जहाँ वस्तुओं का पारस्परिक संबंध संभव अथवा असंभव होकर उनमें बिंब प्रतिबिंब भाव सूचित करता है और सदृशता का आधार करता है, वहाँ निदर्शना अलंकार होता है।
आचार्य विश्वनाथ के शव्दों में---
सम्भवन वस्तुसम्बन्धोऽसम्भवन् वाऽपि कुत्रचित्।
यत्र बिम्बानुबिम्बत्वं बोधयेत् सा निदर्शना।।
यत्र बिम्बानुबिम्बत्वं बोधयेत् सा निदर्शना।।
उदाहरण:-
यह प्रेम का पंथ कराल महा,
तलवार की धार पै धावनो है।।
निदर्शना के मुख्य तीन भेद हैं-----
1.परस्पर असम्बद्ध वाक्यों में बिम्ब-प्रतिबिंब भाव।
2.उपमेय के गुण का उपमान में आरोप या उपमान के गुण का उपमेय में आरोप।
3.क्रिया के माध्यम से सत या असत अर्थ का बोधन।
1.परस्पर असम्बद्ध वाक्यों में बिम्ब-प्रतिबिंब भाव
अ. सम्भव वस्तु संबंध वाली
निज प्रतिबिम्ब बरुक गहि जाई।
जानि न जाइ नारि गति भाई।।
आ. असम्भव वस्तु संबंध वाली
सो धनु राज कुँवर कर देही।
बाल मराल कि मंदर लेही।।
2.उपमेय के गुण का उपमान में आरोप या उपमान के गुण का उपमेय में आरोप।इसे पदार्थ निदर्शना भी कहते हैं।
अ.उपमेय के गुण का उपमान में आरोप
कह हनुमंत सुनहु प्रभु ससि तुम्हार प्रिय दास।
तव मूरति बिधु उर बसति सोइ स्यामता आभास।।
आ.उपमान के गुण का उपमेय में आरोप।
पूँछेउ रघुपति कथा प्रसंगा।
सकल लोक जग पावनि गंगा।।
3.क्रिया के माध्यम से सत या असत अर्थ का बोधन।जहाँ अपने सद/असद व्यवहार या ज्ञान से उपदेश दिया जाय।
अ.सदर्थ निदर्शन
प्रभु पयान जाना बैदेही।
फरकि बाम अंग जनु कहि देही।।
आ. असदर्थ निदर्शना
भूमि सयन पटु मोट पुराना।
दिये डारि तन भूषन नाना।।
कुमतिहि कसि कुबेषता फाबी।
अन अहिबातु सूचि जनु भाबी।।
माला रूपा निदर्शना भी है देखें--
सेवक सुख चह मान भिखारी। ब्यसनी धन सुभ गति बिभिचारी॥
लोभी जसु चह चार गुमानी। नभ दुहि दूध चहत ए
प्रानी।
।धन्यवाद।
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