शुक्रवार, 26 जनवरी 2024

वंशस्थ छंद संस्कृत और हिन्दी में

वंशस्थ  छंद:-

यह जगती परिवार का 12×4=48

वर्णों का समवर्ण वृत्त छंद है।

इस परिवार को "जगतीजातीय"

भी कहते हैं। वंशस्थ छंद 

को वंशस्थविल अथवा 

वंशस्तनित भी कहते हैं 

लक्षण :-

जतौ तु वंशस्थमुदीरितं जरौ। 

परिभाषा:-

वंशस्थ छन्द के प्रत्येक चरण में 

क्रमश: जगण, तगण, जगण एवं

रगण के क्रम में 12 वर्ण होते हैं।

चार चरणों में 12×4=48 वर्ण

होते हैं।अर्थात ISI SSI ISI SIS 

के क्रम में वर्ण होते हैं। 

उदाहरण:-

      I S I  S S I  I S I  S I S 

1- गजाननं भूत गणादि सेवितं, 

   कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम् । 

  उमासुतं शोक विनाशकारकम्, 

  नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम् ॥

2-प्रसन्नतां या न गताभिषेकतस्

  तथा न मम्ले वनवासदुःखतः।

 मुखाम्बुजश्री रघुनन्दनस्य मे 

 सदास्तु सा मंजुलमंगलप्रदा॥

3-भवन्ति नम्रास्तरवो फलोद्गमैः

 नवाम्बुभिर् दूरविलम्बिनो घनाः। 

 अनुद्धताः सत्पुरुषाः समृद्धिभिः

 स्वभाव एवैष परोपकारिणाम्॥ 

4-सशंखचक्रं सकिरीटकुण्डलं,

  सपीतवस्त्रं सरसीरुहेक्षणम् । 

  सहारवक्षःस्थलकौस्तुभश्रियं,

 नमामि विष्णुं शिरसा चतुर्भुजम् ॥

हिन्दी में भी वंशस्थ छंद के

लक्षण और परिभाषा यही है।

“जताजरौ” द्वादश वर्ण साजिये।

प्रसिद्ध ‘वंशस्थ’ सुछंद राचिये।।

आइए उदाहरण देखते हैं :-

1-बिना चले मंज़िल क्या कभी मिली।

   बहार आई तब ही कली खिली।।

   कशीश मानो दिल में कहीं पली।

   जुबान की वो सच बात हो चली।।

उक्त सभी संस्कृत और हिन्दी के 

उदाहरणों में आए प्रत्येक श्लोक/

पद्य के प्रत्येक चरणों में जगण, 

तगण, जगण एवं रगण अर्थात 

I S I S S I I S I S I S के  क्रम

में वर्ण आए हैं अतः वंशस्थ छंद है।

    ।। धन्यवाद।।

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