उस समय मेरी उम्र कितनी रही मुझे याद नहीं पर मुझे यह सब याद है कि बबुवा बाबा के दरवाजे पर हर नवरात्रि के दौरान मूर्ति स्थापित होती रात को अद्भुत कार्यक्रम होते जिसमे आस-पास के सभी गाँवों से लोग
भाग लेते।
दशहरा के दिन गाँव के पोखरे पर बहुत विशाल मेले का आयोजन होता जिसमें आस-पास के गाँवों से माताजी की अनेक मूर्तियॉं सुबह से ही आने लगती,हमारे गाँव की भी मूर्ति बड़े ही सम्मान से पोखरे पर विसर्जन हेतु लायी जाती,कीर्तन होता, मेला भरताऔर शाम को सभी मूर्तियों का विसर्जन करने के बाद सभी मस्ती से रवाना होते।
उन सभी माता प्रेमियों को दिल से शुक्रिया जिन्होंने मन्दिर स्थापना की परिकल्पना कर माघ शुक्ल एकादशी शनिवार फरवरी ग्यारह, उन्नीस सौ पंचानवे को माता मन्दिर की नींव रखी,जिसमें अठारह फरवरी,दो हजार पाँच माघ शुक्ल दशमी शुक्रवार को मूर्ति स्थापित कर मन्दिर में प्राण फूकने का कार्य सम्पन्न किया।
अब हम सभी का परम दायित्व हो जाता है कि हम समय-समय पर माताजी के मन्दिर पर सम्पन्न होने वाले सभी धार्मिक-सामाजिक कार्यकर्मो के कार्यकर्ता बने,आयोजक बने और बढ़-चढ़ कर भाग ले।
।। जय माता की ।।
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