सावन-भादव तू मधु-माधव है।
दिन उजला रात काला है,
साधु-साधु तू दानव-मानव है।।1।।
रूप अनोखा अद्भुत तेरा,
तेरे कारण जग में है तेरा-मेरा।
तू अनंग है माया का फेरा,
है तू कभी शाम कभी सबेरा।।2।।
तू दायां-बायां कदम चाल है,
एक आगे तो एक पीछे है।
एक पीछे तो एक आगे है,
नर आगे-पीछे तेरे भागा है।।3।।
तू यथार्थ तू सपना है,
तू पराया तू अपना है।
तू कथा तू कल्पना है,
तू जल्पना तू अल्पना है।।4।।
भागता तू भगाता तू,
दिखता तू दिखाता तू।
सीखता तू सिखाता तू,
मरता तू मराता तू।।5।।
सुमन कन तू हीरा है,
सिख दे तू हरता पीरा है।
सहज सरल तू वीरा है,
सदा शान्त सिंधु धीरा है।।6।।
चाहे जो सो करे ,
जो करे वो भरे।
और करे और भरे,
लोभ-मोह से परे।।7।।
तू मनमौजी साथी रे,
देखो पारा-पारी रे।
कभी ऊपर कभी नीचे रे,
कभी सवार कभी सवारी रे।।8।।
कभी सलोना कभी सलोनी,
रूप बदलता कोना-कोनी।
सुख मय सूरत कभी है रोनी,
हम तो समझें टोना-टोनी।।9।।
समझ से परे खेल तेरे,
मारग खोले देर-सबेरे।
हर मारग हैं तेरे चेरे,
तू सबका है सब है तेरे।।10।।
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