रविवार, 27 दिसंबर 2020

।।। दुर्गा मन्दिर तिलौली ।।।

      माताजी की असीम कृपा से तिलौली के लोगों में गाँव के सरोवर पर माताजी के मन्दिर निर्माण का सुन्दर विचार आया, इसके पीछे अनेक तथ्य हो सकते हैं।मेरे विचार से मेरे गाँव के हर वर्ग में माताजी के प्रति अद्भुत निष्ठा रही है।इसका प्रत्यक्ष उदाहरण बबुवा बाबा के दरवाजे पर नवरात्रि के समय रात्रि जागरण के कार्यक्रमों में रहा, जहाँ कार्यक्रम में छोटे-बड़े हर वर्ग-जाति के लोग धूमधाम से भाग लेते रहे ।भाई हमीद जाति के नट तो सभी नाटकों में भाग लिया करते थे।एक नाटक में उनका कथन:- "फूक डालो इन गिरगिट की औलादों को ताकि भोर होते-होते श्मशान हो जाये"आज भी कार्यक्रम की भभ्यता की याद दिलाता है।
      उस समय मेरी उम्र कितनी रही मुझे याद नहीं पर मुझे यह सब याद है कि बबुवा बाबा के दरवाजे पर हर नवरात्रि के दौरान मूर्ति स्थापित  होती रात को अद्भुत कार्यक्रम होते जिसमे आस-पास के सभी गाँवों से लोग 
भाग लेते।
       दशहरा के दिन गाँव के पोखरे पर बहुत विशाल मेले का आयोजन होता जिसमें आस-पास के गाँवों से माताजी की अनेक मूर्तियॉं सुबह से ही आने लगती,हमारे गाँव की भी मूर्ति बड़े ही सम्मान से पोखरे पर विसर्जन हेतु लायी जाती,कीर्तन होता, मेला भरताऔर शाम को सभी मूर्तियों का विसर्जन करने के बाद सभी मस्ती से रवाना होते।
          उन सभी माता प्रेमियों को दिल से शुक्रिया जिन्होंने मन्दिर स्थापना की परिकल्पना कर माघ शुक्ल एकादशी शनिवार फरवरी ग्यारह, उन्नीस सौ पंचानवे को माता मन्दिर की नींव रखी,जिसमें अठारह फरवरी,दो हजार पाँच माघ शुक्ल दशमी शुक्रवार को मूर्ति स्थापित कर मन्दिर में प्राण फूकने का कार्य सम्पन्न किया।
          अब हम सभी का परम दायित्व हो जाता है कि हम समय-समय पर माताजी के मन्दिर पर सम्पन्न होने वाले सभी धार्मिक-सामाजिक कार्यकर्मो के कार्यकर्ता बने,आयोजक बने और बढ़-चढ़ कर भाग ले।
              ।।     जय माता की     ।।

बुधवार, 23 दिसंबर 2020

Abstract Noun

(1)Failure is the pillar of  success. 
     ------                                 ----------
(2)Do not doubt my loyalty.
                               --------
(3)Honesty is the best policy.
      -------                          ----
Abstract Nouns refer to those intangible(अमूर्त) nouns which our 5 senses can not detect.
Feelings, qualities, theories, relationship,ideas & experiences are expressed by abstract noun.
It only exists in mind.
Abstract.  Opposite concrete
We can not see,feel,hear, taste or smell this noun.
Quality.         State.            Action
Height.         Childhood.     Laughter
Depth.           Poverty.           Flights
Wisdom.       Youth.             Division
 Quality बनती adjective से state बनती common noun  से और action हमेशा verb  से. 

Gerunds (ing verb) तथा simple infinitive(to+verb1st) एक प्रकार से abstract noun ही माने जाते हैं।जैसे to serve, serving

जब ये गुण, अवस्था, क्रिया आदि का बोध न कराकर उस व्यक्ति का बोध कराते हैं जिनके अंदर  ये होते हैं तब येcommon noun हो जाते हैं।
जैसे।  justice से  न्यायab   न्यायाधीशco
       Witness से  साक्ष्य ab.  साक्षी co

जब इसका प्रयोग मानवीकरण के रूप में होता है तब यह proper noun हो जाता है।
जैसे He is the favoured(कृपापात्र ) child ऑफ Fourtune.

The names of the Arts & Sciences are also Abstract Nouns.
As:-grammar,music, chemistry etc.


                       Thanks

MATERIAL NOUN

1:-Add some more salt in the dish.
                                  -----
2:-Your silver ring is very nice.
             -------++
3:-He drinks milk daily.
                       ------
What is Material Noun?
 "Substance from which things are made"
विशेष (1):-एक शब्द   कहीं Material तो कही Common Noun की  तरह प्रयुक्त होते  है 
Fish live in water. Common Noun 
Fish is good for food. Material Noun 
इसी  कारण अनेक grammarians  इसे Common Noun के  अन्तर्गत  ही  मानते  हैं. 
सामान्यतः यह uncountable होता है. 
यह liquid, semi-liquid और solide  रुप मे होता है. ठोस, द्रव और  गैस . 
Some example 
Nature:- water, air, silver, gold, iron, sand. 
Animals:-egg, meat, honey, milk, silk, 
Plants:-cotton, wood, coffee, tea, oil, 
Man Made:-acid, brick, cement, ghee
(2) जब  Material Nouns uncountable  होते हैं तब articles  का प्रयोग  नहीं  होता. 
(3)जब ये  countable होगें तब article आ सकते  हैं. Example:-It  is  a very healthy wine. 
(4) इस  प्रकार  से the  और some का  प्रयोग  इनके  साथ  होता हैं 
The  honey   in the bottle is mine. 
I saw there is some milk in the glass. 
(5)वाक्य के शुरु में प्रथम letter capital अन्यथा  हमेशा small में लिखा जाता है. 


                  |||     Thanks     |||

सोमवार, 21 दिसंबर 2020

|||| माहेश्वर सूत्र ||||

नृत्वावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नव पन्च वारम्. 
उद्धर्तुकामान् सनकादिसिद्धानेतद्विमर्श शिवसॊत्रजालम् 

(1)अ इ उ ण (2)ऋ लृ क् (3)ए ओ ड् (4)ऐ औ च् ll

अच् अर्थात् स्वर वर्ण, इनमे  इनके दीर्घ आ ई ऊ तथा प्लुत ओम भी  आकर  9+4=13स्वर  हो जाते  हैं. 

(5)ह य  व र ट् (6)ल ण (7)ञ म ड. ण न म् (8)झ भ य् (9)घ ढ ध ष (10)ज  ब ग ड द श् (11)ख फ़ छ ठ थ च ट त व् (12)क प य् (13)श ष स र् (14)ह ल्. 

हल् अर्थात् व्यञ्जन वर्ण 33+4अयोगवाह वर्ण =37
13स्वर +33व्यञ्जन +04अयोगवाह =50वर्ण 

इस  सूत्र  को चतुर्दश, प्रत्याहार विधायक, शिव, माहेश्वर, वर्णसमाम्नाय  और अक्षरसमाम्नाय सूत्र.भी  कहते  हैं. इन्हें उपदेश  भी  कहा  जाता है. 

सबसे  पहले स्वर अच्, अन्तस्थ यण , पञ्चम् ञम् , चतुर्थ् झष , तृतीय जश्, द्बितीय फ़िर् प्रथम चय् और  अन्त  में उष्म शल् वर्णों का  विधान  है. 

अट और शल् प्रत्याहार  के  कारण  ह दो  बार  आये हैं. 

अण =अ इ उ ऋ लृ तथा अणु दित्सवर्णस्य  चा प्रत्ययः =अ से ल तक  वर्णो को  शामिल  करने  के  लिए  ण दो  बार  आया  है. 

अष्टाध्यायी में 8अध्याय32पाद और 4000सूत्र हैं. 

व्याकरण  के  आदि  प्रवर्तक  भगवान नटराज हैं. 

अणुदित सवर्णस्य चाप्रत्ययः :-
अविधियमान अण और उदित की सवर्ण संज्ञा होती है वह प्रत्यय. में नही हो तो भी. 
जैसे :-अण और कु चु टु टु  पु  के साथ होता है. 
केवल इसी  हेतु ण दूसरी  बार आया है. 


 

शनिवार, 19 दिसंबर 2020

... वर्णमाला ....

स्वर :-स्वयं राजन्ते  इति स्वराःl
मूल  स्वर :-अ, इ, उ, ऋ, लृ l
संयुक्त स्वर :-अ +इ =ए 
                 अ +ए =ऐ 
                 अ +उ =ओ 
                 अ +ओ =औ 
कुल  स्वर =09 अच् =अ, इ, उ, ऋ, लृ, ए, ओ, ऐ और औ  हैं l
स्वर भेद :- उकालोSह्रस्व दीर्घ प्लुतः  ll
1:-ह्रस्व :-अ, इ, उ, ऋ  लृ ll
2:-दीर्घ :-आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ ll
3:-प्लुत :-ओsम् l
एक मात्रो भवेत् ह्रस्वो  द्विमात्रो दीर्घ उच्यते l
त्रिमात्रस्तु प्लुतो ज्ञेयो व्यञ्जनं चार्ध्मात्रिकम् ll
मात्रा काल :-पलक  झपकने  के  समय  को  एक  मात्रा काल  कहते  हैं l
नोट  :-प्लुत, उच्चैरुदात्तः, निचैरनुदात्तः और  समाहारः स्वरितः इन  चारों  का  प्रयोग  वैदिक  संस्कृत  में  होता  है l
तुल्यास्य प्रयत्नं सवर्णम् :-जिन  वर्णो  के उच्चारण स्थान तालु आदि  और आभ्यान्तर  प्रयत्न  एक  समान  होते  हैं उनकी परस्पर  सवर्ण  संज्ञा  होती  है 
4:-----------व्यञ्जन -----
वर्णों  का चौथा  भेद  व्यञ्जन  होता  है, व्यञ्जनं चार्ध्मात्रिकम्  के  अनुसार  इनकी  मात्रा  आधी  होती  है, अन्वम्  भवति  व्यञ्जनम्  के  अनुसार  बिना  स्वर  की  सहायता  के  इनका  उच्चारण  नहीं  हो  सकता l
               व्यञ्जन  के  भेद  
1:-कादयो मावसनाः स्पर्शाः 
क  से म तक  के  वर्ण स्पर्श वर्ण  कहे  जाते  है l  कवर्ग, चवर्ग,टवर्ग, तवर्ग, पवर्ग  के  रुप  में  ये  कुल 25 होते हैं l
2:-यणो अन्तस्थाः 
  यण  अर्थात्  य, व, र, ल ये  04  वर्ण  अन्तस्थ वर्ण  होते  हैं l
3:- शल उष्माण:
शल अर्थात् श, ष, स, ह ये  04 वर्ण उष्म  वर्ण  होते  हैंl 4:- संयुक्त या  मिश्रित व्यञ्जन 
       क् +ष +अ =क्ष 
       त् +र् +अ =त्र 
      ज् +ञ +अ =ज्ञ 
      श +र् +अ =श्र 
कोई कोई  ऊपर  के केवल  03 को  ही  मानते  हैं l
5:-आयोगवाह वर्ण 
(1)अनुस्वार जैसे अं (2) विसर्ग जैसे अः को  स्वर का  आयोगवाह तथा (3)जिह्वामूली जैसे क और  ख  नुक्ता  के साथ (4)उपधमानीय जैसे  प ´और फ´ को व्यञ्जन  का  आयोगवाह  वर्ण  माना  गया  है I
     इस प्रकार  स्वर 13 व्यञ्जन 33और आयोगवाह  04 कुल 50 वर्ण संस्कृत  में  माने  गये  हैं ll
   वर्ण  वर्गो के  प्रथम तृतीय पञ्चम्  और य र ल व को अल्प प्राण तथा  द्वितीय चतुर्थ और श  ष  स  ह  को महाप्राण  वर्ण  भी  कहा  जाता  है l 
अघोष वर्ण :- पांचो वर्गो के प्रथम,द्वितीय वर्ण और श ष  स कुल 13
घोष या सघोष वर्ण :-पाचों  वर्गो  के तृतीय चतुर्थ पञ्चम य र ल व ह कुल 20 वर्ण, हिन्दी  में उच्छिप्त या द्बिगुण 02 वर्णो को  मिलाकर  22 होते हैं llअ आ इ ई उ ऊ ऋ  ए ऐ ओ और औ को  भी  सघोष  वर्ण माना गया है l
हिन्दी  में  वर्ण 
11स्वर  अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ऋ ओ औ 
41व्यञ्जन 
स्पर्श 27क,च, ट, त और प वर्ग +ढ.,ड. =27
अन्तस्थ 04य, व, र, ल 
उष्म 04श, ष, स, ह
आगत 02. ज फ़ 
संयुक्त 04 क्ष त्र ज्ञ श्र  
कुल 52वर्ण 

                       ||  इति  ||

बुधवार, 16 दिसंबर 2020

Collective Noun

A group of people, animals or a collection of things taken as a whole is collective noun.
1:-it is not a noun of multitude 
As
The jury consists of twelve persons.
The jury were divided in their opinions.
2:-people,the gentry, the elite, the police etc are always plural.
3:-Machinery, luggage, furniture, scenery, clothing etc are always singular.
4:-flock, audience, committee, government,bench,fleet etc are like common noun singular & plural.
5:-Microsoft,Sony,Apple,CNN,WHO,, Interpol,the BBC & the United Nations etc are both proper & collective. 
Example:-
Swarm a group of flies.
Pack a group of dogs.
School a group of fish.
 Other
Set,class, team, troop,bevy,flock, herd, piece, bunch, grove, library,album,heap,hive, cartoon, government, mob,mass, family, staff, crew army,gang, colony, band board etc

सोमवार, 14 दिसंबर 2020

proper & common noun

1:-जो पैदा ,निर्मित या उत्पन्न है वो common noun है।जब इनका नामकरण करते है तो नाम proper नाउन है।
2:-proper का first letter capital होगा as:-Ram
3:-एक से अधिक शब्द होने पर प्रत्येक का first  letter capital होगा।
4:-एक ही नाम के कई हो तो the first,the second आदि मुख्य नाम के बाद जुड़ेगाas Queen Elijabeth the first etc
5:-जब proper noun से पद/पदवी/वर्ग का बोध हो तो    common हो जाता हैas Maharaj,Sulthan etc
6:-जब proper noun से व्यक्ति विशेष के स्थान पर उसके समान गुन वालों का बोध हो तो वह common noun हो जाता है as:-Dara Singh was the Bhim of his time
India requires a number of  Jawaharlals
7:-proper noun का first letter common noun के रूप में भी capital ही होता है।
8:-एक ही शब्द कही common noun तो कही material noun के रूप में प्रयुक्त होता है as
Fish live in water। Fish is good for food।
9:-proper और common को देख सकते है स्पर्श कर सकते है अतः इन्हें concrete noun भी कजते हैं।
10:-proper uncountable और common countable है।
11:-common noun is a name given in common to same class or kind.
Proper means one,s own.

सोमवार, 7 दिसंबर 2020

हे लाल देह अंजनी लाल हनुमाना

हे लाल देह अंजनी लाल हनुमाना,
रौद्र रुप राम दूत राखे लखन प्राना ।
रोग-शोक चिन्ता भय भेद भावना,
नाश करें पल में भरें भक्ति भावना।।1।।
वीर बजरंगी बन्धु-बान्धव तात-मात,
कोरोना महामारी पड़े जन-जन गात।
लंकिनी कोरोना पर करें मुष्टिका घात,
सिंहिका जू मारि मानवता बचाओ तात।।2।।

।।। आनन्द-क्रन्दन ।।।

एक कथा जिसमें है जीवन का आनन्द-क्रन्दन।
सुना रहा है आपको जगत तनय मेवाती नन्दन।।
बैठा था महुआ के नीचे तिलौली तालाब तट पर।
मौत मौसम मच्छर मंत्री का चिंतन था सिर पर।।1।।
मौत कही भी बिन बुलाए मेहमान सा घुस जाती।
गिरगिट सा मौसम-मानव की चमक बदल जाती।।
मच्छर सा छली माया निज दंस सार छोड़ जाती।
मंत्री की जिह्वा जन मध्य कुछ का कुछ कर जाती।।2।।
कुछ नहीं मैं तो इन अपने ख़यालों में था तल्लीन।
बचपन की है बात बच्चा-मन था गभ्भीर  गमगीन।।
सोच रहा भूत-भविष्य को हो इनकी साया में लीन।
वर्तमान मेरा जानते तिलौली-तालाब के नर- मीन।।3।।
महुआ जड़-तालाब जल आँख-मिचौनी खेले जहाँ।
मैं मति मंद महुआ जड़ सा जड़ बन कर बैठा वहाँ।। 
अचानक जगत सुत जगत का दुःख-सुख देखा तहाँ।
आनन्द-क्रन्दन मेल ने खेल खेला था जो वहाँ महाँ।।4।।उड़ता कौवा तालाब ऊपर कांव-कांव कर रहा था।
मैंने सोचा पेट हित मछलियों को वो ढूढ़ रहा था।।
पर मेरा चिंतन तो सदा के लिए झूठा हो रहा था।
कौवा आनन्द के क्रन्दन हेतु क्रन्दन कर रहा था।।5।।
एक चिड़िया अण्डे से बाहर आते बच्चे की खुशी में।
आनन्द से झूम रही थी वह वहाँ की निज मस्ती में।।
 काग की दुष्ट दृष्टि दुष्ट दृष्टि सी झूम रही आनन्द में।
देख काग-चिड़ी आनन्द-क्रन्दन देव पेशमपेश में।।6।।
दृश्य अद्भुत आनन्द मय चिड़िया नवजात हेतु था।
सरोवर तट वसन्त का मौसम आनन्द हर ओर था।। 
 हर पेड़-पौधों के किसलय से सतरंगी परिदृश्य था।
प्रकृति के श्रृंगार में डूबा मैं अति आनन्द विभोर था।।7।
कौवे का सर मध्य ऊपर उड़ना बोलना आम ही था।
बगुले सा सूक्ष्म जीव निगलना उसका काम ही था।।
पर आज उसकी नजर अण्डे के चूज्जे पर टिकी थी।
मेरी नजर इन सबसे दूर निज चिंतन में खूब डूबी थी।।8
अचानक कौवा झपटा अड्डे सहित चूज्जे को निगला।
चिड़ी रोई चिल्लाई मुझे जगाई कह बार-बार पगला।।
मेरी दृष्टि कौवे पर पड़ी उठाया छड़ी पीछे-पीछे दौड़ा।
सोच लिया मैंने अब तो मुझे करना है कौवे को चौड़ा।।9
कौवा चतुर-चालक पंछी लाला से रोटी ले भागा था।
लाला से पाला पड़ा कौवे पर लाला भारी ही पड़ा था।।
काँव- काँव कर कौवा कर आयी रोटी गवा चुका था।
कायस्थ कौवे की कहानी कई-कई बार मैं सुना था।।10
जाको राखे साईंया मार सके ना कोय कथा सुना था।
दौड़ा लिया था कौवे को देखा टहनी आड़ में बैठा था।।
जैसे ही चोंच खोल अड्डे को रखा मैं नीचे पहुँचा था।
पत्थर मारा चूज्जा गिरा मैंने हाथों में लोक लिया था।11
हर पल नव आश नव विश्वास हार-जीत दिखा रहा।
मौत के मुँह से चूज्जे सा बचता जीवन सिखा रहा।।
मौसम का करवट मच्छर सा शामिल बाजा बजा रहा।
मंत्री-सन्तरी कहाँ कायर कागा करतब दिखा रहा।।12।
चूज्जे संग मैं हताश आँखे चिड़ी को ढूढ़ रही थी।
क्या करूँ मैं चूज्जे का सोच काया अधीर हो रही थी।।
ओ चिड़ियाँ समूह में आनन्द स्वर साथ आ रही थी।
अरे मुझे धन्यवाद दे बच्चे को ले ओ जा रही थी।।13।।
कौवे का क्रन्दन काँव काँव करना क्या कहता।
आनन्द-क्रन्दन बीच मैं तालाब तट क्या करता।।
कहीं खुशी कहीं गम अद्भुत ढंग से प्रभु भरता।
उस घटना की याद में मेरे आखों से आँसू झरता।।14।।
             ।।धन्यवाद।।







रविवार, 29 नवंबर 2020

|| CAUSATIVE VERBS. ||

The causative verb is a verb used to indicate that some person or thing makes or helps to make something happen .Have,get ,make and let are main.cause,help ,put and other are also causal or causative verbs.
Have:-to authorize someone to do something.
Get:-to convince or encourage someone to do something
Make:-force or require someone to take an action.
Let:-allow or permite someone to do something.
जब काम करने वाले का पता नहीं हो:-
Sub+causative+obj+v3 etc.
Example:-I had my house cleaned.
जब काम करने वाले का पता हो:-
Sub+causative+person+to v1 or without to v1 +etc.
Example:-
She gets her son to solve the question.
I had electrician look at my broken light.
The elder sister put the child to sleep crying.
I made the boy run.
The nurse caused the patient to drink the medicine lying.
Mother made the servant make the beds carefully.

बुधवार, 18 नवंबर 2020

√पर्यायवाची(शरीर के अंगों के)

तन:- कलेवर तनु काया वपु, लिम्ब गात जिस्म तन।
       देह के बहु नाम ये, अंग ऑर्गन बॉडी कथन।।1।।

बाल:-केश कच कुंतल कहते,अलक शिरोरुह चूल।
       जुल्फ जुल्फी चिकुर बाल, हेयर पर हो फूल।।2।।

पैर:-पद पद्म पद्माकर पग,परम पावन पूजित।
      पैर पाद पद चरण सब,फुट लेग अतिरंजित।।3।।

पेट:-पेट उदर स्टोमच कुक्ष, बेल्ली अंतः भाग।
      जठर अमाशय अंतरे, मध्य भाग का राग।।4।।

हाथ:-हाथ हैंड हस्त हरदम,स्वच्छ रखे कर पात्र।
       पाणी पंजा बाहु भुज,भुजा सवारें गात्र।।5।।

दाँत:-दाँत टूथ टीथ भावन, रदन दशन लुभावन।
       रद द्विज दन्त बदन खुर,मुख खुर रखें पावन।।6।।

जीभ:-जिह्वा रसना रसिका जु,जीभ बानी जुबान।
         वाचा वाणी रस देव,रसज्ञा टंग बखान।।7।।

कान:-कान श्रुतिपट श्रुति सब, श्रवणेन्द्रिय महान।
      श्रोत्र कर्ण एअर श्रवण,शब्दग्रह सब जान।।8।।

पसीना:-पसीना स्वेद प्रस्वेद,स्वेट श्रमकन बखान।
          श्रमसीकर श्रमविंदु, श्रमवारि हैं महान।।8।।

आँख:-आँखें जीवों की जान,लोचन अम्बक नयन।
         नेत्र चक्षु अक्षि दृग मह,ऑय नैन का चयन।।9।।

आँसू:-आँसू टेअर नयन जल,टसुआ असुआ अश्क।
         लोचन वारि अश्रु दृगजल,दृगम्ब का है मश्क़।10

गला:-गला शिरोधरा गरदन, थ्रोट टेंटुआ हलक।
        सु कण्ठ ग्रीव गलई जन,ग्रीवा होवे फलक।।11।।

गाल:-टमाटर सा लाल गाल,कपोल चीक रुखसार।
        गण्ड गलवा गण्ड स्थल,महिमा रखे अपार।।12।।

सीना:-छाती सीना वक्षस्थल,चेस्ट हिया का हार।
        वक्ष रक्ष में रत कवच,हिय का करें सम्भार।।13।।

जंघा:-जांघ जंघा जघन रान,थइ अंग्रेजी बखान।
       उरु जंघ विशाल विस्तृत,नलकिनि हंच महान।14

हथेली:-हथेली पाणितल हाथ,पंजा पाम प्रहस्त।
          करतल हस्ततल जानें,अंजलि अंजुली मस्त।15

दिमाग:-दिमाग मस्तिष्क विवेक,बुद्धि प्रज्ञा मगज।
           ब्रेन मेध भेजा अकल,मति धी राखे सजग।16

नाक:-नाक की है अद्भुत बात, जो दिखाती  जन्नत।
        नोज घ्राणेन्द्रिय घ्राण,नासिका के मन्नत।।17।।

दिल'-दिल हिय हृदय हार्ट उर, जाता जल्दी टूट।
        अन्तः करन हो मजबूत,भरोसा भी अटूट।।18।।

कमर:-कमर कमरिया लपालप, वेस्ट कही कटिभाग।
        लंका कटि मध्यप्रदेश,कॅरिहाव ह मध्यांग।।19।।

पुतली:-एप्पल ऑफ आई कौन आँखो का तारा।
          पुतली प्यूपिल कनीनी, कनीनिकान प्यारा।।20

कोहनी:-कोहनी कफोड़ि कूर्पर,एल्बो कुहनी कोहन।
            इरकोनी टिहुनी पर,रिझे राधा मोहन।।21।।

बुद्धि:-बुद्धि धिषणा प्रज्ञा मति,हर प्राणी में अक्ल।
        विजडम विवेक मनीषा,मेधा धी की शक्ल।।22।।

हाथ'-कर पाणि जोरि कर विनय, भुजा भुज बाहू बाँह।
        बाजू हस्त हाथ पाणि, आर्म ना कहे आह।।23।।

कलाई:-कलाई गट्टा प्रकोष्ठ,है पहुँचा करमूल।
         मणिबन्ध व्रिस्ट भी यही,यही है पाणिमूल।।24।।

माथा'-माथा ललाट की चमक,सोहै मस्तक भाल।
        पेशानी फोरहेड न, शीश सिर ही कपाल।।25।।

कंधा:-कन्धा काँधा ही स्कन्ध,मोढ़ा खावा अंश।
        शोल्डर सोलिडेर सदा,रखते ऊँचा अंस।।26।।

स्तन:-स्तन कुच पयोधर चूची,ब्रैस्ट सीना वक्षोज।
        वक्ष उरोरुह और उरस, स्तन्य ही है उरोज।।27।।

होठ:-होठ हमारा विरलतम,कहलाता है अधर।
       ओठ लिप्स अपर लोवर,ओष्ठ लब मुरली धर।28

चेहरा:-चेहरा मुखड़ा आनन,शक्ल फेस स्वरूप।
        अद्भुत रचना मुँह मुँख, दिखा देता सब रूप।।29।

एड़ी:-हील एड़ी ही कहावत,गोहिरा पगमूल।
       देववाणी में पर्ष्णि, पदमूल चरणमूल।।30।।

नाभि:-नवेल कस्तूरी नाह,नाभि तुन्दी  तुन्नी।
         तुन्दकुपी बेलीबटन,ढोढ़ी कहे धुन्नी।।31।।

          ।।     इति    ।।

सोमवार, 26 अक्तूबर 2020

राम चरित मानस के सिद्ध मंत्रsiddha mantras of ramcharitmanas

१॰ विपत्ति-नाश के लिये
“राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।।”
२॰ संकट-नाश के लिये
“जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।।
जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी।।
दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी।।”
३॰ कठिन क्लेश नाश के लिये
“हरन कठिन कलि कलुष कलेसू। महामोह निसि दलन दिनेसू॥”
४॰ विघ्न शांति के लिये
“सकल विघ्न व्यापहिं नहिं तेही। राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही॥”
५॰ खेद नाश के लिये
“जब तें राम ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए॥”
६॰ चिन्ता की समाप्ति के लिये
“जय रघुवंश बनज बन भानू। गहन दनुज कुल दहन कृशानू॥”
७॰ विविध रोगों तथा उपद्रवों की शान्ति के लिये
“दैहिक दैविक भौतिक तापा।राम राज काहूहिं नहि ब्यापा॥”
८॰ मस्तिष्क की पीड़ा दूर करने के लिये
“हनूमान अंगद रन गाजे। हाँक सुनत रजनीचर भाजे।।”
९॰ विष नाश के लिये
“नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को।।”
१०॰ अकाल मृत्यु निवारण के लिये
“नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहि बाट।।”
११॰ सभी तरह की आपत्ति के विनाश के लिये / भूत भगाने के लिये
“प्रनवउँ पवन कुमार,खल बन पावक ग्यान घन।
जासु ह्रदयँ आगार, बसहिं राम सर चाप धर॥”
१२॰ नजर झाड़ने के लिये
“स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी। निरखहिं छबि जननीं तृन तोरी।।”
१३॰ खोयी हुई वस्तु पुनः प्राप्त करने के लिए
“गई बहोर गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू।।”
१४॰ जीविका प्राप्ति केलिये
“बिस्व भरण पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत जस होई।।”
१५॰ दरिद्रता मिटाने के लिये
“अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के। कामद धन दारिद दवारि के।।”
१६॰ लक्ष्मी प्राप्ति के लिये
“जिमि सरिता सागर महुँ जाही। जद्यपि ताहि कामना नाहीं।।
तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएँ। धरमसील पहिं जाहिं सुभाएँ।।”
१७॰ पुत्र प्राप्ति के लिये
“प्रेम मगन कौसल्या निसिदिन जात न जान।
सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान।।’
१८॰ सम्पत्ति की प्राप्ति के लिये
“जे सकाम नर सुनहि जे गावहि।सुख संपत्ति नाना विधि पावहि।।”
१९॰ ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त करने के लिये
“साधक नाम जपहिं लय लाएँ। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ।।”
२०॰ सर्व-सुख-प्राप्ति के लिये
सुनहिं बिमुक्त बिरत अरु बिषई। लहहिं भगति गति संपति नई।।
२१॰ मनोरथ-सिद्धि के लिये
“भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहिं जे नर अरु नारि।
तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहिं त्रिसिरारि।।”
२२॰ कुशल-क्षेम के लिये
“भुवन चारिदस भरा उछाहू। जनकसुता रघुबीर बिआहू।।”
२३॰ मुकदमा जीतने के लिये
“पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।।”
२४॰ शत्रु के सामने जाने के लिये
“कर सारंग साजि कटि भाथा। अरिदल दलन चले रघुनाथा॥”
२५॰ शत्रु को मित्र बनाने के लिये
“गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई।।”
२६॰ शत्रुतानाश के लिये
“बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई॥”
२७॰ वार्तालाप में सफ़लता के लिये
“तेहि अवसर सुनि सिव धनु भंगा। आयउ भृगुकुल कमल पतंगा॥”
२८॰ विवाह के लिये
“तब जनक पाइ वशिष्ठ आयसु ब्याह साजि सँवारि कै।
मांडवी श्रुतकीरति उरमिला, कुँअरि लई हँकारि कै॥”
२९॰ यात्रा सफ़ल होने के लिये
“प्रबिसि नगर कीजै सब काजा। ह्रदयँ राखि कोसलपुर राजा॥”
३०॰ परीक्षा / शिक्षा की सफ़लता के लिये
“जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी॥
मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती॥”
३१॰ आकर्षण के लिये
“जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू। सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू॥”
३२॰ स्नान से पुण्य-लाभ के लिये
“सुनि समुझहिं जन मुदित मन मज्जहिं अति अनुराग।
लहहिं चारि फल अछत तनु साधु समाज प्रयाग।।”
३३॰ निन्दा की निवृत्ति के लिये
“राम कृपाँ अवरेब सुधारी। बिबुध धारि भइ गुनद गोहारी।।
३४॰ विद्या प्राप्ति के लिये
गुरु गृहँ गए पढ़न रघुराई। अलप काल विद्या सब आई॥
३५॰ उत्सव होने के लिये
“सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं।
तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु।।”
३६॰ यज्ञोपवीत धारण करके उसे सुरक्षित रखने के लिये
“जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग।
पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग।।”
३७॰ प्रेम बढाने के लिये
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥
३८॰ कातर की रक्षा के लिये
“मोरें हित हरि सम नहिं कोऊ। एहिं अवसर सहाय सोइ होऊ।।”
३९॰ भगवत्स्मरण करते हुए आराम से मरने के लिये
रामचरन दृढ प्रीति करि बालि कीन्ह तनु त्याग । 
सुमन माल जिमि कंठ तें गिरत न जानइ नाग ॥
४०॰ विचार शुद्ध करने के लिये
“ताके जुग पद कमल मनाउँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ।।”
४१॰ संशय-निवृत्ति के लिये
“राम कथा सुंदर करतारी। संसय बिहग उड़ावनिहारी।।”
४२॰ ईश्वर से अपराध क्षमा कराने के लिये
” अनुचित बहुत कहेउँ अग्याता। छमहु छमा मंदिर दोउ भ्राता।।”
४३॰ विरक्ति के लिये
“भरत चरित करि नेमु तुलसी जे सादर सुनहिं।
सीय राम पद प्रेमु अवसि होइ भव रस बिरति।।”
४४॰ ज्ञान-प्राप्ति के लिये
“छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा।।”
४५॰ भक्ति की प्राप्ति के लिये
“भगत कल्पतरु प्रनत हित कृपासिंधु सुखधाम।
सोइ निज भगति मोहि प्रभु देहु दया करि राम।।”
४६॰ श्रीहनुमान् जी को प्रसन्न करने के लिये
“सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपनें बस करि राखे रामू।।”
४७॰ मोक्ष-प्राप्ति के लिये
“सत्यसंध छाँड़े सर लच्छा। काल सर्प जनु चले सपच्छा।।”
४८॰ श्री सीताराम के दर्शन के लिये
“नील सरोरुह नील मनि नील नीलधर श्याम । 
लाजहि तन सोभा निरखि कोटि कोटि सत काम ॥”
४९॰ श्रीजानकीजी के दर्शन के लिये
“जनकसुता जगजननि जानकी। अतिसय प्रिय करुनानिधान की।।”
५०॰ श्रीरामचन्द्रजी को वश में करने के लिये
“केहरि कटि पट पीतधर सुषमा सील निधान।
देखि भानुकुल भूषनहि बिसरा सखिन्ह अपान।।”
५१॰ सहज स्वरुप दर्शन के लिये
“भगत बछल प्रभु कृपा निधाना। बिस्वबास प्रगटे भगवाना।।”

 

मंगलवार, 29 सितंबर 2020

।।मित्रता -खण्ड काव्य।।।

       ।।।मित्रता -खण्ड काव्य।।।         
          ।।   प्रथम भाग   ।।
बन्दउँ बन्धु बजरंगी,सखा सुग्रीव निःकाम।
हे राम बन्धु कृपालु, पूरो सब मन काम।।एक।।
मित्रता नहीं, दासता 
यह है मनुष्यता,सहृदयता,पवित्रता।
शुभ चिन्तक की चिन्ता
हमदर्द मनमीत की सहभागिता।।1।।
रामायण  से आज-तक
महाभारत से सद्ग्रन्थ तक।
इतिहास से वर्तमान तक
काल से महाकाल तक।।2।।
हर काल ग्रन्थ गढ़े गये
पाठकों द्वारा पढ़े गये।
देव-दानव मानव बनाये गये
मानवेतर भी मानव- मित्र पाये गये।।3।।
जगत तनय मेवाती नन्दन गिरिजा
निज बन्धु शंकर सुवन संग तिरिजा।
मित्रता काव्य सृजन विचार सिरिजा
अजर अमर गुननिधि भव-भाव बिरिजा।।4।।
कृत से कलि तक
इस धरा पर अरि मित्र  रहे।
भूत से भविष्य तक
भूत अस्तित्व बहु भाँति बहे।।5।।
निज बन्धु कृपा तक
निज अस्तित्व रहे ही रहे।
बन्धु हीन बन्धु एक
कबन्ध सा शापित जीवन जी रहे।।6।।
बन्धु युक्त बन्धु एक
यति निर्वासित भी राजा बन जी रहे।
सुकाल से दुकाल तक
सर्वत्र सूर्य सा दस दिसि दमक रहे।।7।।
देव दनुज मनुज तक
बन्धुत्व का हर पाठ हैं पढा रहे।
निजता से समर्पण तक
सब भूतों में अपनी गाथा फैला रहे।।8।।
उनकी कृपा गिरिजा आज
मित्रता पर लेखनी चला रहे।
सुकंठ विभीषण राम आज
मर्यादित मित्र बने रहे बता रहे।।9।।
त्याग समर्पण भेद
मिटा देते सब खेद।
मित्रता न देखे छेद
रक्त भले जो जाय स्वेद।।10।।
परिवार से मिला पाठ
देता सब खाई पाट।
तात तात हा तात तात
सब रिश्तों की कहता बात।।11
तात अनुपम अद्वितीय है
सब रिश्तों का  सम्बोधन है।
मित्र का भी अवबोधन है
निज का मन-मोहन है।।12।।
तात सब गात चले
निजता भूला चले।
मानवता लगा गले
मित्रता हो बल्ले बल्ले।।13।।
बैर खैर खाँसी खुशी कहाँ
छिपती कभी इस जहाँ।
मित्रता को देखे यहाँ
आँख फाड़ सब जहाँ।।14।।
घर-बाहर जग में पग-पग,
मित्र-शत्रु हैं भरे पड़े।
कौन पराया कौन अपने संग,
जान न जाये खड़े-खड़े।।15।।
जननी-जनक सम बन्धु न कोई,
सहोदर-सहोदरा भी बन्धु होई।
गुरु सम बन्धु जग मह बिरले कोई,
ईष्ट देव सा बन्धु कतहु कोई कबहु न होई।।16।।
अर्थातुर संसार में अर्थ सगा हो जाय जब,
सारे रिश्ते खाक मिला हर पल नर रोये तब।
भाई बन कसाई रिश्तों की लाश जलाये जब,
विश्वास करें कैसे मर्यादा मर जाये जब।।17।।
मर्यादा पुरुषोत्तम की धरती का कण-कण,
राजस्थान के विरों ने लड़ा है यहाँ महारण।
द्वापर राम कलि पृथ्वीराज ने दिया शरण,
मलेक्ष-बिच्छू विषधर बन लाया मरण।।18।।
विश्वास मित्र पर पग-पग राम ने किया,
हनुमान जटायु सुकंठ बिभीषण को अपना लिया।
कथा अलौकिक मित्रता की हमको बतला दिया,
रत्ती भर सन्देह कहाँ इस रिश्ते में समझा दिया।।19।।
पति-पत्नी सखा धर्म निभाया कैलासी ने,
सती पति यति बन बैठे साथ निभाया काशी ने।
रिबर्थ सती का साथ दिया मैना तात हिमालय ने, 
जगत करे बन्दन तभी सदा ईश शम्भु भवानी ने।।20।।
सखा धर्म की अद्भुत गाथा से भरा यह देश,
रामायण में मानव ही क्या हर भूतों का सन्देश।
मित्रता रक्षा हेतु मित्रों में धरा जहाँ है बहु वेश,
मित्र हित सर्वोपरि देते जन-जन को संदेश।।21।।
जल थल नभ  चारी जड़-चेतन जीव धारी,
मित्रता की मिशाल मिलते भारी-भारी।
काग-विहगेश बजाते खूब मिलकर तारी,
कोई न बचे जो करे कर्म यहाँ कारी-कारी।।25।।
राम चरित भरा  पड़ा है सखा धर्म के कर्मों से,
मेरे बन्धु महाबली की रोमावली भरी है मर्मों से।
राधा-कृष्ण की सब लीला हैं ऊपर सब धर्मों से,
नर-नारायण रथी-सारथी हैं दूर जहाँ के शर्तों से।।26।।
कौन्तेय कर्ण का कवच काफी कुछ कहता,
राधेय सूत पुत्र बन है जग में जग का सहता।
मित्रता कीअद्भुत मिशाल जो कृष्ण सम रचता,
कलम अवरुद्ध हो जाती पूर्ण चरित कौन कहता।।27।।
कृष्ण-सुदामा श्रीदामा की दाउ से तकरार,
प्रेम भरा रस से सना मित्रता का भरमार।
निःस्वार्थ करते मित्रता न करते तकरार,
विश्वास अनूपम अनूठा है जीवन का सार।।28।।
कपोल-कल्पित कामी कथा क्यों कहना,
खर-श्वान सुकर बन अब किसे है रहना।
कांत कान्ता बनें परा संगी क्यों बनना,
सखा ही नहीं स्वामी सेवक भी है बनना।।29।।
मित्रता की जग-कथा को हम गाना चाहते हैं,
भूत सिख वर्तमान भविष्य सँवारना जानते हैं।
वर्तमान-नीव पर भविष्य-महल ढालते हैं,
जो भूत त्रुटि को निज गुरु-सखा मानते हैं।।30।।

           ।।     द्वितीय भाग   ।।
राम बन्धु हर प्राणी के, मेरे बन्धु तुम ईश।
बंधुत्त्व की डोरी में, बाँधो  मेरे शीश।। दो।।

मैं उलझू कभी न सुलझू रहू तेरे साथ,
नदी सागर सा रिश्ता बने नाउ मैं माथ।
गाऊ मैं सदा यहाँ सखा धर्म का गाथ,
हे नाथ डूबने से बचाना पकड़ मेरा हाथ।।1।।
मित्रता में स्वार्थ कितना साग में नमक जितना,
निज का त्याग उतना बरगद के छाँव जितना।
विश्वास भी हो उतना खुद पर करते जितना,
तड़प  हो अपनों जैसा तो मित्रता बनाये रखना।।2।।
आज इन गाथाओं से सबक तो ले मन,
मारुत नन्दन-रघुनन्दन का मान तो जन।
मिशाल हैं ये मानव को सिख देते प्रति क्षन,
इनको माने जाने इस धरा का कन-कन।।3।।
सखा राम के बहुतायत मिलते हैं,
राम सखा जीवन में सुख भरते हैं।
कोल किरात भील वनवासी रहते हैं,
सब सबकी मर्यादा हर पल रखते हैं।।4।।
मर्यादा सखा धर्म का आन है,
यह सद  मानव की पहचान है।
कमल नाल सा कोमल ज़हान है,
बनाता हर सखा को महान है।।5।।
राम सखा के सब सखा हो जाते,
राम सखा हैं जन -जन को भाते।
निषाद राज को मुनि गले लगाते,
भेद-भाव को सखा जड़ से मिटाते।।6।।
भेद जहाँ फिर सखा कहाँ,
आते जाते  सबक सिखाते तहाँ।
एक नहीं अनेक हैं सखा धर्म महाँ,
अनुज अग्रज तात मात सा रिश्ता यहाँ।।7।।
राम युग से कृष्ण युग तक मित्र मिले, 
कोई गले कोई अवनि तले मिले।
कोई पलाये तो कोई हैं पले,
कोई बुरे हुवे तो कोई भले भले।।8।।
मित्र तो एक-दो ही भले,
जो प्रति पल के हिय में ढले।
जिस सा न प्रिय कोई महि तले,
निज स्नेह-सुधा न्यौछावर कर चले।।9।।
त्रेता राम  द्वापर कृष्ण की कहे,
सुकंठ बिभीषण भी मित्र रहे।
हनुमान सखा की कौन कहे,
रज कन सा सब त्याग सब सहे।।10।।
सखा सहोदर सा सगा सदा,
दूना भी अपनों से यदा-कदा।
प्रिय प्राणों सा हरे सब विपदा,
सखा सखा की ओढ़े हर आपदा।।11।।
सखा सोच निज सोच बने,
निज बिपत्ति को छोड़ चले।
दोस्त हित निज को तले,
हो दोस्त का हित हो न अपना भले।।12।।
सुग्रीव राम मिताई है जग में छाई,
ब्रह्म बानर बरबस बाधे बजंरगी भाई।
अग्नि सम्मुख जो शपथ दिलाई,
दोनों ने प्राणपण से इसे निभाई।।13।।
आज भी तो होती हैं अग्नि सम्मुख सगाई,
शंकर पार्वती ने शायद प्रथम रस्म निभाई।
सेवक स्वामि सखा धर्म जगदीश ने बनाई,
हर ने हर पल है अपनी रीति खूब निभाई।।14।।
पर कब जाती टूट झट-पट सब सगाई,
सखा धर्म की ज्योति है जब नहीं जलाई।
विवाह दो अनजानों मध्य सखा धर्म सा भाई,
जिसने जाना उसने ही है खूब निभाई।।15।।
हर की तरह रिश्तों में मित्रता होनी चाहिए,
सबको अपनी मित्रता निभानी चाहिए।
नाम भेद से भेद भी रखना चाहिए,
जो हैं स्वजन उनसे रिश्ता निभाना चाहिए।।16।।
इन्सान को इन्सान से ही नहीं सबसे बनानी चाहिए,
प्राणी-पादप पर प्रीति परखनी चाहिए।
सभी मित्र है इक दूजै के ऐसा समझना चाहिए,
हो जाय सभी सबके कुछ ऐसा करना चाहिए।।17।।
ऐसा किया राम ने ,
मंगल मनाया जंगल में।
भालू कीस की मिताई ने,
साथ दिया हर दंगल में।।18।।
जब सखा दुःख में होता है,
बन्धु मित्र कब सोता है।
हर एक पल मित्र मित्र रोता है,
मित्र हित मित्र भले अपना सब खोता है।।19।।
भौतिक दिखता लौकिक दिखता,
परलोक अलौकिक मिलता।
आँखों देखी ही सब कहता,
मित्रता तो सब काल रहता।।20।।
पिता की जूती पुत्र पाव आ जाती जब,
सब कहते पुत्र मित्र हो जाता तब।
सच है हम कहतें पर माने कब,
बहुत देर हो जाती जब।।21।।
मित्र मित्र ही नहीं जब तक न  बन जाय भाई,
छोटे-बड़े से परे सुख-दुःख की परछाई।
मित्र-मिरर झूठ न बोले बने कसाई,
हर पीड़ा हरन है सब रिश्ता निभाई।।22।।
आईना-सखा आईना साफ़-साफ़ दिखाई,
साथ न छोड़े बना रहे परछाई।
काम करे कथन कहे मित्र हित रत भाई,
सब तज सच्चा दोस्त बृक्ष बन जाई।।23।। 
विद्या जू सदा सर्वदा सच्चे मित्र होते,
देश ग्राम परदेश शहर न वें खोते।
पद मान आन शान के वश न होते,
बीज सदा मित्रता का ही बोते।।24।।
लग जाय लगन इक तरफा भी कभी-कभी,
जग में बहुत हैं रिश्ते निभाते पर न सभी।
कांच और हीरा सम मित्रता मानो अभी,
गुन जानो अवगुन पहचानो करौ मित्रता तभी।।25।।
हाई टेक जमाना है हाई टेक हो जाना,
अपडेट सदा ही रहना भेद नहीं कहना।
व्हाट्सएप चैट मित्रों को भी है सहना,
फेसबुक पर बिना फेस के मित्रों से है बचना।।26।।
सहना बचना कहना मित्रता का गहना,
हर रिश्तों में ही इन्हें पहनें रहना।
दूर न करना इन्हें भले विपदा हो बहना,
विपदा-बहना घर छोड़ेगी एक मित्र का कहना।।27।।
धर्म रथ सवार धर्म को दोस्त जान,
धर्म-मित्र का जो करता  सम्मान।
धर्म ध्वजा उसकी फहराये इस ज़हान,
कोई न कर सके कही तेरा अपमान।।28।।
बात मित्रों की चल पड़ी है अब,
मित्रता अनमोल को माने कब।
उसूलों में बध जाते हैं हम जब,
तोड़ सभी बन्धन मित्र आगे आ जाते तब।।29।।
शिव-शिवा की मित्रता से सिख ले चले,
राम-शंकर दोस्ती  को हम अपनाये भले।
रामेश्वर में दोनों पूजित बले बले,
करते हैं जन जन का हरदम भले भले।।30।।


        ।।।    तृतीय भाग   ।।।

 मेरे सखा बजरंगी,पुकारू बार बार।
मित्र का हर भाँति तुम्हें,करना है उद्धार।।तीन।।

राम सखा को सबने भेंटा,
छोटा हो या हो वह मोटा।
मारे-मारे फिरता छोटा,
मिलत मित्र हो गया मोटा।।1।।
सुकंठ की अद्भुत गाथा है,
बाली जिनका भ्राता है।
हक इनका सब छीना है,
किष्किंधा वास दीना है।।2।।
बन्धु बजरंगी रहते साथ,
जाम्बवन्त मंत्री का हाथ।
बन बाभन नाइ कर माथ,
राम-लखन को लाये साथ।।3।।
कथा सकल जग जाना है,
सबका आशिर्वाद पाना है।
गिरिजा शंकर ने ठाना है,
इनकी कथा को गाना है।।4।।
मित्रता में भी बहु बात छिपा है,
काम क्रोध लोभ माया मोह छिपा है।
आस विश्वास परिहास बहु घात छिपा है,
स्वार्थ परमार्थ विश्वासघात छिपा है।।5।।
विकाश छिपा विनाश छिपा राज छिपा है,
इस ज़हान जन-जन मध्य एक काज छिपा है।
मित्र रूप में कौन जाने अमित्र छिपा है,
कपट दम्भ पाखण्ड द्वेष साकार छिपा है।।6।।
हर पग देख दिखा कर रखना है,
इस समय के ठगों से बचना है।
ऑन लाइन ऑफ लाइन से सम्हलना है,
मौकापरस्तों से दूर रहना है।।7।।
मित्रता की कसौटी विचित्र हो गई है,
मित्रों की लालसा सुरसा मुख हो रही है।
कालनेमी कपट मुनि का रूप ले रही है,
ऐसे में हनु मान पर आस्था सम्बल दे रही है।।8।।
त्याग तपस्या निःस्वार्थ सेवा देती मेवा है,
स्वार्थ दोनों का श्रम साध्य कलेवा है।
देव दनुज नर-नारी का यह टेवा है,
प्रीति प्रेम मित्रता का परेवा है।।9।।
रीति नीति बीच स्वार्थ प्रीति कराता है,
मानव दानव साधु सुर एक सुर गाता है।
हर अंश इस सत्य को अपनाता है,
नहीं अपनाया तो एकला ही रह जाता है।।10।।
कथा सखा की सखा धर्म की,
कृपासिन्धु रघुनाथ की।
हनुमान तात सुकंठ की,
मारूति की रचाई सखाई की।।11।।
भयाक्रांत सुग्रीव देखा दो रघुवीर,
आश्चर्य चकित मुँह फाड़े शोच पड़ा था धीर।
ऋक्ष पति जाम्बवान थे बड़े गम्भीर,
हनुमान निश्चिंत कि हर जायेगी सब पीर।।12।।
सब सन बड़ाई प्रीति नीति रीति सब राखी,
सुग्रीव-राम मिताई के बन्धु हमारे साखी,
शंका सुग्रीव की निकाली दूध ज्यो माखी,
आज सभी ने है दया रस ठीक से चाखी।।13।।
एक हाथ से ताली नहीं बजा करती,
एकतरफा मित्रता क्या शत्रुता भी न हुआ करती।
स्वार्थ बिंदु सब रिश्तों में मिठास भरा करती,
कोई अछूता न न लेखनी झूठा लिखा करती।।14।। 
सच्ची मित्रता केवल परवान चढ़ा करती,
एकतरफा ही नहीं द्वितराफ़ा हुआ करती।
खाई नहीं खोदती पुल बनाया करती,
दान-प्रान नहीं देती-लेती मान दिलाया करती।।15।।
यहीं बात घर-परिवार पर भी घटती है,
परस्पर प्रेम आत्मीयता बढ़ाया करती है।
आपस की होड़ सुख शान्ति गवाया करती है,
मित्रवत भावना कटुता मिटाया करती है।।16।।
भाई-भाई का जहाँ नहीं होता,
वहाँ मित्र-मित्र का होता।
भाई संग भाई भले रोता,
पर मित्र संग मित्र निश्चिंत हो सोता।।16।।
खुद को हर तरह से बड़ा समझे जब भाई,
बाली की हाल होती उस भाई की भाई।
त्यागे भाई की हनुमान करें भरपाई,
उसकी रक्षा में रघुराई भी आ ही जाई।।17।।
सब कुछ पाकर सुग्रीव निश्चिंत हुआ आज,
मित्र पर इतना भरोसा छोड़ दिया सब काज।
भौतिक सुख में डूबा छोड़ मंत्रियों पर राज,
मित्र का सब मित्र का मानने में क्यों लाज।।18।।
गिरि प्रवर्षण राम मन नहीं पाता विश्राम,
मित्र-बन्धु आनन्द में नहीं खलल का काम।
बन्धु-सखा एकसे मानें पुरुष उत्तम राम,
बन्धु को भेजा सखा पास याद दिलाने काम।।19।।
हनुमान तात  बनाते बिगड़ी सब बात, जी
संवारते सगरी रहते हर डाल-पात।
सखा सखा मन की जान लेता हर बात,
प्रतिपल सावधान चूकते नहीं दिन हो या रात।।20।।
निज राज तृन सा त्याग बन्धु काज रत रहना,
रीति सखा हनुमान की अद्भुत है क्या कहना।
बन्धु बान्धव करें अनुकरण माने सब कहना,
सबके संग प्रीति एक सी रखे जब श्रेष्ट नयना।।21।।
कपि ऋक्ष भालू सब बुला लिये,
सुग्रीव संग खुद हो लिये।
रामानुज संग बहु वीर किये,
राम से आज सब मिले आकर हिये।।22।।
मित्र ने मित्र पर सब कुछ वार दिया,
मित्र ने मित्र का कुछ भी नहीं लिया।
लक्ष्य पाने दस दिसि विरों को दौड़ा दिया,
सुलझे वीरों को एक साथ किया।।22।।
जहाँ  सखा हनुमान सुलझें उलझें काम,
लेकर प्रभु का नाम कूद पड़े संग्राम।
जानत आप सब सब परिणाम,
बार-बार कहने-सुनने से मन लेता विश्राम।।23।।
पूरी कथा राम हनुमान सुकंठ की,
त्याग समर्पण आस-विश्वास  की।
करने योग्य सब कुछ करने की,
न करने योग्य को न परखने की।।24।।
झूठी दिलासा मक्कारी से दूर,
मित्रता निभाये भरपूर।
शत्रु स्वप्न करें चकनाचूर,
मित्र बढ़ा सखा धर्म निभाने को आतुर।।25।।
सखा बना विभीषण को विस्तार किया,
सबने मिलकर सद कर्म लो रफ्तार दिया।
सद के साथ सद मित्रों ने हाथ थाम लिया,
मित्रों ने त्रिलोक बिजेता का काम तमाम किया।।26।।
समान गुण-धर्म मित्रता निभा करती,
असमान रुप-रंग मित्रता नहीं देखती।
जाति-पाति वर्ण योनि से मुक्त रहा करती,
प्रकृति मित्रता की प्रकृति बनाया करती।।27।।
स्वभाव का स्थान बहुत है इसमें,
हंस-काग सा विभाग बहुत हैं इनमें।
हंस-मित्र निज गुन भरता है सबमें,
कौआ निज छबि दिखाता है जग में।।28।।
जीवों बीच अद्भुत मित्रता देखी,
आप सबने बहु बार है यह पेखी।
मित्रता नहीं है करना देखा-देखी,
यह तो जगत में है एक गुण विशेषी।।29।।
बन्धु-सखा संग मिलते मोती,
सखा शत्रु जब हो जाये तो फटती धोती।
विश्वासघाती मित्र हरते जोती,
धर्मधारी मित्र संग धरा चैन से सोती।।30।।

        ।।चतुर्थ भाग।।

मंगलमय अभिमत दाता,बन्धु-सखा मम राम।
जिनकी कृपा लवलेश, बन जायें सब काम।।चार।।

मित्रता बड़ा अनमोल रतन,
रक्षा में इसकी न करना पड़े जतन।
मनुज को रखना है बंधुत्त्व भाव धरन,
अन्यथा सूखे पात सा बेमौसम  पतन।।1।।
सखा धर्म की कथा में नाम कृष्ण का आता,
नर-नारायण मध्य जिसने बनाया अद्भुत नाता।
रथी-सारथी रुप भी जिन्हें खूब है भाता,
कैसे भी शत्रु को इन्हें है धूल चटाना आता।।2।।
इनको जाने इस धरा का हर नर-नारी,
इनकी व्यथा-कथा भी जग में न्यारी।
राम सा जिनको पूजें नित त्रिपुरारी,
गुन गाहक वाहक अद्भुत बाँटे विचार भी भारी।।3।।
राधा-कृष्ण का सखा प्रेम पूजे दुनिया सारी,
प्रेममूर्ति से प्रेम आज भी कण-कण का है जारी।
मीरा ने विष, कृष्ण प्रेम में अमृत सा पी डारी,
वृंदा वन में कान्हा की साख सदा है भारी।।4।।
गोकुल-बरसाना के पेड़ पात सखा भाव से रहते,
ग्वाल-बाल संग गाय-बछड़े  प्रीति यहाँ पर करते।
पाथर मिट्टी जल वायु मृग कृष्ण-कृष्ण जह रटते,
ग्वाल बालाओं के रोम-रोम जह सखा प्रेम में रमते।।5।।
सखा भाव की प्रेम सरिता हर मन में है बहती,
कालिन्दी भी जिन्ह पायन्ह हेतु दिन-रात तरसती।
जगत तनय मेवाती नन्दन की अखियाँ भी कहती,
कृष्ण प्रेम रस रुप माधुरी को सदा हम चखती।।6।।
प्रेम-वारि से सखा-बाग के बंधुत्त्व-पुष्प हो सिंचित,
पंखुड़ी सखा स्नेह की मुरझाये कभी न किंचित।।
देख मित्र राग बाग को शत्रु सदा हो जाये मूर्च्छित,
है सबका मन व्याकुल करने सखा भाव अर्जित।।7।।
मित्रता का पाठ भाव अर्थ ज्ञान मान के रुप,
श्री कृष्ण का तन मन सखा प्रेम का स्वरुप।
नर-नारी का भेद नहीं त्रिभंगी देखें सदा प्रतिरुप,
प्रेम भाव में माता-सखा प्रेमी को दिखायें विश्वरुप।।8।।
राधा के सखा सखियन्ह के सखा,
सखा के सखा भारत भूमि ने परखा।
दीन हीन जन के सखा है सबने लखा,
मित्र-शत्रु  सबके सखा सब ग्रंथन ने लिखा।।9।।
सुदामा के साथ सखा का अप्रतिम रुप दिखा,
सम्पूर्ण विश्व में अनुकरणीय कथा लिखा।
कृष्ण-सुदामा ने  मित्रता का अद्भुत रुप रखा,
राजा रंक को अंक लगा बनाया पूजित सखा।।10।।
मित्रता करना सरल प्रण सा है,
बातों बातों में खाते कसम सा है।
बेईमानों के निःसार वचन सा है,
नहीं हरगिज नहीं यह स्वधर्म सा है।।11।।
मेरे सखा की आओ करे इस समय की बात,
जब द्वापर में श्रीकृष्ण बने द्वारिका नाथ।
सत्यभामा भामिनि मानिनी का साथ,
चक्र सुदर्शन दाऊ गरुण करतें परमार्थ।।12।।
कर्ण-सुयोदन संग जहाँ गाते नित नव गाथ,
भीम-हनु भी रचते अपनी-अपनी हों साथ।
दीन जन ऊपर रहता सदा सर्वदा बन्धु हाथ,
त्रेता से द्वापर तक मेरे सखा नवाते माथ।।13।।
श्रेष्ठ कौन कहाँ अपने को समझ बैठें,
अपने रुआब में आकर अकड़ में ऐंठे।
निज को पर से हेकड़ी में दूर कर तने बैठें,
टूटता भ्रम जब समय-कसौटी उठ बैठें।।14।।
समय बड़ा बलवान है वही पहलवान,
रखता जो कृष्ण सा सब जन का मान।
मेरे सखा सा मेरे सखा महिमावान,
तोड़ते जो भ्रम पल में पकड़ कर कान।।15।।
मित्र मित्रों का भ्रम तोड़ मित्रता निभाता,
कागा ने तोड़ा गरुड़ भ्रम जग गाता।
तोड़ भ्रम निज बन्धु का बन्धु ने निभाया नाता,
भीम दाऊ अर्जुन कथा है जग गाता।।16।।
सखा सत्यभामा सुदर्शन सरकार,
गरुण गति गर्व तोड़े भरे दरबार।
मित्रता सबसे निभाई सिखाई सरकार,
दिखाई रास्ता तोड़ गर्व सबका एकेबार।।17।।
मान मन सम्मान सह रास्ता दिखाये जो,
सद सखा सदा वही आन मान बढ़ाये जो।
सुख में नहीं दुःख में दामन थामे जो,
सबके सामने खुलेआम काम आवे जो।।18।।
मेरे सखा सर्वकाल सदा सबके काम आये हैं,
मुझसे भी पग-पग सखा धर्म निभाये हैं।
निभायेंगे सर्वदा सखा साथ बात सत्य कहाये हैं,
मित्रता पर उनकी कृपा ही लेखनी चलाये हैं।।19।।
अर्जुन-कृष्ण है सखा सब जानते हैं,
कृष्णा-कृष्ण भी सखा पाण्डव जानते हैं।
प्रेम पथ असि धारा पर बन्धु चलना जानते हैं,
निंदा-स्तुति त्यागी ही मित्रता निभाना जानते हैं।।20।।
बनी बात बिगरे सिगरे सखा संग सँवरे,
जहाँ गिद्ध सा आँख जमाये नर भँवरे।
हताश निराशा में डूबे को राह नहीं जब रे,
द्रोपदी चीर सा लाज बचाये मित्र ही तब रे।।21।।
समय धार को पार  कराये बेड़ा सा,
निशि निराशा नाश करे रवि कर सा।
जीवन समर में लड़ना सिखाये पार्थ सा,
धर्म ध्वजा को फहराये पन राखे राम सा।।22।।
मित्रता पर मरना नहीं जीना चाहिए,
रब ने बनायी सब सबको समझना चाहिए।
कुमार्गी मित्र को सन्मार्ग बताना चाहिए,
जीवन में मिले हर रिश्ते को सँवारना चाहिए।।23।।
अपनी तरफ से न हो ग़लती,
माफ़ करो उसकी ग़लती।
जब तक न दुहराई जाय गलती,
बन्धु मित्रता में माया नहीं चला करती।।24।।
माया कृष्ण की दासी दौलत बरसाती,
खोज लो इनमे घमंड ले दिया बाती।
सुदामा से अकिंचन को बनाया साथी,
विनम्रता की मूर्ति पूजित सारथी।।25।।
ल द से दूर कर्म कराये भरपूर,
धर्म असि धार पर दौड़ाये भरपूर।
धर्म हेतु त्यागी बनावे भरपूर,
पर हित रत रहना सिखाये भरपूर।।26।।
सखा हो या भाई-बन्धु साई,
जो जैसा उससे वैसा निभाई।
रिश्तों को निभाने में कैसी कोतहाई,
संग माँगे जो तो संग खूब निभाई।।27।।
संसार मह मित्र सह खूब रिश्ते हुवा करते,
जो अपने-अपने मर्यादा पर पलते।
मर्यादा भंगी से रिश्ते नहीं निभा करते,
दुर्योधन से भी तो हीत-मीत हुवा करते।।28।।
सुयोधन था दुर्योधन बन बैठा,
रीति-नीति की बातों को भूला बैठा।
रिश्तों की मर्यादा तोड़ बैठा ,
अपनों को पराया मान बैठा ।।29।।
ऐसे में मित्रता-बन्धुता कहाँ,
सोच नहीं निज से इतर जहाँ।
प्रारब्ध तो देता है सब सुख यहाँ,
निज कर्म से खो देतें सब कुछ तहाँ।।30।।

        ।।पञ्चम भाग।।

दीन-हीन सह मम सखा, पूरे सब मन काम।
प्रेम मूरति बन हिय में,करें सदा निज धाम।।पंचम।।

मित्रता की बात करना मेरे बस में नहीं,
सदगुरु बन बन्धु मम मार्ग दिखाते वहीं।
वायु पुत्र वायु सा चलना सिखाते महीं,
मित्र हैं मित्र धर्म सदा निभाते  सही।।1।।
जहाँ कहीं भी बात चलती मित्रता की,
वहाँ छाती कथा कौन्तेय कर्ण रवि पुत्र की।
यश कीर्ति फैली है रवि किरन सा राधेय की,
निज धर्म के धनी दानी अपमानी वीर की।।2।।
जन्म से मरण तक इनकी कथा जग जानता है,
जगत तनय मेवाती नन्दन यह मानता है।
मित्रता इनकी अद्भुत अतुलनीय जग जानता है,
प्रेरणा हैं स्वयं कर्ण मित्रों की मित्र मानता है।।3।।
भूल-चूक हर नर से हो ही जाती,
नारी की मति भी तो कभी फिर ही जाती।
विधि वश संग कुसंग सदसंग हो ही जाती,
रत्नाकर को बाल्मीकि की गति मिल ही जाती।।4।।
आहूत मन्त्र का सफल परीक्षण का फल,
रवि प्रसाद बना कुन्ती के लिए मल।
प्रसाद दिया बहा माता ने बहते जल,
राधा ने दिया तब इस फल को जीवन-जल।।5।।
रवि सा तेज दिव्य कवच-कुण्डल धारी,
जीने को बाध्य यहाँ जीवन भारी।
समय-पंछी बैठे कभी इस कभी उस डारी,
देखे दिखाये कभी उजला कभी कारी।।6।।
दुर्योधन का संग मिला जाने दुनिया सारी,
काल चक्र के चक्र में कर्ण फ़सा अब भारी।
एहसान तले वीर दबा जैसे बादल से दिनचारी,
दबा दबकर रह गया उबर न पाया जीवन सारी।।7।।
विधि बस सुजन दुर्जन का हाथ पकड़ा,
नहीं दुर्जन ने सुजन का हाथ जकड़ा।
मिला आज उसे बलि-पशु तगड़ा,
निपटाना चाहता जो था अपना झगड़ा।।8।।
कुछ भी हो मित्रता हुई आज ,
आतुर था दुर्योधन बनाने को निज काज,
 मित्र को तो रखना है वचन की लाज,
माया वशअपनाया अंग आज।।9।।
अंगराज का राज बना गले का फ़ास,
पर मित्रता का नहीं होने दिया उपहास।
संयम धैर्य तप ज्ञान मान का ह्रास विकास,
वार दिया जीवन निज तन बना लास।।10।।
सत्संग सदा मुद मंगलकारी,
कुसंग नसावै जीवन सारी।
सज्जन संग कुसंग बजावै तारी,
कुसंग प्रभाव फैले ज्यों महामारी।।11।।
काजल की कोठरी होती कारी-कारी,
काजल-कलंक की लीक भी बिगाड़े सारी-सारी।
कैसो भी सयानो को न छोड़े काजल कारी,
बन्धु हाथ माथ धर कलंक सारी धो डारी।।12।।
बन्धु का साथ ईश का वरदान है,
मित्रता निभाना मित्र की शान है।
कर साथ एक बार रखना मान है,
अमिय हो गरल हो करना पान है।।13।।
एक बार ही जीवन धन्य हुवा करता,
एक बार ही तन प्राणों को तजा करता।
एक बार ही व्रती प्रण लिया करता,
एक बार ही समय अवसर दिया करता।।14।।
शंकर सा रहा अवढरदानी आजीवन,
अपमान-कालकूट को पिया आजीवन।
निज मित्र को बचाता रहा आजीवन,
सखा धर्म की प्रतिमूर्ति रहा आजीवन।।15।।
निश्छल मित्र ने ही मित्रता को नाम दिया,
मोह पाश में बधा मित्र मित्रता को बदनाम किया।
सोच हमारी जैसी वैसा ही हमने काम किया,
एक मात्र स्वार्थ ने है किसका कल्याण किया।।16।।
सच्चा मित्र सभी का मित्र शत्रु को भी सम्मान देता,
गुण पारखी धर्म धारी को अवसर बारम्बार देता।
सहमत भले न कोई सच सबसे कह ही देता,
उचित-अनुचित मध्य रेखा खींच ही देता।।17।।
आँख बंद कर एकनिष्ठ अंधा भक्त कहलाता,
सच्चा मित्र वही जो मित्र को सन्मार्ग पर लाता।
मित्रता निभाता पर मित्र को मानव धर्म सिखाता,
पर वचन वद्ध निज वचन उत्सर्ग हो जाता।।18।।
मित्र बनों तो मित्र बनों,जग में सबका हित करो,
सद-असद के मध्य अन्तर की खाई को भरो।
असद का साथ पहचानो क्षण में दूर करो,
सत्य संकल्प सदा आचरण में धरो।।19।।
अश्वसेन बन बदले की आग में मत जलो,
शत्रु के शत्रु से जाकर मत मिलो।
क्षमा शील बन भला मानुष बने चलो,
विवेकानन्द बन मानवता को कुछ देते चलो।।20।।
मित्रता मानव दानव पशु पंछी की भी होती है,
सजीव निर्जीव सगुन निर्गुण की भी होती है।
समानवर्ग असमानवर्ग विषम वर्ग की भी होती है,
मित्रता बनानी ही नहीं निभानी भी होती है।।21।।
मित्रता-शत्रुता स्वार्थ सिद्धि का श्रोत नहीं,
विचार हैं उत्तम-निम्न पर सोच नहीं।
जहर फैलाना है सरल पर अमृत नहीं,
मित्रता ही है जीवन धन शत्रुता नही।।22।।
पर बिना शत्रुता मित्रता की पहचान नहीं होती,
बिना आग धुँवा बिना पानी कीचड़ नहीं होती।
एक हाथ से चुटकी पर ताली नहीं बजती,
एक को मिटा कर दूसरी सत्ता सजा करती।।23।।
आज-कल भी मित्रता हर जगह मिला करती,
कुछ निज हित कुछ पर हित भी किया करती।
कुछ निःस्वार्थ कुछ स्वार्थ भाव से हुआ करती,
कुछ विश्वासपूर्ति कुछ विश्वासघात किया करती।।24।।
मित्रता कैसी जैसी मित्र को लगे अच्छी,
पर  काटों साथ नहीं निगली जाती मच्छी।
केवल अच्छी नहीं होनी चाहिये सच्ची,
जिसके कारण न करे कोई माथा पच्ची।।25।।
स्वयं तक सीमित मित्रता मित्र का अहित करती,
क्यों क्या अपना हित कर लेती अपने को सुख देती।
नहीं किसी हाल में यह केवल दुःख देती,
राम नाम सत्य करा जीवन सार हर लेती।।26।।
स्वयं से ऊपर हट दोनों का जो सोचता है,
ऐसे मित्रों को यह संसार सदा खोजता है।
सद बन्धु सखा तात को कोई नहीं भूलता है,
मित्रता अनमोल रतन कोई नहीं छोड़ता है।।27।।
मित्रता बिन जीवन अधूरा है,
मित्रता करो यदि करना इसे पूरा।
जीवन मित्रों संग नहीं है घूरा,
मित्रों बन्धु-बान्धव से भी न हो कभी दूरा।।28।।
तात-मात भी सखा हमारे मित्रता बनाओ,
निज आस-पास भी सद्भावना फैलाओ।
सहकर्मी सहगामी संग प्रेम सदा निभाओ,
ऐसा कर्म करो यादगार बन जाओ।।29।।
कुख्याति न्यारी है एक मित्र की मान जाओ,
मित्रता की चासनी में एक बार तो डूब जाओ।
चाल-चलन मित्र घर अपनों सा ही निभाओ,
मित्र बनों मित्रों संग जीवन सरस कर जाओ।।30।।

पूरन हो सद भावना, हो मित्रता का साथ।
कृपासिन्धु मम बन्धु की, बन्धु शिर पर हाथ।।

       ।।      इति --हनुमते नमः   ।।





















 
























मंगलवार, 1 सितंबर 2020

।।फेसबुक मुखपोथी।। face book hindi poem

बहुत ही परिचित है जन-जन द्वारा संचित है।
अद्भुत है अनूठा है कबका है सर्वत्र सबका है।।
मुखपोथी पर निज मुख दिखे तो सही-सही है।
अमुख-परमुख वाली फेसबुक सदा ही मैली है।।1।।
मान ज्ञान शान बखान का प्लेटफॉर्म मानते हैं।
निज का निज जन सम्पर्क स्थान पहचानते हैं।।
पर पर वश हो निंदनीयभी लोग पोस्ट डालते है।
हम नहीं ऐसों को अपना कभी दोस्त मानते है।।2।।
चाहता हूँ ऐसे मित्र मित्रता से निज नाम हटा लें।
सुधर जाये अथवा उधड़ने वालों में नाम जुड़ा लें।।
सुधड़ो वा उधडों प्रकृति की प्रकृति पहचान लें।
मेरा क्या मैंने कह दिया उचित लगे तो मान लें।।3।।
मित्र हो एक या दो पर मित्र कर्ण-कृष्ण सा हो।
चलो फेसबुकी तो हजारों हो पर निष्प्राण ना हो।।
निज तक संकुचित दूजा के लिए बेकार ना हो।
सब लाइक शेयर सब्क्राइव करें उदास ना हो।।4।।
लाइक शेयर सब्क्राइव से ही पहचान बढ़ती है।
फेसबुकी मित्रों की मित्रता भी परवान चढ़ती है।।
अशिष्ट उच्छिष्ट पोस्ट आप को बदनाम करती है।
मित्रों निज मुख दिखाओ इससे पहचान बढती है।।5।।
       ।।    जय हिन्द जय भारत   ।।

सोमवार, 31 अगस्त 2020

परिवार parivar hindi poem on family

माता-पिता पुत्र-पुत्री सह सम्बन्धों का साथ।
दादा-दादी का पोता-पोती के शिर पर हाथ।।
परितः कल्याण कामना से होता ऊँचा  माथ।
दुःख-सुख को सह जाते बनाकर एक गाथ।।1।।
परिवार में इक दूजे पर इक दूजा है वारा।
किसी का राज नहीं सबका राज है न्यारा।।
सब सबके लिए सब सबका है जग सारा।
छोटा सा संसार जहाँ खिले प्यार का तारा।।2।।
भगवान माता-पिता समक्ष है जग उजियारा।
तात सभी हैं सबके विचार जहाँ प्यारा-प्यारा।।
सम भाव सम रीति-नीति प्रीति का सहारा।
हर जन हर जन का जान आँखों का तारा।।3।।
सुन्दर सा बाग जिसमें पुष्प बहु भाँति खिलें।
राग-द्वेष से दूर निष्कंटक हो सब हिलें मिलें।।
सुमति साथ सब निज गंध से घर-द्वार सिलें।
भाँति-भाँति पराग फैला निज डाली पर हिलें।।4।।
परिवार-उपवन का जन जन आम्र मंजरी हैं।
दुःख-झंझावात झेल बन जाते वे सब केरी हैं।।
फलों के राजा सब राजा सा सुनते जग भेरी हैं।
त्याग-तपस्या-गुठली सुख किसलय अब चेरी हैं।।5।।

रविवार, 30 अगस्त 2020

जो देख रहे हैं वो कह रहे हैं hindi poem. jo dekha rahe hai ao kah rhe hai

प्रार्थना नरसिंह से न रुठै विहगेश।
काम कठिन आसान करैं सोमेश।।
आज धरा पर आ तो जाये विश्वेश।
देखें सुनें कहें गति सबकी सर्वेश।।1।।
हम जो देख रहे हैं वो कह रहें हैं।
भगवान सबकी सब समझ रहें हैं।।
आदत बढ़ा आदी बनाये जा रहें हैं।
प्रकाश दबा तमस बढ़ाये जा रहें हैं।।2।।
एक से एक ज्ञान पिलाये जा रहें हैं।
खर सूकर गीदड़ सिखाये जा रहें हैं।।
करि केहरि नर कर काटे जा रहें हैं।
निर्भय हो बहु भय फैलाये जा रहें हैं।।3।।
सुन्दर सरस सलोने सपन सवरै सदा।
सर सरोज सर हुलसै कर नव अदा।।
भय दूजा हेतु निज हेतु है सावन सदा।
बरबस लेखनी लिख रही यदा कदा।।4।।
लोक तन्त्र है राज तन्त्र का महामन्त्र।
अपनी अपनी राह चलें सब स्वतन्त्र।।
जो सहे सहे बहे बहे हो कर परतन्त्र।
करना हो तो करो हो तुम भी स्वतन्त्र।।5।।

रविवार, 16 अगस्त 2020

|| दूध || doodh hindi poem milk

बन्दउँ पयनिधि रमन रमापति जगदीश।
सोहत ओढ़े चहु दिशि क्षत्र रूप फणीश।।
दूध महामहिमा मंडित सेवे महि अहि ईश।
 पूजे नित गोपाल गोरस उमापति गौरीश।।1।।
स्तन्य पीयूष नवजात सह है अमृत सबका।
दुग्ध क्षीर दोहज पय बलवर्धक जन जनका।।
बात खूब खीर खोआ रबड़ी कुल्फी स्वादका।
जनक है दही पनीर छेना श्रीखण्ड चीज का।।2।।
कथा दूध-पानी की मानव को शिक्षा देती है।
त्याग तपस्या और समर्पण भाव भर देती है।।
मित्रता की अद्भुत मिसाल प्रदर्शित करती है।
सर्वस्व त्याग विश्वास बनाना सिखलाती है।।3।।
दूध से बनता मख्खन घी अरु लस्सी मठ्ठा।
माखन मिसरी खाकर बनते हम हट्टा-कट्ठा।।
अविश्वासी से करें काहे हम कभी सट्टा-बट्टा।
साँप साँप ही रहेगा पिलाओ उसे दूध या मठ्ठा।।4।।
भारत माँ के आँचल में ही हमको रहना है।
प्राण जाय पर हमें दूध का कर्ज चुकाना है।।
हमारी धरा पर आये हर शत्रु को बताना है।
निज प्रहार से छठी का दूध याद दिलाना है।।5।।
बीते समय सा नहीं साँप को दूध पिलाना है।
हमें अब छाछ को भी फूंक फूंक कर पीना है।।
नव जन्में शत्रु अहि के दूध के दाँत तोड़ना है।
सब थल दूध का दूध पानी का पानी करना है।।6।।
दूध का धूला बनते उन्हें आईना दिखाना है।
दरिद्रता तज दूध की नदियाँ अब बहाना है।।
मलाई वालों को तो दूध की मख्खी बनाना है।
दो दो हाथ कर अबतो दूध का कर्ज चुकाना है।।7।।
खाओ दूध मलाई पर करो सबकी भलाई।
दूध से करो मत करो पानी से कभी कमाई।।
मत बनो निज तेज क्षीण कर पूस धूप भाई।
दूध सा श्वेत रहो अंत सब माटी मिलि जाई।।8।।






बुधवार, 12 अगस्त 2020

|||| कान्हा अब तो आ ही जाओ |||| o God kanha come to me.hindi poem

कान्हा अब तो आ ही जाओ,            
किसलय-वदन दिखा ही जाओ।
जगत तनय को जता ही जाओ,
मन-पात प्रेम-बूँद बरसा ही जाओ।।1।।
आठवीं संतान का राज बता दो,
आठवां अवतार का काम बता दो।
सोलह कला कान्ति चमका दो,
श्रीकृष्ण हर मन कृष्णता मिटा दो।।2।।
जग व्याप्त हर आपदा मिटा दो,
विश्व रूप की झलक दिखा दो।
शान्ति स्वरूप शान्ति सिखा दो,
हृदय हार हार पहला दो।।3।।
अष्टमी भाद्र कृष्णा की कथा सुना दो,
मन-मोहन मोह मेरा मन से मिटा दो।
मदन मद मार मत्सर माया हटा दो,
देवकी सुत निज सा पुष्प खिला दो।।4।।
आ यहाँ धरा को सांत्वना दो,
कंस काल की कल्पना हटा दो।
नारी हृदय से भय भगा दो,
सुख शान्ति सहज सहजता दे दो।।5।।



मंगलवार, 4 अगस्त 2020

||| पंक्षी राज बाज ||| eagle poem

भारत भूमि विश्व-पटल पर दर्शनीय चहु ओर।
नागपास में जब रघुनायक तब गरुड़ का  शोर।।
दक्ष प्रजापति सुता विनीता आयी कश्यप कोर।
कद्रू कथा कठिन काष्ट जलाया जमाकर जोर।।1।  अरुण ज्येष्ठ शाप माता बनी निज बहना दासी।
सौत बहन कद्रू, अनुज गरुड़ की अपनी मासी।।
शाप मुक्त होना है जब कृपा करें पयधि वासी।
कद्रू पुत्र नाग जब गरुड़ चोंच बस जाते कासी।।2।।
धार्मिक वैदिक पौराणिक बात आती बार-बार।
संस्कृति संस्कार सत्कर्म सत्पुरुष सबका सार।।
पंक्षी राज गरुड़ अरुण शाप किया माँ उद्धार।
आज विष्णु भगत की चर्चा होती है द्बार-द्वार।।3।।
आध्यात्मिक से लौट लौकिक में अब आते हैं।
साहस-शक्ति स्तम्भ श्येन का करतब गाते हैं।।
जो गरुड़ सतयुग-द्वापर वे ईगल बन जाते हैं।
सनबर्ड काइट हॉक फाल्कन यहाँ कहे जाते हैं।।4।।
बहरी बाज चील बनकर हमको शिक्षा देते हैं।
साहस-शान्ति प्रतीक शक्ति का पाठ पढ़ाते हैं।।
निज जमी से नाग शत्रु को आसमा ले जाते हैं।
विश्वासघाती जमीदोज यही सबक सिखाते हैं।।5।।


गुरुवार, 30 जुलाई 2020

।।। पुष्प ।।।flower hindi poem

अमर कथा पुष्पों की एक,देश-काल में मर्म अनेक।।
नाम अनेक काम अनेक,देश अनेक पर भेष एक।।
रंग अनेक रूप अनेक, जाति अनेक गन्ध अनेक।
काया भी अनेक पर इनकी सुभ्रता पर लट्टू अनेक।।1।।
अमर सदा पुष्पों की बात कोमल मधुर इनकी जात।
लता बृक्ष पादप पर खूब कहते खिल खिलाकर बात।।
देश- विदेश का भेद नाम भेद भी हो यहाँ-वहाँ तात।
खिलें सर्दी गर्मी जाड़ा वसन्त हेमंत शिशिर बरसात।।2।।
कहीं बेल तो कहीं लता भावुक मधुर मनोहर रिश्ता।
गूलर का फूल होकर भी निभाना है यहाँ हर रिश्ता।
फूल सूंघ कर रहना पड़े रह लें न तोड़े कोई रिश्ता।
अपराजित रहना सच कहना सिखाये अपराजिता।।3।।
परिवार गाँव हर राज्य देश हैं बहु पुष्पों के गुलदस्ता।
फूल सुमन कुसुम मंजरी प्रसून पुहुप गुल नहीं सस्ता।
पंचमुखी सदाबहार नयनतारा सदाफूली से कर रिश्ता।
फूलों सह फल बृक्ष यहाँ भरें जग जीवन में पिश्ता।।4।
राष्ट्रीय पुष्प कमल हमारा सिख अनेक हमें देता है।
श्वेत नील रक्तादि वर्ण में सदा हमें एकता दर्शाता है।
उड़ीसा कर्नाटक जम्मू-काश्मीर हरियाणा बताता है।
हमारा तू ही राज्य-पुष्प जो जग लक्ष्मी को भाता है।।5।।
बहु कीट-पतंगे को बहु पुष्प आकर्षित कर लेते हैं।
मधुमख्खी हो या चमगादड़ सबको पराग ही देते हैं।।
निज अमृत से कितनों को नित ये नव जीवन देते हैं।
सुखी दुःखी कैसा भी मन हो सदा शान्ति भर देते हैं।।6।।
हम पुष्प सभी काम में हर जन सेवा हेतु समर्पित हैं।
शरीरिक-मानसिक रोग भगा जीवन करते सुरभित हैं।।
मधुरस बाग-बगीचों के हम वास्तुदोष सुदूर भगाते हैं।
इन्द्रधनुष सा सतरंगी जीवन को बहुरंगी कर देते हैं।।7।।
हम को छू कर देखो जगत तनय हम तुम्हरे जैसे हैं।
दया माया ममता मधुरिमा हम प्राण वायु सरीखे हैं।।
रामानुज की बात पवनसुत की करामात समझते हैं।
धौलागिरि से स्वर्ण नगरी पहुँच प्राण वायु भरते हैं।।8।।
पारिजात इन्द्र बाग का सत्यभामा को सिख देता है।
फूल फूल मानव के जीवन में ज़हर भी घोल देता है।।
चम्पा चमेली मोगरा जूही से नर सौम्यता पा लेता है।
रातरानी सा पुष्पों से नर संतापहारी इत्र ले लेता है।।9।।
सीता को छाँव दिया अशोक हर लिया शोक सभी।
श्वेताम्बुज निलाम्बुज आम चमेली अशोक ये सभी।।
कामदेव के अद्भुत पंच पुष्प रखते अद्भुत गुन भी।
अर्जुन अगत्स्य अमलतास गुड़हल है नर रूप भी।।10।।
लीली-लोटस की गाथा अद्भुत जग की व्यथा है।
दो की लड़ाई में तो तीजा सदा लाभ को पाता है।।
रजनीगंधा ग़यी कमल हारा गुलाब जीत जाता है।
पुष्प राज का ताज पहन गुलाबी जीवन पाता है।।11।गुलदाउदी सेवन्ती शतपत्री सेवन्तिका का राज।
इस्रायल सरकार ने मोदी नाम बनाया सरताज।।
चंद्रमुखी नसरीन बहुरोगहारी आवै सबके काज।
सेहत का खजाना गुड़हल धरा पर बिखेरे साज।।12।।
लाल पीला नीला गुलमोहरी गुलमोहर यहाँ।
खेजड़ी राज का राज पेड़ रोहिड़ा फूल जहाँ।।
बुंदेलखंड का गौरव ढाक का तीन पात वहाँ।
उत्तर पुष्प टेसू किंशुक पलाश ब्रह्मबृक्ष रहाँ।।13।।
पुष्पों की जीवंतता से जल भून मृतात्मा कहा।
मरना ही शाश्वत तो तुम क्यों खिलखिला रहा।।
खिलना ही जीवन है इस हेतु खिलखिला रहा।
मृत्यु डर रे कायर तू मुझे कायरता सिखा रहा।।14।।
गेंदा हजारों रंग पंखुड़ियों से फूलों का कहता है।
गर्व हमें जो सब बंधन तज सबके लिए रहता है।।
पुष्प हार हार बन नित मानव को प्रेरित करता है।
वही मानव महामानव जो हर हाल हर्षित रहता है।।15।।

मंगलवार, 28 जुलाई 2020

।।। चन्दन ।।। chandan hindi poem

सुन्दर सहज सलोना तरूवर हर हर का मन लेता।
राग-द्वेष से मुक्त निज तन विषधर को सुख देता।।
कठिन कुचाह कुमति काष्ठ मन गेह नेह कर लेता।
चन्दन ही परहित निज देह गेह नेह सब तज देता।।1।।
जीवन धन्य करै चन्दन चन्दन बन सदा रहता है।
मणिधर विषधर जन मन भी चैन सदा भरता है।।
दनुज-मनुज हित निज तन ताप सदा सहता है।
चन्दन कोयला बन भी शान्ति सदा कहता है।।2।।
आतप वर्षा छाँव भले हों निजता नहीं तजता है।
आन बान मर्यादा पर कट काटक गन्ध भरता है।।
देव मनुज दनुज तन मर कर भी सुगन्ध करता है।
चन्दन-जन भी चन्दन सा खुशबू सर्वदा फैलता है।।3।।
भारत का कण-कण गाता चन्दन माँ की गाथा है।
हम क्या चन्दन तो देवों के भी शिर चढ़ जाता है।।
भूत-प्रेत सह सब भूतों को चन्दन बहुत सुहाता है।
जन्म-मरन तक हर पल नर का चन्दन से नाता है।।4।।
चन्दन तिलक भाल मानव दिव्य जन बन जाता है।
चन्दन से सीख सिख ले गुनी सर्वत्र पूजा जाता है।।
सीख तुम्हारी अद्भुत चन्दन माटी को महकाता है।
निज माटी चन्दन हित नर निजता भूल जाता है।।5।।
चन्दन का वन्दन करें जगत तनय मेवाती नन्दन।
निज गुन हर भारत-लाल को बनाओ अभिनन्दन।।
कभी भारत की धरा पर न हो चन्दन का क्षरण।
हे मलयाचल भारत का हो अचल मलय वन्दन।।6।।

सोमवार, 27 जुलाई 2020

।। आशा ।।hope hindi poem

अमर ब्रह्म शब्द अमर आत्मा-परमात्मा अमर।
अटल भीष्म प्रतिज्ञा जैसी आशा-ज्योति अमर।।
जन्म-मरन सा आशा-भाव की यहाँ कीर्ति अमर।
आशा ही जीवन है जन-जन में यह भाव अमर।।1।।
जननी-जनक की परिकल्पना नव आशा संचार है।
हौले-हौले प्रेम-पथ यहाँ नव जीवन का आगाज है।।
आशा-डोरी है सशक्त तो मनवांछित परिणाम है।
आशा का दामन सुख शान्ति का अद्भुत परिधान है।।2।।
आशा के बल बुते नर ने जीता अद्भुत संग्राम है।
नई ऊंचाई चढ़ाना है तो आशा बल का धाम है।।
नव-निर्माण नव-अन्वेषण में आशा ही प्रधान है।
बड़े-बड़े अग-आग के आगे आशा ही तो जान है।।3।।
नाग पाश या ब्रह्मास्त्र हो आशा ने सबको जीता।
पितामह और गुरुदेव को आशा ने मनसे जीता।।
दैहिक दैविक भौतिक को आशा ने रबसे जीता।
कालचक्र के कुचक्र को आशा बल से नरने जीता।।4।।
कर्म व्रती को आशा ने हर पग पर आयाम दिया।
आशा के बल वामन ने बलि से तीनों लोक लिया।।
आशा बल वनवासी ने अजेय अद्भुत संग्राम किया।
आशा बल मानव ने अब जल थल नभ नाप लिया।।5।।
अद्भुत बल आशा को छोड़ कभी न कापुरुष बनो। कायरता त्याग शार्दूल बन भीरु भेड़ पर वार करो।।
हे नर-सिंह निराशा छोड़ देदीप्यमान मार्तण्ड बनो।
होगी जय निश्चित अब आशा बल प्रभु विश्वास करो।।6।।

रविवार, 26 जुलाई 2020

।। शिव-स्तुति ।।shiv stuti hindi poem

जय महेश जय शिव शंकर।
              भोले-भण्डारी प्रलयंकर।।
महादेव देव परमेश्वर।
               आशुतोष गौरीश सर्वेश्वर।।1।।
भूतनाथ जो विश्वनाथ हैं।
              काशीश जो पशुपतिनाथ हैं।।
रामेश्वर जो ओंकारेश्वर हैं।
               महेन्द्रनाथ जो विश्वेश्वर हैं।।2।।
गले भुजंग नीलकंठ तेरे।
         भाल बाल चंद का बसेरे।
जटा-कटाह गंगा तरे।
          दीन हीन पर कृपा-रज बारे ।।3।।
नागेन्द्र हारी त्रिपुरारी।
           त्रिनेत्रधारी असुरारी।।
भस्माङ्ग धारी बाघाम्बरी।
          डमरू धारी चर्माम्बरी।।4।।
श्वेतार्क पूजित नंदीश्वर।
           राम स्थापित रामेश्वर।।
कैलाश वासी नागेश्वर।
           त्रिशूल धारी महेश्वर।।5।।
सहज सरूप  सदा सुहावै।
          दरस करत जन हर्षावै।।
पापी पाप मुक्त हो जावै।
          भक्त मनोवांछित फल पावै।।6।।
भोले अद्भुत संसारी।
        दो पुत्र गण द्वारी द्वारी।
अमरित माहुर संग धारी।
        नित नव सिख ले परिवारी।।7।।
नाग मूस मयूर नंदी।
        गंगा-पार्वती संगी।।
सिंहवाहिनी बामांगी।
         रामभक्त शिव भस्माङ्गी।।8।।
हे परमेश्वर मम शिव कर।
        हे घुश्मेश्वर जन दुःख हर।।
हे गौरीश्वर सदा शं कर।
       हे कालेश्वर  आनन्द भर।।9।।
मम मन-मधुप शिव रूप-पराग पय।
        गाता रहे हर हर महादेव नित नय।।
आशीष-रज डूब जाय मय।
          सदा गाते रहे शिव शंकर जय जय।।10।।

      



         


।।समय।। time hindi poem

समय तू बड़ा निराला है,
       सावन-भादव तू मधु-माधव है।
दिन उजला रात काला है,
       साधु-साधु तू दानव-मानव है।।1।।
रूप अनोखा अद्भुत तेरा,
        तेरे कारण जग में है तेरा-मेरा।
तू अनंग है माया का फेरा,
        है तू कभी शाम कभी सबेरा।।2।।
तू दायां-बायां कदम चाल है,
         एक आगे तो एक पीछे है।
एक पीछे तो एक आगे है,
         नर आगे-पीछे तेरे भागा है।।3।।
तू यथार्थ तू सपना है,
         तू पराया तू अपना है।
तू कथा तू कल्पना है,
         तू जल्पना तू अल्पना है।।4।।
भागता तू भगाता तू,
          दिखता तू दिखाता तू।
सीखता तू सिखाता तू,
          मरता तू मराता तू।।5।।
सुमन कन तू हीरा है,
          सिख दे तू हरता पीरा है।
सहज सरल तू वीरा है,
          सदा शान्त सिंधु धीरा है।।6।।
चाहे जो सो करे ,
       जो करे वो भरे।
और करे और भरे,
        लोभ-मोह  से परे।।7।।
तू मनमौजी साथी रे,
         देखो पारा-पारी रे।
कभी ऊपर कभी नीचे रे,
        कभी सवार कभी सवारी रे।।8।।
कभी सलोना कभी सलोनी,
        रूप बदलता कोना-कोनी।
सुख मय सूरत कभी है रोनी,
         हम तो समझें टोना-टोनी।।9।।
समझ से परे खेल तेरे,
         मारग खोले देर-सबेरे।
हर मारग हैं तेरे चेरे,
           तू सबका है सब है तेरे।।10।।
        

 

शुक्रवार, 24 जुलाई 2020

।।काँव-काँव।। crowing hindi poem

यहाँ-वहाँ हर गली-गली में हो रहा है काँव-काँव।
सत्ता के भूखे भेड़िये हैं जाल फैलाये ठाँव-ठाँव।।
रात-दिन कौवे कब कहाँ क्यों हैं शोर मचाते।
निज के लिए हैं हर कागा अद्भुत भीड़ जुटाते।।1।।
काँव-काँव ऐसा स्वर है जो बरबस सुन जाता।
सामान्य रूप की चर्चा में नहीं किसी को भाता।।
तेरी-मेरी में उलझ-सुलझ मानव मन पछताता।
दानव-मन मन लड्डू ले है काँव-काँव करवाता।।2।।
दूजे के सुख-शान्ति से दुःखी कौन है होता।
दूजे के दुःख-दावानल से सुखी कौन है होता।।
दूजे के नित कच कच से चैन कौन है लेता।
काँव-काँव करता वह कभी नहीं चैन से सोता।।3।।
काँव-काँव कर अस्त-व्यस्त पाते मन में शान्ति।
यहाँ जहां में बहम फैला फैलाते अद्भुत भ्रान्ति।।
निज स्वार्थ सिद्धि हेतु तैयार करने को क्रान्ति।
नर कौवे शान्ति गौरैये के लिए हैं व्यथा भाँति।।4।।
काँव-काँव कर जीवन-ज्योति बुझाने आतुर रहते।
अपनों से सम्बंध नहीं पर पर से संबंध न रखते।।
निष्ठावान कहाँ जहां में ऐसे कुत्सित को करते।
काँव-काँव से दूर यहाँ तो सद मानव ही रहते।।5।।

 

कैसे कैसे जीव यहाँ how many kinds of creatures here hindi poem

हम धरती के जीव जहाँ
कैसे कैसे हैं लोग यहाँ।
जलचर का जल में जहां
नभचर हैं नभ में महां।।1।
मत्स्यावतार की व्यथा
नव जीवन की है कथा।
कूर्म पर सागर मथा
वाराह महि मानव गथा।।2।।
नरसिंह हो कर प्रगट
निवारे नर भक्त संकट।
वामन जन्म-कर्म विकट
त्रिलोक को किया नर निकट।।3।।
परसु के रूप,रंग-ढंग
देख जन-जन होवे दंग।
राम पुरुष उत्तम सब अंग
पाता जन नित निज संग।।4।।
कृष्ण कथा हरती व्यथा
प्रेम-सागर को मथा।
धर्म-ध्वज की स्थापना
कलि का नित नव कल्पना।।5।।
सिख लो जग लोग भली
प्रथम लाभ लिया मछली।
जल से जीवन इस थली
नर-अली हेतु खिलाये हर कली।।6।।
मछली सा बनना 
है आतप-वर्षा सहना।
अबके लोग सीखें ऐसा रहना
जल-जीवन माने सब कहना।।7।।
कछुआँ उभयचर से ले सीख
कठिन काम जन जन में दीख।
सूअर अस्वच्छ स्वच्छ सीख
न निकालें कभी मेन मीख।।8।।
नर-सिंह आज-कल गली-गली
दबायें दबले-कुचले को हर थली।
फितरत हमारी ही नहीं भली
नरसिंह हो तो भला करो हर थली।।9।।
वामन का हर काम-धाम
जीव-जीवन बनाता ललाम।
परशुराम का नाम
दुरवृत्ति नाशक बन सकाम।।10।।
राम-श्याम  सम नहि दूजा
जीव जहां का करते पूजा।
आज राम-श्याम को बना दूजा
रावन-कंस बन नर पाते पूजा।।11।।
थलचर  जल नभ में भी
बनावे आसियाना सभी।
निज हित रत हो अभी
बुला रहे हैं निज नाश भी।।12।।
कैसे कैसे हम लोग यहाँ
पाल रहे हैं नित नव सपना।
देव सम हम कैसे कहाँ
लूटे जब अपनों को अपना।।13।।
पशु नहीं हम हमसे पशु अच्छे
सत्य-निष्ठा को जब बदलते।
गीदड़ शेर लोमड़ी कुत्ते अच्छे
देख नर व्यवहार हैं सिसकते।।14।।
ईमान सभी का सब जानते
देव दनुज मनुज को मानते।
रिश्ते-नाते बहुत बनाते
काम आते अपनी शर्त मनवाते।।15।।
अद्भुत हुनर वाले हैं
अद्भुत चुनर वाले हैं।
अद्भुत शक्ति वाले हैं
अद्भुत भक्ति वाले हैं।।16
अद्भुत हैं अद्भुत मानव यहाँ
 भाँति-भाँति के जीव जहाँ।
पशु-पंछी सा अनुराग कहाँ
राग-तड़ाग है निवास जहाँ।।17।।









शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

हाउस वाइफ house wife hindi poem

हाउस वाइफ
संवेदना सहित सोचें इनकी लाइफ।
नौकरी पेशा हाउस वाइफ
इनकी जिंदगी दुधारी नाइफ।।
लक्ष्मी,सरस्वती पार्वती भी
सीता भी राधा  भी।
नव दुर्गा महा काली भी
ये हैं घर वाली भी।।
ललना वाली चकला वाली
बेलन वाली भी।
भीतर वाली बाहर वाली
परिवार वाली भी।।
निज चिंता चिता बना
पर पर जलने वाली।
घर को परिवार बना
उस पर मरने वाली।।
हानि-लाभ अपना नहीं
जीवन सुख सपना सही।
निज दुख देखना नहीं
परिवार हित मरना मही।।
सूर्य चंद्र सा चलना
धरती सा सब सहना।
शेरनी सा रहना
ममता-प्रेम का गहना।।
पुजारिन हैं पूजा हैं
दिया हैं बाती हैं।
मन्दिर हैं मूर्ति हैं
जीवन हैं ज्योति हैं।।
सुबह से शाम तक
आई हैं माई हैं।
अंधरे से प्रकाश तक
रिश्ते निभाई हैं।।
संभाल कर हर तिनका
मार कर अपना मनका।
कुछ नहीं हैं निजका
सर्व न्यौछावर कर तनका।।
संभालती परिवार
बिना किसी भार।
सँवारती घर-द्वार
होकर तार-तार।।
जब रोटी पकाती
प्यार उड़ेंन जाती।
रखती न थाती
रखती बड़ी छाती।।
परिवार को खिला कर
खुद खाना खाती।
सबकी क्षुदा दूर कर
भूखी भी सो जाती।।
अद्भुत हैं वाइफ
अविस्मरणीय हैं।
सँवारती हैं लाइफ
वंदनीय हैं।।




      








सोमवार, 13 जुलाई 2020

प्रकृति-पुरुष nature & human being hindi poem

 दोहा:-बंदउँ शंकर सुवन,कृपासिन्धु महावीर।
         प्रकृति-पुरुष गाथा,महके हर हर तीर।।
प्रकृति-पुरुष निर्माता,इनकी गाथा कौन कहे।
माया-जीव सब जाने,इन्हें न जाने कौन अहे।।
जगत तनय मेवाती नंदन,निज विचारों में बहे।
छोटे से छोटा है मोटा,निज कर्मों से सब लहे।।1।।
गज केहरि हरि हरि गुन गाहक हर चाल चले।
नर-मादा बचन बध हर जीवन सुबह शाम बने।।
नित नूतन नव रस ताल छ्न्द नव नव नमन करें।
 नद नदी नाद से रसमय सागर जीव जीवन भरें।।2।।
सावन मनभावन प्रकृति धरा का नित श्रृंगार करे।
भाँति भाँति अलौकिक आभा प्रकृति से खूब झरे।।
भादव भार भुवन भरका भर मन मह ललक भरे।
नदी-नाद सब ताल-तलैया उमगत है चहु ओर खरे।।3।।
कनक देह  प्रकृति गज गामिनी मन छोह छरे।
शुक-पिक सारंग मैना मधुर-मधुर स्वर गान करे।
ताल-तलैया नदी-नाल में सफरी बहु तरङ्ग भरे।
मन-मयूर नित नव-नव नाच-नाच नयन नीर धरे।।4।।


रविवार, 12 जुलाई 2020

।। यह हकीकत है।।it is true hindi poem

यह हकीकत है माँ से इंसा देव दानव मानव बनता है।
खयाली पुलाव से नहीं कर्म से नर यहाँ आगे बढ़ता है।।
ज्ञानियों का भाल-सूर्य हर हाल सुबरन सा चमकता है।
मूर्ख-मेढ़क सत्य-रज्जू को असद-सर्प ही समझता है।।1
यह हकीकत है माया वश इंसान मानवेतर हो जाता है।
प्रकृति-नटी के रुप-जाल नर कठपुतली हो जाता है।।
आशा-रथ सवार निर्बल रथी भी महारथी हो जाता है।
कनक कामी कदाचार करने को कटिबद्ध हो जाता है।।2
यह हकीकत है जहां संघ में सामर्थ्य हर हाल रहता है।
दिखावा में उलझ केवल जन-सामान्य ही तड़पता है।।
असामान्य कायदा-कानून को निज दासी समझता है।
जो नर जैसा होत वैसा ही हर दूसरे को समझता है।।3।।




शुक्रवार, 10 जुलाई 2020

।।।आखिर क्यों।।infact why hindi poem

सोच-समझ कर रहना भैया आखिर क्यों उलझना है।
जीवन है क्षण भंगुर फिर शाश्वत किसे यहाँ रहना है।।
विस्तार वादी नीति पर जगत तनय को कुछ कहना है।
पंच तत्वों की काया को उन्हीं पंच तत्वों में मिलना है।।1।
काया कंचन मिट्टी को आखिर क्यों इतना मान दिया।
पग-पग पर निज हित रह आखिर क्यों तू जान दिया।।
जनमेजय के नाग यज्ञ ने किसका है कल्याण किया।
शान्ति न माना जिसने उसने मानव को तबाह किया।।2।
आखिर क्यों दिन-रात सूर्य-चन्द्र निज पथ सजे रहें।
दे उपहार हमें सुख-शांति का कर्तव्य पथ पर बने रहें।।
नाकों चना चबाने शांति बनाने कर्म पथ पर अड़े रहें।
अपनी संवेदना को जगा हम शांति हेतु तो खड़े रहें।।3।।
आखिर क्यों हर काल काल शिर पर मंडराता है।
श्वाशों का आना-जाना जीवन राह चलना बताता है।।
जीवन हैं तो जीना ही पड़ेगा जीवन राग सुनाता है।
नित कर्म करो आगे बढ़ो अद्भुत मन्त्र सिखाता है।।4।।
आखिर क्यों मानव मानव ही नहीं रह पाता है।
मद मोह मत्सर मार मानव मन मही मर जाता है।।
सुबह से शाम तक एक सा नित काम पड़ जाता है।
अपनों से परायों सा परायों से अपने सा हो जाता है।।5।
आखिर क्यों कामना हीन भूत भूत बन जाता है।
जन्म कर्म के बन्धन से जन मुक्त नहीं हो पाता है।।
पी कर विष-वारूणी कदम नहीं भू पर रख पाता है।
सत्ता मद में चूर नर मानवता ताक पर रख देता है।।6।।
आखिर क्यों सब पाठ नर दूसरों को ही पढ़ाता है।
निज पर बात आते ही सब पाठ स्वयं भूल जाता है।। प्राणी प्रकृति प्रकृति संग भी खेल खेल जाती है।
दया माया ममता मधुरिमा मन मसोज रह जाती है।।7।।
आखिर क्यों हर जीव-जन्तु हमकों ज्ञान सिखाते हैं।
तोता-मैना कागला हंस बगुले कुत्ते पाठ पढ़ाते हैं।।
औरों की तो बात क्या बैल-गधे सिख दे जाते हैं।
कारण सच कहूँ जब मानव मानव नहीं हो पाते हैं।।8।।

 




गुरुवार, 9 जुलाई 2020

।।जिन्दगी।। life hindi poem

भाग-दौड़ है जिन्दगी,
सरस राग,
विराग की भावना 
राग की स्थापना।
आज में जीना
कल का त्यागना।।
अति को छोड़ना
सम्बन्ध जोड़ना।
सहज सदा रहना
सहन तो करना।।
आशा निज से पर से
पूरी भी अधूरी भी सही।
निराशा कहीं से
मिले स्वीकारो भी सही।।
पी पी को गले लगा
भेद को पहचानो तो सही।
आशा को गले लगा
निराशा को भगाओ तो सही।।
पी माँ का 
ढूध को पिलाता है।
पी गाड़ी का
राह को बनाता है।।
पी अपमान घूट
जीवन को सहज बनाता।
पी मान का घूट
जीवन को सदा उलझाता।।
पी कालकूट यहाँ।
बन जा सहज सरल शंकर।
पी अमृत इस जहाँ
न बन कभी कहीं प्रलयंकर।।
पी जीवन पथ-गरल
जीवन होगा पग-पग सरल।
पी राग-विराग-अनल
हो जाय सब सदा विमल।।
शब्दों के साथ
अपनापन का नित हाथ।
बिन शब्द नवा माथ
सबको अपना बना हाथों-हाथ।।
पत्ते से भी
तो जड़ से भी।
निज से भी
तो पर से भी।।
समान रहे
बैर भाव त्यागकर।
साथ-साथ रहे
सब कुछ भूलाकर।।
बन जाओ
जो भी बनाना पड़े।
हट जाओ
जहां से हटना पड़े।।
डट जाओ
जहाँ भी डटना पड़े।
सट जाओ
जहाँ बजी सटना पड़े।।
अंधा बनो
देखकर अनदेखा करो।
बहरा बनो
सुन कर अनसुना बनो।।
गूँगा बनो
बनते रहो जो-जो बनो।
साधु बनो
बनना है सद गृहस्थ बनो।
जिंदगी सहज है
जिंदगी असहज है।
जिंदगी अमृत है
जिंदगी माहुर है।।
पी पी कर जी
सब जीवन का है।
पिला पिला कर जी
सब इसी धरा का है।।
रुकना 
रुक-रुक कर चलना।
थकना
थक-थक कर सम्हलना।।
सावन सा
जीवन में फुहारे हैं।
वसंत सा
जीवन में बहारे हैं।।
रुकती नहीं
जिंदगी कभी किसी के बिना।
कटती नहीं
जिंदगी कभी किसी के बिना।।
कट रही जिन्दगी
कह देते सहज सब आज।
बनी रही जिंदगी
कट जाय सहज सब साज।।
जिंदगी है जीना
सिखाते यहाँ जीव हैं।
सरबस है पीना
पिलाते जहाँ शिव हैं।।
आशा अमर धन
जीवन के महा समर में।
रख आश विश्वाश
जीवन जीतेंगे हर रन में।।







सोमवार, 6 जुलाई 2020

।।बादल।।cloud hindi poem

हे बादल!गरज गरज तू बरस बरस।
नव जीवन प्रकृति-पुरुष का तू सर्वस।
धन-धान्य धरती धरती पा तेरा रस।
जल जीवन तू जन जीवन रस।।
प्रकृति नटी पल पल छिन छिन है सज रही।
तू धरती का पालक यह जन जन से कह रही।
नर-बादल छाए हुए हैं जो उन्हें मान है दे रही।
नर नरत्व मत छोड़ मेरे बादल से तू सिख सही।।
बादल तेरा गर्जन-तर्जन आशा-बीज धरा का।
तेरा हर दर्शन बहु रुप दिखाता है जन-मन का।
तू भूमि गगन तू वायु अनल तू प्राण हर प्राणी का।
तू मेघ नहीं तू दूत सही इस धरती के हर नर-नारी का।।
नीरद तू मानव जीवन दाता सुख-शान्ति भ्राता।
अद्भुतं तेरी माया अद्भुत तेरी काया जन त्राता।
सावन-भादो माह बिन कौन जहां है रह पाता।
इंद्र-धनुष की अद्भुत छठा तू ही है हमें दिखाता।।
महाकाल महाबली महारस महि मह महकाता।
मन-मयूर मतवाला हर जगत में तेरा गुन गाता।
हे नर-अम्बुद!वारिद से तू सहज सरल सिख पाता।
कथनी-करनी की तरनी तू सहज आज चढ़ जाता।।
जो गरजते हैं ओ बरसते नहीं है पुरानी रीति।
गरजते हैं बरसते हैं तोड़ कर सर्वदा भय-भीति।
नव नव बादल दिखाते आज यहाँ नव नव नीति।
नाश त्याग विकास का हाथ पकड़ कर नव प्रीति।।






रविवार, 5 जुलाई 2020

।।यहाँ-वहाँ की।।from here & there hindi poem

हमअब बात करें,
आज और कल की।
अपने भविष्य की।
भूत की वर्तमान की।।
घर वार,सरकार की।
अपनों की,परायों की।
जन-जन की जहां की।
हर थल की,यहाँ-वहाँ की।।
समाज की परिवार की।
राज राज की देश की।
स्वदेश की स्वदेशी की।
कथनी-करनी की।।
शुरू करें
जीवन से जीवन की।
सबके लिए सबकी।
अबके लिए अबकी।
तबके लिए तबकी।।
कथा मानव की।
सुख-दुःख की।
दिन-रात की।
सत और तम की।
सतयुग देखा नहीं।
त्रेता राम-रावन सही।
द्वापर की जाने मही।
कल की बखाने बही।।
युगों-युगों की गाथा।
है सब मानव गाता।
सुधी जन आज बताता।
पंडित कल को रिझाता।।
हम तो निज को भाते हैं।
निज पर ही इठलाते हैं।
पर पर पर रौब जमाते हैं।
औरों को खूब लुभाते हैं।।
संवेदना विहीन संववेदना अब।
कोरोना त्रस्त मन रोता कब।
शक्ति को हम पूजे जब।
भक्ति भगवान भवन तब।।
विचार तो आज-कल झाड़-फुस सा।
बरसती मेढ़क-कुकुरमुत्ते सा।
सकुन अपसकुन राज सा।
दुलारा दमदार दामाद सा।।
जो कल था ओ कल होगा।
जो आज है वह भी कल होगा।
कल आज आज कल होगा।
जगत रीति होगा जग प्रीति होगा। ।
सावन मन भावन ही होगा।
जब मानव मन पावन होगा।
दुःख-राका का जावन होगा।
सुख-दिवा का आवन होगा।।
कल काम आज आराम।
आज काम कल आराम।
तो फिर कब होंगे सब काम।
छोड़ दो फिर सब राम के नाम।।
राम-श्याम कल काल आज तिलक भाल।
मानवता की अद्भुत ढाल।
आज-कल के हैं मिसाल।
थर्ड आई हैं संसार ताल- जाल।।
तब जाति कर्म आधारित।
अब जाति जन्म धारित।
तब कर्म कर्म का मर्म।
बनाता सब युग धर्म।।
अब जन्म का सब काम।
काम का नाम हुवा तमाम।
रिश्ते नाते करते आराम।
नहीं हमें अपने से विश्राम।।






सोमवार, 15 जून 2020

। । आओ हम विचारे । । come we think hindi poem

आओ हम विचारे कुछ आज ,सूर्य-चन्द्र सा करते काज। 
          दिन-रात सिखे-सिखाये साज ,देश बनाये जग सिर ताज।। १।।
          श्री की चाह जह राह आज ,तह येन-केन मन-बंचक राज।
          छोड़ जग मर्यादा मान लाज,मृगमरीचिका पर करते नाज।। २ । ।
          निज आन मान मर्यादा मर्यादा, पर पर का सब बकवास । 
          आज निज का निज जन ही ,करने को आतुर है सर्वनास । । ३ । ।
          विश्व के दिग्गज महा नायक,विकसित बड़े-बड़े जो देश । 
          कथनी-करनी है मयूर सी,भोजन विषधर सुन्दर वेश । । 4 ।  । 
          किसकी किसकी गाथा गाये,पड़ोसियो का क्या कहना । 
          निज विस्तार ही जिनको भाये,निजता ही जिनका गहना । । 5। । 
          अस्त्र-शस्त्र आतंक अंक मे,पलते इनके सारे ख्वाब । 
           जैविक कोरोना अंगना मे,संग शराब शबाब कबाब । । 6। । 
          खेल रहे दक्ष रक्षक कामी, फैला घातक रोग सुनामी । 
          अर्थहीन अर्थ अनर्थ कामी,बाम मार्गी ये कु मार्ग गामी । । 7। । 
          दीन-हीन जन मीन बना,  ये मछुवारे हैं जाल बिछाये । 
           सत्ता-धन को शान बना,जग मह नाश का रास रचाये । । 8। । 
           शेष सभी को आज संग हो,हरदम साथ निभाना है। 
          संघे शक्ति कलियुगे हो,दुष्टों को औकात दिखाना है। । 9। ।   


         

         
          

सोमवार, 11 मई 2020

।।मनुजा।।daughter hindi poem

दोहा:-मातु चरन रज शीश धरि,विनवउँ पवन कुमार।
         मेरी यह मनुजा कथा, गूँजे सब संसार।।1।।
             ।।  कविता ।।
श्रद्धा विश्वास से बन जाये सत काव्य। 
सत चित आंनद का फैले सर्वत्र राज्य।।
भूमिजा जग जननी गंगा पाप हारिणी। 
दुर्गा  दुर्गमांगी दानव दुर्गति कारिणी।।1।।
नारी श्रद्धा दया माया ममता मन घोलें।
बेटी मंजरी परिवार बाग़ खिले हौले-हौले।।
बेटा राम पितु पन हित परन कुटी में सोले।
रावन बेटा भाँति-भाँति कुकर्म द्वार खोले।।2।।
भूमिजा अनुजा मनुजा तनुजा हैं हमारी बेटी।
बेटी-बहन सहन करना रीति बहुत है मोटी।।
इन्सान वही जग में जिनकी नियत न खोटी।
मानव वही मानव जो मानव छोटी छोटी।।3।।
तृन समान पर धन-धान मान त्यागिनी।
पितु गृह कबहु कबहु ससुराल वासिनी।।
जीवन-ज्वाला नित नव-नव रुप धारिणी।
कविता-कामिनी मह मुहुर्मुहुः रस वारिणी।।4।।
महाभारत-रामायण में भी नारियाँ हैं।
अबला निर्बला नहीं सबला शक्तियॉं हैं।।
आज-कल भी कमतर नहीं बेटियाँ हैं।
काल के गाल पर लिखती ये पक्तियाँ हैं।।5।।
माता सा न हुवा कोई नर पूजित।
बहना सा न हुवा कोई नर रंक्षित।।
कन्या सा न हुवा कोई नर वंदित।
बिटिया सा न हुवा कोई नर मुंचित।।6।।
तृन धरि ओट कहति बैदेही।
बेटी ही है यहाँ परम सनेही।।
त्याग-तपस्या की है गेही।
सम्बन्ध धरा पर यह है अति नेही।।7।।
बेटी है हमारे घर-बगिया की अद्भुत प्रसून।
मान है मर्यादा है आभा है प्रभा है हर जून।।
नाक है स्थान हर पल हर भोजन ज्यो नून।
बिनु  बेटी परिवार है ज्यो रजनी बिनु मून।।8।।
मनुजा वही जो पायी मनुज से जन्म है।
तनुजा वही जो तन का अभिन्न अंग है।।
अनुजा वही जो मौन करे अग्रज रंग है।
अग्रजा वही जो अनुज को रखे चंग है।।9।।
बेटी बहन माता पिता भाई बेटा पावन।
पत्नी प्रेमिका प्रेयशी प्रियतमा मन भावन।।
हृदय के उद्गार हैं ये बसन्त सा सदा सुहावन।
सम्बन्ध और मर्यादा हैं यहाँ भदाव -सावन।।10।।
इन्सान-हैवान मानव-दानव एक ही है।
भेद भाषा का समझ का अद्भुत ही है।।
सब भाँति सब बात नियति की सद है।
नियति नारी  गति मति प्रकृति एक है।।11।।
नारी पर रख कुदृष्टि सब कुछ खो देते हैं।
सु दृष्टि जिनकी इन पर वे सब पा लेते हहैं।।
को रोना का का रोना जो इनसे ज्ञान लेते हैं।
आइसोलेसन प्रकृतिप्रदत्त को जो मान  देते है।।12।।

दोहा:-कभी कहीं कुछ किंपुरुष,कर के कुत्सित कर्म।
        कायनात कर कलंकित,कालिख पोते धर्म।।2।।
                 ।।इति।।

शनिवार, 9 मई 2020

।।सिक्का।।coin hindi poem

श्री गजानन पद पंकज, वंदन बारंबार।
मिटाये आपदा सहस सूर्य ज्यो अंधकार।।1।।
इष्ट देव हनुमान पद, सतत सरल मम नमन।
हर हर जन का दुःख सद, कै सुवास जग चमन।।2।।
 कृष्णम वंदे जगत गुरुं,जगत सुत हित रत नित।
कंस मुर बध सुख वर्धनं, भर आनन्द सत चित।।3।।
पद रज  उड़ि मस्तक चढ़े, पूजित सर्व समाज।
सिक्का जिनका जम गया, वे सबके सिर ताज।।4।।
सभी देवों का सिक्का, मानते हम सर्वत्र।
दानव भी कमतर नहीं, चलाते अस्त्रशस्त्र।।5।।
हर आकार के सिक्के, कभी हमारे भाग।
आज कहाँ हैं मिल रहे,छोटे बड़के आग।।6।।
एक दो तीन पाँच दसं, बीस और पच्चीस।
पच्चास की वह अठन्नी, सोलह आने पीस।।7।।
सोलह आने हो सही,कहाँ गयीं वह बात।
छोटे सिक्कों की कथा, गयीं रात की बात।।8।।
ताँबे के धुसर सिक्के, होते यहाँ पूजित।
महाराजा महारानी छबि, से थे अखंडित।।9।।
जब चाहा तब तब चला, अपना सिक्का नूतन।
सोना चाँदी प्रतिमा,पूजे जहाँ हर जन।।10।।
ईदगाह बाल हमीद, पाया पैसा तीन।
दादी हित लिया चिमटा,बनाया छबि नवीन।।11
कंकन किंकिनि नुपुर सी,सिक्कों की हर खनक।
मन मोह ले हर जन की,दे दे थोड़ी भनक।।12।।
गोली जू टिकता नहीं, सिक्कें पर यह अन्य।
जमाने पर निज सिक्का, जमा हो रहे धन्य।।13।।
वाणी वाणी कृपा न, काटती जगत फंद।
जमा वाणी सिक्का जग,जन बनते सुखवंत।।14।।
इस धरा पर दस दिसि देख,सिक्का जादू फेक।
धनी रूप गुन अवगुन के,न निकले मीन मेक।।15।।
सतयुग से इस कलियुग तक,पूजित सिक्का वान।
विश्व पटल पर हर समय,दिखते बहुत महान।।16।।
मैं तुम सिक्का बन जाते ,जाते जहाँ उछाल।
दूजा चिल्लर बना हमें, हो रहे हैं निहाल।।17।।
चिल्लर हैं आम मानव,कुछ के गाल गुलाब।
जी तोड़ परिश्रम पर के,पर हो मालामाल।18।।
जाति जाति भांति कुनवे,कैसे होवे एक।
उच्च वर्ग हर जाति का, हमे बनाव अनेक।।19।।
उत्तम मध्यम निम्न लघु, हम है वर्ग प्रकार।
उत्तम का सद बद सिक्का,ही होता साकार।।20।।
जमाने उपर जमाने, सिक्का निज आज कल।
मनुज हो रहा बावला, बना मनुजता विफल।।21।।

गुरुवार, 23 जनवरी 2020

।।कुशल कौशल।।

मातु पितु चरण कमल रज,मन महु प्रतिपल धारि।
शांडिल्य कुलभूषण पर, रिझै प्रेम मुरारि।।1।। 
हंस बंस अवतंश नर ,सोहै तीनो लोक।
 जगत जननी कृपा रज, हर लें हर का शोक।।2।। 
 जगत तनय बन्दन माँ गिरिजा।कौशल किशोर प्रेरित सिरिजा।। दूधनाथ की अद्भुत कृपा।अक्षयवर है जहां कुलदीपा।।1 ।।सोहे सर तीर महिषमर्दिनी। विंध्यवासिनी जगत बंदिनी।। तिल अवली की पावनी धरा । फैलाती सुख शांति हरा भरा।।2।। अक्षय कुल भूषण श्रेष्ठ बंसा। प्रगटे क्षीर विवेकी हंसा।। तिनके तनय तीन जग  भारी। रामाक्षु गुद्दर कालि तिवारी।।3।।काली कृपा कालिका कला। कुशल किशोर कुलदीपक भला।।आज जनक दुलारी दुलारें।नित राम रस सेवक सवारें।। 4।।राजेश रसराज रसिका का। काय मन बानी जु ध्यानी का।।बहु भाव भवन भव मह भावै।जब राम रसिक बानी गावै।।5।।हम धन्य धन्य हो ही जावै। जब कुल कुशल श्रीचरित गावै।।विंध्यवासिनी विन्ध्येश्वरी।  रखें लाज नित नगरी डगरी।।6।। नहि हैं पावन गौतम नारी। किये है पावन हैं त्रिसिरारी।।अहिल्यापुर बने इक धामा।मम कुशल तह गाव जब रामा।।7।।पांचों अहिल्या मंदोदरी।कन्या तारा कुंती द्रोपदी।।राम कृष्ण संग संग आयीं।अद्भुत जश तिहु लोक पायीं।।8।।बिनववु तिनके पंकज-चरना।जानकि राधे-राधे कहना।।आजु धन्य मम कुल त्रिपुरारी।कुशल गावै जस त्रिसिरारी।।9।।करें पावन अपावन धामा।अरुप रुप लेवे जह विश्रामा।मैं मतिमंदा तू मति धामा।हर हर लो कुशल सब अज्ञाना।।10।। 
गिरिजा करै हनु बन्दन, अवधेश के आँगन।
कुशल रह कौशल किशोर,जग करै नित बंदन।।1।।
जिनकी कृपा लवलेश,मिटै सबहीं कलेश।
इष्ट इष्ट दे अवधेश,दया करै विश्वेश।।2।।