शुक्रवार, 19 जनवरी 2024
।। उपजाति छंद हिन्दी और संस्कृत में।।
गुरुवार, 18 जनवरी 2024
।।उपेन्द्रवज्रा छंद हिन्दी और संस्कृत में।।
।।उपेन्द्रवज्रा छंद हिन्दी और संस्कृत में।।
उपेन्द्रवज्रा छन्द त्रिष्टुप परिवार का
सम वर्ण वृत्त छंद है।
लक्षण -“उपेन्द्रवज्रा जतजास्ततो गौ ”
परिभाषा: जिस श्लोक/पद्य के प्रत्येक
चरण में जगण तगण जगण के बाद
दो गुरू वर्ण के क्रम में ग्यारह - ग्यारह
वर्ण होते हैं उस श्लोक/पद्य में
उपेन्द्रवज्रा छन्द होता है।
उदाहरण -
जगण तगण जगण गुरु गुरु
I S I S S I I S I S S
त्वमेव माता च पिता त्वमेव।
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वेमव।।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव।
त्वमेव सर्वं मम देवदेव॥
नोट: (ध्यान देने योग्य बात)
यहाँ प्रत्येक चरण का अन्तिम वर्ण
लघु होते हुए भी:
सानुस्वारश्च दीर्घश्च
विसर्गी च गुरुर्भवेत्।
वर्ण संयोगपूर्वश्च तथा
पादान्तगोऽपि वा।
के पादान्तगोऽपि वा के अनुसार
यदि अंतिम वर्ण लघु हो और वहां
गुरु वर्ण की आवश्यकता हो तो
अंतिम लघु वर्ण को विकल्प से
गुरू माना जाता है।
इसके अनुसार प्रत्येक चरण के अंतिम
वर्णों को गुरू माना गया है और
यह श्लोक उपेंद्रवज्रा छंद का प्रसिद्ध
उदहारण भी है।
हिन्दी में भी इस छंद के लक्षण
एवं परिभाषा यही है।
आइए उदाहरण देखते हैं:
हिन्दी में उदाहरण:
I S I S S I I S I S S
बड़ा कि छोटा कुछ काम कीजै ।
I S I S S I I S I SS
परंतु पूर्वापर सोच लीजै ।।
I S I S S I I S I S S
बिना विचारे यदि काम होगा।
I S I S S I I S I S S
कभी न अच्छा परिणाम होगा।।
।।धन्यवाद।।
।।इन्द्रवज्रा छन्द।।
इन्द्रवज्रा छन्द त्रिष्टुप परिवार का
सम वर्ण वृत्त छंद है।
इसके प्रत्येक
चरण में 11-11 वर्ण होते हैं।
इसका लक्षण इस प्रकार से है-
स्यादिन्द्रवज्रा यदि तौ जगौ गः।
अर्थात इंद्रवज्रा छंद वहां होता है
जहां श्लोक/पद्य में तौ अर्थात
दो तगण और जगौ गः अर्थात
जगण व दो गुरु वर्ण मिलकर
कुल ग्यारह-ग्यारह वर्ण प्रत्येक
चरणों में होते हैं।
इसका स्वरूप इस प्रकार है-
स्यादिन्द्रवज्रा यदि तौ जगौ गः
S S I S S I I S I S S
तगण तगण जगण दो गुरु
- उदाहरण-
ऽ ऽ । ऽऽ । । ऽ । ऽ ऽ
1-हंसो यथा राजत पंजरस्थः
सिंहो यथा मन्दर कन्दरस्थः ।
वीरो यथा गर्वित कुंजरस्थ:
चंद्रोSपि बभ्राज तथाऽम्बरस्थः।
2-विद्येव पुंसो महिमेव राज्ञः
प्रज्ञेव वैद्यस्य दयेव साधोः।
लज्जेव शूरस्य मुजेव यूनो,
सम्भूषणं तस्य नृपस्य सैव॥
3- अर्थो हि कन्या परकीय एव
तामद्य सम्प्रेष्य परिग्रहीतुः।
जातो ममायं विशदः प्रकामं
प्रत्यर्पितन्यास इवान्तरात्मा॥
यहाँ प्रथम श्लोक के प्रत्येक
पंक्ति में श्लोक के प्रथम पंक्ति
वाले ही वर्णों का क्रम तगण तगण
जगण दो गुरु है।
अतः 'इन्द्रवज्रा छन्द' है।
परन्तु दूसरे श्लोक के अंतिम चरण
का अंतिम वर्ण लघु है, तृतीय
श्लोक के प्रथम चरण के
अंत में लघु वर्ण है लेकिन
सानुस्वारश्च दीर्घश्च विसर्गी च
गुरुर्भवेत् ।
वर्णः संयोगपूर्वश्च तथा
पादान्तगोऽपि वा।
नियम के पादान्तगोऽपि वा
के अनुसार इन सभी अंतिम
वर्णों को गुरू माना गया है
और इंद्रवज्रा छंद है।
यही परिभाषा और रुप हिन्दी
में भी इंद्रवज्रा छंद का होते हैं,
आइए उदाहरणों से समझते हैं:
हिन्दी में उदाहरण :-
कान्हा कभी दर्शन तो कराओ।
भूले हमें, क्यों जबसे गये हो
बोलो यहाँ और किसे ठगे हो।।
2-नाते निभाना मत भूल जाना
वादा किया है करके निभाना।
तोड़ा भरोसा जुमला बताया
लोगों न कोसो खुद को गिराया।।
3-गंगा बहाना मन चाहता है
प्रेमी पुराना धुन चाहता है।
पूरी कहानी सुन लो जुबानी
यादें हमेशा रख लो पुरानी।।
।। धन्यवाद।।
बुधवार, 17 जनवरी 2024
।।उल्लाला छंद।।
।।उल्लाला छंद।।
मंगलवार, 16 जनवरी 2024
बरवै
।। बरवै / बरवा छंद ।।
बरवै अर्धसम मात्रिक छंद है।
इसके प्रथम एवं तृतीय (विषम)
चरणों में 12-12 मात्राएँ तथा
द्वितीय और चतुर्थ (सम) चरणों
में 7-7 मात्राएँ होती हैं।
इसके सम चरणों के अंत में
जगण (ISI) अथवा तगण (SSI)
आकर छंद को सुरीला बना देते हैं।
बरवै ‘अवधी भाषा’ का व्यक्तिगत
छन्द है, जो प्रायः श्रृंगार रस के
लिए प्रयुक्त होता है।
गोस्वामी तुलसीदासजी ने
"बरवै रामायण" नामक ग्रंथ की
रचना सात कांडो और 69 बरबै
छन्दों में किया है।
उनमें से निम्न उदाहरण प्रस्तुत हैं -----
I I S I I S S I I, S I I S I (जगण)
अब जीवन कै है कपि, आस न कोय।
I I I I S S I I S, S I I S I (जगण)
कनगुरिया कै मुदरी, कंकन होय।।1।।
I I I I I I I I S I I, I I I I S I(जगण)
गरब करहु रघुनंदन,जनि मन माहँ।
S I I S I I S I I, I I S S I(तगण)
देखहु आपनि मूरति,सिय कै छाहँ॥2।।
S I I I I S I I I I, S I I S I(जगण)
स्वारथ परमारथ हित,एक उपाय।
S I S I I I I I S, S I I S I(जगण)
सीय राम पद तुलसी, प्रेम बढ़ाय॥3॥
।।।धन्यवाद।।
सोमवार, 15 जनवरी 2024
।।त्रिष्टुप छंद किसे कहते हैं।।
रविवार, 14 जनवरी 2024
।।दोहा छंद।।
।।दोहा छंद।।
दोहा अर्द्ध सम मात्रिक छंंद है। दोहे में चार चरण
होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय)
चरण में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों
(द्वितीय तथा चतुर्थ) चरण में 11-11 मात्राएँ
होती हैं। सम चरणों के अंत में एक गुरु और
एक लघु मात्रा का होना आवश्यक होता है।
दोहे के मुख्य 23 प्रकार हैं:-
1.भ्रमर, 2.सुभ्रमर, 3.शरभ, 4.श्येन,
5.मण्डूक, 6.मर्कट, 7.करभ, 8.नर,
9.हंस, 10.गयंद, 11.पयोधर, 12.बल,
13.पान, 14.त्रिकल 15.कच्छप,
16.मच्छ, 17.शार्दूल, 18.अहिवर,
19.व्याल, 20.विडाल, 21.उदर,
22.श्वान, और 23.सर्प।
दोहे में कलों का क्रम
(अ) दोहे में विषम चरणों के कलों का क्रम
4+4+3+2 (चौकल+चौकल+त्रिकल+द्विकल)
या 3+3+2+3+2 (त्रिकल+त्रिकल+द्विकल+त्रिकल+द्विकल)
शुभ माना जाता है।
(ब) दोहे के सम चरणों के कलों का क्रम
4+4+3 (चौकल+चौकल+त्रिकल) या
3+3+2+3 (त्रिकल+त्रिकल+द्विकल+त्रिकल)
का होना उत्तम माना गया है।
उदाहरण -
S I I I I. S I I I S I I I I S S. S I
रात-दिवस पूनम-अमा, सुख-दुःख, छाया-धूप।
यह जीवन बहुरूपिया, बदले कितने रूप।।1।।
रहिमन पानी राखिए,बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरे,मोती मानुष चून।।2।।
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरती रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहिं सुर भूप।।3।।
मेरी भव बाधा हरौ, राधा नागरि सोय।
जा तन की झाँई परै, स्याम हरित दुति होय।।4।।
कागा काको धन हरै, कोयल काको देय।
मीठे बचन सुनाय कर, जग अपनो कर लेय।।5।।
बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय।
सौंहे करैं भौंहनि हँसै, दैन कहै नटि जाय।।6।।
दोहों के बारे में कुछ आवश्यक बातें:
1-दोहे के सम [दूसरे एवं चौथे] चरणों के
अन्तिम शब्द का अंत दीर्घ मात्रा से नहीं होता।
यानी हर दोहे की पंक्ति के अंत में लघु
पदांत होता है ।
2- दोहे के अंत में तीन ही गण इस्तेमाल होते
हैं: तगण [2-2-1], जगण [1-2-1] या नगण
[1-1-1] क्योंकि इन्हीं गणों के
अंत में लघु अर्थात एक मात्रा होते हैं।
शेष गणों के अंत में गुरु या दीर्घ मात्रा =
2 होने के कारण दूसरे व चौथे चरण के
अंत में वे प्रयोग नहीं होते।
3- दोहे के विषम [पहले तथा तीसरे]
चरणों के प्रथम शब्द जगण [1-2-1]
यानी लघु-गुरु-लघु मात्राओं वाले नहीं
होने चाहिए लेकिन यदि देवता का नाम
या वंदना की स्थिति हो तो जगण
हो सकता है।
4- दोहे के विषम चरणों के अन्त में सगण
(1-1-2), रगण (2-1-2) या नगण (1-1-1)
आना चाहिए।
5-दोहे का शाब्दिक अर्थ है- दुहना, अर्थात्
शब्दों से भावों का दुहना।
6-दोहा चार चरणों वाला अर्द्धसम
मात्रिक छन्द है।
7- दोहा लोक साहित्य का सबसे
सरलतम और लोकप्रिय छंद है
जिसे साहित्य में यश मिला।
8-वर्ण्य विषय की दृष्टि से दोहों का
संसार बहुत विस्तृत है। यह यद्यपि
नीति, अध्यात्म, प्रेम, लोक-व्यवहार,
युगबोध – सभी स्फुट विषयों के
साथ-साथ कथात्मक अभिव्यक्ति
भी देता आया है, तथापि मुक्तक
काव्य के रूप में ही अधिक
प्रचलित और प्रसिद्ध रहा है।
9-अपने छोटे से कलेवर में यह बड़ी-से-
बड़ी बात न केवल समेटता है, बल्कि
उसमें कुछ नीतिगत तत्त्व भी भरता है।
तभी तो इसे गागर में सागर भरने
वाला बताया गया है।
10-संस्कृत में जो लोकप्रियता
अनुष्टुप छंद को है वही लोकप्रियता
हिन्दी में दोहा छंद को है।
।। धन्यवाद।।