।।रथोद्धता छंद हिन्दी और संस्कृत में।।
यह त्रिष्टुप परिवार का छंद है।
लक्षण:-संस्कृत में इसके निम्न
दो लक्षण बताये गये हैं:-
(1)रथोद्धता रनौ रलौ ग।
(2)रान्नराविह रथोद्धता लगौ।
इन दोनों सूत्रों के आधार पर
इस छंद की परिभाषा है:-
परिभाषा:-
जिस श्लोक/पद्य के प्रत्येक चरणों में
रगण नगण रगण एक लघु और एक
गुरू के क्रम में ग्यारह-ग्यारह वर्ण होते
हैं उस श्लोक/पद्य में रथोद्धता छंद होता है।
उदाहरण:
SIS III SIS IS
कोसलेन्द्रपदकन्जमंजुलौ
कोमलावजमहेशवन्दितौ।
जानकीकरसरोजलालितौ
चिन्तकस्य मनभृंगसंगिनौ॥1।।
कुन्दइन्दुदरगौरसुन्दरं
अम्बिकापतिमभीष्टसिद्धिदम्।
कारुणीककलकन्जलोचनं
नौमि शंकरमनंगमोचनम्॥2।।
उक्त दोनों श्लोकों के चारो चरणों
में प्रथम श्लोक के प्रथम चरण के
अनुसार ही रगण नगण रगण तथा
एक लघु और एक गुरू के क्रम में
ग्यारह-ग्यारह वर्ण हैं। अतः दोनों
में रथोद्धता छंद है।
हिन्दी:-
ठीक इसी प्रकार हिन्दी में भी
इस छंद के लक्षण और परिभाषा
हैं। हिन्दी के उदाहरण देखते हैं:
SIS III SIS IS
(1) रौद्र रूप अब वीर धारिये।
मातृ भूमि पर प्राण वारिये।।
अस्त्र शस्त्र कर धार लीजिये।
मुंड काट रिपु ध्वस्त कीजिये।।
(2) नेह प्रीत नयना निखार लो।
प्रेम मीत सजना सवार लो।।
गीत ताल तबला धमाल हो।
गान सोम महिमा कमाल हो।।
उक्त दोनों पद्यों के चारों चरणों
में प्रथम श्लोक के प्रथम चरण के
अनुसार ही रगण नगण रगण तथा
एक लघु और एक गुरू के क्रम में
ग्यारह-ग्यारह वर्ण हैं। अतः दोनों
पद्यों में रथोद्धता छंद है।
विशेष:
ध्यान देने योग्य बात यह है कि
त्रिष्टुप छंद11×4=44 वर्ण वाले
सात छंदों में से पांच इंद्रवज्रा
उपेन्द्रवज्रा उपजाति शालिनी और
स्वागता के अंत में दो गुरू वर्ण
आते हैं लेकिन भुजंगी और रथोद्धता
के अंत में लघु और गुरू वर्ण आते हैं।
।।धन्यवाद।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें