मंगलवार, 28 मई 2024

।।समास।।

।।समास।।
समास शब्द-रचना की ऐसी प्रक्रिया है जिसमें अर्थ की दृष्टि से परस्पर भिन्न तथा स्वतंत्र अर्थ रखने वाले दो या दो से अधिक शब्द मिलकर किसी अन्य स्वतंत्र शब्द की रचना करते हैं।

समास विग्रह सामासिक शब्दों को विभक्ति सहित पृथक करके उनके संबंधों को स्पष्ट करने की प्रक्रिया है। यह समास रचना से पूर्ण रूप से विपरित प्रक्रिया है।

समास रचना में दो शब्द अथवा दो पद होते हैं पहले पद को पूर्व पद तथा दूसरे पद को उत्तर पद कहा जाता है।
इन दोनों पदों के समास से जो नया संक्षिप्त शब्द बनता है उसे समस्त पद या सामासिक पद कहते हैं।
जैसे: राष्ट्र (पूर्व पद) + पति (उत्तर पद) = राष्ट्रपति (समस्त पद)

समास की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं—
समास में दो या दो से अधिक पदों का मेल होता है।
समास में शब्द पास-पास आकर नया शब्द बनाते हैं।
पदों के बीच विभक्ति चिह्नों का लोप हो जाता है।
समास से बने शब्द में कभी उत्तर पद प्रधान होता है तो कभी पूर्व पद और कभी-कभी अन्य पद। इसके अलावा कभी कभी दोनों पद प्रधान होते हैं।

परिभाषा:

‘समास’ शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है ‘छोटा-रूप’। अतः जब दो या दो से अधिक शब्द(पद) अपने बीच की विभक्तियों का लोप कर जो छोटा रूप बनाते हैं, उसे समास कहते हैं।
सामासिक

शब्द या समस्त पद कहते हैं। जैसे ‘रसोई के लिए घर’ शब्दों में से ‘के लिए’ विभक्ति का लोप करने पर नया शब्द बना ‘रसोई घर’, जो एक सामासिक शब्द है।
किसी समस्त पद या सामासिक शब्द को उसके विभिन्न पदोंएवं विभक्ति सहित पृथक् करनेकी क्रिया को समास का विग्रह कहते हैं जैसे विद्यालय विद्या के लिए आलय, माता-पिता=माताऔर पिता।
समास के कुल भेद

समास के निम्नलिखित छह भेद होते हैं—
1. अव्ययीभाव समास (Adverbial Compound)
2. तत्पुरुष समास (Determinative Compound)
3. कर्मधारय समास (Appositional Compound)
4. द्विगु समास (Numeral Compound)
5. द्वन्द समास (Copulative Compound)
6. बहुव्रीहि समास (Attributive Compound)

1.अव्ययीभाव समास:-

अव्ययीभाव समास में प्रायः(i)पहला पद प्रधान होता है।
(ii) पहला पद या पूरा पद अव्यय होता है।
(वे शब्द जो लिंग, वचन, कारक,काल के अनुसार नहीं बदलते, उन्हें अव्यय कहते हैं)
(iii)यदि एक शब्द की पुनरावृत्ति हो और दोनों शब्द मिलकर अव्यय की तरह प्रयुक्त हो, वहाँ भी अव्ययीभाव समास होता है।
(iv) संस्कृत के उपसर्ग युक्त पद भी अव्ययीभव समास होते हैं-
यथाशक्ति = शक्ति के अनुसार।
यथाशीघ्र = जितना शीघ्र हो
यथाक्रम = क्रम के अनुसार
यथाविधि = विधि के अनुसार
यथावसर = अवसर के अनुसार
यथेच्छा = इच्छा के अनुसार
प्रतिदिन = प्रत्येक दिन। दिन-दिन। हर दिन
प्रत्येक = हर एक। एक-एक। प्रति एक
प्रत्यक्ष = अक्षि के आगे
घर-घर = प्रत्येक घर। हर घर। किसी भी घर को न छोड़कर
हाथों-हाथ = एक हाथ से दूसरे हाथ तक। हाथ ही हाथ में
रातों-रात = रात ही रात में
बीचों-बीच = ठीक बीच में
साफ-साफ = साफ के बाद साफ। बिल्कुल साफ
आमरण = मरने तक। मरणपर्यन्त
आसमुद्र = समुद्रपर्यन्त
भरपेट = पेट भरकर
अनुकूल = जैसा कूल है वैसा
यावज्जीवन = जीवनपर्यन्त
निर्विवाद = बिना विवाद के
दर असल = असल में
बाकायदा = कायदे के अनुसार
आजीवन - जीवन-भर
यथासामर्थ्य - सामर्थ्य के अनुसार
यथाशक्ति - शक्ति के अनुसार
यथाविधि- विधि के अनुसार
यथाक्रम - क्रम के अनुसार
भरपेट- पेट भरकर
हररोज़ - रोज़-रोज़
हाथोंहाथ - हाथ ही हाथ में
रातोंरात - रात ही रात में
प्रतिदिन - प्रत्येक दिन
बेशक - शक के बिना
निडर - डर के बिना
निस्संदेह - संदेह के बिना
प्रतिवर्ष - हर वर्ष
आमरण - मरण तक
खूबसूरत - अच्छी सूरत वाली
अव्ययीभाव समास की पहचान
अव्ययीभाव समास में तीन प्रकार के पद आते हैं:
1. उपसर्गों से बने पद:
आजीवन (आ + जीवन) = जीवन पर्यन्त
निर्दोष (निर् + दोष) = दोष रहित
प्रतिदिन (प्रति + दिन) = प्रत्येक दिन
बेघर (बे + घर) = बिना घर के
लावारिस (ला +‌ वारिस) = बिना वारिस के
यथाशक्ति (यथा‌ + शक्ति) = शक्ति के अनुसार
2. यदि एक ही शब्द की पुनरावृत्ति हो:
घर-घर = घर के बाद घर
नगर-नगर = नगर के बाद नगर
रोज-रोज = हर रोज
3. एक जैसे दो शब्दों के मध्य बिना संधि नियम के कोई मात्रा या व्यंजन आए:
हाथोंहाथ = हाथ ही हाथ में
दिनोदिन = दिन ही दिन में
बागोबाग = बाग ही बाग में

2- तत्पुरुष समास

इस समास में पूर्व पद गौण तथा उत्तर पद प्रधान होता है।
समस्त पद बनाते समय पदों के विभक्ति चिह्नों को लुप्त किया जाता है।
इस समास की दो प्रकार से रचना होती है:
(क) संज्ञा + संज्ञा/विशेषण
युद्ध का क्षेत्र = युद्धक्षेत्र
दान में वीर = दानवीर
(ख) संज्ञा + क्रिया
शरण में आगत = शरणागत
स्वर्ग को गमन = स्वर्गगमन
कारक की दृष्टि से तत्पुरुष समास के निम्नलिखित छह भेद होते हैं:
1. कर्म तत्पुरुष (विभक्ति चिह्न: 'को')
सिद्धिप्राप्त = सिद्धि को प्राप्त
नगरगत = नगर को गत
2. करण तत्पुरुष (विभक्ति चिह्न: 'से, के द्वारा')
हस्तलिखित = हाथों से लिखित
तुलसीरचित = तुलसी के द्वारा रचित
3. सम्प्रदान तत्पुरुष (विभक्ति चिह्न 'के लिए')
रसोईघर = रसोई के लिए घर
जेबखर्च = जेब के लिए खर्च
4. अपादान तत्पुरुष (विभक्ति चिह्न 'से' [अलग होने का भाव])
पथभ्रष्ट = पथ से भ्रष्ट
देशनिकाला = देश से निकाला
5. संबंध तत्पुरुष (विभक्ति चिह्न 'का, के, की')
राजपुत्र = राजा का पुत्र
घुड़दौड़ = घोड़ों की दौड़
6. अधिकरण तत्पुरुष (विभक्ति चिह्न 'में, पर')
आपबीती = आप पर बीती
विश्व प्रसिद्ध = विश्व में प्रसिद्ध
यद्यपि तत्पुरुष समास के अधिकांश विग्रहों में कोई विभक्ति चिह्न अवश्य आता है परंतु तत्पुरुष समास के कुछ उदाहरण ऐसे भी हैं, जिनके विग्रहों में विभक्ति चिह्न का प्रयोग नहीं किया जाता; संस्कृत में इस भेद को

नञ तत्पुरुष कहा जाता है। जैसे:

असभ्य( न सभ्य) अनंत (न अंत)
अनादि( न आदि) असंभव (न संभव)
तत्पुरुष समास के भेद (Tatpurush samas
ke bhed)

अन्य भेद

समानाधिकरण तत्पुरुष समास (कर्मधारय समास)

(Samanadhikaran tatpurush samas)

जिस तत्पुरुष समास के समस्त होनेवाले पद हों, अर्थात विशेष्य-विशेषण-भाव को प्राप्त हों, कर्ताकारक के
हों और लिंग - वचन में समान हों, वहाँ 'कर्मधारय तत्पुरुषसमास' होता है।

व्यधिकरण तत्पुरुष समास (Vyadhikaran
tatpurush samas)

जिस तत्पुरुष समास में प्रथम पद तथा द्वतीय पद दोनों भिन्न-भिन्न विभक्तियों में हो, उसे व्यधिकरण तत्पुरुष समास कहते हैं।

उदाहरणतया - राज्ञः पुरुषः - राजपुरुष: में प्रथम पद राज्ञः षष्ठी विभक्ति में है तथा द्वतीय पद पुरुष: में प्रथमा विभक्ति है। इस प्रकार दोनों पदों में भिन्न-भिन्न विभक्तियाँ होने से व्यधिकरण तत्पुरुष समास हुआ।
व्यधिकरण तत्पुरुष समास 6 प्रकार का होता है
1. कर्म तत्पुरुष समास
2. करण तत्पुरुष समास
3.सम्प्रदान तत्पुरुष समास
4-अपादान तत्पुरुष समास
5-सम्बंध तत्पुरुष समास
6-अधिकरण तत्पुरुष समास
तत्पुरुष समास के उपभेद (Tatpurush
samas ke upbhed)
1. नञ् तत्पुरुष समास
2. उपपद तत्पुरुष समास
3. लुप्तपद तत्पुरुष समास
उपपद तत्पुरुष समास
ऐसा समास जिनका उत्तरपद भाषा में स्वतंत्र रूप से
प्रयुक्त न होकर प्रत्यय के रूप में ही प्रयोग में लाया जाता है। जैसे- नभचर, कृतज्ञ, कृतघ्न, जलद, लकड़हारा इत्यादि ।
लुप्तपद तत्पुरुष समास
जब किसी समास में कोई कारक चिह्न अकेला लुप्त न होकर पूरे पद सहित लुप्त हो और तब उसका सामासिक पद बने तो वह लुप्तपद तत्पुरुष समास कहलाता है। जैसे-दहीबड़ा-दही में डूबा हुआ बड़ा
ऊँटगाड़ी - ऊँट से चलने वाली गाड़ी
पवनचक्की - पवन से चलने वाली चक्की आदि।
नञ तत्पुरुष समास (Nav samas in hindi)
इसमें पहला पद निषेधात्मक होता है उसे नञ तत्पुरुष समास कहते हैं।
नञ तत्पुरुष समास के उदाहरण (Nav
tatpurush samas ke udaharn):
असभ्य =न सभ्य

3- कर्मधारय समास

इस समास में पूर्व पद तथा उत्तर पद के मध्य में विशेषण-विशेष्य का संबंध होता है।
पूर्व पद गौण तथा उत्तर पद प्रधान होता है।
चंद्रमुख (चंद्र जैसा मुख) कमलनयन (कमल के समान नयन)
देहलता (देह रूपी लता) महादेव ( महान देव/
नीलकमल (नीला कमल)पीतांबर (पीला अंबर (वस्त्र))
सज्जन( सत् (अच्छा) जन )नरसिंह( नरों में सिंह के समान)
कर्मधारय समास के भेद (Karmdharay
samas ke bhed)
1. विशेषणपूर्वपद कर्मधारय समास
2. विशेष्यपूर्वपद कर्मधारय समास
3. विशेषणोंभयपद कर्मधारय समास
4. विशेष्योभयपद कर्मधारय समास

4-द्विगु समास

यह कर्मधारय समास का उपभेद होता है। इस समास का पूर्वपद संख्यावाचक विशेषण होता है तथा समस्त पद किसी समूह को बोध होता है।
समस्त पद = समास-विग्रह । समस्त पद= समास-विग्रह
नवग्रह नौ= ग्रहों का समूह। दोपहर= दो पहरों का समाहार
त्रिलोक =तीन लोकों का समाहार ।चौमासा= चार मासों का समूह
नवरात्र =नौ रात्रियों का समूह। शताब्दी=सौ अब्दो (वर्षों) का समूह
अठन्नी आठ= आनों का समूह। त्रयम्बकेश्वर= तीन लोकों का ईश्वर
द्विगु समास के भेद (Dvigu samas ke
bhed)
1. समाहारद्विगु समास
2. उत्तरपदप्रधानद्विगु समास
समाहारद्विगु समास (Samahar dvigu
samas)
समाहार का मतलब होता है समुदाय, इकट्ठा होना, समेटना उसे समाहारद्विगु समास कहते हैं। जैसे :
तीन लोकों का समाहार = त्रिलोक
पाँचों वटों का समाहार =पंचवटी
तीन भुवनों का समाहार = त्रिभुवन
उत्तरपदप्रधानद्विगु समास (Uttar-pad-
pradhan dvigu samas)
उत्तरपदप्रधानद्विगु समास दो प्रकार के होते हैं।
1. बेटा या फिर उत्पन्न के अर्थ में। जैसे :-
दो माँ का = दुमाता
दो सूतों के मेल का =दुसूती।
2. जहाँ पर सच में उत्तरपद पर जोर दिया जाता है। जैसे 
पांच प्रमाण = पंचप्रमाण
पांच हत्थड = पंचहत्थड

5-द्वन्द्व समास

इस समास के दोनों पद प्रधान होते हैं एवं एक दूसरे के विलोम होते हैं। तथा विग्रह करने पर योजक या समुच्चय बोधक शब्दों का प्रयोग होता है। जैसे- माता-पिता, भाई-बहन, राजा-रानी, दु:ख-सुख, दिन-रात, राजा-प्रजा।
"और" का प्रयोग समान प्रकृति के पदों के मध्य तथा "या" का प्रयोग विपरीत प्रकृति के पदों के मध्य किया जाता है। उदाहरण: माता-पिता = माता और पिता (समान प्रकृति) गाय-भैंस = गाय और भैंस (समान प्रकृति) धर्माधर्म = धर्म या अधर्म (विपरीत प्रकृति) सुरासुर = सुर या असुर (विपरीत प्रकृति)
द्वन्द्व समास के तीन भेद होते हैं-(1) इतरेतर द्वन्द्व, (2)समाहार द्वन्द्व, (3)वैकल्पिक द्वन्द्व

6-बहुव्रीहि समास

जिस समास के दोनों पद अप्रधान हों और समस्तपद के अर्थ के अतिरिक्त कोई सांकेतिक अर्थ प्रधान हो उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। जैसे:
समस्त पद   =समास-विग्रह
दशानन    = दश है आनन (मुख) जिसके अर्थात् रावण
नीलकंठ    = नीला है कंठ जिसका अर्थात् शिव
सुलोचना   = सुंदर है लोचन जिसके अर्थात् मेघनाद की पत्नी
पीतांबर =पीला है अम्बर (वस्त्र) जिसका अर्थात् श्रीकृष्ण
लंबोदर। = लंबा है उदर (पेट) जिसका अर्थात् गणेशजी
दुरात्मा = बुरी आत्मा वाला ( दुष्ट)
श्वेतांबर   =श्वेत है जिसके अंबर (वस्त्र) अर्थात् सरस्वती

प्रयोग की दृष्टि से समास के भेद-

1. संयोगमूलक समास
2. आश्रयमूलक समास
3. वर्णनमूलक समास

पदों की प्रधानता के आधार पर वर्गीकरण-

1. पूर्वपद प्रधान - अव्ययीभाव
2. उत्तरपद प्रधान - तत्पुरुष, कर्मधारय, द्विगु
3. दोनों पद प्रधान - द्वंद्व
4. दोनों पद अप्रधान - बहुव्रीहि (इसमें कोई तीसरा अर्थ
प्रधान होता है)

पूर्वपद और उत्तरपद - Pre and
Post Compound

समास रचना में दो पद होते हैं, पहले पद को 'पूर्वपद' कहा जाता है और दूसरे पद को'उत्तरपद'कहा जाता है। इन दोनों से जो नया शब्द बनता है वो समस्त पद कहलाता है। जैसे-
पूजाघर (समस्तपद) पूजा (पूर्वपद) + घर
(उत्तरपद)
पूजा के लिए घर (समास - विग्रह )
राजपुत्र (समस्तपद) - राजा (पूर्वपद) + पुत्र ( उत्तरपद) -
राजा का पुत्र (समास - विग्रह )

समास विग्रह - Compound
words in Hindi

सामासिक शब्दों के बीच के सम्बन्ध को स्पष्ट करने को समास विग्रह कहते हैं। विग्रह के बाद सामासिक शब्द गायब हो जाते हैं अथार्त जब समस्त पद के सभी पद अलग-अलग किय जाते हैं, उसे समास - विग्रह कहते हैं।
जैसे:-
माता-पिता= माता और पिता ।
राजपुत्र = राजा का पुत्र ।

'समसनम्' इति समास:। इस प्रकार 'समास' शब्द का अर्थ है— संक्षेपण।
अर्थात् दो या दो से अधिक पदों में प्रयुक्त विभक्तियों, समुच्चय 'बोधक 'च' आदि को हटाकर एक पद बनाना । यथा — गायने कुशला = गायनकुशला। इसी तरह राज्ञ: पुरुष: = राजपुरुष: पदों में विभक्ति-लोप,
सीता च रामश्च =सीतारामौ में
समुच्चय बोधक 'च' का लोप हुआ है। इसी प्रकार विद्या एव धनं यस्य स:=विद्याधन: पद में कुछ पदों का लोप कर संक्षेपण क्रिया द्वारा गायनकुशला,
राजपुरुष:, सीतारामौ तथा विद्याधन: पद बनाए गए हैं।
कहीं-कहीं पदों के बीच की विभक्ति का लोप नहीं भी होता है।यथा— खेचरः, युधिष्ठिर:, वनेचर: आदि। ऐसे समासों को अलुक् समास कहते हैं। पदों की प्रधानता के आधार पर समास के मुख्यत: चार भेद होते हैं—
(1) अव्ययीभाव (2) तत्पुरुष (3) द्वन्द्व तथा (4) बहुव्रीहि। तत्पुरुष के दो उपभेद भी हैं— कर्मधारय एवं द्विगु । इस प्रकार सामान्य रूप से समास के छ: भेद हैं।

एकशेष

जहाँ अन्य पदों का लोप होकर एक ही पद शेष बचे, वहाँ एकशेष होता है। यह समास से भिन्न वृत्ति है।
उदाहरण – बालकश्च बालकश्च बालकश्च = बालकाः ।
एकशेष में पुँल्लिङ्ग और स्त्रीलिङ्ग पदों में से पुंल्लिङ्ग पद ही शेष रहता है।
यथा-माता च पिता च = पितरौ
दुहिता च पुत्रश्च = पुत्रौ

कर्मधारय और बहुव्रीहि समास में अंतर

कर्मधारय में समस्त-पद का एक पद दूसरे का विशेषण होता है। इसमें शब्दार्थ प्रधान होता है।
जैसे: नीलकंठ = नीला कंठ।
बहुव्रीहि में समस्त पद के दोनों पदों में विशेषण-विशेष्य का संबंध नहीं होता अपितु वह समस्त पद ही किसी अन्य संज्ञा का विशेषण होता है। इसके साथ ही शब्दार्थ गौण होता है और कोई भिन्नार्थ ही प्रधान हो जाता है।
जैसे: नीलकंठ = नीला है कंठ जिसका अर्थात शिव।

बहुब्रीहि व द्विगु समास में अंतर

द्विगु समास में पहला पद संख्यावाचक होता है और समस्त पद समूह का बोध कराता है लेकिन बहुब्रीहि समास में पहला पद संख्यावाचक होने पर भी समस्त पद से समूह का बोध न होकर अन्य अर्थ का बोध कराता है। जैसे- चौराहा अर्थात चार राहों का समूह (द्विगु समास), चतुर्भुज- चार हैं भुजाएँ जिसके (विष्णु) अन्यार्थ (बहुब्रीहि समास)

संधि और समास में अंतर

संधि में वर्णों का मेल होता है। इसमें विभक्ति या शब्द का लोप नहीं होता है। जैसे: देव + आलय = देवालय।
समास में दो पदों का मेल होता है। समास होने पर विभक्ति या शब्दों का लोप भी हो जाता है।
जैसे: विद्यालय = विद्या के लिए आलय।
समास-व्यास से विषय का प्रतिपादन
यदि आपको लगता है कि सन्देश लम्बा हो गया है (जैसे, कोई एक पृष्ठ से अधिक), तो अच्छा होगा कि आप समास और व्यास दोनों में ही अपने विषय-वस्तु का प्रतिपादन करें अर्थात् जैसे किसी शोध लेख का प्रस्तुतीकरण आरम्भ में एक सारांश के साथ किया जाता है, वैसे ही आप भी कर सकते हैं। इसके बारे में कुछ प्राचीन उद्धरण भी दिए जा रहे हैं।
विस्तीर्यैतन्महज्ज्ञानमृषिः संक्षिप्य चाब्रवीत्।
इष्टं हि विदुषां लोके समासव्यासधारणम् ॥ (महाभारत )
अर्थात् महर्षि ने इस महान ज्ञान (महाभारत) का संक्षेप और विस्तार दोनों ही प्रकार से वर्णन किया है, क्योंकि इस लोक में विद्वज्जन किसी भी विषय पर समास (संक्षेप) और व्यास (विस्तार) दोनों ही रीतियाँ पसन्द करते हैं।
ते वै खल्वपि विधयः सुपरिगृहीता भवन्ति येषां लक्षणं प्रपंचश्च।
केवलं लक्षणं केवलः प्रपंचो वा न तथा कारकं भवति॥ (व्याकरण-महाभाष्य )
अर्थात् वे विधियाँ सरलता से समझ में आती हैं जिनका लक्षण (संक्षेप से निर्देश) और प्रपंच (विस्तार) से विधान होता है। केवल लक्षण या केवल प्रपंच उतना प्रभावकारी नहीं होता।
संस्कृत में समासों का बहुत प्रयोग होता है। अन्य भारतीय भाषाओं में भी समास उपयोग होता है। समास के बारे में संस्कृत में एक सूक्ति प्रसिद्ध है:

द्वन्द्वो द्विगुरपि चाहं मद्गेहे नित्यमव्ययीभावः।
तत् पुरुष कर्म धारय येनाहं स्यां बहुव्रीहिः॥

 समास के बारे में विशेष  यहां से

द्वन्द्वो द्विगुरपि चाहं मद्गेहे नित्यमव्ययीभावः ।
तत्पुरुष कर्मधारय येनाहं स्यां बहुव्रीहिः ॥ [1]
इसमें छहों समासों का वर्णन है। क्रम निम्नवत है
द्वंद: दोनों पद प्रधान जैसे राधाकृष्ण , ऊंच नीच
द्विगु : पूर्व पद संख्यावाचक जैसे चतुर्युग , त्रिलोक
अव्ययीभावः पूर्व पद प्रधान एवं अव्यय उत्तर पद संज्ञा (या अनव्यय ) - परंतु समस्त पद अव्यय - जिसका रूप अपरिवर्तित होता है। पाणिनि ले अनुसार ये 16 प्रकार के होते हैं। [2] जैसे उपनगर , अध्यात्म , अनुरूप
तत्पुरुष:जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूर्वपद गौण हो उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे - तुलसीदासकृत = तुलसी द्वारा कृत (रचित), गंगाजल । यह नञ समास सहित 7 प्रकार के होते हैं। [3]
कर्मधारय:जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूर्वपद व उत्तरपद में विशेषण-विशेष्य अथवा उपमान-उपमेय का संबंध हो वह कर्मधारय समास कहलाता है। जैसे नीलकमल , चंद्रमुखी।
बहुव्रीहिः जिसके दोनों पद गौण हों और समस्तपद के अर्थ के अतिरिक्त तीसरा सांकेतिक अर्थ प्रधान हो जाए जैसे - नीलकंठ (अर्थ - शंकर, लंबोदर अर्थ - गणेश )
द्वन्द्वो द्विगुरपि चाहं मद्गेहे नित्यमव्ययीभावः ।
तत्पुरुष कर्मधारय येनाहं स्यां बहुव्रीहिः ॥
का अर्थ इसका व्यंग्य अर्थ ऐसा है--‘मैं घर में द्वन्द्व (दो प्राणी, स्त्री-पुरुष) हूँ । द्विगु हूँ (दो बैल मेरे पास हैं ) । मेरे घर में नित्य अव्ययी-भाव रहता है (खरचा नहीं चलता ) । तत्पुरुष (इसलिए हे पुरुष महाशय) कर्मधारय (ऐसा काम करो) जिससे मैं बहुव्रीहि (अधिक अन्नवाला) हो जाऊँ ।’ 
विशेष यहां तक है।
।।धन्यवाद।।

















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