विद्या को जो प्राप्त करना चाहता है वह विद्यार्थी ही होता है। यहाँ हम विद्यार्थी के कुछ लक्षणों पर दृष्टिपात करें -------
1.STUDENT को पहले समझते हैं___
S = STUDIOUS- विद्याभ्यासी, SIMPLE साधारण जीवन जीने वाला
T = TRUTHFUL -सच्चा, THOUGHTFUL सावधान, चिन्ताशील
U=UNDERSTANDING-समझ,सुबोध
D=DESIRIOUS-अभिलाषी,इच्छुक, चाहने वाला
DISCIPLINED-अनुशासित, विनयशील
E=EAGER-जिज्ञासु, ENERGETIC-तेजस,शक्तिशाली
N=NEAT-स्वच्छ, साफ़-सुथरा NORMAL -साधारण
T=TENDER-कोमल,संवेदनशील TALENTED- प्रतिभावान
जब हम हिन्दी-संस्कृत में विद्यार्थी की बात करते हैं तो यह तो पाते हैं कि यह दो शब्दों विद्या+अर्थी से मिलकर बना है। जिसका अर्थ है विद्या को चाहने वाला
अब वर्णों की दृष्टि से विचार करते हैं----
वि = विद्याभ्यासी, विनयशील विवेकी
द_ =दयावान हो सकता है
या= याचक किसका विद्या का किया जा सकता है
र_= रहमदिल माना जा सकता है ,रसिक विद्या का,रखवाला विद्या का और
थी=थिरकता-कूदता,हँसता-खेलता कह सकतें हैं।
सभी भाषाओं की जननी देववाणी में एक श्लोक है-
काक चेष्टा बको ध्यानं श्वान निद्रा तथैव च।
अल्पहारी गृह त्यागी विद्यार्थी पंच लक्षणम_।।
इसके बारे में आम आदमी भी विस्तार से जानता है।
परन्तु विद्यार्थी के बारे में एक औऱ श्लोक है---
सुखार्थी त्यजते विद्यां विद्यार्थी त्यजते सुखम्।
सुखार्थिन: कुतो विद्या कुतो विद्यार्थिन: सुखम्।।
यह श्लोक स्वयं ही अर्थ स्पष्ट कर देता है।लेकिन वास्तविक विद्यार्थी को परिभाषित करने वाला एक श्लोक और है जिसे देखते हैं-----
अनालस्यं ब्रह्मचर्यं शीलं गुरुजनादरः ।
स्वावलम्बो दृढाभ्यासः षडेते छात्रसद्गुणाः ॥
इसके अनुसार----
1) आलस के बिना मेहनत करते रहना,
2) ब्रह्मचर्य का पालन करना,
3) उत्तम चारित्र्य (स्वभाव-कर्म) बनाये रखना,
4) गुरु (श्रेष्ठ) तथा ज्ञानी का सदा आदर करना,
5) स्वावलंबी / खुद के काम खुद करना,
6) सतत दृढ़ अभ्यास करते रहना।
यह विद्यार्थी के छः सद्गुण है।
इन सद्गुणों का जो विद्यार्थी पालन करता है उसका विद्याभ्यास सदा सफलता और सम्मान देने वाला हो जाता है।
इति
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