सोमवार, 27 मई 2024

✓।।श्रीसीताजी द्वारा जयमाल पहनाने में देरी का कारण।।

।।श्री किशोरीसीताजी  द्वारा जयमाल पहनाने में देरी का कारण।।
श्रीसीताजीकी चतुर सखियोंने नेत्रोंकी भाषा में समझाकर कहा - हे किशोरीजू ! आप यह सुहावनी जयमाला अपने प्रियतमको पहना दो ।
चतुर सखीं लखि कहा बुझाई ।
पहिरावहु जयमाल सुहाई ॥
सखियोंकी बात सुनकर राजकिशोरी श्रीसीताने दोनों हाथोंसे माला उठायी; परन्तु
प्रेम बिबस पहिराइ न जाई।
श्रीसीताजीने सोचा - माला पहनानेके पश्चात् सखियाँ कहेंगी कि अब चलो, तो इतने सन्निकटसे जो परम प्रियतमकी मङ्गलमयी छविका दर्शन हो रहा है वह समाप्त हो जायगा अतः
'प्रेम बिबस पहिराइ न जाई।'
अथवा श्रीसीताजीने अपने जीवनधन श्रीरामजीसे मान कर लिया। मूक भाषामें - नेत्रोंकी भाषामें कहा - हे स्वामिन्! आपने धनुष तोड़नेके लिये अति विलम्ब किया, किसी प्रकार उठे भी तो बहुत धीरे-धीरे झूमते हुये चलकर धनुषके पास आये। उस समय धनुष तोड़नेके लिये उठना और चलना तो आपके आधीन था। आप स्वतन्त्र थे, उसमें आपने विलम्ब किया। अब जयमाला पहनाना मेरे हाथमें है, इसलिए अब आप भी किञ्चित् प्रतीक्षा करो। अतः
प्रेमबिबस पहिराइ न जाई। अथवा 
जिस भाँति मुझको ललचना पड़ा है आज
उसी भाँति अब आपको भी ललचाऊँगी।
जैसा था गुमान आपको कमान खींचनमें,
वैसी ही सुजान ! स्वाभिमानता दिखाऊँगी ॥
अधिक बिलम्ब से उठी थी जो विरह ज्वाल,
शीतल सनेह विन्दु से उसे बुझाऊँगी ।
नाथ तरसाया चाप तोड़नेमें आपने तो
मैं भी जयमाल छोड़ने में तरसाऊँगी ॥ इं
अथवा
किं वा - श्रीसीताजी छोटी हैं और श्रीरामजी लम्बे हैं । श्रीरामजीके झुके बिना माला कैसे पहनायी जाय ? इधर प्रभु कहते हैं कि मैं तो नहीं झुकूँगा। सखियोंके सामने बड़ी समस्या है। सखियोंने युक्ति निकाली - गीत गाना आरम्भ कर दिया। वह गीत भी रटा हुआ नहीं था अपितु परम सुन्दर श्रीरामजीकी छविको देखकर गीतकी रचना कर
रही थीं और उसी सद्यः रचित गीतको गा रही थीं । जैसा कि गोस्वामीजी ने लिखा ही है
'गावहिं छबि अवलोकि' 
एक-एक अङ्गका वर्णनकरती हैं- हे रघुनन्दन ! आप परम सुन्दर हैं। आपका वक्षःस्थल विशाल है, जानुपर्यन्त लम्बिनी आपकी भुजायें हैं, आपका समुन्नत ललाट है,
विद्रुमकी भाँति आपके लाल लाल ओष्ठ हैं, तोतेकी
तरह आपकी नासिका है, आपके नेत्र कमलकी तरह स्निग्ध और विशाल हैं और आपका श्रीविग्रह इतना लम्बा है कि हमारी किशोरी सरकारके हाथ जयमाला पहनानेके लिये नहीं पहुँच रहे हैं। अतः श्रीचरणोंमें प्रार्थनापूर्वक विनम्र निवेदन है कि आप थोड़ा-सा झुककर जयमाला धारण कर लो। यह  उपाय भी व्यर्थ हो गया, सरकार नहीं झुके । तब सखियोंने कहा—हे रघुनन्दन ! आप सुन्दर हैं,कामाभिराम हैं, लोकाभिराम हैं। आपने हमारे नगरके समग्र नर नारियोंको अपनी रूपमाधुरीसे मुग्ध कर लिया है, अपने वशमें कर लिया है; परन्तु हे सरकार ! अब अपने सौन्दर्यपर अधिक गर्व न करो। आपसे सुन्दर तो हमारी श्रीकिशोरीजी हैं। आप तनिक अपना रूप देखो तो सही । कहाँ देखूँ ? सखियोंने कहा- सरकार यह विदेहनगर है, यहाँका सब कुछ विलक्षण है। आप अपना
रूप हमारी किशोरी सरकारकी परछाहींमें देखिये ।
प्रभुने सोचा - परिछाहीमें कैसे रूप दीखता होगा ।
सखियोंने फिर कहा कि हे सरकार ! आप आश्चर्य न करें, तनिक परिछाहीपर दृष्टि डालें ।
गरब करहु रघुनंदन जनि मन माँह ।
देखहु आपनि मूरति सिय कै छाँह ॥
( श्रीबरवै रामायण १७ )
सखियोंने गीतके चक्कर में परब्रह्मको डाल दिया । प्रभुने अपना स्वरूप देखनेके लिये जब परछाहींमें ध्यान देने के लिये मस्तक झुकाया, उसी समय सिय जयमाल राम उर मेली ।
किं वा सखियों ने - गीत गाकर श्रीकिशोरीजीसे कहा- श्रीरामजीके गलेमें माला पहनाओ, सुनकर श्रीकिशोरीजीने रामजीके गलेमें माला डाल दी।
गावहिं छबि अवलोकि सहेली ।
सियँ जयमाल राम उर मेली ॥
भगवती भास्वती श्री मिथलेशनन्दिनीने विजयश्री संवलित जयमाला पहना दी। श्रीराघवेन्द्र सरकारके हृदयमें विराजमान जयमालाको देखकर देवता नन्दनकाननके पुष्पोंकी वर्षा करने लगे। जनकनगर और आकाशमें दुन्दुभि ध्वनि होने लगी । देवता, किन्नर, मनुष्य, नाग और मुनीन्द्र जय-जयकार करके आशीर्वाद दे रहे हैं । अप्सराएँ नृत्य करने लगीं। बार-बार पुष्पाञ्जलि हो रही है । यत्र-तत्र ब्राह्मणलोग वेदध्वनि कर रहे हैं । बन्दी यशका वर्णन कर रहे हैं।
रघुबर उर जयमाल देखि देव बरिसहिं सुमन ।
सकुचे सकल भुआल जनु बिलोकि रबि कुमुदगन ॥
।।जय श्री राम जय हनुमान।।

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