।।त्रिष्टुप छंद।।
जिस छंद के चार चरण हो और
प्रत्येक चरण में ग्यारह-ग्यारह
अक्षर हों वह त्रिष्टुप छंद होता है।
यह श्लोक इसका उदाहरण
होते हुवे भी इस छंद के बारे में
भी प्रसिद्ध है:
समानो मन्त्रः समितिः समानी
समानं मनः सह चित्तमेषाम् ।
समानं मन्त्रमभि मन्त्रये वः
समानेन वो हविषा जुहोमि ॥
अब बात आती है कि
आखिर वे कौन से छंद हैं जिन्हें
हम त्रिष्टुप छंद के अंतर्गत गिनेगें।
इसके लिए ये दो दोहे आपकी
सहायता करेगे::
"वर्ण ग्यारह के वर्णिक,
गिनती में हैं सात।
इंद्रवज्रा है प्रथम,
सहज शालिनी मात।।
उपेन्द्रवज्रा स्वागता,
रथोद्धता हैं साथ।
उपजाति भुजंगी युगल,
अपनी गाते गाथ।।"
इस प्रकार हम पाते हैं
कि कुल सात छंद हैं जिन्हें
त्रिष्टुप छंद कहा जाता है।
इन्हें सरलता से याद करने
के लिएआप इस कहानी का
भी आश्रय ले सकते हैं।
कहानी यो है:
शालिनी नाम की स्त्री अपने
पति भुजंगी के साथ अपने
तीन पुत्रों इंद्रवज्रा, उपेंद्रवज्रा
और उपजाति को साथ ले
रथोद्धवता रथ पर सवार हो
अपने मायके आती है ।
जहाँ इनका स्वागत उसकी
मॉ स्वागता करती है।
अब यहाँ स्पष्ट हो गया है कि
इंद्रवज्रा,उपेंद्रवज्रा,उपजाति,
शालिनी,भुजंगी,रथोद्धवता
और स्वागता इन सातों छंदों
को त्रिष्टुप छंद कहा जाता है।
।।धन्यवाद।।
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