इस अलंकार में तीन बातों का होना
आवश्यक है-
(क) विषय का अनिश्चित ज्ञान।
(ख) यह अनिश्चित समानता पर
निर्भर हो।
(ग) अनिश्चय का चमत्कारपूर्ण
वर्णन हो।
उदाहरण:-
1. सारी बीच नारी है
कि नारी बीच सारी है।
सारी ही की नारी है
कि नारी ही की सारी है।।
2.यह काया है या शेष
उसी की छाया,
क्षण भर उनकी
कुछ नहीं समझ में आया।
3.को तुम स्यामल गौर सरीरा।
छत्रिय रुप फिरहु बन बीरा।।
की तुम तीनि देव मह कोऊ।
नर नारायण की तुम दोऊ।।
4.कि तुम हरि दासन्ह मह कोई।
मोरे हृदय प्रीति अस होई।।
कि तुम राम दिन्ह अनुरागी।
आयहु मोहि करन बड़ भागी।।
5.(बालधी बिसाल विकराल
ज्वाल-जाल मानो)
लंक लीलिबे को काल
रसना पसारी है ।
कैधौं ब्योमबीथिका
भरे हैं भूरि धूमकेतु,
बीररस बीर तरवारि
सी उघारी है ।।
तुलसी सुरेस चाप,
कैधौं दामिनी कलाप,
कैंधौं चली मेरु तें
कृसानु-सरि भारी है ।
देखे जातुधान
जातुधानी अकुलानी कहैं,
“कानन उजारयौधन्यवाद
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