आओ हम विचारे कुछ आज ,सूर्य-चन्द्र सा करते काज।
दिन-रात सिखे-सिखाये साज ,देश बनाये जग सिर ताज।। १।।
श्री की चाह जह राह आज ,तह येन-केन मन-बंचक राज।
छोड़ जग मर्यादा मान लाज,मृगमरीचिका पर करते नाज।। २ । ।
निज आन मान मर्यादा मर्यादा, पर पर का सब बकवास ।
आज निज का निज जन ही ,करने को आतुर है सर्वनास । । ३ । ।
विश्व के दिग्गज महा नायक,विकसित बड़े-बड़े जो देश ।
कथनी-करनी है मयूर सी,भोजन विषधर सुन्दर वेश । । 4 । ।
किसकी किसकी गाथा गाये,पड़ोसियो का क्या कहना ।
निज विस्तार ही जिनको भाये,निजता ही जिनका गहना । । 5। ।
अस्त्र-शस्त्र आतंक अंक मे,पलते इनके सारे ख्वाब ।
जैविक कोरोना अंगना मे,संग शराब शबाब कबाब । । 6। ।
खेल रहे दक्ष रक्षक कामी, फैला घातक रोग सुनामी ।
अर्थहीन अर्थ अनर्थ कामी,बाम मार्गी ये कु मार्ग गामी । । 7। ।
दीन-हीन जन मीन बना, ये मछुवारे हैं जाल बिछाये ।
सत्ता-धन को शान बना,जग मह नाश का रास रचाये । । 8। ।
शेष सभी को आज संग हो,हरदम साथ निभाना है।
संघे शक्ति कलियुगे हो,दुष्टों को औकात दिखाना है। । 9। ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें