मानस चर्चा तुलसी के राम
"एक राम दशरथ का बेटा। एक राम घट-घट में लेटा ।। एक राम का सकल पसारा।एक राम है सबसे न्यारा।"
यहां 'राम जी के चार स्वरूप दर्शाये गये हैं- पहला दशरथ नंदन दूसरा अन्तर्यामी, तीसरा सोपाधिक ईश्वर और चौथा अखिल ब्रहमाण्ड निकाया" । श्री राम के जीवन चरित्र का आँखो देखा हाल प्रामणिकता से महर्षि वाल्मीकि ने आदिकाव्य रामायण में किया है।गोस्वामी तुलसीदासजी ने लोकमंगल आराध्य सियाराम के चरित्र को 'रामचरित मानस में लिखा है जो लोक मंगल आराधना एवं सनातन मूल्य का लोकप्रिय सद्ग्रन्थ है। जहां राम निराकार और साकार दोनों हैं-
राम ब्रम्ह परमारथ रूपा।अबिगत अलख अनादि अनूपा।।
इसका समर्थन वेदों के शिरोभाग उपनिषद् ने भी किया है
राम रूपं परं ब्रम्ह राम एव परं तपः । राम एव परं तत्वं श्री रामो ब्रम्ह तारकम् ।।
राम तुरीय ब्रह्म सीता मूल प्रकृति- भरत,लक्ष्मण, शत्रुघ्न, प्राज्ञ एवं तेजस् है अक्षर ब्रह्म है और तत्वमसि महाकाव्य है- 'र' का अर्थ तत्व परमात्मा है। 'म' का अर्थ त्वम् (जीवात्मा) है और 'आ' की मात्रा (1) असि' का पर्याय है।
लोकनायक गोस्वामी जी श्री राम की उपासना विधि के
माध्यम से अपने हृदय के उद्गार रूपी धन को खोलकर
सबके सामने रख देते है-
"कामिहि नारि पिआरि जिमि लोभिहिं प्रिय जिमि दाम । तिमि रघुनाथ निरंतर, प्रिय लागहु मोहिराम ।। "
अर्थात् जैसे कामी को नारी प्रिय होती है, वैसे ही
रघुनाथ मुझे प्रिय है। मेरी रघुनाथ की प्रीति कभी कम न हो, कामी की तो स्त्री कुरूप होते ही प्रीति क्षीण हो जाती है, पर मेरी निरन्तर बनी रहे ।
लोभी की आसक्ति धन पर होती है, रूप पर नहीं
नोट (रूपया) चाहे जैसी सूरत की हो उनकी गणना में ही
लोभी रस लेता रहता है, उसी तरह मेरी रसना 'राम नाम' का जप द्विगुणित करती रहे। उपमा लोभी से देकर राम नाम प्रीतिकर कितना है, यह जानने समझने की कला है। इस दोहे में निरन्तर राम के प्रिय लगने की दृढ़ता व आह्वान है। 'राम नाम की महिमा एवं मूल्य का वर्णन करने में गोस्वामी जी ने बहुत ही बढ़ियाँ दोहा रचा है-
"राम नाम मनिदीप धरू जींह देहरीं द्वार।
तुलसी भीतर बाहेरहुँ, जौं चाहसि उजियार ।। "
अर्थात् शरीर हमार घर है, जिस घर के भीतर सदा
अन्धकार रहता है, जहाँ सूर्य का प्रकाश न हो, वहाँ उल्लू
चमगादड़ और मच्छर का बसेरा हो जाता है ।
यानी राम नाम मणि रूपी दीप को जीभ और ओठ-अधर
पर बराबर स्मरण करना चाहिये, इससे मनुष्य का पतन नहीं हो सकता। इसके विपरीत जहाँ भगवान का प्रकाश नहीं होगा वहाँ अज्ञान रूपी उल्लू, मलरूपी चमगादड़ और विक्षेप रूपी मच्छर निवास करेंगे, परन्तु प्रकाश पड़ते ही वह सब भाग जाते हैं, और भाव विकार से अन्तःकरण एवं मन निर्मल हो जाता है। बाहर का जगत रजोगुण, तमोगुण, सतोगुण से निर्मित है, जो सभी मनुष्यों के दुःख का कारण है। भीतर राम नाम का प्रकाश होने से इन तीनों वृत्तियों से स्वतः मुक्ति मिल जाती है। इससे तुलसीदास ने सभी को सिद्ध कर दिया, कि भीतर एवं बाहर की पवित्रता और शक्ति के लिये भगवत् प्रकाश ही परम आवश्यक है, और मूल्य का जीवन में उतरना ही भक्ति का सोपान है।
प्रकाश के सम्बन्ध में गोस्वामी तुलसीदास जी का स्पष्ट मत है कि 'राम नाममणि' के समान ऐसा प्रकाश है,
जिसमें दीया, बाती, तेल किसी साधन की आवश्यकता नहीं है,यह सब आप के शरीर स्वभाव सेवा में घटित होने लगता है।यह प्रकाश हर पल, हर स्थान पर निरन्तर प्रज्ज्वलित रहता है। यह सबल मंत्र है, दीखने में छोटा पर बड़ा काम करताहै, इससे भीतर बाहर दोनों जगह आनन्द की प्राप्ति शाश्वत होगी।
भक्त कवि तुलसीदास रामोपासना का रहस्य दोहावली में इस प्रकार करते हैं-
हियै निर्गुन नथनन्हि सगुन रसना नाम सुनाम।।
गोस्वामी जी की आराधना लोकमंगल कारी है. उन्होंने चित्रकूट में राम लक्ष्मण सहित साकार रूप का दर्शन
किया, और उनके निर्गुण ब्रह्म स्वरूप को अपने हृदय में धारण किया। नित्य प्रति श्री गंगा जी में खड़े होकर राम परिवार' का दर्शन एवं सुख लाभ राम-नाम जपते थे, इसके पीछे स्वभाव एवं कर्म की भी स्थापना है।
साधक को सावधानी का मंत्र जीवन मूल्य की सुरक्षा
एवं व्यवहार में ही प्रकट होता है। हृदय में निर्गुण परमात्मा
का बोध एवं सगुण साक्षर रूप के दर्शन से अपने नेत्र, कान,नाक तथा समस्त इन्द्रियों को राम नाम के समर्पण समर्थनएवं जप साधना में लगा लें। इससे अपने स्थूल सूक्ष्म एवंकारण शरीर को कृत कृत्य करके अक्षुण्ण परमानंद की प्राप्ति की जा सकती है, यही उपासना का परम सुगम, सहज कल्याण कारी मार्ग है।
छोटी-छोटी छेपक कथा भी हमारा मार्ग दर्शन करने में
सहयोगी है।
एक राम भक्त अपनी धर्म-पत्नी को ब्याह कर अपने घर
ले जा रहा था, रास्ते में चार चोर-ठग-लंपट मिल गये चोरों ने कहा-जहाँ आप जा रहें है वही हम सभी जा रहे है साथ-साथ चले तो ठीक रहेगा, क्योंकि भयानक जंगल से हम सभी को गुजरना है। पति ने कहा- भाई! हमें आप पर भरोसा और विश्वास नहीं हो रहा है हम सभी अपरिचित है। इस पर चोरों ने कहा- "हम राम की शपथ लेते है हम
आप से धोखा एवं विश्वास घात नहीं करेंगे, हमारे और आपके बीच में राम है। राम भक्त सदैव राम पर आश्वस्त - विश्वस्त रहता है सो आगे जंगल में कुछ दूर जाने के बाद ठगों ने ठगी कर राम भक्त को एक वृक्ष से बांधकर मार दिया एवं उसकी पत्नी को जबरन खींच कर साथ ले जा रहे थे, पत्नी चलते-चलते बार-बार पीछे मुड़कर देख रही थी, ठग बोले-"तुम्हारे पति को हमने तुम्हारे सामने मारा, अब तुम पीछे बार-बार क्या देख रही हो? पत्नी बोली- मैं पति को नहीं देख रही हूँ, मैं तो उस बीच वाले को देख रही हूँ, कि वह जमानत देने वाला कहाँ रह गया? बस विश्वास पूर्वक यह बोलना ही था, कि तुरन्त घोड़े पर सवार श्री राम और लक्ष्मण वहाँ प्रकट हो गये- चारो ठगो को मार डाला और उस स्त्री के सुहाग राम भक्त को पुनः जीवित कर दिया।"
यह है अखण्ड भक्ति का आग्रह, जहाँ असंभव भी
संभव हो जाता है। अनगिनत घटनायें इस घट में सच्चरित
होती है, किन्तु भगवान् का भरोसा और विश्वास महान् कवि तुलसी दास एवं भक्तों जैसा होना चाहिये। रामचरित मानस असाधारण लोक कल्याण कारक सद्ग्रन्थ है उसकी हर चौपाई,दोहा जीवन का मर्म खोलता है। मर्म की पहचान कराता है। इसकी सार्थकता सिद्ध होती है-
"एक भरोसो एक बल, एक आस विश्वास ।
एक राम घनस्याम हित् चातक तुलसी दास।।"
ये है तुलसी के राम जय श्री राम जय हनुमान।।
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