।।भुजङ्गप्रयात छंद हिन्दी और संस्कृत में।।
छन्द का नामकरण-
हमारे आचार्यों ने प्रत्येक छन्द के
भीतर विद्यमान जो सूक्ष्म विशेषताएँ
हैं उनके आधार पर नामकरण किया है,
क्योंकि यदि आप नाम के रहस्य को
जानते है तो उस छन्द का सम्पूर्ण
स्वरुप मानसिक पटल पर उपस्थित हो
जाता है। 'भुजङ्गप्रयातम्' में'भुजङ्ग' का
अर्थ होता है 'सर्प' और प्रयातम् का
अर्थ होता है 'गति' अर्थात् कहने का
आशय है साँप की गति । क्योंकि साँप
के पैर तो होते नहीं वह आगे बढ़ने के लिये
पहले अपने शरीर को मोड़ता है और
फिर मोड़े हुए कुण्डली को फैलाकर
आगे की ओर बढ़ जाता है। इसी
कुण्डली को भुज कहते हैं इसलिये
भुजंग का मतलब होता है -
भुजेन गच्छति इति भुजङ्गः'
अर्थात् जो अपनी कुंडली के बल
पर आगे बढ़ता है उसी को
भुजङ्ग कहते हैं। भुजङ्ग की जो
गति है उसे प्रयात कहते है –
भुजङ्गस्य प्रयातम् इव प्रपातं
यस्य तत् भुजङ्गप्रयातम्' संस्कृत
में इस प्रकार की व्याख्या हुई है।
कहने का आशय यह है कि सर्प
की चाल की तरह जिस छन्द की
चाल होती है उस छन्द को
'भुजङ्ग प्रयात' कहते हैं।
गंगादास छन्दोमंजरी में
भुजङ्गप्रयात छन्द का लक्षण
इस प्रकार दिया गया
है - भुजङ्गप्रयातं चतुर्भिर्यकारैः'
अर्थात् जिस छन्द के प्रत्येक
चरण में क्रमशः चार यगण हों,
उसे भुजङ्गप्रयात छन्द कहते हैं।
इसके प्रत्येक चरण चार यगणों
से युक्त होता है।यगण का नाम
आते ही आदिलघुर्यः अर्थात् यगण
आदि में लघु वर्ण वाला होता है
और अन्त में द्वितीय और तृतीय
अक्षर गुरु होते हैं।केदारभट्ट कृत
वृत्तरत्नाकर में भुजङ्गप्रयात छन्द
का लक्षण इस प्रकार से प्राप्त होता
है – भुजङ्गप्रयातं भवेद्यैश्चतुर्भिः ।
अर्थात् भुजङ्गप्रयात छन्द के प्रत्येक
चरण में क्रमशः चार यगण तथा
पादान्त यति होता है। यह जगती
परिवार का प्रत्येक चरण
में 12 वर्ण × 4 चरण अर्थात् =
48 वर्णों का समवर्ण वृत्त छंद है।
इस परिवार को "जगतीजातीय"
भी कहते हैं।
लक्षण:-
संस्कृत में इसके लक्षण निम्न
तीन प्रकार से मिलते हैं:
1-भुजङ्गप्रयातं चतुर्भि यकारै:।2-भुजङ्गप्रयातं भवेद्यैश्चतुर्भिः।या
भुजङ्गप्रयातं भवेद् यैश्चतुर्भि:।
3-चतुर्भिमकारे भुजंगप्रयाति:।
जिनका सीधा अर्थ है कि
भुजङ्गप्रयात छंद में चार यकार
अर्थात चार यगण होते हैं।
चार यगण अर्थात
I S S I S S I S S I S S
के क्रम में चारों चरणों में
12×4=48 वर्ण होते हैं ।
उदाहरण:
रुद्राष्टक इस छंद सर्वोत्तम
उदाहरण है:-
I S S I S S I S S I S S
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं।
विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं॥
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं।
चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहं॥1॥
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं।
गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं॥
करालं महाकाल कालं कृपालं।
गुणागार संसारपारं नतोऽहं॥2॥
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं।
मनोभूत कोटि प्रभा श्रीशरीरं॥
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा।
लसद्भालबालेन्दु कंठे भुजंगा॥3॥
चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं।
प्रसन्नाननं नीलकंठं दयालं॥
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं ।
प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि॥4॥
प्रचंडं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं।
अखंडं अजं भानुकोटिप्रकाशं॥
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं।
भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यं॥5॥
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी।
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी॥
चिदानंद संदोह मोहापहारी।
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥6॥
न यावद् उमानाथ पादारविंदं।
भजंतीह लोके परे वा नराणां॥
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं।
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं॥7॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजां।
नतोऽहं सदा सर्वदा शंभु तुभ्यं॥
जरा जन्म दुःखोद्य तातप्यमानं॥
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो॥8॥
यहां हमें सभी पक्तियों में
I S S I S S I S S I S S
के क्रम में वर्ण प्राप्त होते हैं
और सभी आठों श्लोकों में
भुजङ्गप्रयात छंद है।
हिन्दी:-
हिन्दी में भी लक्षण और
परिभाषा संस्कृत की तरह ही हैं।
आइए उदाहरण देखते हैं:-
घुमाऊँ, बनाऊँ, सुखाऊँ, सजाऊँ।
यही चार हैं कर्म मेरे निभाऊँ।।
न होठों हँसी, तो दुखी भी नहीं हूँ।
जिसे रोज जीना.. कहानी वही हूँ ।।
यहाँ हमें सभी पक्तियों में
I S S I S S I S S I S S
के क्रम में वर्ण प्राप्त हो रहे हैं
इसलिए भुजङ्गप्रयात छंद है।
।।धन्यवाद।।
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