उद्धर्तुकामान् सनकादिसिद्धानेतद्विमर्श शिवसॊत्रजालम्
(1)अ इ उ ण (2)ऋ लृ क् (3)ए ओ ड् (4)ऐ औ च् ll
अच् अर्थात् स्वर वर्ण, इनमे इनके दीर्घ आ ई ऊ तथा प्लुत ओम भी आकर 9+4=13स्वर हो जाते हैं.
(5)ह य व र ट् (6)ल ण (7)ञ म ड. ण न म् (8)झ भ य् (9)घ ढ ध ष (10)ज ब ग ड द श् (11)ख फ़ छ ठ थ च ट त व् (12)क प य् (13)श ष स र् (14)ह ल्.
हल् अर्थात् व्यञ्जन वर्ण 33+4अयोगवाह वर्ण =37
13स्वर +33व्यञ्जन +04अयोगवाह =50वर्ण
इस सूत्र को चतुर्दश, प्रत्याहार विधायक, शिव, माहेश्वर, वर्णसमाम्नाय और अक्षरसमाम्नाय सूत्र.भी कहते हैं. इन्हें उपदेश भी कहा जाता है.
सबसे पहले स्वर अच्, अन्तस्थ यण , पञ्चम् ञम् , चतुर्थ् झष , तृतीय जश्, द्बितीय फ़िर् प्रथम चय् और अन्त में उष्म शल् वर्णों का विधान है.
अट और शल् प्रत्याहार के कारण ह दो बार आये हैं.
अण =अ इ उ ऋ लृ तथा अणु दित्सवर्णस्य चा प्रत्ययः =अ से ल तक वर्णो को शामिल करने के लिए ण दो बार आया है.
अष्टाध्यायी में 8अध्याय32पाद और 4000सूत्र हैं.
व्याकरण के आदि प्रवर्तक भगवान नटराज हैं.
अणुदित सवर्णस्य चाप्रत्ययः :-
अविधियमान अण और उदित की सवर्ण संज्ञा होती है वह प्रत्यय. में नही हो तो भी.
जैसे :-अण और कु चु टु टु पु के साथ होता है.
केवल इसी हेतु ण दूसरी बार आया है.
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