रविवार, 10 मार्च 2024

।। पञ्चचामर छंद हिन्दी और संस्कृत में।।

पञ्चचामर छंद 

अन्य नाम: नराच, नागराज 
पञ्चचामर एक सोलह अक्षरी छंद है।
इसमें 8/8 या 4/4 वर्णों पर यति
होती है।यह प्रमाणिका का दोगुना
होता है,जैसा कि कहा भी गया है...

प्रमाणिका- पदद्वयं वदन्ति पंचचामरम्'।
 
लक्षण:
जरौजरौततौजगौचपंचचामरंवदेत_।
परिभाषा=
जब किसी श्लोक या पद्य के प्रत्येक 
चरण में जगण(ISI), रगण(SIS), 
जगण(ISI), रगण(SIS), जगण(ISI)
और गुरु(S) के क्रम में 16×4=64,
वर्ण हों तब पञ्चचामर छंद होता है।
इस प्रकार हम पाते है कि इस छंद
के प्रत्येक चरणों में लघु गुरू लघु 
गुरू के क्रम में 16×4=64 वर्ण होते हैं।

उदाहरण:

रावण कृत शिवतांडव स्त्रोत्र इसका
सर्व श्रेष्ठ उदाहरण है।
आइए इसका प्रथम श्लोक देखते हैं..

I S I S I S I S I   S I S I S I  S
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले,
I S   I S  I S I  S I  S I S I S I S
गलेऽवलम्ब्यलम्बितांभुजङ्गतुङ्गमालिकाम्।
I S I S I S I S I S I S I S I S
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
I  S I S I  S  I S I S I S I S I S
चकारचण्डताण्डवंतनोतुनःशिवःशिवम्॥

हिन्दी:

हिन्दी में भी इस छंद के
लक्षण एवं परिभाषा संस्कृत 
की तरह ही हैं।
उदाहरण=

 1.जु रोज रोज गोप तीय कृष्ण संग धावतीं। 

  सु गीति नाथ पाँव सों लगाय चित्त गावतीं।।

  कवौं खवाय दूध औ दही हरी रिझावतीं। 

 सुधन्य छाँड़ि लाज पंच चामरै डुलावतीं।। ' 
 

2.तजो न लाज शर्म ही, न माँगना दहेज़ रे,

करो सुकर्म धर्म ही, भविष्य लो सहेज रे। 

सुनो न बोल-बात ही, मिटे अँधेर रात भी,

करो न द्वेष घात ही, उगे नया प्रभात भी।।

   ।। धन्यवाद ।।




शनिवार, 9 मार्च 2024

।।प्रमाणिका छंद ।।

प्रमाणिका  छंद 
साधारण वार्णिक छंद का यह प्रथम 
भेद है। इसका अन्य नाम: प्रमाणी, 
निगालिका और नागस्वरूपिणी है। 
प्रमाणिका एक अष्टाक्षरी छंद है।
इसके बारे में कहा भी गया है..

अष्टाक्षरी प्रमाणिका,
छंद अकेला भाय।
गेय छंद यही अद्भुत,
लघु गुरु बना सुहाय।।

लक्षण=
ज़रा लगा प्रमाणिका। 
       या
प्रमाणिका जरौ लगौ।
व्याख्या..
जरा या जरौ का अर्थ है जगण और रगण 
अर्थात् I S I तथा  S I S और लगा या लगौ 
का अर्थ है लघु गुरू I S इस प्रकार प्रमाणिका 
छंद में I S I S I S I S के क्रम में प्रत्येक 
चरणों में 8-8 वर्ण होते हैं।

परिभाषा=

जब श्लोक या पद्य के प्रत्येक चरणों में जगण
रगण लघु गुरू के क्रम में 8×4=32 वर्ण हो
तब प्रमाणिका छंद होता है।
उदाहरण :
I S I   S I S I   S  I S I   S I S I   S
नमामि भक्तवत्सलं, कृपालुशीलकोमलम्।
I  S I   S  I S I  S     I S I S    I S I S
भजामि ते पदाम्बुजं, अकामिनां स्वधामदम्॥

यहाँ हम देखते हैं कि 
I S I S I S I S के  क्रम में प्रत्येक चरणों
में 8-8 वर्ण हैं। अतः यहाँ प्रमाणिका छंद है।

हिन्दी:

हिन्दी में भी इस छंद के लक्षण एवं परिभाषा 
संस्कृत की तरह ही हैं।

उदाहरण=
   I S I   S I S I   S  I S I   S I S I   S
1.सही-सही उषा रहे , सही-सही दिशा रहे ।
   I S I   S I S I   S  I S I   S I S I   S
 नयी-नयी हवा बहे,  भली-भली कथा कहे।। 

2.जगो उठो चलो बढ़ो, सभी यहीं मिलो खिलो। 
 न गाँव को कभी तजो,  न देव गैर का भजो ।।

छायावादी कवि जय शंकर प्रसाद जी की
यह रचना प्रमाणिका छंद का अद्भुत उदाहरण है ..

3.हिमाद्रि तुंग श्रृंग से, प्रबुद्ध शुद्ध भारती।
 स्वयंप्रभा समुज्ज्वला, स्वतंत्रता पुकारती॥
 अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ प्रतिज्ञ सोच लो।
प्रशस्त पुण्य पंथ है,  बढ़े चलो बढ़े चलो॥
असंख्य कीर्ति रश्मियाँ,विकीर्ण दिव्य दाह-सी।
सपूत मातृभूमि के,रुको न शूर साहसी॥
अराति सैन्य सिन्धु में, सुबाड़वाग्नि से जलो।
प्रवीर हो जयी बनो, बढ़े चलो बढ़े चलो॥
      ।।धन्यवाद।।

।।वसन्ततिलका छंद हिन्दी एवं संस्कृत में।।




 वसन्ततिलका

   काव्य जगत में वसन्ततिलका वृत्त
बहुत ही प्रसिद्ध है प्रायः सभी कवि इस 
वृत्त से काव्य रचने की इच्छा करते हैं
क्योंकि यह सुनने में अत्यंत मधुर है 
जिससे काव्य सौन्दर्य बढ़ता है।
वसन्ततिलका के बहुत से नामान्तर
विद्यमान है जैसा कि इस कारिका से
प्राप्त होता है-

सिंहोन्नतेयमुदिता मुनि काश्यपेन । 
उद्धर्षिणीति गदिता मुनि सैतवेन ।
रामेण सेयमुदिता मधुमाधवीति।
 
अर्थात् वसन्ततिलका का काश्यप के 
मत में सिंहोन्नता नाम है, सैवत के मत
में उद्धर्षिणी नाम और राम के मत
में माधवी नाम है।यह शक्वरी परिवार
का छंद है।वसन्ततिलका छन्द को
प्रायः दो नामों से स्मरण किया जाता है। 
कुछ लोग इसे वसन्ततिलकम् तो कुछ
लोग इसे वसन्ततिलका कहते है।
दोनों ही नाम छन्द शास्त्र में प्रचलित है। 
केवल अन्तर इतना है कि वसन्ततिलकम् 
नंपुसकलिंग में है तथा वसन्ततिलका
स्त्रीलिंग में प्रयुक्त शब्द होता है । 

इस छन्द का विशेष परिचय देने के
लिये एक छोटी सी ऐतिहासिक कहानी
बताता हूँ।
 
ग्यारहवीं शताब्दी के इतिहास में
मालवा के नरेश, भोज देवजी थे।
वे बहुत बड़े पंडित एवं विद्वान थे।
उन्होंने 84 ग्रन्थों की रचना किया था। 
उन्होंने एक नियम बना दिया था कि
हमारी राजधानी धारा नगरी में कोई
भी मूर्ख व्यक्ति न रहें। जो भी निवास 
करें वह पंडित विद्वान या कवि हो ।
संयोग वश एक दिन उनके सिपाहियों
ने एक जुलाहे को पकड़ कर उनके
समक्ष लाया और बोले कि:
हे राजन! यह कुछ भी नहीं जानता है 
अर्थात् मूर्ख है इसलिए इसके दण्ड की
व्यवस्था की जाय । किन्तु राजा ने सोचा
कि बिना परीक्षा किये दण्ड की व्यवस्था 
नहीं करनी चाहिए। इसलिए उसने जुलाहे
से पूछा- हे जुलाहे ! जो सिपाही कह रहे हैं
वह ठीक है ?
तो जुलाहे ने काव्य में उत्तर
देते हुए कहा-

  S S I  S I I   I S I I S I S S
"काव्यं करोमि नहि चारुतरं करोमि
यत्नात् करोमि यदि चारुतरं करोमि।
भूपाल - मौलि-मणि- रंजित- पादपीठ:
हे साहसांक ! कवयामि वयामि यामि ।।"

इस प्रकार इन पक्तियों में 
वसन्ततिलका छंद का प्रयोग इतने
सुन्दर शब्दों के संयोजन के साथ
किया गया था। जिसको सुनकर
सभी दंग रह गये और राजा उसकी
शब्दयोजना को सुनकर इतना 
प्रसन्न हो गये कि उसको नगर में
रहने की सुन्दरतम् व्यवस्था करते
हुए पुरस्कृत किया ।

लक्षण- 
"उक्ता वसन्ततिलका तभजा जगौ गः।
  या
ज्ञेया वसन्ततिलका तभजा जगौ गः ।
अर्थात्..
जानो वसन्ततिलका तभजा जगागा।
इस प्रकार इस छंद की 
परिभाषा:
जिस छन्द के प्रत्येक चरण में क्रमश:
तगण, भगण, जगण,जगण एवं दो गुरु 
वर्ण के क्रम में 14 वर्ण हों, 
वह वसन्ततिलका छन्द कहलाता है। 

अब हम उदाहरणों को व्याख्या
सहित देखेगें:
लेकिन उससे पहले
हमें हमेशा याद रखना है कि इस
नियम के अनुसार  किसी भी छंद
के किसी भी चरण का अन्तिम
वर्ण लघु होते हुवे भी छंद की 
आवश्यकता के अनुसार विकल्प से 
हमेशा गुरु माना जाता है। इसलिए
किसी भी छंद के किसी भी चरण
का अंतिम वर्ण  यदि नियमानुसार 
गुरु होना चाहिए और संयोग से वह
लघु है तो इस नियम  के अनुसार वह
गुरु ही माना जायेगा।
वह नियम विधायक श्लोक है...

सानुस्वारश्च दीर्घश्च 
विसर्गी च गुरुर्भवेत् ।
वर्णः संयोगपूर्वश्च 
तथा पादान्तगोऽपि वा ॥

उदाहरण - 
    S S I S I I I S I I S I S S
1.लम्बोदरं परमसुन्दरमेकदन्तं
   रक्ताम्बरं त्रिनयनं परमं पवित्रम् ।
   उद्यद्दिवाकरकरोज्ज्वलकायकान्तं
   विघ्नेश्वरं सकलविघ्नहरं नमामि ।।

2.पापान्निवारयति योजयते हिताय 
  गुह्यान् निगूहति गुणान् प्रकटीकरोति। 
  आपद्गतं च न जहाति ददाति काले 
  सन्मित्र लक्षणमिदं प्रवदन्ति सन्तः॥ 

3.फुल्लं वसन्त तिलकं तिलकं वनाल्याः,
  लीलापरं पिककुलं कलमत्र, रौति।
  वात्येष पुष्पसुरभिर्मलायाद्रि वातो,
  याताहरिः समधुरां विधिना हताः स्मः ।।

4.नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये 
  सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा।
  भक्तिं प्रयच्छ रघुपुङ्गव निर्भरां मे 
  कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च ॥ 

हिन्दी:

हिन्दी में भी इस छंद के लक्षण
एवं परिभाषा संस्कृत की तरह ही हैं।

उदाहरण:⁠

1-भू में रमी शरद की कमनीयता थी ।
 ⁠नीला अनन्त - नभ निर्मल हो गया था ।
 ⁠थी छा गई ककुभ मे अमिता सिताभा ।
 ⁠उत्फुल्ल सी प्रकृति, थी प्रतिभात होती ॥

2-प्राणी समस्त सम हैं, यह भाव राखूँ।
   ऐसे विचार रख के, रस दिव्य चाखूँ।।
   हे नाथ! पूर्ण करना, मन-कामना को।
   मेरी सदैव रखना, दृढ भावना को।।
 ।। धन्यवाद ।।

।।मालिनी छंद संस्कृत एवं हिन्दी में।।

मालिनी

   मालिनी शब्द का अर्थ माला धारण करने वाली
रमणी है।यह वृत्त अर्थात् छंद "अतिशक्वती" 
परिवार का भाग है।
लक्षण-
“ननमयययुतेयं मालिनी भोगिलोंकैः ।
व्याख्याः-
        ननमयययुतेयं अर्थात् यह छंद दो नगण, 
एक भगण,दो यगण से युक्त होता है। दूसरे शब्दों
में जिस श्लोक/पद्य के प्रत्येक चरण में क्रमश: 
नगण, नगण, मगण,यगण एवं यगण के क्रम में
वर्ण हो उस श्लोक/ पद्य में मालिनी छंद होता है।
             अब प्रश्न उठता है कि विराम कब तो 
उत्तर है 'भोगिलोकैः' अर्थात् भोगि और लोकै: 
के बाद।
अब समझते है भोगि और लोकै: को।
        भोगि  शब्द बना है भोग से,भोग कहते है 
साँप की कुण्डली को और भोग से युक्त होने के 
कारण साँप का एक नाम है ‘भोगि'।इस प्रकार 
भोगि शब्द का अर्थ सर्प या नाग होता है। हमारे 
धर्मग्रंथों के आधार पर संस्कृत साहित्य में सर्पोंं 
अर्थात् नागों की संख्या 8  बतायी गई है जो
 निम्न हैं: 
अनंत(शेष), वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म,शंख और कुलिक अतः स्पष्ट है पहला
विराम भोगि अर्थात् आठवें अक्षर के बाद आयेगा।
          इसके पश्चात् दूसरा विराम लोकै:अर्थात् 
लोक के पश्चात् आयेगा विष्णु पुराण के अनुसार
अतल, वितल, सुतल, रसातल,तलातल, महातल 
और पाताल नाम के 7 लोक हैं।अतः स्पष्ट है कि 
दूसरा विराम सातवें अक्षर के बाद होगा।
         इस प्रकार इस वृत/ छंद  में आठवें एवं 
सातवें अक्षर के बाद यति होती है।यह समवृत्त 
है अत: चारों चरणों में समान लक्षण होते हैं। 
प्रत्येक चरण में 15 अक्षर होते हैं अतः चारों 
चरणों में 60 अक्षर हुवे।
परिभाषा:
         जिस  समवृत्त छंद के प्रत्येक चरणों में 
क्रमश: नगण, नगण, मगण,यगण एवं यगण के 
क्रम में वर्ण हो तथा आठवें एवं सातवें अक्षर के 
बाद यति हो उसे मालिनी छंद कहते हैं।
उदाहरण. 
इस प्रसिद्ध श्री हनुमान वंदना को आप
उदाहरण के रूप में जरूर देखें, समझें 
और याद करें...
  I I I  I I I  S S S  I S S  I S S
  अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
  I I I   I I I  S S S  I S S  I S S
  दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
  I I I  I I I  S S S  I S S  I S S
  सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
  I I I  I I I  S S S  I S S  I S ( I/S)
  रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि।।
        यहाँ नमामि में मि को देखें यह स्पष्ट 
लघु दिख रहा है लेकिन:
 सानुस्वारश्च दीर्घश्च विसर्गी च गुरुर्भवेत् ।
वर्णः संयोगपूर्वश्च तथा पादान्तगोऽपि वा ॥
के पादान्तगोऽपि वा के अनुसार किसी भी छंद 
के किसी भी चरण का अन्तिम वर्ण लघु होते
हुवे भी छंद की आवश्यकता के अनुसार विकल्प 
से हमेशा गुरू माना लिया जाता है। 
    अतः यहाँ मि गुरु वर्ण माना जा रहा है और
 इस श्लोक के प्रत्येक चरण में प्रथम चरण के
 अनुसार ही क्रमश: नगण, नगण, मगण, यगण 
एवं यगण के क्रम में वर्ण विधान है तथा इसमें 
प्रथम यति आठ पर और द्वितीय यति सात 
वर्णों पर हैं अतः यहाँ मालिनी छन्द है। 

हिन्दी...

हिन्दी में भी मालिनी छंद के लक्षण
एवं परिभाषा संस्कृत की तरह ही हैं।

उदाहरण-
 I I I    I I I    S S S   I S S   I S S
प्रिय-पति वह मेरा , प्राणप्यारा कहाँ है।
दुख-जलधि निमग्ना ,का सहारा कहाँ है।
अब तक जिसको मैं, देख के जी सकी हूँ।
वह हृदय हमारा ,नेत्र-तारा कहाँ है॥
      इस पद्य के प्रत्येक चरण में प्रथम चरण के
अनुसार ही क्रमश: नगण, नगण, मगण, यगण 
एवं यगण के क्रम में वर्ण विधान है तथा इसमें 
प्रथम यति आठ पर और द्वितीय यति सात 
वर्णों पर हैं अतः यहाँ मालिनी छन्द है। 
।। धन्यवाद।।

रविवार, 11 फ़रवरी 2024

।।तालाब के पर्यायवाची शब्द।।

।।तालाब के पर्यायवाची शब्द।।
दो दोहों में बाईस पर्यायवाची शब्द:
तालाब तलैया ताल,वापिका वापी सर।
सरसी पोखरा पोखर,जलयोजन सरोवर।।1।।
तड़ाग गड़ही जलाशय,बावड़ी पद्माकर।
मानसरोवर जलवान,हृद जोहड़ दह पुकर (पुष्कर)।।2।। 

।।आम के पर्यायवाची शब्द।।

 ।।आम के पर्यायवाची शब्द।।
 एक दोहे में बारह पर्यायवाची शब्द:
आम्र आंबा अतिसौरभ,अंब आम अमृतफल।
पिकबंधु कैरी सौरभ, च्युत(च्यूत)सहकार रसाल।।

✓।।घोड़ा के पर्यायवाची शब्द।।

।।घोड़ा के पर्यायवाची शब्द।।
दो दोहों में तेरह पर्यायवाची शब्द:
आशुविमानक तुरग हय, गति से देते खेत।
रविसुत तुरंगम तुरंग, सवार सदा सचेत।।1।।
घोटक घोड़ा बाजि (वाजि)हरि ,रखते शक्ति अनूप।
रविपुत्र सैंधव अश्व च, दिखते बहु स्वरूप।।2।