।। बरवै / बरवा छंद ।।
बरवै अर्धसम मात्रिक छंद है।
इसके प्रथम एवं तृतीय (विषम)
चरणों में 12-12 मात्राएँ तथा
द्वितीय और चतुर्थ (सम) चरणों
में 7-7 मात्राएँ होती हैं।
इसके सम चरणों के अंत में
जगण (ISI) अथवा तगण (SSI)
आकर छंद को सुरीला बना देते हैं।
बरवै ‘अवधी भाषा’ का व्यक्तिगत
छन्द है, जो प्रायः श्रृंगार रस के
लिए प्रयुक्त होता है।
गोस्वामी तुलसीदासजी ने
"बरवै रामायण" नामक ग्रंथ की
रचना सात कांडो और 69 बरबै
छन्दों में किया है।
उनमें से निम्न उदाहरण प्रस्तुत हैं -----
I I S I I S S I I, S I I S I (जगण)
अब जीवन कै है कपि, आस न कोय।
I I I I S S I I S, S I I S I (जगण)
कनगुरिया कै मुदरी, कंकन होय।।1।।
I I I I I I I I S I I, I I I I S I(जगण)
गरब करहु रघुनंदन,जनि मन माहँ।
S I I S I I S I I, I I S S I(तगण)
देखहु आपनि मूरति,सिय कै छाहँ॥2।।
S I I I I S I I I I, S I I S I(जगण)
स्वारथ परमारथ हित,एक उपाय।
S I S I I I I I S, S I I S I(जगण)
सीय राम पद तुलसी, प्रेम बढ़ाय॥3॥
।।।धन्यवाद।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें