अद्भुत है अनूठा है कबका है सर्वत्र सबका है।।
मुखपोथी पर निज मुख दिखे तो सही-सही है।
अमुख-परमुख वाली फेसबुक सदा ही मैली है।।1।।
मान ज्ञान शान बखान का प्लेटफॉर्म मानते हैं।
निज का निज जन सम्पर्क स्थान पहचानते हैं।।
पर पर वश हो निंदनीयभी लोग पोस्ट डालते है।
हम नहीं ऐसों को अपना कभी दोस्त मानते है।।2।।
चाहता हूँ ऐसे मित्र मित्रता से निज नाम हटा लें।
सुधर जाये अथवा उधड़ने वालों में नाम जुड़ा लें।।
सुधड़ो वा उधडों प्रकृति की प्रकृति पहचान लें।
मेरा क्या मैंने कह दिया उचित लगे तो मान लें।।3।।
मित्र हो एक या दो पर मित्र कर्ण-कृष्ण सा हो।
चलो फेसबुकी तो हजारों हो पर निष्प्राण ना हो।।
निज तक संकुचित दूजा के लिए बेकार ना हो।
सब लाइक शेयर सब्क्राइव करें उदास ना हो।।4।।
लाइक शेयर सब्क्राइव से ही पहचान बढ़ती है।
फेसबुकी मित्रों की मित्रता भी परवान चढ़ती है।।
अशिष्ट उच्छिष्ट पोस्ट आप को बदनाम करती है।
मित्रों निज मुख दिखाओ इससे पहचान बढती है।।5।।
।। जय हिन्द जय भारत ।।
बहुत सुन्दर रचना.
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