सादृश्य के कारण प्रस्तुत वस्तु में अप्रस्तुत वस्तु के निश्चयात्मक ज्ञान को भ्रांतिमान् कहते हैं-
प्रस्तुत अर्थात उपमेय ,प्रकृत present जो हमारे सामने है उस पर अप्रस्तुत अर्थात उपमान ,अप्रकृत absent जो हमारे सामने नहीं है उसका भ्रम के कारण निश्चयात्मक ज्ञान होना भ्रांतिमान अलङ्कार है।
सादृश्याद् वस्त्वन्तरप्रतीति: भ्रान्तिमान्-
रुय्यक : अलंकारसर्वस्व
वस्तुतः दो वस्तुओं में इतना सादृश्य रहता है कि स्वाभाविक रूप से भ्रम हो जाता है, एक वस्तु दूसरी वस्तु समझ ली जाती हैऔर उस भ्रम के अनुरुप कार्य भी किया जाता है।
रुय्यक : अलंकारसर्वस्व
वस्तुतः दो वस्तुओं में इतना सादृश्य रहता है कि स्वाभाविक रूप से भ्रम हो जाता है, एक वस्तु दूसरी वस्तु समझ ली जाती हैऔर उस भ्रम के अनुरुप कार्य भी किया जाता है।
संदेह औऱ भ्रम में यही अंतर है कि संदेह में केवल भ्रम परंतु भ्रम में उसके अनुरुप कार्य भी कर दिया जाता है।
जहाँ सन्देह में वाचक शब्द होते हैं वही भ्रांतिमान में वाचक शब्द नहीं होते हैं लेकिन विचारना,जानना, अनुमान लगाना,समझना,भ्रम आदि भ्रमात्मक क्रियाओं के कोई न कोई रुप आ ही जाते हैं।
उदाहरण देखते हैं और पूर्णतः समझते हैं
1.बिल बिचारि प्रविसन लग्यो नाग सुंड के ब्याल।
ताहि करि ईंख भ्रम लियो उठाई उताल।।
नाग= हाथी
2.कपि करि हृदय बिचारि दीन्हि मुद्रिका डारि तब।
जनु असोक अंगार दिन्ह हरषि उठि कर गहेउ।।
मुद्रिका= अंगुठी
3.देखा भरत बिसाल अति निसिचर मन अनुमानि।
बिनु फर सायक मारेउ चाप श्रवन लगि तानि।।।
4.किंशुक - कलिका जानकर
अलि गिरता शुक चोंच पर ।
शुक मुख में धरता उसे
जामुन का फल समझकर ।
5. ओस बिंदु चुग रही हंसिनी मोती उनको जान।
6.बेसर -मोती- दुति झलक, परी अधर पर आनि।
पट पोंछति चूनो समुझि, नारी निपट अजानि।
अलि गिरता शुक चोंच पर ।
शुक मुख में धरता उसे
जामुन का फल समझकर ।
5. ओस बिंदु चुग रही हंसिनी मोती उनको जान।
6.बेसर -मोती- दुति झलक, परी अधर पर आनि।
पट पोंछति चूनो समुझि, नारी निपट अजानि।
7.नाक का मोती अधर की कान्ति से, बीज दाडिम का समझकर भ्रान्ति से।
देखकर सहसा हुआ शुक मौन है, सोचता है अन्य शुक यह कौन है।।
देखकर सहसा हुआ शुक मौन है, सोचता है अन्य शुक यह कौन है।।
।।। धन्यवाद ।।।
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