महाबीर बिनवउँ हनुमाना।
राम जासु जस आप बखाना।।
महावीर — और लोग केवल वीरताके कारण महावीर हो सकते हैं; परन्तु श्रीहनुमान्जी तो गुण और नाम दोनोंसे महावीर हैं। इनकी अभिधा 'महावीर' है। 'महावीर' शब्दसे इन्हींका बोध होता है। वीरताको अनेक प्रकारसे समझाया जा सकता है -
(क) शारीरिक वीरतामें ये अकेले ही लङ्काके समस्त राक्षसोंका संहार करनेमें समर्थ हैं। ये अद्वितीय योद्धा हैं तीनों लोकमें।
कौन की हाँक पर चौंक चण्डीस बिधि,
चंड कर थकित फिरि तुरग हाँके ।
कौन के तेज बलसीम भट भीम से
भीमता निरखि कर नयन ढाँके ॥
दास - तुलसीस के बिरुद बरनत बिदुष,
बीर बिरुदैत बर बैरि धाँके ।
नाक नरलोक पाताल कोउ कहत किन,
कहाँ हनुमान से बीर बांके।।
(ख) वीरेन्द्र मुकुटमणि श्रीरामचन्द्रजीको जिन्होंने अपने वशमें कर लिया है। उनसे महान् वीर कौन हो सकता है ?
अपने बस करि राखे रामू ।
(ग) 'वीर' शब्दका अर्थ है विशेषेण "ईरयति प्रेरयतीति वीरः" दर्शनार्थी भक्तोंको प्रेरित करके श्रीरामचरणोंमें पहुँचा देते हैं । श्रीविभीषण इसके प्रमाण हैं ।
तुम्हरो मन्त्र बिभीषन माना ।
लंकेस्वर भए सब जग जाना ॥
(घ) करुणामय श्रीरामजीको आर्त भक्तोंके ऊपर करुणा करनेके लिये प्रेरित करते हैं। भक्तोंकी करुण गाथा सुनाकर भक्तवत्सल श्रीरामजीके राजीव नयनोंमें प्रेमाश्रुओंका अवतरण करा देते हैं ।
सुनि सीता दुख प्रभु सुखअयना ।
भरि आए जल राजिव नयना ॥
बस यही तो श्रीहनुमान्जीका कार्य है।
महान्को - श्रीराम भगवान्को भक्तोंके ऊपर करुणा
करनेके लिये विशेष प्रेरणा देते हैं। इसीलिये उनका नाम 'महावीर' है । भक्तकवि गोस्वामीजी श्रीविनयपत्रिकाजीमें बड़े भावपूर्ण शब्दोंमें लिखते हैं-
'साहेब कहूँ न राम से तोसे न उसीले' अर्थात् हे हनुमान्जी ! श्रीरामजीके तरह कोई करुणामय स्वामी नहीं है और उनकी कृपा - करुणा प्राप्त करनेके लिये आपकी भाँति 'उसीला' अर्थात् माध्यम नहीं है। श्रीहनुमान्जी हमें भी इस कथा माध्यम से श्रीसीतारामजीका कृपापात्र बना दें। इसी आशा के साथ जय श्री राम जय हनुमान।।
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