।।दोहा छंद।।
दोहा अर्द्ध सम मात्रिक छंंद है। दोहे में चार चरण
होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय)
चरण में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों
(द्वितीय तथा चतुर्थ) चरण में 11-11 मात्राएँ
होती हैं। सम चरणों के अंत में एक गुरु और
एक लघु मात्रा का होना आवश्यक होता है।
दोहे के मुख्य 23 प्रकार हैं:-
1.भ्रमर, 2.सुभ्रमर, 3.शरभ, 4.श्येन,
5.मण्डूक, 6.मर्कट, 7.करभ, 8.नर,
9.हंस, 10.गयंद, 11.पयोधर, 12.बल,
13.पान, 14.त्रिकल 15.कच्छप,
16.मच्छ, 17.शार्दूल, 18.अहिवर,
19.व्याल, 20.विडाल, 21.उदर,
22.श्वान, और 23.सर्प।
दोहे में कलों का क्रम
(अ) दोहे में विषम चरणों के कलों का क्रम
4+4+3+2 (चौकल+चौकल+त्रिकल+द्विकल)
या 3+3+2+3+2 (त्रिकल+त्रिकल+द्विकल+त्रिकल+द्विकल)
शुभ माना जाता है।
(ब) दोहे के सम चरणों के कलों का क्रम
4+4+3 (चौकल+चौकल+त्रिकल) या
3+3+2+3 (त्रिकल+त्रिकल+द्विकल+त्रिकल)
का होना उत्तम माना गया है।
उदाहरण -
S I I I I. S I I I S I I I I S S. S I
रात-दिवस पूनम-अमा, सुख-दुःख, छाया-धूप।
यह जीवन बहुरूपिया, बदले कितने रूप।।1।।
रहिमन पानी राखिए,बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरे,मोती मानुष चून।।2।।
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरती रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहिं सुर भूप।।3।।
मेरी भव बाधा हरौ, राधा नागरि सोय।
जा तन की झाँई परै, स्याम हरित दुति होय।।4।।
कागा काको धन हरै, कोयल काको देय।
मीठे बचन सुनाय कर, जग अपनो कर लेय।।5।।
बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय।
सौंहे करैं भौंहनि हँसै, दैन कहै नटि जाय।।6।।
दोहों के बारे में कुछ आवश्यक बातें:
1-दोहे के सम [दूसरे एवं चौथे] चरणों के
अन्तिम शब्द का अंत दीर्घ मात्रा से नहीं होता।
यानी हर दोहे की पंक्ति के अंत में लघु
पदांत होता है ।
2- दोहे के अंत में तीन ही गण इस्तेमाल होते
हैं: तगण [2-2-1], जगण [1-2-1] या नगण
[1-1-1] क्योंकि इन्हीं गणों के
अंत में लघु अर्थात एक मात्रा होते हैं।
शेष गणों के अंत में गुरु या दीर्घ मात्रा =
2 होने के कारण दूसरे व चौथे चरण के
अंत में वे प्रयोग नहीं होते।
3- दोहे के विषम [पहले तथा तीसरे]
चरणों के प्रथम शब्द जगण [1-2-1]
यानी लघु-गुरु-लघु मात्राओं वाले नहीं
होने चाहिए लेकिन यदि देवता का नाम
या वंदना की स्थिति हो तो जगण
हो सकता है।
4- दोहे के विषम चरणों के अन्त में सगण
(1-1-2), रगण (2-1-2) या नगण (1-1-1)
आना चाहिए।
5-दोहे का शाब्दिक अर्थ है- दुहना, अर्थात्
शब्दों से भावों का दुहना।
6-दोहा चार चरणों वाला अर्द्धसम
मात्रिक छन्द है।
7- दोहा लोक साहित्य का सबसे
सरलतम और लोकप्रिय छंद है
जिसे साहित्य में यश मिला।
8-वर्ण्य विषय की दृष्टि से दोहों का
संसार बहुत विस्तृत है। यह यद्यपि
नीति, अध्यात्म, प्रेम, लोक-व्यवहार,
युगबोध – सभी स्फुट विषयों के
साथ-साथ कथात्मक अभिव्यक्ति
भी देता आया है, तथापि मुक्तक
काव्य के रूप में ही अधिक
प्रचलित और प्रसिद्ध रहा है।
9-अपने छोटे से कलेवर में यह बड़ी-से-
बड़ी बात न केवल समेटता है, बल्कि
उसमें कुछ नीतिगत तत्त्व भी भरता है।
तभी तो इसे गागर में सागर भरने
वाला बताया गया है।
10-संस्कृत में जो लोकप्रियता
अनुष्टुप छंद को है वही लोकप्रियता
हिन्दी में दोहा छंद को है।
।। धन्यवाद।।
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