचन किया जा सकता है...

बिल्वाष्टकम् में बेल पत्र (बिल्व पत्र) के गुणों के साथ-साथ महादेव का उसके प्रति प्रेम भी बताया गया है. सावन में प्रतिदिन बिल्वाष्टकम का पाठ श्रद्धा भक्ति से किया जाना अत्यन्त शुभ एवं लाभदायक होता है।इसकी सभी विशेषताएं इस बिल्वाष्टक में हैं।

त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रयायुधम् ।

त्रिजन्मपाप-संहारमेकबिल्वं शिवार्पणम्।।1।।

 त्रिशाखैर्बिल्वपत्रैश्च ह्यच्छिद्रै: कोमलै: शुभै: ।

शिवपूजां करिष्यामि ह्येकबिल्वं शिवार्पणम्।।2।।

 अखण्डबिल्वपत्रेण पूजिते नन्दिकेश्वरे ।

शुद्धयन्ति सर्वपापेभ्यो ह्येकबिल्वं शिवार्पणम्।।3।।

 शालिग्रामशिलामेकां विप्राणां जातु अर्पयेत्।

सोमयज्ञ-महापुण्यमेकबिल्वं शिवार्पणम्।।4।।

 दन्तिकोटिसहस्त्राणि वाजपेयशतानि च ।

कोटिकन्या-महादानमेकबिल्वं शिवार्पणम्।।5।।

 लक्ष्म्या: स्तनत उत्पन्नं महादेवस्य च प्रियम्।

बिल्ववृक्षं प्रयच्छामि ह्येकबिल्वं शिवार्पणम्।।6।।

 दर्शनं बिल्ववृक्षस्य स्पर्शनं पापनाशनम्।

अघोरपापसंहारमेकबिल्वं शिवार्पणम्।।7।।

काशीक्षेत्र निवासं च कालभैरव दर्शनम्।

प्रयागमाधवं दृष्ट्वा एक बिल्वं शिवार्पणम्  ।।8

 मूलतो ब्रह्मरूपाय मध्यतो विष्णुरूपिणे ।

अग्रत: शिवरूपाय ह्येकबिल्वं शिवार्पणम्।।9।।

 विल्वाष्टकमिदं पुण्यं य: पठेच्छिवसन्निधौ।

सर्वपापविनिर्मुक्त: शिवलोकमवाप्नुयात्।।10।।

        ।।इति बिल्वाष्टकं सम्पूर्णम्।।

रविवार, 25 जुलाई 2021

।। शिव का माह सावन ।।

         ।।  शिव का माह सावन  ।।

       हिंदू धर्म में सावन के महीने का खास महत्व होता है. सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित होता है. इस महीने में भगवान शिव की पूजा करने के मनचाहा फल प्राप्त होता है.सावन के सोमवार को की गई पूजा, व्रत, उपाय तुंरत फल प्रदान करने वाले कहे गए हैं. माना जाता है कि अगर सावन सोमवार के दिन कुछ विशेष चीजों को घर लाया जाए, तो व्यक्ति का भाग्य बदल जाता है. व्यक्ति को उन सभी चीजों की प्राप्ति होती है जिसकी वह लंबे से समय कामना कर रहा होता है. आइए जानते हैं उन चीजों के बारे में-

गंगा जल- सावन के सोमवार के दिन घर में गंगा जल लाना काफी शुभ माना जाता है. गंगा जल को लाकर यदि किचन में रखा जाए तो इससे व्यक्ति की किस्मत बदल सकती है और घर में समृद्धि फभी आती है. इससे परिवार में सभी की तरक्की होती है.

रुद्राक्ष- सावन सोमवार के दिन रुद्राक्ष को घर लाकर उसे मुखिया के कमरे में रखा जाए, तो घर का भाग्य बदलने में समय नहीं लगता. इससे कई चमत्कारीस लाभ प्राप्त होते हैं. घर की आर्थिक दिक्कतें दूर हो जाती हैं. साथ ही घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है.

भस्म- सावन के सोमवार के दिन भस्म लाकर उसे भगवान शिव की मूर्ति के पास रख दें. इससे भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और भक्तों को मनचाहा फल देते हैं.

चांदी का त्रिशूल- सावन के सोमवार के दिन चांदी का त्रिशूल लाने से घर की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है. साथ ही सावन सोमवार के दिन तांबे या चांदी का नाग-नागिन का जोड़ा लाकर उसे घर के मुख्य दरवाजे के नीचे दबा देना चाहिए. इससे आपकी सभील समस्याएं दूर हो

सावन शिवरात्रि महत्त्व

     सावन की शिवरात्रि का व्रत और इस दिन भगवान शिव की आराधना करने से अर्चक को शांति, रक्षा, सौभाग्य और आरोग्य की प्राप्ति होती है. मान्यता है कि सावन की शिवरात्रि व्रती के सभी पाप को नष्ट कर देती है. सावन की शिवरात्रि का व्रत रखने से कुवारें लोगों को मनचाहा वर या वधु मिलने की मान्यता है. वहीं, दांपत्य जीवन में प्रेम की प्रगाढ़ता बढ़ती है.

सावन सोमवार व्रत कथा

    एक समय एक नगर में एक साहूकार का कोई संतान नहीं था, दुखी साहूकार पुत्र के लिए हर सोमवार व्रत रखता था. शिव मंदिर में पूजा से प्रसन्न मां पार्वती की इच्छा पर भगवान शिव ने साहूकार को पुत्र-प्राप्ति का वरदान तो दिया, साथ ही कहा कि बेटे की आयु बारह वर्ष ही होगी. साहूकार का पुत्र ग्यारह वर्ष का हुआ तो पढ़ने काशी भेजा गया. साहूकार ने उसके मामा को बुलाकर धन दिया और कहा कि तुम इसे काशी ले जाओ, रास्ते में जहां यज्ञ कराते और ब्राह्मणों को भोजन कराते जाना. मामा-भांजे दान-दक्षिणा देते चल पड़े. रात को एक नगर में राजा की बेटी का विवाह था. मगर जिस राजकुमार से विवाह होना था, वह काना था. राजकुमार के पिता ने यह बात छुपाने को साहूकार के बेटे को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर विवाह करवा दिया.  

साहूकार का पुत्र ईमानदार होने से उसने राजकुमारी की चुन्नी पर सच्चाई लिख दी.  इस पर राजकुमारी के पिता ने पुत्री को विदा नहीं किया और बारात बैरंग लौट गई. उधर, साहूकार का बेटा मामा के साथ काशी पहुंच गया. जिस दिन उसकी आयु 12 साल हुई, उसी दिन यज्ञ रखा गया. मगर अचनक उसकी तबीयत बिगड़ गई और शिवजी के वरदान के अनुसार उसके प्राण निकल गए. भांजे को मृत देखकर मामा ने विलाप शुरू किया. उसी समय शिव-पार्वतीजी उधर से गुजरे तो पार्वती ने कहा कि स्वामी, मुझे इसका रोना बर्दाश्त नहीं हो रहा है, आप इसके कष्ट दूर करिए.

शिवजी ने कहा, कि यह साहूकार का पुत्र है, जिसे 12 वर्ष आयु वरदान दिया था. इसकी आयु पूरी है, मगर पार्वती के आग्रह पर शिवजी ने लड़के को जीवित कर दिया. पढ़ाई पूरी कर वह फिर मामा के साथ घर की ओर लौटा तो रास्ते में उसी नगर में पहुंचे, जहां उसका विवाह हुआ था. यहां भी उसने पिता के कहे अनुसार यज्ञ किया. इस दौरान राजकुमारी के पिता ने उसे पहचान कर खूब खातिरदारी की और पहले पुत्री के साथ हो चुकी शादी का हवाला देकर उसके साथ विदा कर दिया.

शिव गायत्री मंत्र -ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात।

    यह शिव गायत्री मंत्र है, जिसका जप करने से मनुष्य का कल्याण संभव है। शिव गायत्री मंत्र का जप प्रत्येक सोमवार को करना चाहिए। शुक्ल पक्ष के किसी भी सोमवार से उपवास रखते हुए इस मंत्र का आरंभ करना चाहिए। श्रावण मास में सोमवार को शिव गायत्री मंत्र का जप विशेष शुभ फलदायी माना गया है। शिव गायत्री मंत्र का जप करके शिवलिंग पर गंगा जल, बेलपत्र, धतूरा, चंदन, धूप, फल, पुष्प आदि श्रद्धा भाव से अर्पित करने से शिव एवं शक्ति दोनों की ही कृपा मिलती है।

शिव गायत्री मंत्र के लाभ

   पवित्र भाव के साथ विधिपूर्वक शिव गायत्री मंत्र का जप करने से समस्त पापों का नाश हो जाता है। अकाल मृत्यु तथा गम्भीर बीमारियों से मुक्ति के लिए शिव गायत्री मंत्र का प्रतिदिन एक माला जप अत्यंत ही शुभ है। जिन जातकों की जन्म कुंडली में काल सर्प योग हो अथवा राहु, केतु या शनि ग्रह जीवन में पीड़ा दे रहे हों, उन्हें शिव गायत्री मंत्र Ka पाठ राहत देता है। जीवन में सुख, समृद्धि, मानसिक शांति, यश, धनलाभ, पारिवारिक सुख आदि की प्राप्ति के लिए शिव गायत्री मंत्र अवश्य करें।

गायत्री मंत्र : 
1." ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात् "
 
 2.गणेश :- ॐ एकदन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ।

3. ब्रह्मा :- ॐ वेदात्मने विद्महे, हिरण्यगर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ।।
 
4. ब्रह्मा :- ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, कमण्डलु धाराय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ।।
 
5. ब्रह्मा:- ॐ परमेश्वर्याय विद्महे, परतत्वाय धीमहि, तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात् ।।
 
6. विष्णु:- ॐ नारायणाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि, तन्नो विष्णु प्रचोदयात् ।।
 
7. रुद्र :- ॐ तत्पुरुषाय विद्महे, महादेवाय धीमहि, तन्नो रुद्र: प्रचोदयात् ।।
 
8. रुद्र :- ॐ पंचवक्त्राय विद्महे, सहस्राक्षाय महादेवाय धीमहि, तन्नो रुद्र: प्रचोदयात् ।।
 
9. दक्षिणामूर्ति :- ॐ दक्षिणामूर्तये विद्महे, ध्यानस्थाय धीमहि, तन्नो धीश: प्रचोदयात् ।।
 
10. हयग्रीव :- ॐ वागीश्वराय विद्महे, हयग्रीवाय धीमहि, तन्नो हंस: प्रचोदयात् ।।
 
11. दुर्गा :- ॐ कात्यायन्यै विद्महे, कन्याकुमार्ये च धीमहि, तन्नो दुर्गा प्रचोदयात् ।।
 
12. दुर्गा :- ॐ महाशूलिन्यै विद्महे, महादुर्गायै धीमहि, तन्नो भगवती प्रचोदयात् ।।
 
13. दुर्गा :- ॐ गिरिजाय च विद्महे, शिवप्रियाय च धीमहि, तन्नो दुर्गा प्रचोदयात् ।।
 
14. सरस्वती :- ॐ वाग्देव्यै च विद्महे, कामराजाय धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात् ।
 
15. लक्ष्मी:- ॐ महादेव्यै च विद्महे, विष्णुपत्न्यै च धीमहि, तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ।।
 
16. शक्ति :- ॐ सर्वसंमोहिन्यै विद्महे, विश्वजनन्यै धीमहि, तन्नो शक्ति प्रचोदयात् ।।
 
17. अन्नपूर्णा :- ॐ भगवत्यै च विद्महे, महेश्वर्यै च धीमहि, तन्नोन्नपूर्णा प्रचोदयात् ।।
 
18. काली :- ॐ कालिकायै च विद्महे, श्मशानवासिन्यै धीमहि, तन्नो घोरा प्रचोदयात् ।। 
 
19. नन्दिकेश्वरा :- ॐ तत्पुरुषाय विद्महे, नन्दिकेश्वराय धीमहि, तन्नो वृषभ: प्रचोदयात् ।।
 
20. गरुड़ :- ॐ तत्पुरूषाय विद्महे, सुवर्णपक्षाय धीमहि, तन्नो गरुड: प्रचोदयात् ।।
 
21. हनुमान :- ॐ आंजनेयाय विद्महे, वायुपुत्राय धीमहि, तन्नो हनुमान् प्रचोदयात् ।।
 
22. हनुमान :- ॐ वायुपुत्राय विद्महे, रामदूताय धीमहि, तन्नो हनुमत् प्रचोदयात् ।।
 
23. शण्मुख :- ॐ तत्पुरुषाय विद्महे, महासेनाय धीमहि, तन्नो शण्मुख प्रचोदयात् ।।
 
24. अयप्पन :- ॐ भूतादिपाय विद्महे, महादेवाय धीमहि, तन्नो शास्ता प्रचोदयात् ।।
 
25. धनवन्तरी :- ॐ अमुद हस्ताय विद्महे, आरोग्य अनुग्रहाय धीमहि, तन्नो धनवन्त्री प्रचोदयात् ।।
 
26. कृष्ण :- ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि, तन्नो कृष्ण प्रचोदयात् ।।
 
27. राधा :- ॐ वृषभानुजाय विद्महे, कृष्णप्रियाय धीमहि, तन्नो राधा प्रचोदयात् ।।
 
28. राम :- ॐ दशरथाय विद्महे, सीता वल्लभाय धीमहि, तन्नो रामा: प्रचोदयात् ।।
 
29. सीता :- ॐ जनकनन्दिंयै विद्महे, भूमिजयै धीमहि, तन्नो सीता प्रचोदयात् ।।
 
30. तुलसी:- ॐ तुलसीदेव्यै च विद्महे, विष्णुप्रियायै च धीमहि, तन्नो वृन्दा प्रचोदयात् ।
        ।।         धन्यवाद       ।।

शनिवार, 24 जुलाई 2021

।।कामिका एकादशी।।


            ।।कामिका एकादशी ।।

कामिका एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा, व्रत, कथा महात्मय सुनने के साथ दान-पुण्य का भी महत्व है। इस दिन पूरे समय ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का उच्चारण करते हुए वस्त्र ,चन्दन ,जनेऊ ,गंध, अक्षत ,पुष्प , धूप-दीप नैवेध,पान-सुपारी चढ़ाकर करनी चाहिए। इससे श्रीहरि की कृपा बरसती है। विष्णु पुराण,पद्म पुराण व भागवद् के अनुसार कामिका एकादशी समस्त भय और पापों का नाश करने वाली संसार के मोह माया में डूबे हुए प्राणियों को पार लगाने वाली नाव के समान बताया गया है। इस व्रत के करने संतान सुख, अश्वमेध यज्ञ के समान फल मिलता है।

धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से कहने लगे कि हे भगवन,  कृपा करके श्रावण कृष्ण एकादशी का क्या नाम है, क्या महत्त्व है और उसकी कथा  बताए।
  श्रीकृष्ण भगवान कहने लगे कि हे युधिष्ठिर! इस एकादशी की कथा एक समय स्वयं ब्रह्माजी ने देवर्षि नारद से कही थी, वही मैं तुमसे कहता हूँ। नारदजी ने ब्रह्माजी से पूछा था कि हे पितामह! श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी की कथा सुनने की मेरी इच्छा है, उसका क्या नाम है? क्या विधि है और उसका माहात्म्य क्या है, सो कृपा करके कहिए।
   नारदजी के ये वचन सुनकर ब्रह्माजी ने कहा- हे नारद! लोकों के हित के लिए तुमने बहुत सुंदर प्रश्न किया है। श्रावण मास की कृष्ण एकादशी का नाम कामिका है। उसके सुनने मात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। इस दिन शंख, चक्र, गदाधारी विष्णु भगवान का पूजन होता है, जिनके नाम श्रीधर, हरि, विष्णु, माधव, मधुसूदन हैं। उनकी पूजा करने से जो फल मिलता है सो सुनो।
    जो फल गंगा, काशी, नैमिषारण्य और पुष्कर स्नान से मिलता है, वह विष्णु भगवान के पूजन से मिलता है। जो फल सूर्य व चंद्र ग्रहण पर कुरुक्षेत्र और काशी में स्नान करने से, समुद्र, वन सहित पृथ्वी दान करने से, सिंह राशि के बृहस्पति में गोदावरी और गंडकी नदी में स्नान से भी प्राप्त नहीं होता वह भगवान विष्णु के पूजन से मिलता है।
     जो मनुष्य श्रावण में भगवान का पूजन करते हैं, उनसे देवता, गंधर्व और सूर्य आदि सब पूजित हो जाते हैं। अत: पापों से डरने वाले मनुष्यों को कामिका एकादशी का व्रत और विष्णु भगवान का पूजन अवश्यमेव करना चाहिए। पापरूपी कीचड़ में फँसे हुए और संसाररूपी समुद्र में डूबे मनुष्यों के लिए इस एकादशी का व्रत और भगवान विष्णु का पूजन अत्यंत आवश्यक है। इससे बढ़कर पापों के नाशों का कोई उपाय नहीं है।
    हे नारद! स्वयं भगवान ने यही कहा है कि कामिका व्रत से जीव कुयोनि को प्राप्त नहीं होता। जो मनुष्य इस एकादशी के दिन भक्तिपूर्वक तुलसी दल भगवान विष्णु को अर्पण करते हैं, वे इस संसार के समस्त पापों से दूर रहते हैं। विष्णु भगवान रत्न, मोती, मणि तथा आभूषण आदि से इतने प्रसन्न नहीं होते जितने तुलसी दल से।
    तुलसी दल पूजन का फल चार भार चाँदी और एक भार स्वर्ण के दान के बराबर होता है। हे नारद! मैं स्वयं भगवान की अतिप्रिय तुलसी को सदैव नमस्कार करता हूँ। तुलसी के पौधे को सींचने से मनुष्य की सब यातनाएँ नष्ट हो जाती हैं। दर्शन मात्र से सब पाप नष्ट हो जाते हैं और स्पर्श से मनुष्य पवित्र हो जाता है।
   कामिका एकादशी की रात्रि को दीपदान तथा जागरण के फल का माहात्म्य चित्रगुप्त भी नहीं कह सकते। जो इस एकादशी की रात्रि को भगवान के मंदिर में दीपक जलाते हैं उनके पितर स्वर्गलोक में अमृतपान करते हैं तथा जो घी या तेल का दीपक जलाते हैं, वे सौ करोड़ दीपकों से प्रकाशित होकर सूर्य लोक को जाते हैं।
    ब्रह्माजी कहते हैं कि हे नारद! ब्रह्महत्या तथा भ्रूण हत्या आदि पापों को नष्ट करने वाली इस कामिका एकादशी का व्रत मनुष्य को यत्न के साथ करना चाहिए। कामिका एकादशी के व्रत का माहात्म्य श्रद्धा से सुनने और पढ़ने वाला मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर विष्णु लोक को जाता है।

कामिका एकादशी व्रत कथा!
एक गांव में एक वीर श्रत्रिय रहता था। एक दिन किसी कारण वश उसकी ब्राहमण से हाथापाई हो गई और ब्राहमण की मृत्य हो गई। अपने हाथों मरे गये ब्राहमण की क्रिया उस श्रत्रिय ने करनी चाही। परन्तु पंडितों ने उसे क्रिया में शामिल होने से मना कर दिया। ब्राहमणों ने बताया कि तुम पर ब्रहम हत्या का दोष है। पहले प्रायश्चित कर इस पाप से मुक्त हो तब हम तुम्हारे घर भोजन करेंगे।
     इस पर श्रत्रिय ने पूछा कि इस पाप से मुक्त होने के क्या उपाय है। तब ब्राहमणों ने बताया कि श्रावण माह के कृष्ण पश्र की एकादशी को भक्तिभाव से भगवान श्रीधर का व्रत एवं पूजन कर ब्राहमणों को भोजन कराके सदश्रिणा के साथ आशीर्वाद प्राप्त करने से इस पाप से मुक्ति मिलेगी। पंडितों के बताये हुए तरीके पर व्रत कराने वाली रात में भगवान श्रीधर ने श्रत्रिय को दर्शन देकर कहा कि तुम्हें ब्रहम हत्या के पाप से मुक्ति मिल गई है।
   इस व्रत के करने से ब्रह्महत्या आदि के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और इहलोक में सुख भोगकर प्राणी अन्त में विष्णुलोक को जाते हैं। इस कामिका एकादशी के माहात्म्य के श्रवण व पठन से मनुष्य स्वर्गलोक को प्राप्त करते हैं।

                        ।। धन्यवाद।।

।। तुलसी/वृन्दा ।।

                   ।। तुलसी/वृन्दा।।

         हिंदू धर्म में तुलसी का विशेष महच्व होता है. धार्मिक कार्यों में इस्तेमाल होने के साथ ही तुलसी के कई औषधीय गुण भी होते हैं. माना जाता है कि घर में तुलसी का पौधा लगाने से नेगेटिव एनर्जी दूर होती है. कई लोग रोजना सुबह उठकर तुलसी  की चाय पीना पसंद करते हैं ऐसे में हम आपको  बताने जा रहे हैं किस दिन तुलसी के पत्तों को नहीं तोड़ना चाहिए साथ ही पत्तों को तोड़ते समय किन बातों का ख्याल रखना  चाहिये।

       माना जाता है कि रविवार, सूर्य ग्रहण, एकादशी, संक्रान्ति, द्वादशी, चंद्रग्रहण और संध्या काल में तुलसी नहीं तोड़नी चाहिए. मान्यता के अनुसार, एकादशी पर तुलसी / वृन्दा माँ व्रत करती हैं इसलिए इस दिन पत्ते तोड़ने से घर में गरीबी आती है. अतः निषेध दिनों हेतु एक दिन पूर्व तुलसी के पत्तों को तोड़कर रख लें और बाद में  इन्हे सभी प्रकार के कार्यों में प्रयोग करें , इस तरह से आप निषेध दिनों में भी बिना तुलसी के पत्ते तोड़े पूर्व के पत्तों को भगवान को चढ़ा सकते हैं। ग्यारह दिन से अधिक पुराने तुलसी के पत्तों का इस्तेमाल ना करें क्योंकि यह बासी माने जाते हैं।

    साथ ही ध्यान रखें कि भगवान शिव और भगवान गणेश की पूजा में तुलसी के पत्तों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए ऐसा करना अशुभ माना जाता है।

तुलसी नामाष्टक मंत्र
बृन्दा बृन्दावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।

पुष्पसारा नन्दिनी च तुलसी कृष्णजीवनी ॥

एतन्नामाष्टकं चैव स्तोत्रं नामार्थसंयुतम्।

यः पठेत् तां च संपूज्य सोऽश्वमेधफलं लभेत् ॥पौराणिक कथा                                              मान्यताओं के मुताबिक भगवान श्री राम ने गोमती तट पर और वृंदावन में भगवान श्रीकृष्ण ने तुलसी लगायी थी। यह भी कहा जाता है कि अशोक वाटिका में सीता जी ने रामजी की प्राप्ति के लिए तुलसी जी का मानस पूजन ध्यान किया था। हिमालय पर्वत पर पार्वती जी ने शंकर जी की प्राप्ति के लिए तुलसी का वृक्ष लगाया था।

 तुलसी पूजा या तुलसी के प्रयोग में आपको निम्न बातों का ध्यान रखना जरूरी है।
- तुलसी के पत्ते हमेशा सुबह के समय ही तोड़ना चाहिए।

- रविवार के दिन तुलसी के पौधे के नीचे दीपक नहीं जलाना चाहिए।

- भगवान विष्णु और इनके अवतारों को तुलसी दल जरूर अर्पित करना चाहिए।

- भगवान गणेश और मां दुर्गा को तुलसी कतई न चढ़ाएं।

-पूजा में तुलसी के पुराने पत्तों का भी प्रयोग किया जा सकता है।

-तुलसी के पत्तों को हमेशा चुटकी बजाकर ही तोड़ना चाहिए।

- रविवार के दिन तुलसी के पत्तों को नहीं तोड़ना चाहिए

- खासकर रात के वक्त तुलसी पत्तों को तोड़ने से परहेज करना चाहिए। 

जल चढ़ाते वक्त पढ़ें ये मंत्र -- महाप्रसादजननी सर्व सौभाग्यवर्धिनी। आधि व्याधि हरा नित्यं तुलसी त्वं नमोस्तुते।। इसके बाद तुलसी की परिक्रमा कीजिए। 

इस मंत्र का भी  जाप कर सकते हैं 

 ऊँ श्री तुलस्यै विद्महे। विष्णु प्रियायै धीमहि। तन्नो वृन्दा प्रचोदयात्।।

तुलसी/वृन्दा की कथा

   दैत्यराज कालनेमी की कन्या वृंदा का विवाह जालंधर से हुआ। जालंधर महाराक्षस था। अपनी सत्ता के मद में चूर उसने माता लक्ष्मी को पाने की कामना से युद्ध किया, परंतु समुद्र से ही उत्पन्न होने के कारण माता लक्ष्मी ने उसे अपने भाई के रूप में स्वीकार किया। वहां से पराजित होकर वह देवि पार्वती को पाने की लालसा से कैलाश पर्वत  महादेव से युद्ध करने जाने लगा तब वृंदा ने कहा -स्वामी आप युद्ध पर जा रहे हैं आप जब तक युद्ध में रहेगें मैं पूजा में बैठकर आपकी जीत के लिए अनुष्ठान करुंगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते मैं अपना संकल्प नही छोडूगीं।जलंधर तो युद्ध में चले गए और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गई। उनके व्रत के प्रभाव से महादेव भी जलंधर को न जीत सके तब सारे देवता  भगवान विष्णु जी के पास गए। 

 सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि-वृंदा मेरी परम भक्त है मैं उसके साथ छल नहीं कर सकता पर देवता बोले - भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते हैं। 
भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पहुंच गए जैसे ही वृंदा ने अपने पति को देखा,वे तुरंत पूजा में  से उठ गई और उनके चरण छू लिए। जैसे ही उनका संकल्प टूटा,युद्ध में महादेव  ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काटकर अलग कर दिया। उनका सिर वृंदा के महल में गिरा जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पड़ा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है?
उन्होंने पूछा - आप कौन हैं जिसका स्पर्श मैंने किया,तब भगवान अपने रूप में आ गए पर वे कुछ ना बोल सके,वृंदा सारी बात समझ गई। उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया आप पत्थर के हो जाओ,भगवान तुंरत पत्थर के हो गए। सभी देवता हाहाकार करने लगे। लक्ष्मी जी रोने लगीं और प्राथना करने लगीं तब वृंदा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर  सती हो गई। 
 उनकी राख से  एक पौधा निकला तब भगवान विष्णु जी ने कहा- आज से इनका नाम तुलसी है,और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जाएगा और मैं बिना तुलसी जी के प्रसाद स्वीकार नहीं करुंगा। तब से तुलसी जी की पूजा सभी करने लगे और तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में किया जाता है। देवउठनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह मनाया जाता है। शालिग्राम पत्थर गंडकी नदी से प्राप्त होता है।यही कारण है कि भगवान विष्णु के प्रसाद में तुलसी अवश्य रखा जाता है. बिना तुलसी के अर्पित किया गया प्रसाद भगवान विष्णु स्वीकार नहीं करते हैं.

तुलसी  मुख्यतया तीन प्रकार की होती हैं- कृष्ण तुलसी, सफेद तुलसी तथा राम तुलसी जिसमें से कृष्ण तुलसी सर्वप्रिय मानी जाती है। 

किस जगह पर लगाएं तुलसी का पौधा 
तुलसी का पौधा घर के दक्षिणी भाग में नहीं लगाना चाहिए, घर के दक्षिणी भाग में लगा हुआ तुलसी का पौधा फायदे की जगह नुकसान पहुंचा सकता है। तुलसी को घर की उत्तर दिशा में लगाना चाहिए। ये तुलसी के लिए शुभ दिशा मानी गई है, अगर उत्तर दिशा में तुलसी का पौधा लगाना संभव न हो तो पूर्व दिशा में भी तुलसी को लगा सकते हैं। रोज सुबह तुलसी को जल चढ़ाएं और सूर्यास्त के बाद तुलसी के पास दीपक जलाना चाहिए। 

                ।।  धन्यवाद   ।।