यह हकीकत है माँ से इंसा देव दानव मानव बनता है।
खयाली पुलाव से नहीं कर्म से नर यहाँ आगे बढ़ता है।।
ज्ञानियों का भाल-सूर्य हर हाल सुबरन सा चमकता है।
मूर्ख-मेढ़क सत्य-रज्जू को असद-सर्प ही समझता है।।1
यह हकीकत है माया वश इंसान मानवेतर हो जाता है।
प्रकृति-नटी के रुप-जाल नर कठपुतली हो जाता है।।
आशा-रथ सवार निर्बल रथी भी महारथी हो जाता है।
कनक कामी कदाचार करने को कटिबद्ध हो जाता है।।2
यह हकीकत है जहां संघ में सामर्थ्य हर हाल रहता है।
दिखावा में उलझ केवल जन-सामान्य ही तड़पता है।।
असामान्य कायदा-कानून को निज दासी समझता है।
जो नर जैसा होत वैसा ही हर दूसरे को समझता है।।3।।
सुन्दर अभिव्यक्ति।
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