दादा-दादी का पोता-पोती के शिर पर हाथ।।
परितः कल्याण कामना से होता ऊँचा माथ।
दुःख-सुख को सह जाते बनाकर एक गाथ।।1।।
परिवार में इक दूजे पर इक दूजा है वारा।
किसी का राज नहीं सबका राज है न्यारा।।
सब सबके लिए सब सबका है जग सारा।
छोटा सा संसार जहाँ खिले प्यार का तारा।।2।।
भगवान माता-पिता समक्ष है जग उजियारा।
तात सभी हैं सबके विचार जहाँ प्यारा-प्यारा।।
सम भाव सम रीति-नीति प्रीति का सहारा।
हर जन हर जन का जान आँखों का तारा।।3।।
सुन्दर सा बाग जिसमें पुष्प बहु भाँति खिलें।
राग-द्वेष से दूर निष्कंटक हो सब हिलें मिलें।।
सुमति साथ सब निज गंध से घर-द्वार सिलें।
भाँति-भाँति पराग फैला निज डाली पर हिलें।।4।।
परिवार-उपवन का जन जन आम्र मंजरी हैं।
दुःख-झंझावात झेल बन जाते वे सब केरी हैं।।
फलों के राजा सब राजा सा सुनते जग भेरी हैं।
त्याग-तपस्या-गुठली सुख किसलय अब चेरी हैं।।5।।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (02-09-2020) को "श्राद्ध पक्ष में कीजिए, विधि-विधान से काज" (चर्चा अंक 3812) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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सुन्दर
जवाब देंहटाएंछोटा सा संसार जहाँ खिले प्यार का तारा।।2।।
जवाब देंहटाएंभगवान माता-पिता समक्ष है जग उजियारा।
बहुत सुन्दर।
आ Gst Shandilya जी, बहुत सुंदर रचना!
जवाब देंहटाएंसम भाव सम रीति-नीति प्रीति का सहारा।
हर जन हर जन का जान आँखों का तारा।।3।।
सुन्दर सा बाग जिसमें पुष्प बहु भाँति खिलें।
राग-द्वेष से दूर निष्कंटक हो सब हिलें मिलें।।
मैंने आपका ब्लॉग अपने रीडिंग लिस्ट में डाल दिया है। कृपया मेरे ब्लॉग "marmagyanet.blogspot.com" अवश्य विजिट करें और अपने बहुमूल्य विचारों से अवगत कराएं। सादर!--ब्रजेन्द्रनाथ