ढोल गंवार सूद्र पसु नारी।
सकल ताड़ना के अधिकारी। इन पक्तियों
पर कुछ भी लिखने या बोलने से पहले
हमें गोस्वामीजी की परिभूमि,सांदर्भिक तत्त्व,प्रसंग,पर्यावरण, पारिस्थितिकी,
लोकावश, भाषा सेक्टर आदि को
जानकर ही आगे बढ़ना चाहिए अथवा
चुप रहना ही श्रेयस्कर है।मानस की
भाषा,लोक भाषा है अवधी।
भाषा निबंध मति मंजुल मा तनोति।
भाषा बद्ध करबि मैं सोई।
सीधी सी बात है ग्राम नगर दूहू कूल
की भाषा है अवधी भाषा है।
अतः इन पंक्तियों का अर्थ तो अवधी
भाषा से ही निकलेगा, अन्य का प्रयास
धृष्टता ही होगा। इन पंक्तियों को लेकर
सनातन के खिलाफ प्रवाद फैलाए जाते हैं।
गोस्वामी जी के इस उदाहरण को बदमाशी
भरा, नोटोरियस ,कहने वाले अवधी भाषा
से सम्बन्ध ही नहीं रखते हैं। उनको यह भी
नहीं पता कि इन पक्तियों को कहने वाला
कौन है? एक सज्जन तो हद ही कर दिए
और प्रमाण पत्र जारी कर दिए कि
"तुलसीदास डिड नॉट हैव मच रिगार्ड
फॉर वूमेन।" इस पर एक हास्य व्यंग
याद आता है कि किसी सज्जन ने
अपनी धर्मपत्नी से पूछा कि अजी ढोल
गवार सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के
अधिकारी । का अर्थ जानती हो ,
पत्नी ने बहुत ही सरलता से जबाब दिया,
हां जी ,इसमें तो सिर्फ एक ही जगह मैं हूं ,
बाकी चार जगह तो आप ही है।हमारे
तथाकथित को इस पत्नी के उत्तर से ही
सीख ले लेनी चाहिए कि वह यहां क्या है?
तथाकथित ने तो वह अर्थ ले लिया जो
गोस्वामीजी के लिए भयानक स्वप्न है।
यहां ताड़ना के अर्थ को अपने-अपने
अनुरूप लेकर बातें होती हैं ।ताड़ना का
उपदेश के रूप में अर्थ संस्कृत शब्दकोश
की उपज है यह अर्थ अवधी लोक भाषाई
स्रोत का नहीं है। दलित शुभचिंतकों ने तो
हद ही कर दी और ताड़ना को पीटना बता
दिया। लेकिन "कोटि बिप्र बध लागहि जाहू।
आवै सरन तजहू नहि ताहू।" करोड़ों
ब्राह्मणों के हत्यारे को अपनाने वाली बात
पर तो कोई शुभचिंतक नहीं बोलते ।
जो कथन जड़ मात्र का है" इनके नाथ
सहज जड़ करनी।" जो गहरी ग्लानि
ग्रस्त है,उसके कथन पर तो हद ही कर
दिया गया है। लेकिन कोटि बिप्र बध तो
साक्षात प्रभु कह रहे हैं। मैं महानुभावों की
संवेदना को समझना चाहता हूं कि ताड़न
सहन नहीं जबकि हम इसके अर्थ या भाव
को ठीक से जानते ही नहीं और बध इसको
तो ठीक से समझते हो भैया फिर इस पर
आपत्ति क्यों नहीं किया? क्यों घृणित ओछी
बातें करते हो? मैं ऐसे सज्जनों के लिए
वही कहूंगा जो कालजयी भक्तगोस्वामीजी
ने अपने ही ग्रंथ पर टिप्प्णी करते हुवे कह
ही दिया है कि "पैहही है सुख सुनि सुजन
सब खल करिहहि परिहास।" गोस्वामीजी
कभी एक वर्ग की तो बात ही नहीं करते वह
सब की बात करते हैं। "सब नर करहि
परस्पर प्रीति ।" "सब सुंदर सब बिरूज
सरीरा। किसी सज्जन ने इसमें तीन वर्ग बना
दिया और इन पक्तियों की मजाकिया
व्याख्या भी कर दी। वे कहते हैं कि
(1)ढोल(2)गवार-शुद्र(1)पशु-नारी ये
प्रताड़ना, दंड, पिटाई के योग्य हैं।इन्होंने
ताड़ना शब्द के मूल अर्थ को जानने का
प्रयास ही नहीं किया। ऐसा प्रतीत होता है
कि ताड़ना का अर्थ प्रताड़ना या पिटाई
करने वाले महानुभाव अवधी को तो छोड़े,
इस प्रसंग को ही नहीं समझते हैं। प्रसंग
संक्षेप करते हैं ।समुद्र भयाक्रांत होकर विप्र
रूप धारण कर दंड परिहार की याचना के
समय यह कहता है तो क्या वह उदाहरण
देकर खुद को प्रताड़ित करवाने या पिटवाने
की बात कह रहा है, कदापि नहीं ।आपका
प्रताड़ना के अर्थ ही ले लेते हैं , तो क्या
समुद्र ढोल है, गवार है , सूद्र है,पशु है,
नारी है, नहीं है। पहले ही विभीषणजी ने
बता दिया है कि "प्रभु तुम्हारा कुलगुरु जलधि
" वह कुल गुरु हैं ।समुद्र को तो अपनी रक्षा
करनी है वह तो कहता है," प्रभु भल किन्ह
मोहि सिख दिन्ही।" शिक्षा की बात कर रहा है ।
वह तो राम की क्रोधाग्नि को शीतल करने में
लगा है। न कि उस विद्वान की तरह वर्ग भेद
बनाने में जिन्होंने गगन समीर अनल जल
धरनी से ढोल गंवार शूद्र पशु नारी को जोड़
दिया। भाई उन्होंने तो गगन को ढोल,
समीर को गवार, अनल को सूद्र,जल को पशु,
और धरनी को नारी बता दिया ।यहां समीर
गवार कैसे? अनल सूद्र कैसे? जल पशु कैसे?
आइए हम गोस्वामी जी की ताड़ना का अर्थ
अवधी में जानते हैं ।एक समय एक वृद्ध
मां अपनी बेटी जो अपने बाल बच्चों सहित
उनसे विदा ले रही थी से विदा के वक्त
कहती है: "बाल बच्चियों को ताड़ियत
रहियो ।" इसका सीधा अर्थ है," टेक केयर
ऑफ द चिल्ड्रन" इस ताड़ना में कंसर्न है,
इस ताड़ना में सलाह है,इसमें सद्भाव है,
इस शब्द में एक चिंता है, इस शब्द में
एक ख्याल है,इस शब्द में एक अवेक्षा का
भाव है। जो गोस्वामीजी की उस चित्तवृत्ति
के अनुकूल है जो श्री सीताजी श्री निषाद
राजजी श्री हनुमान जी जैसे अनेकानेक
पात्रों के हृदय का पूरा सत्व ही उड़ेल दिया है।
अतः स्पष्ट है कि ढोल गंवार शूद्र पशु नारी
का हमेशा केयर करना चाहिए ध्यान देना
चाहिए रक्षा करनी चाहिए न की अन्य
सनातन विरोधी मान्यताओं पर ध्यान देना
चाहिए। जय श्री राम जय हनुमान।। धन्यवाद।
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