सरस राग,
विराग की भावना
राग की स्थापना।
आज में जीना
कल का त्यागना।।
अति को छोड़ना
सम्बन्ध जोड़ना।
सहज सदा रहना
सहन तो करना।।
आशा निज से पर से
पूरी भी अधूरी भी सही।
निराशा कहीं से
मिले स्वीकारो भी सही।।
पी पी को गले लगा
भेद को पहचानो तो सही।
आशा को गले लगा
निराशा को भगाओ तो सही।।
पी माँ का
ढूध को पिलाता है।
पी गाड़ी का
राह को बनाता है।।
पी अपमान घूट
जीवन को सहज बनाता।
पी मान का घूट
जीवन को सदा उलझाता।।
पी कालकूट यहाँ।
बन जा सहज सरल शंकर।
पी अमृत इस जहाँ
न बन कभी कहीं प्रलयंकर।।
पी जीवन पथ-गरल
जीवन होगा पग-पग सरल।
पी राग-विराग-अनल
हो जाय सब सदा विमल।।
शब्दों के साथ
अपनापन का नित हाथ।
बिन शब्द नवा माथ
सबको अपना बना हाथों-हाथ।।
पत्ते से भी
तो जड़ से भी।
निज से भी
तो पर से भी।।
समान रहे
बैर भाव त्यागकर।
साथ-साथ रहे
सब कुछ भूलाकर।।
बन जाओ
जो भी बनाना पड़े।
हट जाओ
जहां से हटना पड़े।।
डट जाओ
जहाँ भी डटना पड़े।
सट जाओ
जहाँ बजी सटना पड़े।।
अंधा बनो
देखकर अनदेखा करो।
बहरा बनो
सुन कर अनसुना बनो।।
गूँगा बनो
बनते रहो जो-जो बनो।
साधु बनो
बनना है सद गृहस्थ बनो।
जिंदगी सहज है
जिंदगी असहज है।
जिंदगी अमृत है
जिंदगी माहुर है।।
पी पी कर जी
सब जीवन का है।
पिला पिला कर जी
सब इसी धरा का है।।
रुकना
रुक-रुक कर चलना।
थकना
थक-थक कर सम्हलना।।
सावन सा
जीवन में फुहारे हैं।
वसंत सा
जीवन में बहारे हैं।।
रुकती नहीं
जिंदगी कभी किसी के बिना।
कटती नहीं
जिंदगी कभी किसी के बिना।।
कट रही जिन्दगी
कह देते सहज सब आज।
बनी रही जिंदगी
कट जाय सहज सब साज।।
जिंदगी है जीना
सिखाते यहाँ जीव हैं।
सरबस है पीना
पिलाते जहाँ शिव हैं।।
आशा अमर धन
जीवन के महा समर में।
रख आश विश्वाश
जीवन जीतेंगे हर रन में।।
सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद मयनकजी।
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