।।शिव धनुष किसने तोड़ा।।
महि पाताल नाक जसु ब्यापा ।राम बरी सिय भंजेउ चापा ॥
'राम बरी सिय भंजेउ चापा' का दो प्रकारसे अर्थ किया जाता है। श्रीअयोध्यावाले अर्थ करते हैं— 'राम बरी सिय, भंजेउ चापा' अर्थात् श्रीरामने धनुषको तोड़कर श्रीसीताजीका वरण किया ।उनसे विवाह किया।यह तो पूरा संसार ही जानता है।लेकिन मिथिला वाले ऐसा नहीं मानते है,मिथिलापक्षवाले कहते हैं-
'राम बरी, सिय भंजेउ चापा' अर्थात् श्रीरामजीने विवाह तो किया; परन्तु धनुषको श्रीसीताजीने तोड़ा। इस भावकी पुष्टिमें वे इस प्रसिद्ध पद झूम झूम कर गाते हैं ।
परि परि पाय जाय गिरिजा निहोरी नित्य
शंकर मनाये पूजे गणपति भावसे।
दीने दान विविध विधान जप कीने बहु
नेम व्रत लीने सिय सहित उछावसे ॥
रसिक बिहारी मिथलेशकी दुलारी दृढ़
प्रीति उर धारी अवधेश सुत चावसे ।
जनक किशोरी के प्रताप ते पिनाक टूटो
टूटो है न जानौ रामबलके प्रभावसे ॥
अब आपको स्वयं ही सत्य पहचानना है
।जय श्री राम जय हनुमान।।
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