शुक्रवार, 19 जनवरी 2024

।।भुजंगी छंद हिन्दी और संस्कृत में।।

।।भुजंगी छंद हिन्दी और संस्कृत में।।

यह त्रिष्टुप परिवार का समवर्ण वृत्त छंद है।

लक्षण:

"भुजंगी यती तीन अंते लगौ"

परिभाषा:

जिस श्लोक/पद्य के प्रत्येक चरण में 

तीन यगण तथा एक लघु और एक गुरू के

क्रम में ग्यारह-ग्यारह वर्ण होते हैं 

उस श्लोक/पद्य में भुजंगी छंद होता है।

संस्कृत में यह छंद नाम मात्र का

ही है।और हिन्दी में भी इसकी

संख्या कम ही है।

हिन्दी में भुजंगी छंद:

हिन्दी और संस्कृत दोनों में उक्त

लक्षण और परिभाषा मान्य हैं।

हिन्दी में उदाहरण देखते हैं:

मुझे भी सहारा दिखेगा सदा।

वही प्यार माँ का मिलेगा सदा।।

बसी हो हमारे हिया में सदा।

दिखे दिव्य बाती दिया में सदा।।

     उक्त पद्य में प्रथम चरण के

अनुरूप ही सभी चारों चरणों में

तीन यगण तथा एक लघु और

एक गुरू के क्रम में ग्यारह-ग्यारह 

वर्ण हैं अतः यहां भुजंगी छंद है।

कहीं-कहीं इसे "रसावल" भी

कहा जाता है 

।। धन्यवाद।।

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