शुक्रवार, 28 मई 2021

।।सहोक्ति अलंकार।।

          ।।सहोक्ति अलंकार।।

सहोक्ति अलंकार 

 जहां कई बातों का एक साथ होना सरल रीति से कहा जाता है वहां सहोक्ति अलंकार होता है । सह+उक्ति=सहोक्ति अर्थात साथ-साथ उक्ति। इसमें  प्रायः सह, समेत, साथ, संग आदि शब्दों के द्वारा एक शब्द दो पक्षों में लगता है,  एक में प्रधान रूप से और दूसरे में अप्रधान रूप से । जैसे -

1. कीरति अरि कुल संग ही

   जलनिधि पहुंची जाय .

2. त्रिभुवन जय समेत बैदेही।
    बिनहि बिचारि बरै हठि तेही।।

3.बलु प्रताप बीरता बड़ाई। 
   नाक पिनाकहि संग सिधाई |

 4. प्रथम टंकोर झुकि झारि संसार मद, 
             चण्ड कोदण्ड रह्यो मण्डि नव खण्ड को ।
     चालि अचला अचल, घालि दिगपाल बल, 
                पालि  रिसिराज के  बचन  परचण्ड  को।।        सोधु  दै  ईस  को   बोधु  जगदीश  को, 
                क्रोध  उपजाय   भृगुनंद  बरिबंड   को  ।
      बाँधि  वर  स्वर्ग   को   साधि  अपवर्ग, 
                धनुभंग को सबद गयो भेदि ब्रह्माण्ड को ।।

 यहां पर धनुष तोड़ने के साथ ही साथ अनेक कार्यों का होना दिखाया गया है ।

                   धन्यवाद

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें