आज और कल की।
अपने भविष्य की।
भूत की वर्तमान की।।
घर वार,सरकार की।
अपनों की,परायों की।
जन-जन की जहां की।
हर थल की,यहाँ-वहाँ की।।
समाज की परिवार की।
राज राज की देश की।
स्वदेश की स्वदेशी की।
कथनी-करनी की।।
शुरू करें
जीवन से जीवन की।
सबके लिए सबकी।
अबके लिए अबकी।
तबके लिए तबकी।।
कथा मानव की।
सुख-दुःख की।
दिन-रात की।
सत और तम की।
सतयुग देखा नहीं।
त्रेता राम-रावन सही।
द्वापर की जाने मही।
कल की बखाने बही।।
युगों-युगों की गाथा।
है सब मानव गाता।
सुधी जन आज बताता।
पंडित कल को रिझाता।।
हम तो निज को भाते हैं।
निज पर ही इठलाते हैं।
पर पर पर रौब जमाते हैं।
औरों को खूब लुभाते हैं।।
संवेदना विहीन संववेदना अब।
कोरोना त्रस्त मन रोता कब।
शक्ति को हम पूजे जब।
भक्ति भगवान भवन तब।।
विचार तो आज-कल झाड़-फुस सा।
बरसती मेढ़क-कुकुरमुत्ते सा।
सकुन अपसकुन राज सा।
दुलारा दमदार दामाद सा।।
जो कल था ओ कल होगा।
जो आज है वह भी कल होगा।
कल आज आज कल होगा।
जगत रीति होगा जग प्रीति होगा। ।
सावन मन भावन ही होगा।
जब मानव मन पावन होगा।
दुःख-राका का जावन होगा।
सुख-दिवा का आवन होगा।।
कल काम आज आराम।
आज काम कल आराम।
तो फिर कब होंगे सब काम।
छोड़ दो फिर सब राम के नाम।।
राम-श्याम कल काल आज तिलक भाल।
मानवता की अद्भुत ढाल।
आज-कल के हैं मिसाल।
थर्ड आई हैं संसार ताल- जाल।।
तब जाति कर्म आधारित।
अब जाति जन्म धारित।
तब कर्म कर्म का मर्म।
बनाता सब युग धर्म।।
अब जन्म का सब काम।
काम का नाम हुवा तमाम।
रिश्ते नाते करते आराम।
नहीं हमें अपने से विश्राम।।
सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंसादर अभिनंदन
जवाब देंहटाएं