।।ठाकुर श्री राम का अवतरण नवमी को ही क्यों।।
नौमी तिथि मधु मास पुनीता। सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता॥मध्यदिवस अति सीत न घामा। पावन काल लोक बिश्रामा॥
ठाकुर श्री राम का अवतरण नवमी को ही क्यों जानते है इसके पीछे की अद्भुतरहस्यमयी कथा
- एक बार साकेताधीश श्री विष्णुजी(श्रीरामजी)
करुणामयी माता लक्ष्मी के( श्रीसीताजीके) साथ विराजमान थे । उसी समय एक दीन-हीन देवी आ गयी। प्रभुने पूछा- तुम कौन हो ? उसने कहा- हे स्वामिन्! मैं
नवमी तिथिकी अधिष्ठातृ देवी हूँ। प्रभुने पूछा- कैसे आयी हो ? उसने कहा- हे सर्वान्तर्यामिन्! हे करुणासागर! हे अनाथनाथ ! मेरी बड़ी दुर्दशा है। लोग रिक्ता कहकर मेरा अपमान करते हैं। मैं यात्रा आदि प्रशस्त कार्योंमें हटा दी जाती हूँ। प्रभुने पूछा- क्या तुम वास्तवमें रिक्ता हो ? उसने कहा- हे दयामय ! सच कहनेसे डर लग रहा है,
कहीं आपके दरबारसे भी न निकाल दी जाऊँ; वास्तवमें मैं रिक्ता ही हूँ। मेरे पास कोई आता नहीं और मुझे कोई पूछता भी नहीं, निषेध- प्रतिषेध सभी करते हैं। प्रभु मन्द मन्द मुसकरा पड़े और उसे आश्वस्त करते हुए बोले - हे
नवमी देवि ! चिन्ता मत करो अब तुम ठीक जगह आ गयी हो, यहाँसे निकाले जानेका भय नहीं है। यहाँ जो निष्कपट भावसे दीन होकर आता है उसे निकाला नहीं जाता अपितु अपनाया जाता है। जिसके पास कोई नहीं जाता है, जिसके पास कोई जानेकी इच्छा भी नहीं करता है उसके पास मैं जाता हूँ। जिसे कोई नहीं पूछता है उसे
मैं पूछता हूँ। जिसे कोई नहीं अपनाता, जिसे सब भगा देते हैं, जिसका सब अपमान करते हैं, उसे मैं अपनाता हूँ—अपने हृदयसे लगा लेता हूँ। करुणामय श्रीरघुनाथजीने श्रीकिशोरीजीकी ओर अर्थपूर्ण दृष्टिसे निहारा । नित्यकिशोरी श्रीसीताजीने नेत्रोंकी भाषामें उत्तर दे दिया। दोनों ठाकुरने- प्रिया-प्रियतमने सम्मिलित घोषणा कर दी - हे नवमि ! जो रिक्ता है वही हम दोनोंको भाता है, जो समस्त आश्रयसे रिक्त है, कामनाओंसे रिक्त है, कपटसे रिक्त है और छल छिद्रसे रिक्त है, वही हम दोनोंको प्यारा है। हे रिक्ते ! हम रिक्तमें ही निवास करते हैं। जो आकण्ठ कपट-छलसे परिपूर्ण है उससे हम दूर रहते हैं । तुम रिक्ता हो अतः मेरा आविर्भाव तुम्हींमें होगा। मैं नवमी
तिथिमें ही जन्म लूँगा । श्रीकिशोरीजीने कहा- मेरे नाथ! जिसे आपने अपना लिया है उसी नवमीमें मैं भी जन्म लूँगी। दोनों ठाकुरका जन्म रिक्ता तिथिमें — नवमीमें ही होता है। श्रीरामनवमी और श्रीजानकीनवमी । नवमी निहाल हो गयी। अब कौन कहेगा मुझे रिक्ता ? कहते हैं तो कहें, मैं तो आज भर गयी हूँ- परिपूर्ण हो गयी हूँ। मैं तो पूर्णासे भी अपनेको सौभाग्यशालिनी मानती हूँ ।
श्रीराम-सीताने मुझे स्वीकार कर लिया है। मैं उनके नामसे जुड़ गयी हूँ । निहाल हो गयी नवमी । ठाकुरजी आ गये नवमी तिथि में । भगवान्का जन्म नक्षत्र 'पुनर्वसु ' है । भगवान्का एक नाम भी पुनर्वसु है ।
'अनघो विजयो जेता विश्वयोनिर्पुनवसुः '
पुनर्वसुका यह अर्थ है 'पुनः पुनः शरीरेषु वसतीति
पुनर्वसुः श्रीहरिः । पुनर्वसुका यह भी अर्थ है कि जो लोगोंको पुनः बसावे - उजड़े हुयेको बसावे, अनाथको सनाथ करे, मेरे श्रीरामजीमें यह सब गुण सहज ही विद्यमान हैं। इस प्रकार योग, वार, लग्न, तिथि, नक्षत्र
सब मङ्गलमय हो गये तब ठाकुर का अवतार हुवा।
जोग लगन ग्रह बार तिथि सकल भए अनुकूल।
चर अरु अचर हर्षजुत राम जनम सुखमूल॥
।।जय राम नवमी जय जानकी नवमी।।
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